राजस्थान में कन्यावध कुप्रथा का इतिहास | Kanya Vadh In Rajasthan

राजस्थान में कन्यावध कुप्रथा का इतिहास | Kanya Vadh In Rajasthan : राजस्थान में कई कुप्रथाएं समाज में फैलती रही जिसमें कन्यावध भी एक हैं. राज्य के कुछ भागों में मध्यकाल में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी.

बेटियों का जन्म होते ही उन्हें मार दिया जाता हैं. कुछ समाजों जैसे राजपूत आदि में यह आम चलन में थी. आज हम जानेगे कि भारतीय संस्कृति के उस अन्धकारमय युग में कन्या वध क्या है (kanya vadh in Hindi) पढ़ेगे.

राजस्थान में कन्यावध कुप्रथा का इतिहास | Kanya Vadh In Rajasthan

राजस्थान में कन्यावध कुप्रथा का इतिहास Kanya Vadh In Rajasthan

हम जानते है कि वैदिक काल के बाद से ही आमतौर पर समाज में लड़की के जन्म का अभिनंदन नहीं किया जाता था, लेकिन राजस्थान की राजपूत जाति में कन्या का जन्म इतना दुखदायी माना जाता था. कि जन्म लेते ही उसे अफीम देकर या गला दबाकर मार दिया जाता था.

कन्यावध जैसी क्रूर प्रथा के प्रचलन के कई कारण थे. सर्वप्रथम कन्या के विवाह की समस्या थी. कठोर जाति व्यवस्था के कारण दूसरी जाति में तो विवाह किया ही नहीं जा सकता था, अपने ही कुल और खाप में भी विवाह नहीं होता था. इससे विवाह सम्बन्ध के चयन का क्षेत्र बहुत सीमित हो गया.

दूसरा, प्रत्येक राजपूत अपनी बेटी का विवाह अपने से ऊँचे घराने, शाही अथवा सामन्ती घराने में करने को अपनी प्रतिष्ठा समझता था, लेकिन ऐसे घर में विवाह के लिए उतना ही अधिक दहेज़ भी जुटाना पड़ता था.

झूठी शान के प्रतीक ऐसे विवाह में कन्या के पिता को चारण, भाट तथा ढोली को मुहं माँगा नेक भी देना पड़ता था. इस प्रकार कन्या के विवाह को अपनी हैसियत से बड़ी आन बान से जोड़ देने कारण उत्पन्न हुई समस्याओं से निजात पाने का आसान तरीका यह खोजा गया कि पैदा होते ही लड़कियों को चुपचाप मार दिया जाए.

कन्यावध बहुत ज्यादा प्रचलित था. लेकिन चुपचाप किये जाने के कारण लोगों का ध्यान उतना नहीं जाता था. राजपूतों के अलावा जाट, मेर तथा अन्य जातियों में भी यह प्रथा प्रचलित थी.

इस कुप्रथा की ख़ास बात यह है कि मध्यकालीन समाज में सामाजिक समस्याएं इतनी हावी हो गई थी कि स्वयं जन्म देने वाली माँ भी कन्या वध का विरोध नही कर सकती थी. बाहरी दिखावे में संवेदनाओं के स्रोत सूख गये थे.

कन्या वध पर रोक कब लगाई गई?

कन्या वध की प्रथा राजस्थान में प्राचीन काल में राजपूत, मीणा, जाट और मेर जैसी जातियों में भारी मात्रा में थी। इसके अंतर्गत जब किसी लड़की का जन्म होता था तो जन्म से पहले ही अथवा जन्म के बाद उसे मार दिया जाता था ताकि आगे चलकर के लड़की के विवाह में दहेज ना देना पड़े।

कन्या वध जैसी खतरनाक कुप्रथा पर रोक लगाने का काम लॉर्ड विलियम बेंटिक के समय साल 1833 में कोटा में और साल 1834 में बूंदी शहर में लगाई गई थी। हालांकि इस दिशा में पहल करने का श्रेय पोलिटिकल एजेंट विल क्विंसन को जाता है।

कन्या वध का कारण

सामाजिक, आर्थिक अथवा सांस्कृतिक कारणों की वजह से पुराने समय से की जा रही कन्या वध काफी गलत काम है और हमारे भारतीय समाज में कन्या वध करने के निम्न कारण है।

कन्या वध का सबसे बड़ा कारण लड़के की इच्छा होना है क्योंकि अधिकतर लोग यह समझते हैं कि लड़का पैदा होने पर वह आगे चलकर के उन्हें बड़ा होकर के कमा करके खिलाएगा, वही लड़कियां तो शादी करके दूसरे के घर चली जाएंगी।

इसलिए समाज की इसी गलतफहमी की वजह से अधिकतर लोग लड़के की चाह रखते हैं और लड़कियों का वध करते हैं क्योंकि समाज ने भी यह कहा है कि लड़कियां पराया धन होती है।

कन्या वध के पीछे दहेज व्यवस्था भी बहुत ही बड़ी जिम्मेदार व्यवस्था मानी जाती है और इसी की वजह से काफी लोग यही सोच कर के रखते हैं जिसकी वजह से वह लड़कियों को पैदा नहीं होने देते हैं, क्योंकि लड़कियां पैदा होने पर उन्हें उनकी शादी के लिए दहेज देना पड़ता है और लोग दहेज देने से बचने के लिए कन्या वध करते हैं।

भारतीय अभिभावक यह मानते हैं कि लड़का उनके नाम को समाज में आगे बढ़ाता है जबकि घर का काम करने के लिए ही लड़कियां होती हैं। कन्या वध होने के पीछे गैरकानूनी लिंग परीक्षण भी जिम्मेदार होता है।

इसके साथ ही गर्भपात भी कन्या की कमी होने के लिए जिम्मेदार माना जाता है, साथ ही बढ़ती हुए टेक्नोलॉजी की वजह से भी कन्या वध को बढ़ावा मिल रहा है।

कन्या वध का प्रभाव

कन्या वध होने की वजह से अन्य कई बुराइयां भी पैदा हुई है। राजस्थान राज्य में जब कन्या वध की प्रथा अपने चरम स्तर पर थी तो उसकी वजह से राजस्थान में लिंगानुपात में भी काफी अंतर हो गया था,

साथ ही शादी के लायक लड़के की उम्र हो जाने के पश्चात भी उन्हें लड़कियां नहीं मिलती थी क्योंकि लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या काफी कम हुई थी।

इसलिए कुछ लड़कों का तो विवाह नहीं हो पाता था साथ ही साथ कन्या वध की वजह से समाज में महिलाओं की उपस्थिति भी कम हो गई थी और इसकी वजह से अन्य कुप्रथाएं जन्म लेने लगी।

जैसे कि लोग अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए कन्याओं का बलात्कार तक करने लगे जिसकी वजह से सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया साथ ही बलात्कार की वजह से उत्पन्न हुई अवैध संताने भी बड़ी होने के बाद अपनी किस्मत को कोसती।

इसके अलावा जिन लड़कों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिलती थी वह कन्याओं का अपहरण करने तक की जैसी जघन्य घटना को अंजाम देने लग गए थे साथ ही बिना शादीशुदा लड़कों की समाज में उपस्थिति अधिक हो गई थी जो अपने समाज के लिए खतरा बन गए थे। इसके साथ ही महिलाओं का शोषण भी काफी अधिक हो गया था।

कन्या वध रोकने के उपाय

कन्या वध रोकने के लिए यह आवश्यक है कि कन्या भ्रूण हत्या कानून को और सख्त बनाया जाए और किसी भी प्रकार से गर्भावस्था के दरमियान लिंग परीक्षण ना किया जाए और जो ऐसा करते हुए पाया जाए उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जाए।

कन्या वध रोकने के लिए गवर्नमेंट को चाहिए कि वह कन्याओं के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं लागू करें ताकि लोग कन्या वध ना करें।

कन्या वध रोकने के लिए गवर्नमेंट को व्यापक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाना चाहिए और कन्याओं की हत्या के बारे में लोगों को बताना चाहिए साथ ही उन्हें जागरूक करना चाहिए।

यह भी पढ़े-

उम्मीद करते है फ्रेड्स राजस्थान में कन्यावध कुप्रथा का इतिहास | Kanya Vadh In Rajasthan का यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा, अगर आपको इस लेख में दी जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *