भारत पाक युद्ध 1971 का इतिहास तथा शिमला समझौता | India Pakistan War 1971 History in Hindi

भारत पाक युद्ध 1971 का इतिहास तथा शिमला समझौता | India Pakistan War 1971 History in Hindi : क्या आप जानते है बांग्लादेश का जन्म कब और कैसे हुआ.

bangladesh 1971 war history 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध की कहानी व इतिहास क्या था. युद्ध के बाद श्रीमती गांधी और भुट्टों के बीच हुआ शिमला समझौता क्या था.

आज हम भारत पाक युद्ध 1971 क्या था कैसे और कब तथा क्यों हुआ कारण परिणाम तथा प्रभाव (india pakistan war 1971 pdf in hindi) के बारे में जानेगे.

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भारत-पाक युद्ध, 1971 और भारतीय सेना का अद्वितीय पराक्रम

विजय दिवस हर साल 16 दिसंबर को मनाए जाने वाले इस विजय दिवस के पीछे भारतीय सेना की और भारतीय राजनीति की कूटनीतिक समझ और जगमगाता, शौर्य बतलाता इतिहास रहा है।

पृष्ठभूमि

विभिन्न भौगोलिक एवं राजनीतिक मुद्दों के चलते भारत एवं पाकिस्तान के बीच गर्मागर्मी के माहौल की इतिहास में तारीखों की एक लंबी फेहरिस्त है।

वहीं पश्चिमी एवं पूर्वी पाकिस्तान के बीच भी भौगोलिक एवं राजनीतिक अगुवाई की लड़ाई को लेकर समय-समय पर हुई तकरारों एवं बहसों का भी इतिहास रहा है।

भारत की आजादी के बाद बने पश्चिमी पाकिस्तान एवं पूर्वी पाकिस्तान कभी सामंजस्य नहीं बना पाए। साल 1970 में हुए पूर्वी पाकिस्तान के चुनावों में स्थानीय दल के नेता शेख मुजीबुर रहमान का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय हो गया था,

जिसको लेकर उन्होंने 7 मार्च 1971 को अपने एक भाषण में दावा किया था। वे पश्चिमी पाकिस्तान की राजनीतिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने के लिए प्रयासरत रहे लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान में इसे स्वीकार नहीं किया गया।

सेना की मदद लेते हुए पश्चिमी पाकिस्तान ने शेख रहमान को बंदी बना लिया। जिससे दोनों देशों के बीच बिगड़ते माहौल को एक और चिंगारी मिल गई और पाकिस्तान ने अपनी सेना भेजकर बांग्लादेश  (पूर्वी पाकिस्तान) में आतंक का कहर मचा दिया था.

जिसमें कि लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और लाखों महिलाएं पश्चिमी पाकिस्तान की आर्मी की यौन यातनाओं का शिकार बनीं।

असहाय और शोषित पूर्वी पाकिस्तान के लोग भारत की तरफ रुख करने लगे। शरणार्थियों की तादाद लाखों में पहुंच चुकी थी, जिसको लेकर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देश की सुरक्षा की सुरक्षा के लिहाज से काफी चिंतित हुई और इस मुद्दे का हल उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सभाओं में निकालने की कोशिश की। लेकिन कामयाबी नहीं मिली।

पड़ोसी देश पर अत्याचार, नागरिकों का नरसंहार, महिलाओं का उत्पीड़न रोकने और देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने को लेकर उन्हें अब बड़े कदम उठाने की जरूरत थी। लिहाजा उन्होंने पश्चिमी पाकिस्तान को सबक सिखाने की ठान ली।

भारत की सैन्य रणनीति

भौगोलिक और राजनीतिक घटनाओं के बीच सामंजस्य बिठाते हुए भारतीय सेना ने पश्चिमी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सर्दियों का मौसम ठीक समझा। जिसकी सफलता खुद पाकिस्तान ने सुनिश्चित की थी। 

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की तरफ से भारत के हिस्सों पठानकोट, अंबाला, अवंतीपुर, जोधपुर, आगरा और चंडीगढ़ जैसे अहम ठिकानों पर पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने हमला कर दिया और भारतीय सेना के कई विमानों को नुकसान पहुंचा।

मौके की तलाश में बैठी भारतीय सेना ने यहां से जवाबी कार्रवाई करने की ठान ली। यहां से एक ऐसे युद्ध की शुरुआत हुई जिसमें भारतीय सेना ने जल, थल और नभ तीनों जगह अपनी पराक्रम की प्रकाष्ठा का दुनिया को नजारा दिखाया।

वही भारत की कूटनीतिक रणनीति दुनिया के सामने जाहिर हुई जिसका सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर युद्ध में शामिल किसी भी दुश्मन देश के पास कोई जवाब नहीं था।

भारत की सैन्य रणनीति और पराक्रम

3 दिसंबर 1971 को राजस्थान के लोंगेवाला क्षेत्र में सेना की महज 120 जवानों की टुकड़ी तैनात की गई थी। क्योंकि उस वक्त भारत का भी पूरा ध्यान जैसे तैसे पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों पर हो रहे अत्याचार को रोकना और पूर्वी पाकिस्तान को एक स्वतंत्र देश बनाना था,

जिसमें भारत राजनीतिक और सैन्य स्तर पर पूरी तरह से ध्यान लगाए बैठा था। पाकिस्तानी सेना ने भारत का ध्यान भटकाने और पूर्वी पाकिस्तान पर भारतीय सेना के हमले को टालने के लिए लोंगेवाला को अपना निशाना बनाया।

मेजर कुलदीप सिंह की अगवाई में महज 120 सैनिकों की टुकड़ी ने दुश्मनों के इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया। पश्चिमी पाकिस्तान ने 2800 सैनिकों और सैंकड़ों टैंकों के साथ लोंगेवाला पर हमला किया जिसका मुंह तोड़ जवाब देते हुए मेजर कुलदीप सिंह की बटालियन ने दो शहादतें देकर इतनी बड़ी सेना का सफलतापूर्वक मुकाबला किया।

सेना के इस अद्वितीय पराक्रम की शौर्यगाथा की शुरुआत यहां से हो चुकी थी, सवेरा होने के साथ भारतीय वायु सेना ने मोर्चा संभाला और पाकिस्तानी सेना को अपने कदम लोंगेवाला की सरहद से पीछे हटाने को मजबूर कर दिया।

इसके बाद भारतीय नेवी ने पाकिस्तान के कराची बंदरगाह को निशाना बनाया और ताबड़तोड़ बमबारी करते हुए पाकिस्तान को सोचने पर मजबूर कर दिया।

हर मोर्चे और हर दिन शिकस्त खा रही पश्चिमी पाकिस्तान की सेना को अब भारतीय सेना की जल, थल और नभ कि इस आक्रामकता के खिलाफ कुछ अलग करने की जरूरत थी।

पूर्वी पाकिस्तान की हिफाजत के लिए तैनात आईएनएस विक्रांत को निशाना बनाने की कोशिश में पाकिस्तान ने अमेरिका से खरीदे हुए पी एन एस पनडु्बी को हथियार बनाया।

रणनीतिक सूझबूझ के चलते भारतीय सेना ने पश्चिमी पाकिस्तान की पी एन एस को तीसरे ठिकाने (विशाखापट्टनम) पर ले जाकर उसको तहस-नहस कर दिया और पाकिस्तान को युद्ध में अपनी करारी हार का अहसास दिलवाया।

आई एन एस विक्रांत की हिफाजत के चलते और भारतीय वायुसेना के डमी एयरड्रॉप्स की मदद से पश्चिमी पाकिस्तान अत्यधिक दबाव पड़ा।

इस घटना को दुनिया की मीडिया ने भी बहुत जोर शोर से जनता के बीच रखा और एक ऐसा माहौल बनता चला गया कि मानो पूर्वी पाकिस्तान का दिल ढाका भारत के कब्जे में था और अब पूर्वी पाकिस्तान पर भारतीय सैन्य सुरक्षा सुनिश्चित हो चुकी थी।

हर तरफ से मात खा रहे पश्चिमी पाकिस्तान ने कूटनीतिक चाल चलते हुए अपना आखिरी प्रयास किया। अमेरिका और ब्रिटेन की सैन्य सहायता मांगी जिस को स्वीकार करते हुए अमेरिका और ब्रिटेन के दस्ते भारत की ओर बढ़ने लगे। 

लेकिन कुछ समय पहले हुए एक समझौते के मुताबिक रूस भी भारत की मदद के लिए आगे आ पहुंचा, जिसके चलते अमेरिका और ब्रिटेन पानी में अपनी सैन्य ताकत लेकर बेबस खड़ा रहा।

देखते ही देखते भारतीय सेना और पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति वाहिनी ने पश्चिमी पाकिस्तान को करारा जवाब देते हुए घुटनों के बल ला दिया।

भारत की तरफ से पाक सेना अध्यक्ष को आत्मसमर्पण करने को कहा गया। लाचार और बेबस सेना अध्यक्ष ने अपने 93000 सैनिकों के साथ भारत के सामने 16 दिसंबर को आत्मसमर्पण कर दिया, जो इतिहास की विरली घटनाओं में शामिल है।

इन सबके बावजूद भारत ने उदारता, शांति और मित्रता का संदेश देते हुए 1972 में शिमला समझौते के तहत 15000 वर्ग किलोमीटर भूमि और सभी बंदी पाक सैनिकों को पाकिस्तान को लौटा दिया।

India Pakistan War 1971 History in Hindi

1971 में पूर्वी पाकिस्तान को लेकर हुआ यह आपसी युद्ध इन दोनों देशों के बीच तीसरा युद्ध था इससे पूर्व 1948 और 1965 में दो युद्ध हो चुके थे दोनों में पाकिस्तान को मुहं की खानी पड़ी थी. तीसरा युद्ध और अधिक असरदार रहा जिसमें पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गये थे.

1965 के युद्ध के बाद पाकिस्तान के हालात बदतर होने लगे. तानाशाह शासक जनता के शोषक बन गये. पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में असंतोष बढ़ता जा रहा था. शेख मुजीब के नेतृत्व में बांग्लादेश में स्वायत्ता का आंदोलन प्रारम्भ हो गया.

पूर्वी पाकिस्तान पूर्णतया मुजीब के साथ था. पाकिस्तानी जनरल याहया खान ने बंगालियों पर अत्याचार करने आरम्भ कर दिए. घोर अत्याचारों से घबराकर लोग घरबार छोड़कर जान बचाने हेतु भारत की सीमा में प्रवेश करने लगे.

10 हजार शरणार्थी प्रतिदिन भारत आने लगे. शरणार्थियों की संख्या भारत में 1 करोड़ तक पहुच गई. इसी समय 3 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तानी वायुयानों ने भारत के हवाई अड्डों पर भीषण बमबारी की. 4 दिसम्बर 1971 को भारतीय वायुसेना ने जवाबी हमला किया.

भारत के विमानों ने पाकिस्तान के महत्वपूर्ण हवाई अड्डों पर बम वर्षा की. भीषण युद्ध के बाद पाक सेना को पराजय का सामना करना पड़ा. और एक नयें देश बांग्लादेश का उदय हुआ.

16 दिसम्बर 1971 को ढाका में एक सैनिक समारोह में जनरल नियाजी ने भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा के सम्मुख आत्म समर्पण कर दिया.

उनके साथ 93 हजार सैनिकों ने भी हथियार डाल दिए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. बांग्लादेश स्वतंत्र हो गया तथा भारत ने एक तरफा युद्ध विराम कर दिया. भारत ने इस युद्ध में पाकिस्तान की 6 हजार वर्ग मील भूमि पर अधिकार कर लिया.

पाकिस्तानी जनरल याहया खान को सत्ता छोड़नी पड़ी, उनके स्थान पर सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टों के हाथ में आ गई. भुट्टों और श्रीमती गांधी में पत्र व्यवहार हुआ और 28 जून 1972 को दोनों देशों के बीच एक ऐतिहासिक शिमला समझौता हो गया.

इस समझौते का लक्ष्य दोनों देशों के बीच शांति स्थापना करना था. शिमला समझौते के आलोचकों का कहना है कि भारत के सैनिकों ने जिसे युद्ध के मैदान में जीता था उसे भारत की कूटनीति ने शिमला में खो दिया. अर्थात कश्मीर समस्या का स्थाई हल ढूढे बिना भारत ने पाकिस्तान को 5139 वर्ग मील क्षेत्र लौटा दिया.

यदपि यह भारत की शांतिपूर्ण कूटनीति का प्रतिफल था. लेकिन पाकिस्तान ने इसे सही परिपेक्ष्य में नहीं लिया. और बाद में पाकिस्तान पुनः अपनी पुरानी शत्रुतापूर्ण नीति का अनुसरण करने लगा.

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1971 में भारत पाकिस्तान के मध्य हुए युद्ध का परिणाम पूरी तरह भारत के पक्ष में रहा. 3 दिसम्बर से 16 दिसम्बर तक मात्र 16 दिन चले इस युद्ध को अन्तरिक्ष, जल तथा स्थल तीनों बलों द्वारा लड़ा गया.

युद्ध का नतीजा पूर्वी पाकिस्तान की आजादी तथा नयें बांग्लादेश के निर्माण व ९० हजार सैनिकों ने समर्पण कर पाकिस्तान ने अपनी हार स्वीकार की थी.

भारतीय सेना की कमान जनरल मानेक शॉ के हाथ में थी जनरल बेहद कुशल सेनानायक थे उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जीवन में कभी हारना नहीं सीखा था. एक तरह से 1971 का युद्ध भारत पर थोपा गया था.

ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्योंकि आए दिन पूर्वी पाकिस्तान से हजारों की तादाद में बांग्लादेशी भारत आने लगे जहाँ तक संभव हो सका भारत ने उन्हें सम्पूर्ण सहायता की मगर जब स्थिति नियंत्रण से बाहर होने लगी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस समस्या के हल के प्रयास किये.

मगर पाकिस्तान तब तक भारत के हवाई अड्डों पर हमला कर चूका हैं. पाकिस्तान के लिए यह एक ऐसा दौर था जब वह भारत को हमेशा स्वयं से कमतर आंकता था तथा आए दिन युद्ध की धमकी दिया करता था. इसकी एक वजह उसे चीन तथा अमेरिका का समर्थन भी बड़ी वजह था.

भारत के लिए दो मौर्चों पर युद्ध लड़ना था एक तरह उन्हें पश्चिमी पाकिस्तान की तरफ से तथा दूसरी ओर पूर्वी पाकिस्तान के ओर से पाकिस्तान हमले का सामना करना पड़ता था.

अमेरिकी नौसेना का 7वाँ बेड़ा भारत की ओर रवाना कर दिया था मगर तब तक युद्ध निर्णयाक स्थिति में पहुच चूका था भारत की जल सेना ने कराची बंदरगाह पर हमला कर पश्चिम के मौर्चे को अपने कब्जे में ले लिया.

जल्द ही इंडियन नेवी ने पाकिस्तान की पनडुब्बी ‘गाजी’ को विशाखापट्टनम नौसैनिक अड्डे के समीप जलमग्न कर रही सही कसर भी पूरी कर दी. भारत की इस कार्यवाही से पाकिस्तान ने हार कबूल ली तथा 15 दिसंबर को पाकिस्तानी सेनापति जनरल एके नियाजी ने युद्धविराम का निवेदन किया तथा अगले ही दिन पूरी पाक आर्मी ने हथियार डाल दिए.

भारत पाक युद्ध 1971 का परिणाम नुकसान तथ्य जानकारी व इतिहास

  • यह युद्ध दुनियां के सबसे कम अवधि तक चलने वाले इतिहास युद्धों में गिना जाता हैं.
  • युद्ध का आरम्भ पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के ११ स्टेशनों पर हवाई हमले से इसे शुरू किया गया था.
  • इस युद्ध में लगभग ३० हजार से एक लाख बंगलादेशी नागरिक ३८०० भारतीय सैनिक तथा 9 हजार पाकिस्तानी सैनिक युद्ध में मारे गये थे.
  • पाकिस्तान के आरम्भिक हमलों में भारतीय वायु सेना को बड़ी क्षति पहुची थी भारतीय दावे के अनुसार ४५ भा.वायुसेना विमान बर्बाद हुए जबकि पाकिस्तान के ९४ वायु सेना के लड़ाकू नष्ट हुए.
  • भारत पाक के बीच की इस जंग में मुक्ति बाहिनी १,७५,००० सैनिक भारतीय समर्थन में थे इस लिहाज से भारतीय सेना में ६,७५,००० सैनिक तथा पाकिस्तानी सेना की ओर से ३,६५,००० सैनिकों ने युद्ध में भाग लिया था.

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आशा करता हूँ दोस्तों आपकों India Pakistan War 1971 History in Hindi का यह लेख अच्छा लगा होगा.

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