History Of Nanda Dynasty In Hindi नन्द वंश का इतिहास महापद्म नन्द (mahapadma nanda) और घनानन्द (dhana nanda) का नाम आपने भारत के इतिहास में अवश्य ही सुना होगा, ये नंदवंश के ही शासक थे.
लगभग पांचवी और चौथी सदी में भारत के अधिकांश भाग पर नन्द वंश का शासन था. नंदवंश की स्थापना प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद द्वारा की गई थी.
भारत की राजनीती में उत्कर्ष इन्ही नन्द वंश के उत्थान को माना गया हैं. यह इस देश के इतिहास का पहला साम्राज्य था जिसकी सीमाएं गंगा के मैदान तक विस्तृत थी.
नन्द वंश का इतिहास | Nanda Dynasty In Hindi
इस वंश का संस्थापक महापद्म नन्द को माना जाता है. महापद्मनंद ने उड़ीसा के कलिंग को जीता तथा वहां नहरों का निर्माण कराया. विजय स्मारक के रूप में यह कलिंग से जिन जिन की मूर्ति को उठा लाया था.
महापद्मनंद को पुराणों में सर्वक्षत्रान्तक एवं एकराट कहा गया है. नन्द वंश का अंतिम शासक घनानंद था. इसी के शासन काल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया. नन्द शासक परम धनी और शक्तिशाली थे.
कहा जाता है कि इनकी सेना में २ लाख पैदल सैनिक 20 हजार घुड़सवार और ६ हजार तक हाथी थे. इतनी विशाल सेना का रख रखाव अच्छी खासी प्रभावी कर संग्रह प्रणाली द्वारा ही संभव है. नन्दों पर चढाई करने की हिम्मत सिकन्दर की भी नही हुई.
नंद वंश का इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्य (Important History and Facts about Nanda Empire in Hindi)
लगभग 344 ई.पू. से 322 ई.पू. की अवधि में बिहार के मगध के आस पास के क्षेत्रों पर नंद वंश का शासन रहा था. 344 ईसा पूर्व में महापद्यनन्द ने इस वंश के साम्राज्य की नींव रखी थी.
पुरानो में भी इसको महापद्म तथा महाबोधिवंश में उग्रसेन कहकर सम्बोधित किया गया हैं. नंद साम्राज्य का संस्थापक नाई जाति से था, इसने कई उपाधियाँ से विभूषित किया गया जिनमें महापद्म एकारट, सर्व क्षत्रान्तक मुख्य थी.
महापद्मनंद के उत्तराधिकारियों की बात करें तो उग्रसेन, पंडूक, पाण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, योविषाणक, दशसिद्धक, कैवर्त, धनानन्द मुख्य थे, घनानंद के बारे में भारतीय इतिहास में कई जगह उल्लेख मिलता हैं. कहते है चन्द्रगुप्त मौर्य ने घनानन्द को पराजित कर मगध साम्राज्य की स्थापना की थी.
महापद्मनन्द को नन्द वंश का सबसे प्रतापी शासक माना गया हैं जिसने गंगा घाटी की सीमाओं को पार करते हुए विन्ध्य पर्वत तक अपने राज्य का विस्तार किया था.
व्याकरण के आदि आचार्य पाणिनि महापद्मनन्द के घनिष्ठ मित्र थे. इनके वंश के शासन के दौरान वर्ष, उपवर्ष, वर, रुचि, कात्यायन जैसे विद्वान भी आश्रय प्राप्त करते थे.
शासन अवधि (reign period)
नन्द वंश के कालखंड के विषय में इतिहासकार एकमत नहीं हैं. कई ऐतिहासिक विवरणों में नन्द साम्राज्य की शासन की अवधि को अलग अलग वर्णित किया गया हैं.
मत्सय पुराण में महापद्म के शासन की अवधि 88 वर्ष बताई जाति हैं जबकि वायु पुराण में नन्द वंश की कुल शासनावधि 40 साल के आस पास बताई जाती हैं.
16 वीं सदी के इतिहासकार तारानाथ ने इस साम्राज्य की कुल अवधि महज 29 वर्ष ही बताई हैं. अगर आधुनिक इतिहासकार इरफ़ान हबीब और विवेकानंद झा के मत की बात करे तो ये 344-322 ईसा पूर्व तक के 22 वर्षों तक ही नन्दों का शासनकाल मानते हैं.
एक अन्य इतिहासकार उपिन्दर सिंह नन्द वंश के शासन की अवधि 364/345 ईसा पूर्व से 324 ईसा पूर्व तक बताई हैं.
एक अन्य मत के अनुसार नौ राजाओं के शासनकाल में नंदा शासन 155 वर्षों तक रहा, आरसी मजूमदार के अनुसार पूर्व के सभी इतिहासकारों द्वारा दिए गये साक्ष्य पुष्ट नहीं किये जा सकते अतः उनकी न तो पुष्टि की जा सकती है और न ही इन्हें विश्व स्रोत के अभाव में खारिज किया जा सकता हैं.
हिन्दू पौराणिक ग्रन्थ, जैन और बौद्ध मत सभी नौ नन्द राजाओं के होने की पुष्टि करते हैं. पाली भाषा में रचित श्रीलंकाई बौद्ध ग्रंथ महावंश के अनुसार 9 नंद राजा थे जिन्होंने 22 वर्षों तक शासन किया.
नन्द वंश के शासकों के नाम
- उग्रसेन
- पंडूक
- पाण्डुगति
- भूतपाल
- राष्ट्रपाल
- योविषाणक
- दशसिद्धक
- कैवर्त
- धनानन्द
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