जयप्रकाश नारायण की जीवनी – Jayaprakash Narayan Biography in Hindi Essay निबंध जीवन परिचय स्वतंत्रता के पश्चात राजनीति एवं समाज में गांधीवादी विचारों को आगे बढ़ाने वाले नेताओं में जयप्रकाश नारायण का प्रमुख स्थान हैं.
महान व्यक्तित्व, जुझारू प्रवृत्ति और साहसी अभूतपूर्व नेतृत्व क्षमता के गुणों से ओत प्रेत नारायण किसी वर्ग विशेष के न होकर भारत के युवा से लेकर सभी उम्रः के लोगों के जननायक माने जाते हैं. जनता ने इन्हें लोकनायक का नाम दिया.
जयप्रकाश नारायण की जीवनी – Jayaprakash Narayan Biography in Hindi
जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय
पूरा नाम | जयप्रकाश नारायण |
जन्म तिथि | 11 अक्टूबर 1903 |
जन्म भूमि | बलिया, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 8 अक्टूबर 1979 |
पिता | हरसू दयाल श्रीवास्तव |
माता | फूल रानी देवी |
जीवन साथी | प्रभावती देवी |
नागरिकता | भारतीय |
दल | भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, जनता पार्टी |
जेल यात्रा | 7 मार्च 940 |
सम्मान | भारत रत्न, रेमन मेग्सेसे |
11 अक्टूबरः 1902 को बिहार के छपरा जिले के दियारा ग्राम में लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी का जन्म हुआ था. इनके पिताजी का नाम हरसू दयाल और माताजी का नाम श्रीमती फूल रानी देवी था, जो एक धार्मिक विचारों की महिला थी.
इन्हें दो भाई और तीन बहिने थे जिनमें वे चौथी सन्तान थे. बालपन में ही इनके बड़े भाई और बहिन का देहांत हो जाने के कारण नारायण जी से पूरा परिवार बेहद सनेह करता था. इनकी शुरूआती शिक्षा छपरा गाँव में ही हुई तथा ये आगे की पढ़ाई के लिए पटना चले गये.
शुरूआती जीवन शिक्षा
18 वर्ष की आयु में जयप्रकाश नारायण का विवाह ब्रजकिशोर की पुत्री प्रभावती के साथ सम्पन्न हुआ था. इसी समय गांधीजी देशभर में युवाओं को असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे.
अपने कॉलेज की पढ़ाई को बीच में छोड़ ये राजेन्द्र प्रसाद के साथ बिहार विद्यापीठ में रहने लगे और यही से उन्होंने इंटरमिडीयट की परीक्षा पास की थी.
1922 में नारायण उच्च शिक्षा के लिए यूएस चले गये जहाँ उन्होंने ओहोयो विश्वविद्यालय में प्रवेश किया तथा यही से स्नातक और स्नातकोत्तर की डीग्री हासिल की. बाद में इन्होने डॉक्टरेट की पढ़ाई शुरू की मगर माँ की अस्वस्थता के चलते उन्हें बीच में छोड़कर स्वदेश आना पड़ा.
भारत आने के बाद ये बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहे. कुछ वर्षों के अध्यापन के बाद इन्होने नौकरी का त्याग पर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया और कांग्रेस ज्वाइन कर ली.
वर्ष 1934 में इन्होने पार्टी की नीतियों का विरोध करते हुए अखिल भारतीय समाजवादी पार्टी का नया संगठन शुरू कर दिया, जिसके वे संगठन मंत्री भी रहे.
राजनैतिक करियर
उनकी इस पार्टी में राममनोहर लोहिया, अशोक मेहता और आचार्य नरेंद्र देव जैसे समाजवादी नेता भी थे. नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण ने समाजवादी आंदोलन का खूब प्रचार प्रसार किया.
ये देश के भिन्न भिन्न भागों में गये तथा अपने आंदोलन का प्रचार करते रहे. वर्ष 1934 से 1946 के इन 12 वर्षों में जेपी को कई बार अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार करके जेल में बंद किया, मगर वे हर बार जेल से फरार हो जाया करते थे.
हालाँकि जयप्रकाश नारायण और महात्मा गांधी के विचारों में मतभेद थे मगर उनके मध्य कोई मनभेद नहीं था. दोनों एक दूसरे का आदर करते थे.
जब वर्ष 1940 में पटना में पुलिस ने जेपी को हिरासत में लिया तब गांधीजी ने कहा था कि यह हिरासत दुर्भाग्यपूर्ण हैं ये कोई आम व्यक्ति नहीं है बल्कि समाजवाद के महान विशेषज्ञ हैं.
स्वतंत्रता संग्राम में जयप्रकाश नारायण
भारत की आजादी के संघर्ष की कहानी में जयप्रकाश नारायण के अध्याय के बिना इसे अधूरी ही मानी जाएगी. उनके अदम्य साहस के कारनामों उनके व्यक्तित्व को भारत के महान सपूतों में शुमार करता हैं.
वर्ष 1942 में जब गांधीजी ने भारत छोडो आंदोलन के दौरान करो या मरो का नारा देकर भारत को आखिरी लड़ाई के लिए तैयार कर रहे थे तो उसी समय जेपी हजारीबाग जेल में बंद थे तथा फरार होने के प्रयास कर रहे थे.
9 नवम्बर का दिन जब पूरा जेल प्रशासन दिवाली मना रहा था तो नारायण ने अपनी धोती की मदद से छः साथियों के साथ जेल की दीवारों को फांद गये.
उनकी फरारी के बाद अंग्रेजों ने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा की थी कि ऐसी कोई जेल नहीं बनी है जिनमें जेपी को बंद कर रखा जा सके. उनके फरार होने के बाद पुलिस ने जिन्दा या मृत पकड़े जाने पर जयप्रकाश पर दस हजार रूपये का इनाम रखा गया.
आजादी प्राप्ति के अंतिम दशक में जेपी पुलिस के लिए हमेशा चिंता का सबब बने रहे. अपनी जान की परवाह किये बिना वे जेल से भागकर खुले घूमते रहे.
1942-46 के मध्य उन्हें बार बार जेल में बंद किया जाता मगर वे भाग निकलते, आखिर में वर्ष 1946 में अंग्रेज सरकार ने हार मानते उन्हें कारागार से मुक्त कर दिया.
स्वतंत्रता के बाद की राजनीति में जयप्रकाश नारायण
15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता मिलने के बाद भी जयप्रकाश नारायण सक्रिय राजनीति में बने रहे. वर्ष 1957 में वे सर्वोदय आंदोलन में शामिल हो गये और अपने सम्पूर्ण जीवन तक समाजवाद की विचारधारा का प्रचार करते रहे.
अपनी विचारधारा के प्रचार के लिए कई देशों की भी यात्रा की. वर्ष 1972 में जयप्रकाश नारायण ने अपने तरीके से चम्बल के डाकुओं को हाथियार छुडवाकर मुख्य धारा में लाने का कार्य जेपी के अलावा कोई नहीं कर पाता.
वर्ष 1970 में नारायण ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार की नीतियों का विरोध करना शुरू कर दिया. 1974 को गुजरात और बिहार के छात्रों के आंदोलन में जेपी ने भाग लिया.
1975 में उन्ही के विरोध के चलते इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी. जेपी ने सभी विपक्षी नेताओं का नेतृत्व किया, परिणामस्वरूप सभी विरोधियों को जेल में बंद कर दिया.
1977 के आम चुनावों में उन्ही के नेतृत्व में जनता पार्टी को प्रचंड विजय मिली और इंदिरा गांधी को हार का मुहं देखना पड़ा था. उस समय जयप्रकाश जी को प्रधानमंत्री बनने का न्यौता भी दिया गया मगर उन्होंने साफ़ इंकार करते हुए कहा था कि मुझे देश से प्रेम है न कि सत्ता व पद से.
किताबे
जयप्रकाश नारायण में समाजवादी विचारों का जन्म प्रवास में रहते हुए अमेरिका में ही हुआ था. इन्ही विचारों को लेकर वे जीवन भर लगे रहे.
फ्रॉम सोशलिज्म टू सर्वोदय, टुवर्डस स्ट्रगल, ए पिक्चर ऑफ़ सर्वोदय सोशल आर्डर, सर्वोदय एंड वर्ल्ड पीस आदि किताबों की रचना की.
लोकनायक की सभी रचनाओं का संग्रह ए रिवोल्यूशनरी क्वेस्ट नाम से प्रकाशित हुई. उनका मानना था कि भारतीय समाज में व्याप्त अधिकतर समस्याओं का हल समाजवाद कर सकता हैं.
मृत्यु
उनके विचारों में समाजवाद का अर्थ समाज में स्वतंत्रता समानता और बन्धुत्व की स्थापना करना था. 8 अक्टूबर 1979 को जेपी के देहांत के साथ ही समाजवादी आंदोलन की गति मंद हो गयी.
भारतीय संविधान में समाजवाद की अवधारणा उन्ही की देन हैं. उनके के विचारों का अनुगमन करते हए भारत ने समाजवादी लोकतंत्र के रूप में स्वयं की पहचान बनाई हैं.
जयप्रकाश नारायण को प्राप्त पुरस्कार (Jayaprakash Narayan Awards)
स्वतंत्रता सेनानी और आजादी के बाद भारत की राजनीति के केंद्र में रहे लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी का व्यक्तित्व उनका कद किसी सम्मान या तोफ्हे का मोहताज नहीं था.
राष्ट्र सेवा को समर्पित अपने जीवन के दौरान उन्हें कई राष्ट्रीय स्तर व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों से नवाजा गया.
नारायण जी को दिए गये प्रमुख पुरस्कारों की सूची इस प्रकार हैं.
भारत रत्न अवार्ड | 1999 |
राष्ट्रभूषण अवार्ड | एफ़आईई फाउंडेशन की तरफ से |
रोमेन मैगसेसे अवार्ड | 1965 |
इस तरह भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर भारतीय राजनीति के आंदोलन में जयप्रकाश नारायण जी का अद्वितीय योगदान रहा हैं. तमाम यातनाओं के बावजूद उन्होंने अपने संघर्ष को कभी विराम नहीं दिया.
उनका उल्लेख आज भी तथा आने वाली सदियों तक एक सशक्त राजनेता के रूप में किया जाएगा. आज भी भारतीय राजनीति में राजनैतिक विचारधारा के प्रबल व्यक्तित्व के रूप में युवा इनसे प्रेरणा लेते दिखाई दे रहे हैं.
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