आजाद हिन्द फौज पर निबंध | Essay On Indian National Army In Hindi

नमस्कार साथियों आजाद हिन्द फौज पर निबंध Essay On Indian National Army In Hindi के लेख में आपका स्वागत हैं. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाली आजाद हिन्द फौज पर आज का निबंध दिया गया हैं. नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा गठित इस आर्मी पर हिंदी में सरल निबंध, भाषण स्पीच अनुच्छेद यहाँ दिया गया हैं.

आजाद हिन्द फौज पर निबंध Essay On Indian National Army In Hindi

आजाद हिन्द फौज पर निबंध Essay On Indian National Army In Hindi

आजाद हिन्द फौज की कहानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज की स्थापना अगस्त 1942 में की थी. दक्षिणी एशियाई और जापान, वर्मा, मालद्विप में रहने वाले प्रवासी भारतीयों से इसका गठन किया गया.

43 हजार सैनिकों की आजाद हिन्द फौज का कदम कदम बढ़ाए जा इत्तेहाद, एतमाद और कुर्बानी यह आदर्श वाक्य/ लोगो था. इस विशाल सेना का उद्देश्य अंग्रेज के साथ युद्ध कर भारत को स्वतंत्रता दिलाना था. 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अलावा अन्य देशभक्ति भी देश की स्वतंत्रता के लिए जान हथेली पर रखकर कार्य कर रहे थे. सुभाषजी के पूर्वी एशिया पहुचने से पहले एक वर्ष के दौरान देशभक्त भारतीयों ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को संगठित करने के बहुत प्रयास किये.

मोहनसिंह की पहल पर इवाइची फूजीवारा नामक एक जापानी अधिकारी के सहयोग एवं समन्वय से आई एन ए यानी इंडियन नेशनल आर्मी की कमान मोहन सिंह के हाथों में आई.

उस समय इंडियन इंडिपेंन्डेस लीग के नेता रासबिहारी बोस थे. अनेक लोगों को अंतर्राष्ट्रीय मामलों का कोई अनुभव नहीं था और नेतृत्व क्षमता भी कमजोर थी.

इसलिए यह आंदोलन टूट गया. जब नेताजी पूर्वी एशिया पहुचे तो उन्होंने पाया कि आंदोलन अस्त व्यस्त हो चुका है और INA संगठन भी निर्जीवप्रायः था. लेकिन अब वक्त नहीं था कि आंदोलन या संगठन को निर्जीव रहने दिया जाए.

इसलिए सुभाषचंद्र बोस बिना देरी किये पूर्वी एशिया के स्वाधीनता आंदोलन को पुनर्गठित कर बलिष्ठ बनाने तथा इंडियन नेशनल आर्मी को नए सिरे से खड़ा करने के अथक प्रयासों में जुट गये.

इस सन्दर्भ में 4 जुलाई 1943 को इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के पूर्वी एशिया भर के प्रतिनिधियों की सिंगापुर में एक आम बैठक बुलाई गई. रास बिहारी बोस समझ चुके थे कि आजाद हिन्द फौज के लिए सर्वश्रेष्ठ नेता और नेतृत्व करने वाले सुभाषचंद्र बोस ही हो सकते हैं. इसलिए उन्होंने आंदोलन का समूचा नेतृत्व सुभाषजी के हाथों सौप दिया.

लीग के नए अध्यक्ष के रूप में नेताजी ने पूर्वी एशियाई भारतीयों को सम्बोधित करते हुए कहा- अब समय आ गया है कि हम अपनी लड़ाई के लिए अगले दौर की ओर बढ़े.

हमारे संगठन का उद्देश्य और प्रयोजन हैं ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध शस्त्र उठाना. मुझे निर्णायक स्वाधीनता संग्राम छेड़ने में दो चीजों की कमी नजर आती है. ये दो चीजे है- लड़ने वाली सेना और अंतरिम सरकार.

जिसके तत्वाधान में सेना लड़ेगी. सुभाष के इस व्यक्तव्य से सभी लोगों में जोश भर गया. उन्होंने नेताजी की बातों का पूरा पूरा समर्थन दिया और कहा कि हर भारतीय देश पर अपने खून का एक एक कतरा देने के लिए तैयार हैं. जिस तिरंगे को ब्रिटिश हुकुमत ने अगस्त 1942 में अपने पैरो तले कुचल दिया था,

पूर्वी एशियाई भारतीयों ने उसी तिरंगे को लहराकर ब्रिटिश हुकुमत को जता दिया कि अब उनके अत्याचारों का अंत निकट हैं. इस तरह आजाद हिन्द फौज सुभाषजी के नेतृत्व में उभरकर सामने आई. इसके बाद ही आजाद हिन्द फौज की ख्याति पूरे विश्व में फ़ैल गई.

विवाद

लगभग 40,000 भारतीय सैनिकों ने निष्ठा की शपथ का हवाला देते हुए INA में शामिल नहीं हुए, जो उन्होंने पहले राजा की उपस्थिति में जापानी-समर्थित संगठन में सेवा नहीं करने के प्राथमिक कारण के रूप में लिया था।

जो सेना में शामिल हो गए थे उन्हें गद्दार माना गया। यह भी कहा गया था कि भर्ती किए गए कई सैनिकों को बर्मा रेलवे में काम करने के लिए मजबूर किया गया था और उनमें से लगभग 11,000 जापानी प्रबंधन द्वारा मारे गए थे।

भारत सरकार की स्वतंत्रता के बाद आईएनए सैनिकों द्वारा प्राप्त उपचार की भारी आलोचना हुई। न केवल उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों की सूची से बाहर रखा गया था, भारत सरकार ने उनके प्रयासों और उसके बाद के परीक्षणों को ऐतिहासिक अभिलेखों में उनके नाम को जोड़कर अनदेखा करने का निर्णय लिया।

उपलब्धियां

यद्यपि आईएनए की उपलब्धियां अनुमानित से कम थीं, लेकिन भारत की स्वतंत्रता पर इसका प्रभाव बड़े पैमाने पर था। पहला आईएनए परीक्षण 1945 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक रैली स्थल बन गया।

ब्रिटिश इतिहासकार क्रिस्टोफर बेली ने बाद में कहा कि आईएनए 1945 में अपने पतन के बाद अंग्रेजों का बहुत अधिक शक्तिशाली दुश्मन बन गया था। इसके अलावा, परीक्षणों के राजनीतिक प्रभाव थे बड़े पैमाने पर और 1948 के रूप में देर से महसूस किया गया।

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