हकीम अजमल खां का जीवन परिचय इतिहास | Hakim Ajmal Khan Biography In Hindi

हकीम अजमल खां का जीवन परिचय इतिहास Hakim Ajmal Khan Biography History Jivani In Hindi: हकीम अजमल खां पेशे से एक यूनानी वैद्यके रूप विश्व चर्चित चिकित्सक थे.

जिनके इस महान गुणों के कारण 1908 ”हाफिज उल मुल्क” तथा 1915 में ” केसर ए हिन्द” की उपाधि से सम्मानित किया गया था. औषधि विज्ञान के रूप में इसका महान योगदान विस्मरणीय है.

अजमल खां का जीवन परिचय इतिहास Hakim Ajmal Khan Biography In Hindi

हकीम अजमल खां का जीवन परिचय इतिहास | Hakim Ajmal Khan Biography In Hindi

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शुरूआती सदस्यों में हकीम अजमल ख़ान या अजमल ख़ान जी महात्मा गांधी के अनुयायियों में से थे.

जिन्होंने अंग्रेज सरकार की नीतियों के विरुद्ध खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व करने के साथ ही गांधीजी द्वारा शुरू किये गये स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई.

इन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया गया. अपने जीवन के अंतिंम दिनों तक जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर बने रहे.

अजमल खान का जन्म 12 फरवरी 1986 को दिल्ली में हुआ था. इन्हें यूनानी चिकित्सा शैली को भारतीय आधार प्रदान करने के लिए हिंदुस्थानी दवाखाना नामक सस्था की स्थापना दिल्ली में की.

सैदा उपनाम से अजमल खान ने उर्दू में रचना भी की. साथ ही इन्होने मुज्ल्ला ई तिबिया पत्रिका का कुछ समय तक सम्पादन भी किया.

जब हकीम अजमल खां ने राजनीती में कदम रखा तब समाज में जागृति और आधारभूत ढाँचे को सुधारने के लिए अकमल-उल-अकबर नामक अखबार का सम्पादन शुरू किया.

मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों के बिच राष्ट्रिय एकता, महिला शिक्षा और उत्थान के विषय में हकीम अजमल खां ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. महात्मा गांधी के साथ इन्होने हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों वर्गो को साथ लेते हुए रोलेट एक्ट और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में हडताल की.

इन्होने कई महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया जिनमे खिलाफत आंदोलन के अध्यक्ष, हिन्दू महासभा के पहले स्वागत सदस्य भी रहे. हकीम अजमल खां द्वारा ही 1920 को अलीगढ़ में जामिया मिलिया इस्लामिया शिक्षण संस्थान की स्थापना की, जो वर्तमान में मुस्लिम वर्ग के विद्यार्थियों के लिए शीर्ष स्तर का विश्वविद्यालय है.

हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक तथा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महती भूमिका निभाने वाले अजमल खान के 1927 में देहांत के समय में गांधीजी ने कहा था. ” हिन्दू मुस्लिम एकता का विचार हकीम अजमल खान के नाक की सांस के साथ साथ रचा बसा हुआ था.”

हकीम अजमल खान बायोग्राफी

अजमल खान देश के जाने वाले विख्यात हकीम थे इस कारण उनके नाम के साथ ही हकीम अजमल खान जुड़ गया. ये एक यूनानी चिकित्सा पद्धति के कुशल चिकित्सक & राष्ट्रवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे.

इनके बारे में कहा जाता है ये व्यक्ति को देखकर ही बता दिया करते थे कि उसका मर्ज क्या हैं. दिन में करीब दौ सो लोगों का ईलाज करते थे.

इन्होने बीसवी सदी में तिब्बिया कॉलेज की स्थापना कर भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति के उत्थान की शुरुआत की, एक अन्य मुस्लिम रसायनज्ञ सलीमुज्ज्मन के परिष्कार का श्रेय भी इन्हें जाता हैं.

अजमल खान महात्मा गांधी के करीबियों में से एक थे. वे पांचवे भारतीय मुस्लिम नेता थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने, 1921 के अहमदाबाद सम्मेलन की इन्होने अध्यक्षता भी की.

दिल्ली की जामिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की नींव रखने वालों में एक अजमल भी थे, वर्ष 1920 में ये इसके कुलाधिपति बनते है तथा अपनी मृत्यु 1927 तक ये इसी पद पर बने रहते हैं.

शुरूआती जीवन व इतिहास

अजमल खान का जन्म 1863 में हुआ, इनके पूर्वज मुगल राज्य के संस्थापक बाबर के साथ भारत आए थे और यही बस गये थे. इनके परिवार के सभी सदस्य हाकिम थे. जो दरबार में अपनी सेवाएं देते थे. सदियों से इनके परिवार में यह अभ्यास पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता था.

दिल्ली के अमीर खानदानों में अजमल खान का परिवार था. इन्होने शरीफ मंजिल नामक भवन बनवाया जिसमें एक अस्पताल और महाविद्यालय था जिसमें यूनानी चिकित्सा पद्धति की शिक्षा दी जाती थी. साथ ही यहाँ पूरे हिन्दुस्तान के मरीजों का निशुल्क ईलाज भी किया जाता था.

पारिवारिक परम्परा के मुताबिक़ अजमल खान ने बचपन में अपने पिता और दादा से चिकित्सा का इल्म पाया और कुरान व इस्लामिक शिक्षा के साथ अरबी और फ़ारसी भाषाओं को भी सीखा.

इनके दादा हकीम शरीफ चिकित्सा पद्धति के अधिक प्रचार प्रसार पर जोर देते थे. उन्होंने अपनी यूनानी पढ़ाई दिल्ली के सिद्दीकी दवाखाना के हकीम अब्दुल जमील की देखरेख में पूरी की.

जब अजमल ने तालीम पूरी कर ली तो इन्हें 1892 में रामपुर के नवाब का चिकित्सक बना दिया गया. माना जाता है कि उनके पास कोई रूहानी ताकत थी. जिनका राज उन्ही के पास था, वे इस कला के इतने प्रवीण थे कि मरीज को देखकर ही उसकी बिमारी के बारे में बता दिया करते थे.

खान एक बार मरीज को देखने के एक हजार रुपया लेते थे, यह उस समय में बहुत बड़ी राशि हुआ करती थी. जब वे शहर से बाहर किसी का इलाज करते जाते तो दैनिक शुल्क लेते थे. ऐसा भी कहते हैं. यदि कोई मरीज चलकर उनके पास दिल्ली आता तो उनका निशुल्क इलाज करते थे.

हकीम मोहम्मद अजमल खान अपने समय के अद्भुत चिकित्सक, साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक राजनेता और शिक्षाविद थे, इन्होने यूनानी चिकित्सा को फैलाने के उद्देश्य से तीन अहम संस्थाओं सेंट्रल कॉलेज, हिन्दुस्तानी दवाखाना तथा आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बिया कॉलेज की नींव रखी.

राष्ट्रवादी नेता

अजमल खान के परिवार का एक साप्ताहिक न्यूज पेपर चलता था जिन्हें अकमल उल अखबार कहा जाता था, कुछ समय तक उन्होंने सम्पादन का कार्य किया और अपना रुख राजनीति की ओर कर दिया.

ये कांग्रेस, मुस्लिम लीग और खिलाफत कमेटी तीनो के अध्यक्ष रह चुके थे. राजनीति की शुरुआत एक मुस्लिम नेता के रूप में की तथा 1906 में इन्ही के नेतृत्व में एक ज्ञापन वायसराय को शिमला में दिया गया. इसी वर्ष जब ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई तब अजमल खान उसमें शामिल थे.

एक समय कई मुस्लिम नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया तब वे महात्मा गांधी से मिलने गये और यही से उनका गांधी के साथ सफर शुरू हुआ. कई बड़े मुस्लिम नेताओं शौकत अली, मोहम्मद अली, मौलाना आजाद आदि से भी मिलने का अवसर प्राप्त हुआ.

पहचान

मसीहा-ए-हिंद या मसीह-उल-मुल्क की उपाधि से उन्हें भारत सरकार ने नवाजा, आजीवन सेवा परोपकार का काम करने वाले अजमल खान की मृत्यु 29 दिसम्बर 1927 को दिल की बीमारी से हो गई.

भारत के बंटवारे के बाद हकीम ख़ान के पौत्र हकीम मुहम्मद नबी ख़ान पाकिस्तान चले गये, जिन्होंने लाहौर में दवाखाना हकीम अजमल खान की स्थापना की. वर्तमान में पाकिस्तान में इसका बड़ा नाम है जगह जगह इसकी शाखाएं खुली हैं.

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