झाला जालिम सिंह का जीवन परिचय | Jhala Zalim Biography In Hindi: झाला जालिम सिंह 1758 ई में कोटा का फौजदार नियुक्त हुआ. यह अपने समय का श्रेष्ठ कुटनीतिज्ञ था.
1761 ई में भटवाडा युद्ध (कोटा एव जयपुर के मध्य) में इसकी वीरता से जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह प्रथम को परास्त होना पड़ा, जिससे कोटा के दरबार में इसका वर्चस्व स्थापित हो गया.
झाला जालिम सिंह का जीवन परिचय | Jhala Zalim Biography In Hindi
1764 ई में महाराव गुमानसिंह ने इसे मुसाहब आला बना दिया, इसने अपने बहिन का विवाह गुमानसिंह से कर दिया. जिससे झाला जालिम सिंह के प्रभाव में और वृद्धि हुई. गुमानसिंह ने नाराज होकर बाद में कोटा से निर्वासित कर दिया. झाला जालिम सिंह मेवाड़ चला गया.
जहाँ महाराणा अरिसिंह ने इसको जागीर दी. मगर कोटा का शासन प्रबंध बिगड़ने से इसे पुनः कोटा का फौजदार बना दिया गया. झाला जालिम सिंह ने मराठों के प्रति साम दाम की नीति अपनाई. वह कभी मराठा सरदारों को धन देता था तो कभी सैनिक सहायता देकर संतुष्ट करता था.
सिंधिया और होल्कर से उसकी घनिष्ठ मित्रता थी. वह मराठों को कोटा राज्य की रक्षा करने में सफल रहा. झाला जालिम सिंह ने पिंडारी नेताओं से भी मैत्री सम्बन्ध स्थापित किये और उन्हें जागीरें दी.
मराठों की पतनोंन्मुख स्थिति को देखकर उसने अंग्रेजों से मैत्री सम्बन्ध बढाएं. मेटाकोफ़ का संधि पत्र मिलते ही जालिमसिंह अंग्रेजों से संधि को तैयार हो गया.
उसने अंग्रेजों से संधि कर उसमें दो पूरक धाराएं जुड़वाँ दी. जिसके अनुसार कोटा के महाराव उम्मेदसिंह के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र तथा उसके वंशज कोटा कोटा राज्य के शासक होंगे.
राज्य की समस्त सत्ता झाला जालिम सिंह और उसके बाद जालिमसिंह के वंशजों के पास रहेगी. इन धाराओं द्वारा कोटा का महाराव नाममात्र का शासक रह गया.
महाराव उम्मेदसिंह की मृत्यु के बाद नए महाराव किशोरसिंह ने जालिमसिंह के अधिकारों को चुनौती दी. जिससे दोनों में झगड़े आरम्भ हो गये.
कर्नल टॉड ने सदैव जालिमसिंह का पक्ष लिया. 1821 ई दोनों के मध्य मांगरोल नामक स्थान पर युद्ध हुआ. कर्नल टॉड ने जालिमसिंह की सहायतार्थ सेना भेजी.
युद्ध में पराजित होकर महाराव नाथद्वारा चला गया. अंत में मेवाड़ महाराणा भीमसिंह की अध्यक्षता से महाराव और जालिमसिंह में समझौता हो गया.
जिसके अनुसार तय हुआ कि जालिमसिंह महाराव के निजी कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा. और राजकाज में महाराव दखल नहीं करेगे, जुलाई 1824 में जालिमसिंह की मृत्यु हो गई.
झाला जालिम सिंह वीर कुशल शासन प्रबन्धक एवं कूटनीतिज्ञ था. कोटा की स्म्रद्धि एवं सुरक्षा के साथ साथ उसने अपनी शक्ति एवं प्रभाव में इतनी वृद्धि कर ली कि महाराव नाममात्र के शासक रह गये.
महाराव चाह कर भी उसकी शक्तियों पर प्रतिबन्ध नही लगा सके. उसने अपनी कूटनीति द्वारा अपने वंशजों के लिए भी पद एवं शक्ति की व्यवस्था कर दी, जिससे 1838 ई में कोटा का अंग भंग हुआ और झाला जालिम सिंह के उत्तराधिकारियों के लिए एक स्वतंत्र राज्य झालावाड़ की स्थापना हुई.
झाला जालिम सिंह की हवेली
कोटा की झाला जालिम सिंह की हवेली जो 300 रंगों एवं 250 पुरानी चित्रकारिता की झलकी देने वाली यह बहुरंगी कला आज भी अपना जलवा बिखेर रही हैं. होली के अवसर पर यहाँ की भव्यता और ख़ूबसूरती का कोई सानी नहीं हैं.
80 कमरों और 50 बरामदों वाली इस हवेली के भित्ति चित्र बेहद आकर्षक हैं. कक्ष के अंदर बने चित्रों में राजपरिवार को हाथी पर बैठे दिखाया गया है जनता पर उन रंग गुलाल बिखेर रही हैं.
लोहे के पिंजरे में सोता था झाला जालिमसिंह
कोटा के शासक के साथ जुड़ी कहानी बहुत रोचक है कहते है जालिम सिंह को हमेशा दूसरों से मारे जाने का खतरा रहा करता था. वैसे राजाओं के दौर में इस तरह की घटनाए बड़ी आम थी.
इस भय से मुक्ति पाने के लिए जालिम सिंह सोते समय खुद को लोहे की सलाखों में बंद कर लेता था ताकि कोई उसे सोते समय मार न दे.
ब्रिटिश शासन के प्रति उनकी स्वामिभक्ति का परिचय 1817 में अंग्रेजों के साथ कोटा राज्य की संधि में देखा जा सकता है जब उन्होंने बिना कुछ कहे या अपनी बात मनवाएं अंग्रेजों की सभी शर्तों को स्वीकार कर लिया.
75 वर्ष के होते होते जालिम सिंह की दोनों आँखे चली गई तब किशोरसिंह को महाराव बनाया गया. मगर जालिमसिंह की मुस्लिम पत्नी से जन्म गोरधनदास अपने बाप से घ्रणा करता था उसने कई बार किशोरसिंह को अपने पिता के खिलाफ उकसाया भी.
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