भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध | Impact Of Western Culture On Indian Culture Essay In Hindi

भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध Impact Of Western Culture On Indian Culture Essay In Hindi : भारत ही नहीं थर्ड वर्ल्ड के लोगों में पश्चिमी सभ्यता कल्चर और जीवन के प्रति झुकाव इस सदी की एक अहम विशेषता रही हैं.

आज के निबंध में हम भारतीय समाज, युवा, शिक्षा, संस्कृति पर पाश्चात्य प्रभाव को विस्तार से जानेगे.

भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध

भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध | Impact Of Western Culture On Indian Culture Essay In Hindi

Western Culture Vs Indian Culture

आज भारतीय समाज अपना पहनावा, खान पान, रीती रिवाज भूल रहा है तो इसका मूल कारण पाश्चात्य संस्कृति और इसका प्रभाव ही हैं.

हम पश्चिम के देशों के तौर तरीके अपनाने ही होड़ में लगे है तथा ६ हजार वर्ष पूरी भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को भूलाते जा रहे हैं. वक्त है हमें समय रहते सावधान हो जाना चाहिए तथा अपनी संस्कृति को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए. 

भारतीय समाज की संस्कृति आध्यात्म प्रधान संस्कृति कही जाती हैं जबकि पाश्चात्य संस्कृति को भौतिक प्रधान संस्कृति के रूप में देखते हैं. आध्यात्म प्रधान संस्कृति से तात्पर्य अभौतिकतावादी दृष्टिकोण को अत्यधिक महत्व मिलने से हैं.

प्राचीनकाल से ही भारत संस्कृति में विश्वास, भावना, आस्था, धर्म, रीती, रिवाजों परम्पराओं आदि का अत्यधिक महत्व रहा हैं. धर्म प्रधान संस्कृति होने के कारण लोगों ने इसे आध्यात्म प्रधान संस्कृति माना हैं.

परम्परागत दृष्टिकोण के तहत हम अपने धार्मिक अर्थात आध्यात्मिक दर्शन को लेकर काफी हद तक अतीत के प्रति महिमामंडित भाव रखते है.

लेकिन आज आवश्यकता इस बात की है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर हमें इस तथ्य का मूल्यांकन करना चाहिए कि २१ वीं सदी में भी क्या पांचवीं सदी की मान्यताओं को जारी रखा जा सकता हैं.

आज दुनियां विज्ञान की निरंतर वृद्धि के दम पर चाँद तो क्या सूर्य को भी खंगालने की कोशिश कर रहा हैं. मानव का क्लोन बनाकर ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश की जा रही हैं, तो क्या इन परिस्थितियों में धर्म या आध्यात्मिकता को आवश्यकता से अधिक महत्व देना प्रासंगिक एवं बुद्धिमानी पूर्ण हैं.

भारतीय संस्कृति बनाम पाश्चात्य संस्कृति (indian culture vs western culture debate in hindi)

पाश्चात्य संस्कृति भौतिक प्रधान हैं अर्थात वैज्ञानिक संस्कृति हैं. भौतिक प्रधान संस्कृति का अर्थ एक ऐसी संस्कृति से हैं जो यथार्थवादी दृष्टिकोण को अधिक महत्व देती हैं.

भौतिक का सामान्य अर्थ देखने या इन्द्रिय बोध से साक्षात सम्बन्ध रखने वाली वस्तु से हैं. भौतिक से तात्पर्य हैं यथार्थ, वास्तविक. इसलिए इसे वैज्ञानिक माना जाता हैं.

क्योंकि वैज्ञानिक परिपेक्ष्य जांच पड़ताल की मूल्यांकनात्मक पद्धति अपनाकर एक सामान्य सिद्धांत या नियम बनाने से सम्बन्धित होता हैं.

जिसके आधार पर भविष्यवाणी की जा सके और व्यक्ति एवं समाज की जीवन शैली को बेहतर बनाया जा सके. आजकल इस बिंदु पर सभी समझदार लोग भारतीय युवाओं के उस दृष्टिकोण की आलोचना करते है.

जिसमें उन पर पाश्चात्य संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित होने का आरोप लगाया जाता हैं. पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन हो रहा हैं.

पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण एवं संघर्षपूर्ण हो गया हैं. पाश्चात्य संस्कृति की नकल के कारण लोग स्वतंत्र होकर जीवन यापन करना पसंद करते हैं. परिणामस्वरूप वैवाहिक सम्बन्धों में सुद्रढ़ता एवं आत्मीयता का अभाव उत्पन्न हो गया हैं.

संयुक्त परिवार में वैवाहिक सम्बन्धों को टूटने से बचाने के लिए जो पारिवारिक प्रष्ठभूमि होती हैं, वर्तमान के एकल या नाभिक परिवारों में उसका अभाव हैं. इस कारण विवाह विच्छेद की समस्या में वृद्धि हुई हैं.

पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव (impact of western culture on indian culture essay)

लेकिन दूसरी ओर प्रेम विवाह अंतरजातीय विवाह जैसे मामलों में वृद्धि हुई हैं. विशेषकर महिलाओं के व्यक्तित्व के विकास में, शिक्षा के प्रचार ने उन्हें अधिक महत्वकांक्षी और आत्मविश्वासी बना दिया हैं.

उनमें आत्म निर्भरता की भावना का अत्यधिक प्रचार होने से परिवार का संतुलित एवं सुद्रढ़ विकास होता हैं. शैक्षिक एवं आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर महिलाएं जो परम्परा की बेड़ियों में जकड़कर घर की चहारदीवारी में कैद थी, अब पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने लगी हैं.

आजकल सबसे बड़ी समस्या पाश्चात्यीकरण को आधुनिकीकरण की प्रिक्रिया समझने सम्बन्धी भूल हैं. समाजशास्त्रिय दृष्टिकोण से पाश्चात्यीकरण एवं आधुनिकीकरण की प्रक्रियाएं सिद्धान्तः भिन्न हैं,

लेकिन व्यवहारिक रूप से कुछ भिन्नता होने के बावजूद उसमें काफी समानता हैं. सरल शब्दों में कहे तो भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पश्चिमीकरण की प्रक्रिया द्वारा ही प्रारम्भ होती हैं.

पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में जहाँ पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण किया जाता है, जिसमें आधुनिक मूल्यों के साथ साथ कुछ रूढ़िवादी परम्पराएं भी शामिल होती रहती हैं, जबकि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया एक मूल्य भारित अवधारणा हैं

अर्थात आधुनिक मूल्यों का अनुकरण करना एवं उसके अनुरूप व्यवहार करना आधुनिकीकरण हैं. इस तरह पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत आँखें मूदकर पाश्चात्य देशों की संस्कृति का अनुसरण करना ही आधुनिकीकरण नही हैं.

पाश्चात्य संस्कृति के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव (positive effects of western culture on indian culture in hindi)

पश्चिमीकरण के अंतर्गत मौजूद आधुनिक मूल्यों का अनुसरण करना तार्किक एवं उपयुक्त लगता हैं. लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के अन्य तत्वों का अन्धानुकरण अनुचित हैं.

पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करने की होड़ में हम अपनी भाषा, संस्कृति, वेशभूषा, कला रहन सहन, साहित्य आदि को भूल गये हैं.

आधुनिकता की इस दौड़ में हमने आर्थिक के साथ साथ सांस्कृतिक क्षेत्र में भी अत्यधिक प्रगति की हैं. शिक्षा का प्रसार, संचार साधनों का विकास भौतिकवादी संस्कृति का प्रचार आदि कारकों ने रुढ़िग्रस्त परम्परागत भारतीय आदर्शों में अनेक सकारात्मक परिवर्तन किये हैं. रुढ़िग्रस्त, आडम्बरपूर्ण एवं अतार्किक धर्म के प्रति लोगों का लगाव कम होता जा रहा हैं.

अधिकांश लोग अब भाग्य की अपेक्षा कर्म पर विश्वास करने लगे हैं. आधुनिकता आज समय की मांग हैं. लेकिन इसी के साथ साथ भौतिकवादी दृष्टिकोण ने लोगों को यांत्रिक बना दिया हैं.

संवेदनाएं, प्रेम, आत्मीयता का स्थान कृत्रिम एवं औपचारिक सम्बन्धों ने ले लिया हैं, मनुष्य अब अधिक एकांकी एवं स्वकेन्द्रित बन गया हैं.

लोगों के बीच आत्मीयता एवं आमने सामने के स्नेहपूर्ण सम्बन्ध समाप्त होते जा रहे हैं. परिणामस्वरूप सामाजिक जीवन नीरस एव अर्थविहिन होता जा रहा हैं.

इसी कारण आज आवश्यकता भारतीय संस्कृति की परम्पराओं को सहेजकर रखने के साथ साथ पाश्चात्य संस्कृति के आधुनिक मूल्यों को आत्मसात करने की हैं.

पारम्पारिकता आधुनिकता को आधार प्रदान करती है, उसे शुष्क एवं नीरस बुद्धि विलासी बनाने से बचाती हैं. मानवीय व्यवहार को एक सम्यक अर्थ प्रदान करती हैं.

भारतीय संस्कृति की परम्पराएं हमें भारतीय होने का एहसास करवाती हैं. जो हमें विश्व के अन्य देशों से विकास की दौड़ में आगे बढने के लिए प्रेरित करती हैं, भारतीय संस्कृति की अनेक परम्पराएं ऐसी हैं जो सामाजिक जीवन को अधिक सरस एवं आत्मीय बनाए रखने में योगदान करती हैं.

जिससे मनुष्य की तरह जीवन जीया जा सकता हैं. यंत्र की तरह नहीं. साथ ही पाश्चात्य संस्कृति की अनेक विशेषताएं हमारे विचारों को अधिक तार्किक एवं बौद्धिक बनाती हैं,

जिन्हें हम अपने व्यवहार में क्रियान्वित कर मनुष्य जीवन को अधिक सार्थक बना सकते हैं अतः दोनों में परस्पर विरोध नहीं बल्कि अन्योन्याश्रित सम्बन्ध हैं.

पश्चिमी सभ्यता बनाम भारतीय सभ्यता | Western Civilization vs. Indian Civilization

पश्चिम की प्रोद्योगिकी और पूर्व की धर्मचेतना का सर्वश्रेष्ट लेकर ही नई मानव संस्कृति का निर्माण संभव है. पश्चिम नया धर्म चाहता है पूरब नया ज्ञान. दोनों की अपनी अपनी आवश्यकताएं है. वहां यंत्र है मन्त्र नही , यहाँ मन्त्र है यंत्र नही.

वहां भौतिक सम्पन्नता है पश्चिम के आध्यात्मिक दैन्य को दूर करने में पूरब की मैत्री करुणा और अहिंसा के संदेश महत्वपूर्ण होंगे तो पूरब के भौतिक दैन्य पश्चिमी प्रोद्योगिकी दूर करेगी.

पूरब पश्चिम के मिलन से ही मनुष्य की देह और आत्मा को एक साथ चरित्रथ्रता मिलेगी. इससे प्रोद्योगिकी की जड़ता के बन्धनों से मुक्त होगी और पूरब को आध्यात्मवाद परलोकवाद तथा निष्क्रियता वाद से छुटकारा मिल सकेगा.

भाग्यवाद को प्रोद्योगिकी से जोड़कर हम मनुष्यता के अकर्मनियता को दूर कर सकते है. तथा धरती के जीवन को सर्वोतम बनाएगे. जीवन से भाग करके नही, उसके भीतर से ही लोकमंगल की कामना करनी होगी.

विरक्ति मुलक आध्यातिम्कता का स्थान लोक मांगलिक आध्यात्मिकता लेगी. यह आध्यात्मिकता लोकमंगल और लोक सेवा में ही चरितार्थ हो पाएगी.

मनुष्य मात्र के दुःख उत्पीड़न और अभाव के प्रति संवेदित और क्रियाशील होकर ही हम अपनी आध्यात्मिकता को प्राणवान और जीवन को सार्थक बना सकते है.

ज्ञान को शक्ति में नही परमार्थ तथा उत्सर्ग में ही ढालकर हम मानवता को उजगार करेगे. प्रकृति से हमने जो कुछ पाया है उसे हम बलात छिनी हुई वस्तु क्यों माने.

क्यों न हम स्वीकार करे कि प्रकृति ने अपने अक्षय भंडार को मानव मात्र के लिए अनावृत कर रखा है. प्रकृति के प्रति प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा का भाव क्यों रखा जाए वस्तुत प्रकृति के प्रति सहयोगी क्रतग्य और सहयोगी होकर ही मनुष्य अपनी भीतरी प्रकृति को राग द्वेष से मुक्त करता है और स्पर्धा को प्रेम में बदलता है

आज के आणविक प्रोद्योगिकी को मानव कल्याण का साधन बनाने की अत्यंत आवश्यकता है. यह तभी संभव है जब मनुष्य की बौदिकता के साथ साथ रागात्मकता का विकास हो .

रविन्द्र और गांधी का यही संदेश है ” कामायनी” के रचयिता जयशंकर प्रसाद ने श्रद्धा और इड़ा के समन्वय पर बल दिया है. मानवता की रक्षा और उसके विकास के लिए पूरब पश्चिम का स्मिलन आवश्यक है यह कवि पन्त का कथन चरितार्थ हो सकेगा. ”मानव तुम सबसे सुन्दरतम”

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध Impact Of Western Culture On Indian Culture Essay In Hindi का यह निबंध आपको पसंद आया होगा.

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