गुरु शिष्य का सम्बन्ध पर निबंध Essay On Guru Shishya Ka Sambandh In Hindi

Essay On Guru Shishya Ka Sambandh In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज हम गुरु शिष्य का सम्बन्ध पर निबंध में हम भारत की प्राचीन गुरु शिष्य परम्परा पर छोटा बड़ा निबंध आपके साथ शेयर कर रहे हैं.

गुरु शिष्य पर निबंध का लेख कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चें 100, 200, 250, 300, 400, 500 शब्दों में आप यहाँ निबंध पाएगे.

गुरु शिष्य सम्बन्ध निबंध Essay On Guru Shishya Ka Sambandh Hindi

गुरु शिष्य सम्बन्ध निबंध Essay On Guru Shishya Ka Sambandh Hindi

गुरु एक कुम्हार की तरह होता हैं, जो कच्ची मिटटी का सही उपयोग कर एक आकर्षक घड़ा बना देता हैं. एक अच्छा गुरु अपने शिष्य का जीवन तराश सकता हैं, निखार सकता हैं.

किसी भी व्यक्ति की सफलता और उनके जीवन में सफल होने के लिए गुरु का होना जरुरी हैं, किसी ने ठीक ही कहा हैं, गुरु बिन घोर अँधेरा अर्थात इस संसार में गुरु ही एकमात्र वो इंसान हैं, जो अपने शिष्य को अज्ञानता के अन्धकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में इस दुनिया का परिचय करवाता हैं.

गुरु शिष्य की यह हमारी परम्परा अतीत से चली आ रही हैं, भारतीय संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उपाधि देकर सर्वोच्च स्थान प्रदान किया हैं. हरेक बच्चे का गुरु उनका अच्छा मार्गदर्शक होता हैं.

गुरु का अर्थ विद्यालयी, कॉलेज, ट्यूशन शिक्षक से न होकर गुरु वह व्यक्ति हैं जो आपकी भलाई चाहता हैं तथा आपकों सही राह दिखाता हैं.

बच्चें की पहली गुरु उनकी माँ ही होती हैं, जो जन्म से 5-6 वर्षो तक उनके आचार-विचार, खान-पान और अन्य के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए. कि शिक्षा प्रदान करती हैं. अकसर नन्हा बालक वही समझता और सीखता हैं, जो उनके परिवार और समाज में हो रहा हैं.

गुरु तो उस कुम्हार की तरह होता हैं, जो कीचड़ में से मिट्टी को निकालकर सुंदर घड़ा बना लेता हैं. गुरु शिष्य को ज्ञानवान बनाकर उन्हें सुसंस्कारित बनाकर उनके भीतर छूपे व्यक्तित्व को उकेरता हैं.

गुरु अपने शिष्य को जीवन में निरंतर आगे बढ़ने, आने वाली परेशानियों का सामना करने तथा निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता हैं.

व्यक्ति को जीवन पर्यन्त शिक्षा और नई चीजे सीखते रहना चाहिए. जरुरी नही आपकी प्राथमिक स्कुल के अध्यापक ही आपके गुरु हो, गुरु तो जीवन के किसी भी मोड़ किसी समय मिल सकते हैं. हमे जिनसे कुछ अच्छा करने के लिए सीखने को मिले वही गुरु हैं.

प्राचीन समय में गुरु का बड़ा महत्व था, हालाँकि अब भी उतना ही हैं, मगर समय पर परिस्तिथियों के अनुसार गुरु शिष्य परम्परा को परिभाषित करने में कुछ बदलाव आए हैं. पहले गुरुकुल में गुरु न केवल शिक्षा दिया करते थे बल्कि अपने शिष्यों के चहु विकास के लिए प्रयत्न किया करते थे. 

मध्यकाल में शिक्षा के स्तर और शिक्षा व्यवस्था में आई विकृतियों के कारण गुरु शिष्य का सम्बन्ध और रिश्ता भी प्रभावित हुआ हैं. गुरु का काम होता हैं, ज्ञान बाटना. शिष्य उस ज्ञान को श्रद्धा, भक्ति और ईमानदारी के साथ ग्रहण करता हैं.

गुरु शिष्य दोनों के मन में समपर्ण और लग्न के भाव का होना जरुरी हैं. इसके बिना एच्छिक लक्ष्यों की प्राप्ति नही की जा सकती हैं. इसलिए हर शिष्य को जीवन में अच्छे गुरु और एक गुरु को सच्चे मेहनती शिष्य की परम आवश्यकता होती हैं.

गुरु शिष्य का रिश्ता जीवन पर्यन्त बना रहता हैं. हरेक शिष्य को अपने जीवन में कभी गुरु को नही भूलना चाहिए. यदि आप अपने गुरु के कर्तार्थ की गुरु दक्षिणा देना चाहे, तो कभी भी इश्वर समाप्य गुरु का निरादर नही करे. 

गुरु अपने शिष्य को संसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान देने के साथ-साथ हमेशा उसकी सुरक्षा व् बुरे कर्मो से दूर रखने की कोशिश करता हैं. शिष्य चाहे गुरु का आदर-सम्मान करे

अथवा न करे गुरु अपने शिष्य के लिए कभी अहित, बुरे की नही सोचता हैं. गुरु-शिष्य परम्परा की शुरुआत संसारिक ज्ञान से होकर मोक्ष प्राप्ति तक अनवरत रूप से बनी रहती हैं.

Essay On Guru Shishya Ka Sambandh In Hindi In 500 Words With Headings

परम्परागत गुरु शिष्य संबंध– भारतीय संस्कृति और सामाजिक व्यवहार में गुरु को बहुत सम्मानीय स्थान दिया गया हैं. गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, शिव नहीं साक्षात परमब्रह्मा के तुल्य माना गया हैं.

गुरु को यह सम्मान उनके चरित्र की महानता और विद्या को जीवन में अत्यंत महत्व दिए जाने के कारण प्राप्त हुआ था. गुरु में श्रद्धा रखने के संस्कार शिष्य को परिवार से ही प्राप्त हो जाते थे.

वर्तमान स्थिति– आज गुरु शिक्षक और शिष्य छात्र बन गया हैं. कुछ अपवादों को छोड़ दे तो गुरु शिष्य के बीच अब केवल औपचारिक या व्यवसायिक संबंध ही शेष रह गये हैं. चिकित्सा, वकालत, व्यापार आदि की तरह शिक्षण भी एक व्यवसाय मात्र रह गया हैं.

छात्र शुल्क देता हैं. और बदले में उसे शिक्षकों की सेवाएं प्राप्त होती हैं. श्रद्धा, सम्मान, दायित्व जैसे भावनात्मक सम्बन्धों की कोई उपयोगिता नहीं रह गई हैं.

आज विद्यालयों में शैक्षिक वातावरण दुर्लभ हो गया हैं. हड़ताल, प्रदर्शन, गुटबंदी, मारपीट ये विद्यालयों के द्रश्य आम हो गये हैं. न छात्रों में शिक्षकों के प्रति श्रद्धाभाव है और न शिक्षकों में छात्रों के प्रति दायित्व की भावना.

परिवर्तन के कारण– विद्या मन्दिरों बल्कि कहे तो शिक्षालयों के वातावरण और गुरु शिष्यों सम्बन्धों के विघटन के अनेक कारण हैं. सर्वप्रथम है पारिवारिक संस्कारों का क्षय.

आज परिवार में गुरु के प्रति श्रद्धाभाव की शिक्षा ही नहीं मिलती हैं. इसके अतिरिक्त शिक्षक भी अपने आचरण की श्रेष्टता भुला बैठे हैं.

उनकी छात्र के जीवन निर्माण में बहुत सीमित भूमिका रह गई हैं. छात्रों को अध्यापक से अधिक भरोसा कोचिग और ट्यूशन पर हैं. शिक्षा माफिया के उदय से शिक्षकों और विद्यालयों की उपयोगिता की मजाक बनकर रह गई हैं. डंके की चोट पर होती नकल को बोर्ड विद्यालय और प्रशासन रोक पाने में असमर्थ हैं.

पास कराने के ठेकेदारों को निश्चित रकम सौपने के बाद छात्र को विद्यालय जाने, शिक्षकों के समक्ष सिर झुकाने या फिर किताबों में सिर खपाने की क्या आवश्यकता.

दुष्परिणाम– छात्र और शिक्षक के बीच भावनात्मक संबंध समाप्त हो जाने से पूरा शिक्षा तंत्र प्रभावित हुआ हैं. एक प्रकार से धन बल ने शिक्षा तंत्र में शिक्षक की भूमिका शून्य कर दी हैं.

आज विद्यालय छात्रों के लिए एक पंजीकरण केंद्र से अधिक महत्व नहीं रखता. वे मौज मस्ती करने, मोबाइल पर प्रेमालाप करने, झगड़े, झंझटों के षड्यंत्र करने के लिए विद्यालय जाते हैं.

इस दूषित वातावरण ने परिश्रमी, योग्यता बढ़ाने के इच्छुक और प्रतिभाशाली छात्रों का भविष्य अंधकारमय बन दिया गया हैं. नकल के बल पर उतीर्ण होने वाले छात्र इस देश और समाज को कहाँ ले जाएगे. यह विचारणीय प्रश्न हैं.

समाधान के उपाय– शैक्षिक अराजकता के बढ़ते जा रहे तूफान को शिक्षकों और छात्रों के बीच संतुलित और सम्मानजनक सम्बन्धों से ही नियंत्रित किया जा सकता हैं.

समाज और प्रशासन को भी अपने दायित्वों को ईमानदारी से निभाना होगा. कबीरदास ने गुरु शिष्य सम्बन्ध का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया हैं. इसी में शिक्षा जगत का कुशल क्षेम निहित हैं.

शीष को ऐसा चाहिए, गुरु को सरबस देय
गुरु को ऐसा चाहिए, शिष से कछू न लेय

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