करवा चौथ व्रत कब है 2024 कहानी इतिहास एवं पूजन विधि | Karwa Chauth Ki Katha Kahani

करवा चौथ व्रत कब है 2024 कहानी इतिहास एवं पूजन विधि Karwa Chauth Ki Katha Kahani: सभी पाठकों को करवा चौथ 2024 की हार्दिक बधाई, 20 अक्टूबर को इस साल सुहागन माताएं बहिनों करवा चतुर्थी का पावन व्रत रखेगी.

श्रावण कृष्ण चतुर्थी को किये जाने वाले इस व्रत के पीछे क्या कथा है किस कहानी से प्रेरणा से हजारों वर्षों से खासकर उत्तर भारत में करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है,

आज के लेख में हम करवा चतुर्थी से जुडी कुछ कहानियां बता रहे है. ये स्टोरीज आपकों इस पर्व के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व से रूबरू करवाएगी.

करवा चौथ व्रत कब है 2024 कहानी पूजन विधि Karwa Chauth Katha

करवा चौथ क्यों मनाया जाता है कहानी इतिहास एवं पूजन विधि : हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों एवं व्रतों में करवा चौथ (चतुर्थी) की गिनती भी की जाती हैं.

भारत के उत्तरी राज्यों मुख्य रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि में यह बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता हैं.

वर्ष 2024 में 20 अक्टूबर के दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लम्बी आयु के लिए सौभाग्यवती व्रत रखा जाता हैं. इस व्रत की शुरुआत भौर के चार बजे से ही हो जाती हैं जो देर रात चन्द्र दर्शन के साथ समाप्त होता हैं.

सुख मंगल और अपने पति की लम्बी आयु की दुआ के लिए सुहागन स्त्रियों द्वारा करवाचौथ का व्रत रखा जाता है. करवा चौथ की कथा कहानी में लोगों के विशवास और धारणा को लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न भिन्न विशवास है.

करवा चौथ कब है 2024

करवा चौथ कब है 2024 व्रत की पूजन विधि सामग्री और कहानी  When is Karva Chauth Pooja Vidhi Samagri Or Vrat katha: करवा चौथ हिन्दू पर्व है, मुख्यत इसे सुहागन स्त्रियों द्वारा ही मनाया जाता है. अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत पूजा करती है.

इस वर्ष 2024 में करवा चौथ का त्यौहार आने वाला है. चौथ स्पेशल के इस लेख में हम करवा चौथ कब है When is Karva Chauth 2024 में इस दिन सुहागन स्त्री के लिए व्रत तथा पूजन विधि सामग्री एवं इसे मनाने के पीछे जुड़ी मान्यता पौराणिक कहानी की जानकारी नीचें दी जा रही है.

When is Karva Chauth (करवा चौथ कब है 2022)

इस साल करवा चौथ का व्रत भारत में 20 अक्टूबर के दिन रखा जाएगा. इस दिन रविवार है. अकसर यह पर्व अक्टूबर और नवम्बर माह में ही पड़ता है.

वर्ष 2012 में यह 2 नवम्बर शुक्रवार को, 2013 में मंगलवार 22 अक्टूबर, वर्ष 2014 में इसे 11 अक्टूबर शनिवार, वर्ष 2015 में 30 अक्टूबर शुक्रवार के दिन व् पिछले वर्ष करवा चौथ 19 अक्टूबर बुधवार को था.

हिन्दू पंचाग के अनुसार यह कार्तिक महीने की कृष्ण चतुर्थी के दिन मनाया जाता है. इसका पुण्य प्राप्त करने के लिए सही vidhi का प्रयोग किया जाना चाहिए. तभी पति की लम्बी आयु और घर में सुख सम्रद्धि की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है.

करवा चौथ चंद्रोदय का समय (शुभ मुहूर्त)

  1. करवा चौथ पूजा मुहूर्त :17:54:10 से 19:03:33 तक
  2. अवधि :1 घंटे 9 मिनट
  3. करवा चौथ चंद्रोदय समय :20:10:00

करवा चौथ का इतिहास (History of Karva Chauth 2024)

सुहागन स्त्रियों द्वारा मनाए जाने वाली इस चौथ के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाए जुड़ी हुई है. कहते है जब राजाओं के शासन मुख्यत मध्यकाल में अधिकतर लोग मुंगल सेना का सामना करने के लिए हिन्दू शासकों की सेना के साथ रहा करते थे.

घर पर उनकी जीवनसखा अपने पिया की लम्बी आयु तथा प्राणों की सलामती की खातिर भगवान् से प्रार्थना किया करती थी. मन की शांति तथा शुभ संकेत के लिए इस करवा चतुर्थी की शुरुआत हुई.

करवा चौथ पूजा विधि (karva chauth 2024 vrat Pooja vidhi in hindi)

  • karwa chauth 2024 के दिन उदय के साथ ही व्रत करने का संकल्प करे.
  • सासू माँ द्वारा भेजी गई मिठाई, फल, सेंवई, पूड़ी भोज्य सामग्री ही ग्रहण करे.
  • इस दिन प्याज व् लहसुन से बनी भोज्य सामग्री बिलकुल न करे.
  • शिव पार्वती का पूजा पाठ कर कथा वाचन करे.
  • घर की किसी एक दीवार पर धरना बनाए, जो गेरू रंग व् चावल के घोल से बनाई जाती है.
  • शाम के समय खीर पूरी या मीठे पकवान तैयार करे.
  • मिटटी की अथवा शिव पार्वती गणेश की मूर्ति की स्थापना करे.
  • पार्वती की मूर्ति पर लाल रंग की सुनरी व् श्रृंगार सामग्री सहित कलश पास रखे.
  • बगल में शिव की मूर्ति व् गोद में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करे.
  • विधि विधान व् मंत्रोच्चार के साथ शिव पार्वती की पूजा अराधना करे
  • घर के सभी सदस्यों के साथ करवा चौथ की कथा का वाचन करने के तत्पश्चात सभी बुजुर्गो का आशीर्वाद प्राप्त करे.
  • रात्रि के समय चन्द्र दर्शन का इन्तजार करे. चन्द्रमा के दिखने पर छलनी से चाँद को निहारकर अपने पति के पैर छूकर सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्राप्त करे.
  • चन्द्र दर्शन के पश्चात अपने पति के पास बैठकर उन्हें भोजन करवाए. तत्पश्चात स्वयं उपवास तोड़े

Karva Chauth 2024 Pooja Samagri

इस दिन की पूजा सामग्री में 35 से अधिक पूजन सामग्रियों का उपयोग किया जाता है. जिनमे चन्दन, अगरबती, फूल, शहद, शक्कर, मिठाई, अनाज में मुख्यत गेहू या चावल, स्वच्छ जल का कलश, शिव पार्वती की तस्वीर या मूर्ति, देशी घी, सिंदूर, मेहँदी, चुनरी समेत सुहागन स्त्री के 16 श्रृंगार की सामग्री, दीपक, रुई, कपूर, मिटटी का बना दीपक, गौरी के लकड़ी का तख्ता या आसन,भोजन के लिए पूरी इत्यादि.

करवा चौथ कब हैं क्यों मनाते है, करवा चौथ कथा, करवा चौथ पूजन विधि, करवा चौथ इतिहास हिंदी में– यह एकमात्र ऐसा पर्व है जो भारत के अधिकतर क्षेत्रों की विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता हैं. चाहे देहात की स्त्री हो या शहर की पढ़ी लिखी नारी सभी इसे बड़ी श्रद्धा के साथ करती हैं.

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन यह व्रत रखा जाता हैं. इसे चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता हैं. इस दिन गण पति जी की पूजा होती हैं.

संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह ही करवा चौथ का व्रत निर्जला रखा जाता हैं तथा इस दिन सभी सुहागन बिना अनाहार किये देर रात तक चन्द्रोदय का इन्तजार करती हैं.

क्यों मनाते है करवा चौथ का व्रत

इस व्रत को करने के अपने कुछ नियम भी है जिनमे पहला नियम यह है कि यह केवल विवाहित सुहागन स्त्रियों द्वारा ही किया जाता हैं. अविवाहित कन्याएं या विधवाओं द्वारा इस व्रत को नही किया जाता हैं. 

अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य के लिए ये गणेश जी से कामना करती हैं. सच्चे मन से भक्त की पुकार भगवान गणपति अवश्य सुनते हैं.

करवा चौथ का व्रत लगातार सोलह वर्षों तक किये जाने का प्रावधान हैं अंतिम वर्ष में उद्यापन विधि के साथ इसका समापन किया जाता हैं. हालांकि इस सम्बन्ध में कोई बाध्यता नही हैं चाहे तो इसे उम्रः भर रखा जा सकता हैं. 

सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग  की रक्षा के लिए भारत में हिन्दू महिलाओं द्वारा मनाएं जाने वाले त्योहारों में करवा चौथ का व्रत सबसे बड़ा एवं सौभाग्यशाली व्रत हैं.

करवा चौथ की कथा मेला व मान्यताएं

राजस्थान में यह पर्व बड़ी धूमधाम एवं धार्मिक रीती रिवाजों के अनुरूप मनाया जाता हैं. राज्य में इस दिन सवाईमाधोपुर के बरवाड़ा गाँव में चौथ माता का मेला भी भरता हैं.

बरवाड़ा में चौथ माता एक एतिहासिक मंदिर भी बना हुआ हैं. इस मंदिर से जुडे इतिहास के साक्ष्यों के अनुसार इसके निर्माण का श्रेय शासक महाराजा भीमसिंह चौहान को दिया जाता हैं.

करवा चौथ की पूजन विधि एवं व्रत विधि

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को जिस दिन व्रत किया जाता है उस रात चार पहर पर चाँद के दर्शन होते हैं. इस दिन प्रातः चार बजे से स्त्रियाँ (पति) की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प के लिए करवा का व्रत रखने का संकल्प कर लेवे. इस व्रत को करने का तरीका तथा पूजा विधि यहाँ बताई गई हैं,

  • सफ़ेद बालू मिटटी की शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की मूर्तियाँ बनाकर शुभ मुहूर्त में इनका पूजन किया जाना चाहिए
  • शक्कर तथा गेहूं के आटे को मिलाकर प्रसाद के लिए घर पर ही लड्डू तैयार करे.
  • इस दिन कई स्थानों पर काली मिटटी तथा शक्कर की चासनी से कर्वे भी बनाए जाने की प्रथा हैं. अपनी परम्परा के अनुसार दस बारह करवे पूजा सामग्री के साथ रखे.
  • करवा चौथ का व्रत रखने के सम्बन्ध में किसी जाति धर्म या पन्त का कोई भेद नही हैं सभी सौभाग्यवती स्त्रियों को यह व्रत रखना चाहिए.
  • यदि आप शिव पार्वती गणेश एवं चन्द्रमा की मूर्ति का प्रबंध नही कर पाती हो तो सुपारी पर नाड़ा बाँधकर भी मूर्ति का संकेत तैयार किया जा सकता हैं.

मुख्य रूप से सात भाइयो और बहिन, कृष्ण द्रोपदी, सत्यवान-सावित्री और करवा नामक स्त्री की कथाओं को सर्वमान्य माना जाता है. इस दिन प्रत्येक पतिव्रता स्त्री अपने पति के लिए व्रत रखती है.

पूजा मुहूर्त के अनुसार उन्हें करवा चौथ कहानी का पाठ करना चाहिए जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. जो कथा इस प्रकार है.

करवा चौथ की कथा हिंदी में

एक समय की बात हैं पांडवों में सबसे ज्येष्ठ अर्जुन एक बार तपस्या के लिए घर से निकल गये. काफी समय बीतने के बाद भी उनकी कोई सुध बुध नही मिलने थे.

द्रोपदी को चिंता होने लगी, तभी उन्होंने अपने पति के बारे में भगवान श्रीकृष्ण से विनती की. तो कृष्ण जी ने उन्हें करवा चौथ व्रत कथा सुनाई जो भगवान शिव द्वारा पार्वती को सुनाई गई थी.

क्रष्ण जी कहते है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तिथि को बिना कुछ खाएं पीए सुहागन स्त्रियों को अपने सुहाग की रक्षा के लिए निर्जला व्रत रखना चाहिए.

चन्द्रोदय पर यह व्रत तोडा जाता है जिसमें  सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे को लेती देती है जिससे पति पत्नी के बिच हमेशा प्यार का अटूट रिश्ता बना रहे.

इस दिन वधुओं द्वारा अपने सास ससुर से सुहागन का आशीर्वाद लिया जाता हैं. वों एक प्राचीन कथा के द्वारा करवा चौथ व्रत के बारे में बताते हुए कहते हैं, एक समय की बात है एक ब्राह्मण था उसके चार बेटे और एक बेटी थी.

जब बहिन का विवाह हो गया तो उस वर्ष उसने करवा चौथ का निर्जला व्रत रखा, भाइयों को अपनी बहिन की ये हालत देखि नही गई. बार बार आग्रह करने पर भी वह चन्द्र उदय के बाद ही जल ग्रहण करने का तर्क देती रही.

उन भाइयों से बहिन का दर्द देखा नही गया, एक को विचार आया क्यों न घर के पास ही खड़े वृक्ष पर दीपक रखकर छलनी की रोशनी को चन्द्रमा की रोशनी बताकर बहिन का व्रत तुड़वा लिया जाए.

दोनों ने ऐसा ही किया. बहिन ने जैसे ही व्रत को तोडा व भोजन ग्रहण करने लगी, उसी वक्त उनके पति की म्रत्यु का संदेशा उन्हें मिला.

बहिन का रो रोकर बुरा हाल था, तभी घर के आगे की राह से इन्द्राणी गुजरी तो उस ब्राह्मण पुत्री ने उसके पैर पकड़ लिए तथा उन पर आई विपत्ति का कारण पूछने लगी.

इस पर इन्द्राणी बोली- बहिन तूने चन्द्र उदय से पूर्व ही करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया था यही तेरे दुःख का कारण हैं. यदि तू हर साल नियम के अनुसार करवा चौथ का व्रत करेगी तो पुनः सौभाग्यवती हो सकेगी.

इन्द्रानी के कहे अनुसार ही हुआ. इसलिए हर साल करवा चौथ के दिन हर विवाहित स्त्री को अपने सुहाग के लिए करवा चौथ का व्रत रखना चाहिए. इसी व्रत कथा के कारण आज भी हिन्दू स्त्रियाँ करवा चतुर्थी का व्रत रखती हैं.

करवा चौथ कहानी 1

एक समय की बात है जब निलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गये. उस समय पाडवों पर गहरा संकट आ पड़ा.

तब चिंतित व शोककुल द्रोपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया. कृष्ण के दर्शन होने पर द्रोपदी ने पांड्वो के कष्ट के निवारण के उपाय जाने.

तब श्री कृष्ण बोले- हे द्रोपदी में तुम्हारे दुःख का कारण जानता हु. इसके निवारण के लिए तुम्हे एक उपाय करना होगा. जल्द ही कार्तिक महीने की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है.

उस दिन तुम मन से करवा चौथ का व्रत करना, भगवान शिव पार्वती और गणेश की उपासना करना. तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएगे और सब कुछ ठीक हो जाएगा.

कृष्ण की आज्ञा के अनुसार द्रोपदी ने वैसा ही किया. जल्द ही उनकी सारी इच्छाए पूर्ण हुई तथा उनके पति के दर्शन हो गये.

करवा चौथ कहानी 2

जब पार्वती ने भगवान् शिव से अपने पति की दीर्घायु और सुख सम्रद्धि की विधि पूछी तो तब भगवान् शिव ने करवा चौथ की व्रत कथा सुनाई.

करवा चौथ व्रत कथा के अनुसार एक धोबिन अपने पति के साथ तुगभद्रा नदी के तट पर रहा करती थी. उसका पति बुढा व् निर्बल था.

एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तो वहां पर एक मगरमच्छ आया और धोबी के पैरो को अपने मुह में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा. तब धोबी को कुछ नही सुझा वह करवा करवा चिल्लाने लगा.

जब उसकी पत्नी करवा ने अपने पति की आवाज सुनी तो वह नदी की ओर गई तथा उस मगरमच्छ को सूत के धागे से बांधकर यमराज के सामने ले जाकर कहने लगी.

यमराज आप ही मेरे पति की रक्षा कीजिए तथा इस मगर को इस कृत्य के लिए कठिन से कठिन सजा दीजिए.
तथा इसे नरक पंहुचा दीजिए.

यमराज बोले करवा अभी तक इसकी आयु पूर्ण नही हुई है, इससे पूर्व में इसे नही मार सकता. तब करवा ने कहा यदि आप मेरे पति की रक्षा करने के लिए ऐसा नही करेगे तो मै आपकों श्राप दे दुगी.

इस तरह करवा के साहस को देखकर यमराज ने डर से उस मगर को यमलोक भेज दिया तथा करवा के पति को दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे दिया. तब से कार्तिक कृष्ण माह की चतुर्थी को करवा चौथ मनाने का चलन शुरू हुआ.

करवा चौथ कहानी 3

प्राचीन समय में काशी में एक ब्राह्मण परिवार रहा करता था. उस परिवार में सात भाई और एक बहिन थी. सात भाइयो की एक बहिन होने के कारण सभी लोग उन्हें अपने दिल का टुकड़ा मानते थे.

बहिन रूपा की शादी के बाद वह ससुराल चली गई. कुछ दिन तक वह ससुराल में रहने के बाद अपने मायके लौटी थी.

सभी भाई और उनकी पत्नियां घर पर थी. इधर उधर का हालचाल जानने के बाद उन्होंने रूपा को खाने के लिए कहा मगर उन्होंने करवा चौथ का निर्जला व्रत का कहकर खाने के लिए मना कर दिया.

दिन ढलने के साथ ही सभी भाई अपनी बहिन की उतरी दशा देखकर चिंतित थे. वह किसी भी हालत में करवा चौथ का व्रत चाँद के दर्शन के पूर्व नही तोड़ सकती थी.

अतः उनके सबसे छोटे भाई को एक तकरीब सूझी और वह घर से थोड़ी ही दूर खड़े एक घने वृक्ष पर दीपक रखकर उसके उपर छलनी रख आया.

घर आकर उन्होंने रूपा को चन्द्र दर्शन का झांसा देकर उपवास तोड़ने को कहा. जब रूप ने छत पर जाकर देखा तो छलनी के पार वह दीपक चाँद सा नजर आ रहा था. उन्हें इस झांसे का पता नही था. अतः उन्होंने भोजन करने की हामी भर दी.

जब वह भोजन करने बैठी तो उनके पहले निवाले के खाते ही उनके छिक आई.

जब वह अगला निवाला मुह में डालती है तो सिर का बाल आ जाता है. जब उसने तीसरा निवाला मुह में डाला ही था कि उन्हें अपने पति की मृत्यु का संदेश आ जाता है.

जिसके सुनते ही वह पागलों की तरह रोने लगती है. तभी उनकी छोटी भाभी उन्हें इस अनहोनी का कारण समझाते हुए कहती है,

आपने करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से तोडा है इस कारण गणेश जी आपसे नाराज हो गये है.

अपनी भूल का अहसास होने पर वह अपने पति का अंतिम संस्कार न करने का निर्णय ले लेती है. उस मृत शव की रोजाना कड़ी निगरानी रखती है.

उसके पास उगने वाले सुई नुमा घास को इकट्ठा करती है. जब कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी (करवा चौथ) का दिन आता है. इस दिन सभी भाभिया अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है.

तथा आशीर्वाद लेने के लिए रूपा के पास जाती है. रूपा एक ही रट लगाए जा रही थी.

यम सुई ले लो पिय सुई दे दो. मगर सभी बड़ी भाभिया उनका तिरस्कार कर चली जाती है. अंत में सबसे छोटी भाभी उनके पास आशीर्वाद लेने आती है. जिनके कारण रूपा के पति की मृत्यु हुई थी. वह वही प्रक्रिया अपनाती है.

इस बार रूपा छोटी भाभी को जोर से पकड़ लेती है तथा पिय सुई देने का आग्रह करती है. हजारों प्रयत्न के बाद भी वह रूपा को दूर नही कर पाती है. इतने यत्न के बाद छोटी भाभी का दिल भी पसीज जाता है. तथा वह अपनी छोटी अंगुली को छिरकर रूपा के पति के मुह में अमृत की धार डालती है.

जिससे उसका पति जय श्री गणेश जय श्री गणेश करता हुआ खड़ा होता है. इस प्रकार छोटी भाभी की दया से रूपा को अपना पति मिल जाता है.

हे शिव पार्वती गणेश जिस प्रकार रूपा को करवा चौथ का वर मिला है. ऐसा वर हर सौभाग्यवती स्त्री को प्राप्त हो.

कहानी 4

बहुत समय पहले की बात है एक ब्राह्मण परिवार में सात भाई और एक बहिन थी, जो सभी एक दुसरे से असीम प्यार किया करते थे.

मुख्यत एक बहिन होने के कारण सभी भाई उन्हें बेहद सम्मान दिया करते थे. यहाँ तक की बहन के द्वरा भोजन किये जाने के बाद ही सभी भाई भोजन ग्रहण किया करते थे.

कुछ समय बहिन अपने ससुराल से माता-पिता के घर आई और करवा चौथ के दिन उन्होंने उपवास रखा. सभी भाइयो के आग्रह करने के बावजूद उन्हें निर्जला व्रत करने की बात कही जिन्हें चन्द्र दर्शन के पश्चात ही खोला जाना था.

उसके भाइयो द्वारा बहिन की यह हालत देखि नही गई अतः छोटे भाई को एक तरकीब सूझी उसने घर के पास ही लगे अशोक के वृक्ष में पत्तों पर दीपक को जलाया तथा उनके पास छलनी रख दी. घर लौटकर उन्होंने बहिन् को बताया की चन्द्रमा निकल चूका है. वह अपना व्रत तोड़ ले.

जब उन्होंने छ्लनी के पार जलते दीपक को देखा तो वह चाँद की तरह ही प्रतीत हो रहा था. अततः उन्होंने उस दिए को ही चन्द्रमा मानकर भोजन करना शुरू कर दिया.

जब उन्होंने भोजन का पहला निवाला मुह में रखा तो छिक आई, दूसरा निवाला खाते ही उनके मुह में बाल आया, तीसरा निवाला मुह में रखा ही था कि उनके पति की मृत्यु की खबर आ गई.

तभी उनकी भाभी करवा चौथ के गलत तरीके से छोड़ने के कारण उनके देवता नाराज हो गया, इस कारण उनका सुहाग उजड़ गया.

उस बहिन ने अपने पति की लाश को जलाने की बजाय अपने सतीत्व के द्वारा पुनर्जीवित करने का निश्चय किया. एक साल तक वह उस शव की रक्षा करती रही.

सभी भाभियों के मना करने के बावजूद वो करवा चौथ के व्रत को जारी रखती है. अंत में सबसे छोटे भाई की पत्नी जिनके पति के झूट बोलने के कारण ऊनके पति का देहांत हुआ था.

वह आती है तथा अपनी ननद को इस सुहागिन व्रत को तुड़ाने के सभी प्रयत्न करती है. मगर उनके द्वारा फिर भी व्रत न तोड़ने पर उनका दिल भी टूट जाता है तथा अपने नंदोई के मुह में अपनी छोटी अंगुली को चीरकर अमृत मुह में डालती है. जिससे उसका पति फिर से जय गणेश जय गणेश करते खड़े हो जाते है.

FAQ

चौथ व्रत कब है 2024?

इस साल 20 अक्टूबर को करवा चौथा का व्रत हैं.

करवा चौथ के व्रत का क्या महत्व है?

सुहागन स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु के लिए यह व्रत रखती है कुँवारी कन्याएं मन वांछित वर प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं.

चौथ के दिन क्या दान करना शुभ माना जाता हैं?

इस दिन सोलह श्रृंगार की वस्तुएं दान में देनी शुभ मानी जाती हैं.

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प्यारे मित्रों उम्मीद करते है करवा चौथ व्रत कब है 2024 कहानी इतिहास एवं पूजन विधि  Karwa Chauth Ki Katha Kahani का यह लेख आपकों अच्छा लगा होगा.

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