ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय जयंती | Jyotiba Phule Biography In Hindi

ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय जयंती | Jyotiba Phule Biography In Hindi: एक आमूल परिवर्तनवादी व उदारवादी विचारक महात्मा फूले ने प्राथमिक शिक्षा मिशन स्कूल में प्राप्त की. उन्होंने नीचले स्तर की जातियों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने हेतु अहम भूमिका निभाई.

उन्होंने सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक की रचना कर सभी लोगों के लिए समानता की भावना को प्रोत्साहन दिया तथा सभी के लिए एक समान अवसर व न्याय के लिए आह्वान किया.

लेकिन उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन द्वारा किये जा रहे बहुत से अन्यायपूर्ण कार्यों की जमकर निंदा की.

ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय | Jyotiba Phule Biography In Hindi

ज्योतिबा फुले का जीवन परिचय | Jyotiba Phule Biography In Hindi
नामज्योतिबा फुले , ज्योतिराव फुले , महात्मा फुले
जन्म11 अप्रेल 1827
जन्म स्थानखानवाडी पुणे ( महाराष्ट्र)
पितागोविन्द राव
माताचिमना बाई
पत्नीसावित्री बाई फुले
मृत्यु28 नवम्बर 1890 पुणे

जीवन परिचय


फूले ब्राह्मण समाज द्वारा प्रदत्त चिन्तन और संस्कृति को बहुत महत्व व आदर देते थे, पर साथ ही साथ उससे सावधान रहने को भी कहते थे. इस कारण प्रार्थना सभा व सार्वजनिक सभा आदि पर संस्थातुल्य विशेष रूप से ब्राह्मणों का एकाधिकार व प्रभुत्व था.

उनका उद्देश्य यह था कि हिन्दू धर्म में परिवर्तन कर सार्वजनिक ईश्वर प्रणित सत्य को स्वीकार किया जाए ताकि पूरी मानव जाति का बिना किसी भेदभाव व उंचनीच के विचार को अपनाए कल्याण हो सके.

उन्होंने 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना की. जिसका मुख्य उद्देश्य यह था कि निचले वर्ग से भी नेतृत्व करने वाले लोग आगे आने का प्रयास करे तथा औरतों व छोटी जातियों के बीच शिक्षा का विस्तार उचित तरीके से किया जा सके.

शुरूआती जीवन


महात्मा ज्योतिबा फुले जी का जन्म 1827 ई को वर्तमान महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था. इनके दादाजी कई वर्ष पूर्व ही सतारा से पुणे आकर माली के व्यवसाय में फूलों के गजरे बनाने का कर्म करने लगे,

जिनके चलते ये फूले कहलाए. जब ज्योतिबा मात्र एक साल के थे तो उनकी माताजी का निधन हो गया था जिसके चलते उनकी परवरिश एक बाई द्वारा हुई.

ज्योतिबा ने अपनी आरम्भिक शिक्षा मराठी भाषा में प्राप्त की तथा घरेलू विकट परिस्थतियों के चलते इन्हें बीच में ही स्कूल छोड़नी पड़ी तथा २१ साल की उमरह में इनका रुझान एक बार फिर शिक्षा की और प्रवृत हुआ और बड़े होने के बाद 7 वीं क्लाश अंग्रेजी में पास की.

वर्ष १८४० में फुले का विवाह सावित्री बाई फुले के साथ सम्पन्न हुआ, जो एक समाज सेविका बनी तथा फुले दम्पति ने दलितों तथा स्त्रियों के लिए शिक्षा की दिशा में विशेष कार्य किये.

कार्य व योगदान


फुले दम्पति ने महिलाओं तथा बालिकाओं के उद्धार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किये. वर्ष 1848 में ज्योतिबा फुले ने महिलाओं को शिक्षा देने के उद्देश्य से बालिका स्कूल की स्थापना की जिसमें स्वयं सावित्री बाई पढाती हैं.

उस समय भारत में महिला शिक्षा का यह एकमात्र विद्यालय था. फुले ने आर्थिक रूप से पिछड़े कृषक समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किये.

उनकी भलाई के कार्यों में सबसे बड़ा रोड़ा भी समाज था. जो उनके हरेक कार्य में अडचन पैदा करने के अवसर खोजते रहे. समाज का उच्च वर्ग फुले का धुर विरोधी बन गया तथा उनके माँ बाप पर दवाब बनाकर फुले को घर से निकलवा दिया.

समाज से इतने अपयश के बाद भी वे अपने इरादों में कोई बदलाव नहीं लाए तथा थोड़े समय विराम पड़े अपने कर्म को तीन नयें विद्यालय खोलकर पुनः आरम्भ कर दिया.

ज्योतिबा फुले द्वारा सत्यशोधक समाज की स्थापना 

बता दें कि ज्योतिबा फुले ने हीं “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की थी। इसे स्थापित करने के पीछे इनका उद्देश्य यह था कि ऐसे लोगों को न्याय प्राप्त हो सके, जो निर्बल और दलित वर्ग से संबंध रखते हैं। इनकी समाज सेवा को देखते हुए इन्हें “महात्मा” की उपाधि मुंबई की एक सभा में 1888 में प्राप्त हुई।

इन्होंने बिना पंडित और पुरोहित के विवाह संस्कार को चालू करवाया था और इनकी इस बात को मुंबई हाईकोर्ट से भी सर्टिफिकेट प्राप्त हो गया था। यह बच्चों के बाल विवाह के प्रबल विरोधी थे और यह विधवा हो चुकी स्त्रियों के पुनर्विवाह के प्रबल समर्थक थे।

क्योंकि इनका ऐसा मानना था कि हर व्यक्ति को अपनी जिंदगी राजी खुशी से व्यतीत करने का हक है। इसीलिए विधवा पुनर्विवाह होना चाहिए ताकि वह भी अपनी लंबी उम्र को किसी के सहारे काट सकें।

ज्योतिबा फुले के सामाजिक कामों का आगे बढ़ना

सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले की कोई भी संतान नहीं थी। यही वजह है कि उन्होंने एक ऐसे बच्चे को गोद लिया, जो एक विधवा महिला की संतान थी।

आगे चलकर के यही बच्चा अच्छी पढ़ाई लिखाई करके डॉक्टर बना और इसने भी ज्योतिबा फुले और सावित्री फुले के मिशन को आगे बढ़ाया।

इंसानों की भलाई के लिए ज्योतिबा ने जो काम किए थे, उसके लिए इन्हें साल 1988 में उसी टाइम के एक महान समाज सुधारक राम बहादुर विट्ठलराव कृष्णा जी बांदेकर ने “महात्मा” की उपाधि दी। साल 1988 में इन्हें लकवे का अटैक आ गया था, जिसकी वजह से इनका शरीर काफी कमजोर हो गया था।

आखिरी संदेश

बिस्तर पर लेटे हुए साल 1890 में 27 नवंबर के दिन इन्होंने अपने सभी चाहने वालों को अपने पास बुलाया और सभी से कहा कि “मुझे लगता है कि मेरे जाने का समय अब काफी पास आ गया है,

मैंने अपनी जिंदगी में जिन भी काम में हाथ लगाया है मैंने उसे पूरा करके ही दम लिया है, मेरी पत्नी सावित्री ने हरदम एक परछाई की तरह हर जगह मेरा साथ दिया है।

मेरा पुत्र यशवंत अभी काफी छोटा है, मैं इन दोनों को आप के हवाले करता हूं” इतना कहने के बाद इनकी आंखों में आंसू उत्पन्न हो गए जिसके बाद इनकी पत्नी ने इन्हें ढांढस बंधाया। इस प्रकार साल 1890 में 28 नवंबर के दिन इन्होंने धरती को अलविदा कह दिया।

फुले का अन्य लोगों को साथ लेना और छोड़ना 

इन्होंने आगरकर, रानाडे, दयानंद सरस्वती और लोकमान्य तिलक जैसे लोगों को साथ लेकर के देश की राजनीति और सामाजिकरण को आगे ले जाने का प्रयास किया था.

परंतु जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि यह सभी व्यक्ति अछूतों को न्याय दिलाने के लिए उपयोगी नहीं होंगे, तब इन्होंने इन सभी लोगों का साथ छोड़ दिया।

फुले की किताब गुलामगिरी 

सत्यशोधक समाज की स्थापना साल 1873 में करने के बाद इसी साल में इनकी गुलामगिरी नाम की किताब प्रकाशित हुई थी जिसने पश्चिम और दक्षिण भारत के आने वाले इतिहास और चिंतन को काफी बेहतर ढंग से प्रभावित किया था।

इनके द्वारा लिखित इस किताब में पन्ने काफी कम थे परंतु इसमें जो विचार बताए गए थे, उसी आधार पर आगे चलकर के दक्षिण भारत और पश्चिम भारत में बहुत सारे आंदोलन चले।

फुले के विचार अनमोल वचन


mahatma Jyotiba Phule quotes: महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले ने 63 साल की उम्र में 28 नवंबर 1890 को पुणे में अपने प्राण त्‍याग दिए. उनके कुछ विचार इस प्रकार हैं.

विद्येविना मती गेली |
मतीविना नीति गेली |
नीतीविना गती गेली |
गतीविना वित्त गेले |
वित्ताविना शुद्र खचले |
इतके अनर्थ एका अविद्येने केले |


जाति आधारित विभाजन और भेदभाव के खिलाफ थे


वे दलित, पिछड़े किसान, मजदूर, महिला एवं मेहनतकश तबके के सच्चे हितैषी थे


उन्होंने धार्मिक पाखंड, सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वास का पुरजोर विरोध किया


ज्योतिबा फुले जयंती


mahatma jyotiba phule jayanti: इस वर्ष 11 अप्रैल को Mahatma Jyotiba Phule birth anniversary मनाने जा रहे हैं. फुले की गिनती भारत के महान समाज सुधारक, प्रखर विचारक, लेखक एवं समता के संदेश वाहकों में की जाती हैं

ये सामाजिक समरसता, दलित उत्थान तथा नारी शिक्षा के हितैषी माने जाते हैं. मात्र ६३ वर्षों के जीवन में इन्होने समाज सुधार के कई महत्वपूर्ण कार्यों को हाथ में लिया तथा उन्हें एक नई राह दिखाने में सफलता अर्जित की.

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