बच्चों के लिए प्रेरणादायक छोटी कहानियाँ Short Moral Stories In Hindi

बच्चों के लिए प्रेरणादायक छोटी कहानियाँ Short Moral Stories In Hindi उम्मीद करता हूँ दोस्तों छोटी कक्षाओं क्लास 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 10 के स्टूडेंट्स के लिए छोटी छोटी कहानियां यहाँ दी गई हैं.

बच्चों को मोरल शिक्षा देने वाली इन कहानियों से बहुत कुछ सबक सीखने को मिलेगा. उम्मीद करते है आपको ये आर्टिकल पसंद आएगा.

बच्चों के लिए प्रेरणादायक छोटी कहानियाँ Short Moral Stories In Hindi

बच्चों के लिए प्रेरणादायक छोटी कहानियाँ Short Moral Stories In Hindi

Kids Story In Hindi (बुद्धिमान खरगोश )

Kids Story In Hindi -शीर्षक की यह बाल कहानी एक बुद्धिमान खरगोश की हैं, हमारी पाठयपुस्तको में पंचतन्त्र की कई ज्ञानवर्धक कहानियाँ दी हैं,

जंगली जानवरों पर आधारित ये स्टोरी छोटे से जानवर की बुद्दिमता से किस तरह एक जंगल के सभी निवासियों की समस्या का सदा-सदा के लिए समाधान कर देता हैं, इस कहानी से हमे प्रेरणा मिलती हैं,

चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उन्हें बुद्दि के बल पर पराजित किया जा सकता हैं- लीजिए शुरू करते हैं यह बच्चो के लिए शिक्षाप्रद कहानी-

किसी जंगल में भासुरक नाम का एक सिंह रहा करता था. वह प्रत्येक दिन वन्य जीवों को मारा करता था, वन के सभी जीव जन्तु उससे परेशान थे.

एक दिन जंगल के सभी जानवर उसके पास पास पहुचे और उससे निवेदन किया- वनराज, प्रतिदिन अनेक जानवरों को मारने से आपकों क्या लाभ ? आपका आहार तो एक जीव से पूर्ण हो जाता हैं.

अत: प्रतिदिन एक जीव आपके पास आ जाया करेगा, इस प्रकार बिना परिश्रम से आपका जीवन निर्वाह होता रहेगा.

और हम लोगों का सामूहिक विनाश भी नही होगा, क्युकि प्रजा पर कृपा करने वाला राजा निरंतर बढ़ोतरी प्राप्त करता हैं. सिंह उनकी बात मान गया.

तब से वन्य प्राणी निर्भय होकर रहने लगे, इसी क्रम में कुछ दिनों बाद एक खरगोश की बारी आई, खरगोश सिंह की गुफा की ओर चल पड़ा.

किन्तु मृत्य के भय से उनके पैर नही उठ रहे थे, मौत की घड़ियों को कुछ समय टालने के लिए इधर-उधर भटकता रहा. एक स्थान पर उसे कुआ दिखाई दिया, उसे देखकर मन में एक विचार आया,

क्यों न भासुरक को उनके वन में दुसरे सिंह के नाम से उसकी परछाई दिखाकर इस कुई में गिरा दिया जाए, यही उपाय सोचता-सोचता वह भासुरक सिंह के पास पंहुचा, सिंह उस समय भूख प्यास से व्याकुल होता हुआ,

अपने होठ चाट रहा था. उसके भोजन की घड़ियाँ बीत रही थी, कुछ ही देर में कोई पशु नही आया तो वह शिकार को चल पड़ेगा. और पशुओ के खून से सारे जंगल को सींच देगा. उसी समय खरगोश उनके पास पहुच गया और प्रणाम करके बैठ गया.

खरगोश को देखकर सिंह ने क्रोध से लाल-लाल आँखे करके गरजकर कहा- ”अरे खरगोश, एक तो तू छोटा हैं और इतनी देर लगाकर आया हैं, आज तुझे मारकर कल जंगल के सारे पशुओ की जान ले लूँगा.

उनके वंश का नाश कर डालूगा. खरगोश ने विनयपूर्वक सिर झुककर कहा- क्षमा करे स्वामी, आप व्यर्थ क्रोध कर रहे हैं, इसमे न मेरा अपराध हैं, न अन्य पशुओ का.

कुछ फैसला करने से पूर्व मेरे देरी से आने का कारण तो जान लीजिए. शेर गुराया- जो बोलना हैं, जल्दी बोल. मै बहुत भूखा हु, कही तेरे कुछ कहने से पहले ही मै तुम्हे चबा ना जाऊ.

स्वामी ! बात यह हैं कि सभी पशुओ ने आज सभा करके और सोचकर मै बहुत छोटा हु, मुझे तथा अन्य चार खरगोशो को आपके भोजन के लिए भेजा था.

हम पांच आपके पास आ रहे थे, कि मार्ग में दूसरा सिंह अपनी गुफा से निकलकर आया और बोला- अरे किधर जा रहे हो तुम सब, अपने देवता को याद कर लो, मै तुम्हे खाने आया हु. मैंने उससे कहा- हम अपने स्वामी भरासुक के पास आहार के लिए जा रहे हैं.

तब वह बोला- भासुरक कौन हैं ? क्या उसे ज्ञात नही कि यह जंगल तो मेरा हैं ? मै ही तुम्हारा राजा हू. तुम्हे जो बात कहनी हैं, मुझसे कहो. भासुरक चोर हैं, तुम में से चार खरगोश यही रह जाओ,

एक खरगोश भासुरक के पास जाकर उसे बुला लाए, मै स्वय निबट लूँगा. हममे से जो बलशाली होगा, वही इस जंगल का राजा होगा.

में तो किसी तरह से उससे जान छुड़ाकर आपके पास आया हु, महाराज ! इसलिए मुझे बहुत देरी हो गयी, आगे स्वामी को जो इच्छा हो करे. यह सुनकर भासुरक बोला- ऐसा ही हैं,

तो मुझे जल्दी उस दुसरे सिंह के पास ले चलो. आज मै उसका रक्त पीकर ही अपनी पास बुझाउगा, इस वन में मेरे अतिरिक्त अन्य किसी सिंह का हस्तक्षेप मुझे मंजूर नही.

खरगोश ने कहा- हे स्वामी ! यह तो सत्य हैं, कि अपने स्वाभिमान के लिए युद्ध करना आप जैसे शुरविरो का काम हैं. किन्तु दूसरा सिंह अपने दुर्ग में बैठा हैं, दुर्ग से बाहर आकर उसने हमारा रास्ता रोका था.

दुर्ग में रहने वाले शत्रु पर विजय पाना कठिन हैं, दुर्ग में बैठा हुआ शत्रु सौ शत्रुओ के बराबर माना जाता हैं. दुर्गहिन् राजा और दंतहिन् राजा और मदहिन् हाथी की तरह कमजोर हो जाता हैं.

उसके प्रत्युतर में भासुरक ने कहा- तेरी बात ठीक हैं, किन्तु मै उस दुर्ग में बैठे सिंह को मार डालूगा. शत्रु को जितना जल्दी हो सके नष्ट कर देना चाहिए. मुझे अपने बल पर पूरा भरोसा हैं. शीघ्र ही उसका नाश नही किया तो बाद में असाध्य रोग की तरह ताकतवर हो जाएगा.

खरगोश ने कहा- ठीक हैं, यदि स्वामी का यही निर्णय तो आप मेरे साथ चलिए. यहकहकर खरगोश भासुरक को उसी कुए के पास ले गया, जहाँ झुककर उसने अपनी परछाई देखि.

वहां पहुचकर वह बोला- स्वामी मैंने कहा था वही हुआ, आपकों आता देखकर अपने दुर्ग में छिप गया हैं, आइये आपकों उसकी सूरत दिखा देता हु, ” जरुर मै उस नीच को देखकर दुर्ग में ही उससे लडुगा.

खरगोश भासुरक सिंह को कुए की मेड पर ले गया,भासुरक ने झुककर देखा तो अपनी ही परछाई दिखाई दी, उसने समझा यही दूसरा सिंह हैं. तब वह जोर से गरजा ,

उसकी गरज के उत्तर में कुए से दुगुनी गरज सुनाई दी, उस गूंज को दुसरे सिंह की गरज समझ कर उसी क्षण कुँए में कूद पड़ा और वही जल में डूबकर मर गया.

शिक्षा

Kids Story In Hindi बुद्धिमान खरगोश कहानी में खरगोश ने अपनी बुद्दिमत्ता से सिंह को हरा दिया. वहां से लौटकर वह वन्य जीवों को सभा में छा गया.

उसकी चतुराई जानकार और सिंह की मौत के समाचार सुनकर सभी जानवर प्रसन्नता से झूम उठे. प्लीज Kids Story In Hindi को अधिक से अधिक शेयर करे.

मित्रता पर कहानी इन हिंदी | Short Story On Friendship In Hindi For Kids

Hello In this article, we are providing about Short Story On Friendship In Hindi For Kids. मित्रता पर कहानी इन हिंदी Short Story On Friendship In Hindi For Kids, mitrata par kahani Nibandh class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 Students.

राम ईश्वर के अवतार तथा महापुरुष माने जाते हैं. उनका सम्बन्ध त्रेता युग से हैं. द्वापर युग में एक अन्य ईश्वरीय अवतार तथा महान पुरुष हुए हैं. उनका नाम हैं श्रीकृष्ण. कृष्ण की सुदामा के साथ मित्रता प्रसिद्ध हैं. हिन्दी में कवि नरोत्तम दास ने   इस पर एक खंड काव्य की रचना भी की हैं.

श्रीकृष्ण और सुदामा बचपन के मित्र थे. श्रीकृष्ण का सम्बन्ध धनाढ्य परिवार से था. वह यदुवंशी क्षत्रिय थे. सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण के पुत्र थे. दोनों संदीपन गुरु के आश्रम में पढ़ते थे. दोनों में प्रगाढ़ मित्रता थी. एक बार गुरुमाता ने उनको वन से लकड़ी लाने भेजा.

वहां खाने के लिए कुछ भुने चने भी दिए. श्रीकृष्ण लकड़ी काटते रहे और सुदामा पोटली खोलकर चने चबाते रहे. जब श्रीकृष्ण लकड़ी काटकर आए तब तक सारे चने समाप्त हो चुके थे. दोनों मित्र में विनोदपूर्ण कहा सुनी हुई. आश्रम में आकर श्रीकृष्ण ने गुरुमाता से इसकी शिकायत भी की.

बड़े होने पर श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बने. गरीब सुदामा एक झोंपड़ी में रहते थे. उनकी पत्नी जानती थी कि द्वारकाधीश श्रीकृष्ण उनके मित्र हैं. बहुत आग्रह करके उसने सुदामा को उनके पास भेजा,

जिससे श्रीकृष्ण की सहायता पाकर उनकी निर्धनता दूर हो सके, द्वारका पहुँचने पर श्रीकृष्ण ने महल में उनका करुनापूर्ण स्वागत किया.

देखि सुदामा की दीन दशा करुना करिकै करुणानिधि रोए
पानी परात को हाथ छुयो नहिं नैन्नु के जल तें पग धोए

भेंट के लिए लाए चावलों की पोटली श्रीकृष्ण ने उनकी कांख से छीन ली. दो मुट्ठी चावल खाकर उनको दो लोकों की सम्पति का स्वामी बना दिया. श्रीकृष्ण ने उन्हें प्रकट रूप में कुछ नहीं दिया.

सुदामा घर लौटे तो पछता रहे थे कि वह द्वारका क्यों आए. घर पहुंचकर उनको अपना स्थान पहचान में नहीं आ रहा था.

सब कुछ बदला बदला था. वह सोच रहे थे कि मैं रास्ता भूलकर पुनः द्वारका तो नहीं आ गया. तभी रत्नजड़ित आभूषणों और बहुमूल्य वस्त्रों से सुसज्जित महिला ने उनको बुलाया, वह उनकी ब्राह्मणी थी.

इस कथा से श्रीकृष्ण में एक परम विश्वस्त और उदार मित्र के दर्शन होते हैं. उनका व्यवहार एक आदर्श मित्र के सर्वथा अनुकूल हैं. कविवर रहीम ने लिखा हैं.

जे गरीब तें हित करें ते रहीम बड लोग
कहाँ सुदामा बापुरों कृष्ण मिताई जोग

Inspirational stories for children of small classes छोटी कक्षा के बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानियाँ

Inspirational stories for children of small classes में आपकों कक्षा एक और दौ के छोटे बालकों के लिए शिक्षाप्रद कहानियाँ यहाँ दी जा रही हैं.

बेहद सरल भाषा में लिखित इन कहानियों का सग्रह छोटी कक्षा के पाठ्यपुस्तक में से किया गया हैं. ये कहानियाँ और उससे मिलने वाली सीख छोटे बच्चों को जरुर बताएं.

अंगूर बहुत खट्टे होते हैं कहानी

एक लोमड़ी बहुत भूखी थी वह भोजन की खोज में इधर -उधर भटकने लगी वह एक बागमें जा पहुची. वहां उसने एक बेल पर अंगूर लगे देखे तो लोमड़ी के मुह पानी आ गया.

अंगूर तोड़ने के लिए बार बार उछलने लगी. मगर अंगूर बहुत ऊचाई पर थे. वह वहां तक नही पहुच पाई और निराश हो गईं. अपने मन को यह कहकर समझाने लगी- अंगूर तो बहुत खट्टे हैं, इसको खाकर मै बीमार पड जाउगी.

शिक्षा- जब हमे कोई चीज नही मिलती हैं, तो हम उसकी बुराई बताकर मन को दिलासा देते हैं.

शीला का साहस

चमनपुर गाँव पहाडियों के बिच बसा हुआ हैं, गाँव से थोड़ी दूर पाठशाला थी. पाठशाला के रस्ते में घने पेड़ और झाड़ियाँ थी. पास ही एक जल का नाला बहता था.

बच्चों को नाला पार करके शाला जाना पड़ता था. इस कारण छोटे बच्चे अकेले जाने से डरते थे. इसलिए वे बड़े बच्चों के साथ स्कुल जाया करते थे.

शीला उसी शाला की पांचवी क्लास की छात्रा थी. वह अपने मोहल्ले के बच्चों को अपने साथ ले जाती और छुट्टी के बाद वापिस घर तक लाती थी.बरसात के दिन थे. शीला बच्चों को लेकर शाला जा रही थी.

बच्चे आगे-पीछे उचल-कूद कर रहे थे. शीला ने देखा आज नाले का बहाव बहुत तेज था. उसने बच्चों के एक दुसरे से हाथ पकडवाऐ और नाला पार करने लगी.

अचानक मनीषा का एक हाथ छुट गया और पानी के साथ बहने लगा. शीला घबराई उसने तुरंत अपना बस्ता अपने साथी को थमाया और तेजी से तैरने लगी. उसकी सांस् फुल गयी लेकिन उसने हार नही मानी.

वह मनीषा के पास पहुची और उसका हाथ पकड लिया. शीला उसे खीचकर किनारे ले आई. वह थक कर गिर पड़ी. इतने में कुछ बच्चे और गुरुजी दौड़ते हुए आए. शीला के साहस की बात चारों और फ़ैल गईं. सभी ने उसकी प्रशंसा की.

शिक्षा; साहस जो करता हैं, जग में होता हैं उसका नाम.

छोटी कहानियाँ बड़ी शिक्षा : ek chhoti si kahani Badi Shiksha

छोटी कहानियाँ या बड़ी एक विधा में वह ताकत होती हैं, जो ऐसी शिक्षा (MORAL) दे जाती हैं, जो किसी सच्चे गुरु के बिना संभव नही हैं. यहाँ दी गईं कुछ कहानियाँ ” बड़ा बनने की कला (The art of becoming big) ”

बुजुर्ग का न्याय जैसी पढने में तो बेहद छोटी लगेगी, मगर इनके भीतर छिपे सार को समझने की कोशिश की जाए तो यह बहुत बड़ी बात कह जाती हैं, व्यक्ति को जिनका अनुभव सालों के अध्ययन के बाद भी नही होता हैं.

बड़ा बनने की कला ( छोटी कहानी)

स्वामी रामतीर्थ सन्यास लेने के पूर्व तीरथराम थे. और लाहौर के एक स्कुल में गणित के प्राध्यापक थे. एक बार श्यामपट पर उन्होंने रेखा खीचकर विद्यार्थियों से पूछा कि – क्या इस रेखा को बिना मिटाए कोई छोटी कर सकता हैं?

कक्षा चुप रही| एक विद्यार्थी ने उठकर उस रेखा उस रेखा के पास लम्बी रेखा खीच दी, जिससे पहली रेखा छोटी हो गईं. प्राध्यापक तीरथराम बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे- ” जीवन का भी यही रहस्य हैं,

यदि तुम बड़ा बनना चाहते हो तो बड़े बन जाने वाले व्यक्तियों को पीछे मत धकेलो, अपने आप को उनसे बड़ा बनाओ | वे अपने आप तुमसे छोटे हो जाएगे..

शिक्षा : बड़ा बनने के लिए अपने से आगे वाले की टांग खीचने की बजाय उनसे अधिक मेहनत कर आगे बढ़ो.

बुजुर्ग की सीख

एक बार तीन दोस्त किसी शहर की मुख्य सड़क से होकर गुजर रहे थे. तभी अचानक एक की नजर एक छिक्के पर गईं, और उस पड़े छिक्के को उठा लिया.

तभी दुसरे दोस्त बोले- इसे हम सबने एक साथ देखा, इसलिए यह हम सबका हैं.

तभी एक बोला- हाँ, भाई हाँ क्यों न हम कुछ खरीदकर आपस में बाँट लेते हैं.

दूसरा बोला- ठीक हैं ! पर क्या खरीदे.

पहला- मेरा मन तो मीठी चीज खाने को कर रहा हैं.

दूसरा- ठीक हैं पर कई मीठी चीजे खरीदेगे.

तीसरा- पर मुझे तो प्यास बुझाने के लिए कुछ चाहिए. तभी पहला बोला – सबके के एक मिठाई बहुत हैं, मगर दुसरे ने कहा मुझे तो कई सारी चाहिए.

तीसरा- मुझे तो प्यास लगी हैं.

तभी एक बुड्ढा वहा आया और बोला – क्या बात हैं, क्यों झगड़ रहे हो.

तीनो ने पूरी बात बुड्ढ़े को बताई, वह बुड्ढा बोला- अरे, बस इतनी सी बात बड़ा आसान उपाय हैं.

कुछ अंगूर खरीद लीजिए.

पहला- ये तो मीठे हैं.

दूसरा- ये तो बहुत सारे हैं.

तीसरा- ये मेरी प्यास बुझाएगे.

इस तरह बुजुर्ग ने हमारी समस्या हल कर दी.

शिक्षा : किसी विषय पर झगड़ने की बजाय अपने बुजुर्गो की राय लेनी चाहिए !

हिंदी में कहानी कुरज री विनती (विजयदान देथा द्वारा रचित)

आज की शीर्षक हिंदी में कहानी में राजस्थान के कवि और लेखक विजयदान देथा द्वारा मूलत: राजस्थानी भाषा में लिखी गईं कुरज री विनती कहानी हैं, जिसे हिंदी में ट्रांसलेट किया गया हैं.

इस हिंदी में कहानी के कुछ शब्द और वाक्य मायड भाषा (राजस्थानी) के ही हैं. HIHINDI पर कहानियां ही कहानियां की सीरिज में आप सभी पुरानी और नवींन हिंदी स्टोरी पढ़ सकते हैं.

देथा जी की अन्य लघु कथाएं मैं बातां री फुलवारी,प्रेरणा,सोरठा,रूँख,कबू रानी,बापु के तीन हत्यारे विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.

यह एक पशु प्रेम की कहानी हैं, जिसमें कुरज एक पक्षी हैं इसकी और पशुओ के ग्वाले फिर ऊदरे (चूहे) के साथ की कहानी हैं, इसमे राजस्थानी भाषा के लोक गान भी बिच-बिच में दिए गये हैं. कुरज एक रूस के साइबेरिया की पक्षी हैं.

जो मानसून की शुरुआत के साथ ही राजस्थान के घना पक्षी विहार अभ्यारण में प्रवास पर आ जाती हैं,शरद मौसम की आहत से ही ये अपने वतन की वापसी का रुख कर लेती हैं. कुरज को हिंदी भाषा में सारस भी कहा जाता हैं, कुरज से जुड़े राजस्थान में कई लोकगीत बहुत प्रसिद्ध हैं|

कुरज री विनती

समुद्र के किनारे एक ऊँचा पर्वत था. उस पर्वत तलहटी में एक साफ़ स्थान को चुनकर कुरज ब्याई और सत्रह अंडे लाई. उन अन्डो को कुरज ने पुरे सत्रह दिन तक सेया. उस कुरज ने उन सत्रह दिनों तक एक भी दाने का चुग्गा नही लिया.

सेते-सेते उन सत्रह अंडो से 17 बच्चे पैदा हुए,

तब वह कुरज उन बच्चों के चुग्गे की खोज में उड़ी. उड़ते-उड़ते उन्हें तोते के पंख जैसा हरा खेत नजर आया. अब यह अपने बच्चों को रोजाना इस ज्वार के खेत में दाना चुगाने के लिए ले जाने लगी.

उस ज्वार के खेत का मालिक बेहद लोभी लालची किस्म का व्यक्ति था.

उसने सोचा यह कुरज हमेशा बिगाड़ करती हैं,इसे पकड़ना चाहिए | एक दिन उसने ज्वार के पौधे-पौधे पर गुड़ का लेप कर दिया. कुरज खेत में चुग्गा चुगने उतरी तो छिपक गईं. कुरज उड़ने के लिए छटपटाने लगी तो किसान ने उसे पकड़ लिया.

उसे एक खेजड़ी के पेड़ के बाँध दिया.

कुछ समय बाद भेड़ चराने वाला गडरिया वहा से गुजरा, फडफडाती कुरज ने करुण स्वर में उस गडरिये से विनती की-

रेवड रा एवालिया रे बीर टमरकटूँ

बांधी कुरज छुड़ाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

समदा रे कांठे ब्याई म्हारा बीर – टमरकटूँ

भाखर खुड्के ब्याई ब्याई म्हारा बीर- टमरकटूँ

स्त्रेरह बिचिया ल्याई म्हारा बीर-टमरकटूँ

आंधी में उड़ जाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

लुआं में बल जाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

मेहा में गल जाए महारा बीर- टमरकटूँ

भूखा में मर जाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

कुरज की विनती सुन गडरिये को दया आ गईं.

उसने खेत के मालिक से कहा-छांटकर अच्छी-सी भेड़ ले लो,और इस निरीह कुरज को छोड़ दे, खेत का मालिक लोभी था. उसने कहा सारा का सारा रेवड़ दे तो छोड़ दू. ” गडरिये ने कहा- लेनी हो तो एक भेड़ लेले, मै तो नौकर हु.

इससे अधिक देना मेरे हाथ की बात नही, उसने काफी निहोरे किये,

पर खेत का मालिक नही माना, कुछ देर बाद गायों का एक झुण्ड आया. कुरज ने वैसे ही करुण स्वर में विनती की-

गाया रा ग्वालिया रे बीर-टमरकटूँ

बाँधी कुरज छुड़ाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

समदा रे कांठे ब्याई म्हारा बीर – टमरकटूँ

कुरज की विनती सुनकर ग्वाले को दया आ गईं, उसने खेत के मालिक से कहा- छांटकर एक अच्छी सी गाय लेलो और इस कुरज को छोड़ दो. पर खेत का मालिक अत्यंत लोभी था.

उसने कहा- सारी की सारी गाये दे तो छोडू ?

ग्वाले ने कहा- ”मै तो नौकर हु, इससे अधिक देना मेरे हाथ की बात नही, लेनी हो तो एक बढ़िया गाय ले लो. काफी समय तक निहोरे किये, तब भी व न माना. फिर कुछ समय बाद भैसों का झुण्ड आया. कुरज ने करुण स्वर में विनती की.

भैसा रा ग्वालिया रे बीर– टमरकटूँ

बाँधी कुरज छुड़ाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

समदा रे कांठे ब्याई म्हारा बीर – टमरकटूँ

कुरज की विनती सुनकर भैसों के ग्वाले के ह्रदय में दया आ गईं, उसने खेत के मालिक से कहा- छांटकर एक बढ़िया सी भैस ले लो, और इस बंधी कुरज को छोड़ दो.

पर खेत का मालिक बड़ा लालची था.

उसने कहा- ”सारी की सारी भैंसे दे तो छोडू” तब ग्वाले ने कहा- मै तो मामूली नौकर हु, इससे अधिक देना मेरे हाथ की बात नही, लेनी हो तो एक उम्दा भैंस ले लो. बहुत देर निहोरे किये फिर भी वह न माना.

कुछ समय बाद वहा से ऊंटों का झुण्ड गुजरा. कुरज ने ह्रदय चिर देने वाली करुण स्वर में विनती की.

साड्या रा रेवलिया रे बीरटमरकटूँ

बाँधी कुरज छुड़ाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

समदा रे कांठे ब्याई म्हारा बीर – टमरकटूँ

कुरज की यह विनती सुनकर गडरिये का दिल दया से भर गया. उसने खेत के मालिक से कहा- छांटकर एक अच्छा सा ऊंट ले लो. और इस कुरज को छोड़ दो, पर उस खेत का मालिक बेहद लोभी किस्म का इंसान था.

उसने कहा-सारे का सारा झुण्ड दे तो छोडू.

तब गडरिये ने कहा – मै बहुत मामूली नौकर हु, इससे अधिक देना मेरे बस की बात नही हैं, लेना हो तो एक बढ़िया ऊंट ले लो. बहुत निहोरे किये तब भी वह न माना. कुछ देर बाद सामने के एक बिल से उन्दरा निकला. कुरज ने अपनी विवशता के मारे छटपटाते हुए, करुण स्वर में विनती की.

पयाल देश रा राजा रे बीर- टमरकटूँ

बांधी कुरज छुड़ाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

समदा रे कांठे ब्याई म्हारा बीर – टमरकटूँ

भाखर खुड्के ब्याई ब्याई म्हारा बीर- टमरकटूँ

स्त्रेरह बिचिया ल्याई म्हारा बीर-टमरकटूँ

आंधी में उड़ जाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

लुआं में बल जाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

मेहा में गल जाए महारा बीर- टमरकटूँ

भूखा में मर जाई म्हारा बीर- टमरकटूँ

कुरज की यह करुण विनती सुनकर उदरे का ह्रदय फट सा गया. उसकी आँखों में आंसू छलछला से गये. खेत के लोभी मालिक पर उसे बहुत गुस्सा आया,फिर भी उसने संयत स्वर में उससे विनती की- यदि तू इस कुरज को छोड़ दे तो मै तुम्हे एक सोने की माला दूंगा. पुरे एक सौ आठ मनको की.

सोने की बात सुनकर उस पीले खेत के मालिक की आँखे चौधिया सी गयी.

और बोला- मेने किसी की बात नही मानी, अड़ा रहा पर तेरा कहना तो मानना ही पड़ेगा. किन्तु केवल सोने की माला से काम चलने वाला नही हैं| सोने का बाजोटा और सोना का वजनी मुकुट दे दे. मै इस कुरज को छोड़ दुगा.

इसने मेरे खेत में कितना बिगाड़ किया हैं, तुम अंदाजा लगा सकते हो.

उन्दरे ने कहा- तू कहे तो मुझे ये तीन चीज देने में कोई एतराज नही हैं.

मेरे कुछ भी घाटा नही पड़ेगा, पर पहले कुरज को छोड़ दे.

मुझे तेरा विशवास नही हैं. खेत के मालिक ने ज्यादा हठ की तो

उन्दरे ने तीनों चीजे बिल के द्वार पर लाकर रख दी. खेत का मालिक ख़ुशी से बावला हो गया.

उसने झट से कुरज को छोड़ दिया, खेत का मालिक जैसे ही तीनो चीजे लेने लपका.

चूहे ने झट से इसे अपने बिल में खीचकर अंदर तक ले गया. पैरो से बिल के बाहर धुल उछालते हुए कहने लगा- सोने के बदले धुल ले ले, सोने के बदले धुल ले ले. खेत का मालिक मुह उतारकर आकाश में उड़ती हुई कुरज को एकटक देखता रहा.

अब क्या उपाय हो सकता था.

कुरज तो आकाश में अद्रश्य हो गईं, उन्दरा पाताल में अद्रश्य हो गया.

ये कहानी आपकों कैसी लगी, कमेंट कर जरुर बताएं.

बुद्धिमत्ता की परीक्षा- हिंदी कहानी

बहुत पुरानी बात है, उन दिनों आज की तरह स्कूल नही होते थें. गुरुकुल शिक्षा प्रणाली थी और छात्र गुरुकुल में ही रहकर पढ़ते थे. उन्हीं दिनों की बात है.

एक विद्वान पंडित थे, उनका नाम था- राधे गुप्त. उनका गुरुकुल बड़ा ही प्रसिद्ध था, जहाँ दूर दूर से बालक शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे.

राधे गुप्त की पत्नी का देहांत हो चूका था, उनकी उम्रः भी ढलने लगी थी, घर में विवाह योग्य एक कन्या थी, जिनकीं चिंता उन्हें हर समय सताती थी. पंडित राधे गुप्त उसका विवाह ऐसे योग्य व्यक्ति से करना चाहते थे, जिसके पास सम्पति भले न हो पर बुद्धिमान हो.

एक दिन उनकें मन में विचार आया, उनहोंने सोचा कि क्यों न वे अपने शिष्यों में ही योग्य वर की तलाश करें. ऐसा विचार कर उन्होंने बुद्धिमान शिष्य की परीक्षा लेने का निर्णय लिया,

उन्होंने सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसें कहा-”मैं एक परीक्षा आयोजित करना चाहता हूँ, इसका उद्देश्य यह जानना है कि कौन सबसें बुद्धिमान है.

मेरी पुत्री विवाह योग्य हो गईं है और मुझें उसके विवाह की चिंता है, लेकिन मेरे पास पर्याप्त धन नही है. इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी शिष्य विवाह में लगने वाली सामग्री एकत्र करे.

भले ही इसके लिए चोरी का रास्ता क्यों न चुनना पड़े. लेकिन सभी को एक शर्त का पालन करना होगा, शर्त यह है कि किसी भी शिष्य को चोरी करते हुए कोई देख न सके.

अगले दिन से सभी शिष्य अपने अपने काम में जुट गये. हर दिन कोई न कोई न कोई शिष्य अलग अलग तरह की वस्तुएं चुरा कर ला रहा था और गुरूजी को दे रहा था.

राधे गुप्त उन वस्तुओं को सुरक्षित स्थान पर रखते जा रहे थे. क्योंकि परीक्षा के बाद उन्हें सभी वस्तुएं उनकें मालिक को वापिस करनी थी.

परीक्षा से वे यही जानना चाहते थे कि कौन सा शिष्य उनकी बेटी से विवाह करने योग्य है. सभी शिष्य अपने अपने दिमाग से कार्य कर रहे थे. लेकिन उनमें से एक छात्र रामास्वामी, जो गुरुकुल का सबसे होनहार छात्र था, चुपचाप एक वृक्ष के नीचे बैठा कुछ सोच रहा था.

उसे सोच में बैठा देख राधे गुप्त ने कारण पूछा. रामास्वामी ने बताया, ”आपने परीक्षा की शर्त के रूप में कहा था कि चोरी करते समय कोई देख न सके.

लेकिन जब हम चोरी करते है, तब हमारी अंतरात्मा तो सब देखती है, हम खुद से उसे छिपा नही सकते. इसका अर्थ यही हुआ न कि चोरी करना व्यर्थ है”

उसकी बात सुनकर राधे गुप्त का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा. उन्होंने उसी समय सभी शिष्यों को एकत्र किया और उनसें पूछा-”आप सबने चारी की..

क्या किसी ने देखा? सभी ने इनकार में सिर हिलाया. तब राधे गुप्त बोले ”बच्चों ! क्या आप अपने अंतर्मन से भी इस चोरी को छुपा सके?”

इतना सुनते ही सभी बच्चों ने सिर झुका लिया. इस तरह गुरूजी ने अपनी पुत्री के लिए योग्य और बुद्धिमान वर मिल गया. उन्होंने रामास्वामी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया.

साथ ही शिष्यों द्वारा चुराई गई वस्तुएं उनके मालिकों को वापिस कर बड़ी विनम्रता से क्षमा मांग ली.

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य अंतर्मन से छिपा नहीं रहता और अंतर्मन ही व्यक्ति को सही रास्ता दिखाता है. इसलिए मनुष्य को कोई भी कार्य करते समय अपने मन को जरुर टटोलना चाहिए, क्योंकि मन सत्य का ही साथ देता है.

अपनी वस्तु हिंदी कहानी | Apni Vastu hindi story For Students & Kids

अपनी वस्तु हिंदी कहानी short Hindi stories with moral values

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short hindi stories with moral values Apni Vastu Hindi story For Students & Kids:

एक महात्मा जी कही जा रहे थे. मार्ग में उन्होंने एक स्थान पर दो व्यक्तियों को ऊँची आवाज में बोलते हुए सुना. दोनों ही हाथों में लठ लिए हुए एक दूसरे के प्राण लेने को तैयार दिखाई दे रहे थे. एक कहता यह भूमि मेरी हैं और मैं इसका स्वामी हूँ, जबकि दूसरा उस भूमि को अपना बतला रहा था.

उस भूमि पर अपना अपना स्वामित्व जतलाने के लिए दोनों ही क्रोध से लाल पीले हो रहे थे. अपने अपने पक्ष में दलीले दे रहे थे. संत महात्मा तो स्वभाव से ही दयालु एवंम परोपकारी होते हैं. सदैव सबका ही भला चाहते हैं.

उन्होंने मन ही मन विचार किया ये दोनों लड़ाई झगड़ा करके व्यर्थ में ही अपने प्राण ग्वानें पर तुले हुए हैं. अतः उन्हें समझा बुझलाकर शांत करने एवं आपस में समझौता कराने का प्रयास करना चाहिए.

यह सोचकर वे उनके निकट गये और उन्हें संबोधित करते हुए बोले- हे भद्र पुरुषों ! तुम लोग कौन हो और आपस में झगड़ा क्यों कर रहे हो?

महात्मा जी को देखकर उनमें से एक व्यक्ति बोला- महात्मन ! हम दोनों भाई हैं. हमारे पिता ने मरते समय अपनी सम्पति का जो बंटवारा किया था, उसके अनुसार इस भूमि का मालिक मैं हूँ, फिर भी यह व्यर्थ में झगड़ा कर रहा हैं.

दूसरा व्यक्ति तत्काल चिल्ला उठा- महाराज यह बिलकुल झूठ बोल रहा हैं. यह भूमि इसके भाग में नही बल्कि मेरे भाग में आती हैं, इसलिए इसका असली मालिक मैं हूँ. यह झूठमुठ ही इसे अपनी बतलाकर और मुझे डरा धमकाकर इसे हड़पना चाहता हैं.

महात्मा जी ने शांत भाव से फरमाया- तुम दोनों ही इस भूमि को अपना कहते हो और अपने अपने पक्ष में दलीले देते हो. ऐसे में इसका निर्णय कभी नही होगा. इसलिए अच्छा यही रहेगा कि जिस भूमि के लिए तुम मरने मारने को उतारू हो,

उससे ही यह पूछ हो कि उनका असली मालिक तुम दोनों में से कौन हैं? वह स्वयं ही इस बात का निर्णय कर देगी. कुछ समय तक दोनों ही महात्मा जी के मुह की ओर ताकते रहे फिर बोलर- किन्तु यह कैसे संभव हैं ? भूमि भी कभी बोलती हैं.

महात्मा जी ने उत्तर दिया, हाँ वह अवश्य बोलती हैं, परन्तु उसकी आवाज तुम लोग नही सुन सकते हो, हम सुन सकते हैं, किन्तु यह बताओं कि भूमि जो निर्णय देगी, क्या तुम दोनों को वह मान्य होगा?

दोनों भाई इस बात पर राजी हो गये. तब महात्मा जी बोलर- मुझे बहुत जोरों की भूख लगी हैं पहले मुझे भोजन कराओं. वे बोले भूमि का निर्णय हो जाए फिर आपकों डटकर खाना खिलाएगे.

महात्मा जी ने कहा- भूमि का निर्णय तो हो ही जाएगा. वह कही भागे थोड़ी ही जा रही हैं. पहले भोजन हो जाए, ताकि मन मस्तिष्क ठिकाने आ जाए. इसलिए तुम दोनों अपने घर से भोजन ले आओं, तब तक हम यही बैठे हैं. यह कहकर महात्मा जी एक पेड़ की छांव में बैठ गये.

दोनों भाई घर गये और अपने अपने घर से भोजन बनवाकर ले आए. महात्मा जी ने उन दोनों को बैठने के लिए कहा. तत्पश्चात उन्होंने भोजन के तीन भाग किए और दोनों भाइयों को भोजन करने का आदेश देकर भोजन करने लगे. इस प्रकार ऊपर की सब बातचीत तथा भोजन करने में दो घंटे लग गये.

महात्मा जी ने इस समस्त कार्यवाही का उद्देश्य केवल यही था कि दोनों का क्रोध कुछ कम हो जाए, ताकि उन्हें समझाया बुझाया जा सके और हुआ भी यही.

दोनों जब भोजन से निवृत हुए तो काफी शांत थे. उन्होंने महात्मा जी के चरणों में विनती की- महाराज ! यह भूमि तो कुछ बोलेगी नही इसलिए आप ही हमारा निर्णय कर दीजिए.

महात्मा जी ने कहा हम लोग भूमि से पूछकर निर्णय करते हैं. यह कहकर उन्होंने अपने कान भूमि के साथ लगाया, मानों कुछ सुनने का प्रयत्न कर रहे हो. कुछ देर तक वे भूमि के साथ कान लगाए रहे, फिर सीधे बैठ गये और गंभीर वाणी में बोले- यह भूमि तो कुछ और ही कह रही हैं.

दोनों भाई बोले महाराज ! भूमि क्या कह रही हैं? महात्मा जी ने कहा- यह भूमि कहती हैं कि दोनों ही व्यर्थ ही मेरे ऊपर अधिकार जमाने के लिए झगड़ा कर रहे हैं. क्योंकि मैं इन दोनों में से किसी की नही हूँ ! ये दोनों अवश्य मेरे हैं मैंने इनकी कई पीढ़ियों को पाला हैं और जाते हुए भी देखा हैं.

महात्मा जी की बात सुनकर दोनों भाई बड़े लज्जित हुए और महात्मा जी के चरणों में गिर पड़े. महात्मा जी ने लोहा गर्म देखकर चोट की और उन्हें समझाते हुए कहा- तनिक विचार करो कि जिस भूमि के लिए तुम लोग आपस में लड़ रहे हो,

क्या वह आज तक किसी की बनी हैं, जो तुम लोगो की बन जाएगी. मनुष्य मेरी मेरी करके व्यर्थ यत्न करता हैं. यह नही सोचता कि इनमें से कुछ भी मनुष्य का अपना नही हैं.

बड़े बड़े छत्रपति राजा भी इन्हें अपना अपना कहकर चले गये, परन्तु साथ क्या ले गये? कुछ भी नही. वे खाली हाथ संसार में आए थे वैसे ही खाली हाथ इस संसार से चले गये.

तुम भूमि के इस छोटे से टुकड़े के लिए अपने अनमोल जीवन को व्यर्थ करने पर तुले हुए हो? यह भूमि न तुम्हारी हैं न तुम्हारी बनेगी. भूमि ही क्या संसार के जितने भी पदार्थ हैं धन सम्पति हैं मकान आदि हैं, इनमें से कुछ भी तुम्हारा नही हैं.

तुम्हारी अपनी वस्तु तो केवल भजन भक्ति और तुम्हारे अच्छे कर्म हैं, जो तुम्हारे परलोक के संगी साथी हैं, शेष सब कुछ तो तुम्हारा यही रह जाएगा.

इसलिए आपस में लड़ने झगड़ने और मनुष्य जन्म के मूल्यवान समय को व्यर्थ करने की अपेक्षा जीचन को अच्छे कर्मों और नाम सुमिरण में लगाओं ताकि तुम्हारा लोक परलोक संवर जाएगा.

दोनों महात्मा जी के चरणों में गिरकर अपनी गलती की क्षमा मांगी. उसी दिन से सबके साथ प्रेम का व्यवहार करते हुए अपने समय को भजन भक्ति में लगाते हुए अपने जीवन सफल करने लगे.

अनोखी सूझ कहानी- Wisdom Stories For Students In Hindi

short stories for kids & Students: बहुत समय पहले की बात हैं. उन दिनों देवताओं तथा दानवों में युद्ध होता रहता था. दोनों पक्ष मिलकर एक बार प्रजापति के पास गये. वहां जाकर बोले- मान्यवर ! हम दोनों ही आपकी सन्तान हैं बताइए कि हम दोनों में बुद्धि में बड़ा कौन हैं. 

उनकी बात सुनकर प्रजापति मुस्कराएं. मन ही मन सोचने लगे ”किसे बड़ा बताऊँ” देवताओं को या दानवों को ? देवताओं को बड़ा बताता हूँ तो दानव नाराज होते हैं, दानवों को बड़ा बताऊँ तो देवता नाराज होते हैं, हो सकता है तब आपस में दोनों लड़ने लगे.

बड़ा टेड़ा प्रश्न था. बड़ा बताएं तो किसे बताएँ. कुछ देर वो सोचकर बोले- इसका उत्तर कल दूंगा. आप दोनों ही कल मेरे यहाँ भोजन पर आमंत्रित हो. भोजन के बाद बताउगा की कौन बुद्धि में श्रेष्ट हैं.

दूसरे दिन दोनों ही पक्ष भोजन के लिए पहुचे. दोनों को ही अलग अलग कमरों में बिठाया गया. वहां मिष्ठान के भरे थाल पहुचा दिए गये. प्रजापति दानवों के कमरे में गये.

उन्होंने कहा- ”आप लोग भोजन करे, शर्त यह हैं कि कोहनी को मोड़े बिना भोजन करना हैं” यही बात उन्होंने देवताओं से भी कही.

प्रजापति की बात सुनकर दोनों परेशान हुए, एक दूसरे का मुह ताकने लगे. समस्या यह थी कि खाएं तो कैसे खाएं? कोहनी नही मुडनी चाहिए. भोजन भी नही बचना चाहिए, प्रजापति की आज्ञा का पालन भी होना चाहिए.

देवताओं ने एक उपाय सोचा, कमरे का किवाड़ बंद किया. आमने सामने बैठ गये. लड्डू उठाकर एक दूसरे के मुहं में देने लगे. कुछ देर में थाल साफ़ हो गया. सारे लड्डू समाप्त हो गये. न हो हल्ला न शोरगुल. इस तरह देवताओं ने शांतिपूर्ण भोजन किया.

दानव अपने कमरे में परेशान थे. सोचने लगे बेकार ही यहाँ आए. नही आते तो परीक्षा नही देनी पड़ती. आ ही गये है तो परीक्षा देनी ही पड़ेगी. दानवों ने किवाड़ बंद किया लड्डुओं के थाल पर टूट पड़े.

लड्डू लेकर ऊपर उछालने लगे. लड्डू जब नीचे आते तो मुहं खोल कर लपकते. लड्डू जमीन पर गिरते और चूर चूर हो जाते. कमरे में से हो हो ही ही की आवाज आती रही. चीखते चिल्लाते और लड़ते झगड़ते रहे.

सारी स्थति स्पष्ट थी. प्रजापति ने कहा- देवता ही श्रेष्ट हैं जानते हो क्यों ? इसलिए कि इन्होने सहकार की भावना से काम किया. खुद भी खाओं दूसरों को भी खिलाओं, जिओं और जीने दो.

यह थी इनकी विशेषता. इन्होने बुद्धि से काम लिया, सूझ बुझ दिखाई. ये आमने सामने बैठ गये, एक दूसरे के मुहं में लड्डू देते रहे, थोड़ी देर में थाल साफ़ कर दिया.

दूसरी तरफ दानवों ने शर्त का पालन किया, लड्डू उछालते रहे, उन्हें पाने के लिए लपकते रहे, न खुद खाए न दूसरों को खाने दिए. लड्डू तो बिगड़े ही, पेट भी न भरा.

अनोखी सूझ कहानी से शिक्षा– जिसके पास बुद्धि हैं उसी के पास बल हैं, इसके लिए संस्कृत में एक सूक्ति (कहावत) हैं. ”बुद्धिर्यस्य बलं तस्य” इस पौराणिक कहानी में देवताओं के परीक्षा में सफल होने का यही आधार बताया गया हैं.

Hindi Kahani : बालक का स्वप्न

BALAK KA Swapna INSPIRATIONAL HINDI STORY FOR STUDENTS: एक समय की बात हैं, एक गरीब लड़का एक अमीर सेठ के घर पर नौकरी किया करता था. एक रात को सोते वक्त उस लड़के ने एक स्वप्न देखा और सपने में ही तेज आवाज में चिल्लाया- ”ओह मेरा भाग्य”.

सेठ लड़के की आवाज सुनकर घबरा गया उसने तुरंत लड़के को जगाया और पूछा क्या बात हैं अभी क्या कह रहा था तू? लड़का शांत स्वर में कहने लगा- सेठजी कोई बात नही, बस यूँ ही कर रहा था.

अगले दिन भी सेठ लड़के की उस बात को नही भूल पाया, उसने तुरंत लड़के को बुलाया और कल रात के स्वप्न की बात फिर पूछी- लड़का इस बार भी वह बात टाल गया. उस रात के स्वप्न के बाद वह बालक रोजाना रात को छिप छिपकर पढ़ने लगा.

एक दिन सेठ ने उस लड़के से कहा- ऐ लड़के ध्यान से सुन या तो मुझे अपने उस रात के स्वप्न की बात बता दे अथवा मेरे यहाँ काम करना बंद कर दे. लड़का बेहद बुद्दिमान व होशियार था उसने तुरंत उस सेठ के घर काम करने की नौकरी छोड़ दी.

घर जाकर उसने अपनी पढाई को अनवरत रखा, इसी समय उन्हें गाँव के जमीदार के यहाँ पर नौकरी मिल गई. एक दिन सेठ जमीदार के यहाँ कपड़े लेकर आया, उसने लड़के को वहां काम पर देखा.

सेठ ने जमीदार को लड़के के स्वप्न और निकाले जाने की बात बता दी. इस पर जमीदार ने लड़के को बुलाकर कहा- ऐ लड़के या तो तू अपने स्वप्न की बात बता दे अन्यथा आज मैं तुझे अपने यहाँ काम से निकाल दूंगा.

वह बालक अपनी धुन का पक्का व दृढ निश्चयी था. वह कुछ नही बोला और जमीदार की नौकरी छोड़कर अपने घर की ओर चल पड़ा. उसने अपनी पढाई चालु रखी. किसी तरह उसने अपनी सूझ बुझ से राजा के यहाँ नौकर की नौकरी प्राप्त कर ली. कई बार राजा का दिल जीतकर वह राजा का मंत्री बन गया.

एक दिन किसी काम के चलते वह उस जमीदार के यहाँ गया. उसने उस बालक को पहचान लिया तथा बालक के स्वप्न की सारी बात राजा को बता डाली.

राजा ने उस मंत्री को बुलाकर पूछा मंत्रीजी आपने बहुत समय पहले सेठजी के यहाँ क्या स्वप्न देखा था. आप यहाँ तो अपना स्वप्न हमे बता दीजिए अथवा दंड भुगतने के लिए तैयार हो जाइए.

मंत्री ने स्वप्न बताने से इनकार कर दिया. राजा ने क्रोधित होकर मंत्री को कैद में डाल दिया. कुछ दिन बाद पड़ोसी राजा ने इस राजा पर चढ़ाई करने की सोची. उसने सीमा पर अपनी सेना जमा कर दी.

उसने इस राजा तथा मंत्रियों की चतुराई जानने के लिए दों घोड़ियाँ भेजी और पुछवाया कि इनमें माँ कौनसी हैं और बेटी कौनसी हैं. सभी ने अपनी अपनी बुद्धि लगाई पर इस समस्या का कोई हल न कर सका.

राजा का नौकर बंदी मंत्री को नित्य भोजन देने जाया करता था. उसने सारी बात मंत्री को बताई. राजा की परेशानी सुनकर मंत्री कहने लगा. यह क्या कठिन हैं दोनों को नदी में नहलाने ले जाओं जो आगे नदी में घुसे वही माँ हैं और जो पीछे पीछे चले वही बेटी हैं.

इसके बाद राजा ने इसी प्रकार के दों तीन प्रश्न मंत्री को भेजे. मंत्री ने सभी को हल कर दिया. राजा ने यह सोचकर कि इस राजा को हराना कठिन हैं अपनी सेनाएं हटा ली.

उसने संदेश भिजवाया कि जिस व्यक्ति ने मेरे प्रश्नों को हल किया हैं, उससे हम अपनी कन्या का विवाह करना चाहते हैं.

इस समाचार से राज्य भर में सनसनी फ़ैल गई. उस बंदी मंत्री की चारों और प्रशंसा होने लगी. राजा ने तुरंत उसे मुक्त कर दिया. इसके बाद पड़ोसी राजा ने अपनी कन्या के साथ उसका विवाह कर दिया.

राजा ने मंत्री को अपना आधा राज्य भी दे दिया. इसके बाद भी राजा ने उसे बहुत सारी चल अचल सम्पति दी.

कुछ दिन बाद एक दिन प्रातकाल इस मंत्रीराजा ने दोनों राजाओं, जमीदार तथा सेठ सभी को अपने यहाँ आमंत्रित किया. जब वे सब वहां एकत्रित हुए तो उस समय यह मंत्रीराजा पलंग पर महल के विशाल एवं सज्जित कक्ष में लेटे हुए थे.

उनकी पत्नी उनके पास बैठी हुई थी. इसके अतिरिक्त अन्य कई नौकर भी इनकी सेवा में जुटे हुए थे. चारों व्यक्ति भी उसके आस-पास बैठे हुए थे.

तब उस मंत्रीराजा ने कहा ”यही द्रश्य जो आप लोग इस समय यहाँ देख रहे हैं, मैंने स्वप्न में देखा था, और तभी मै स्वप्न में चिल्लाया था” अहो मेरा ऐसा भाग्य” मैंने तब यह बात आप लोगों को बता दी होती तो आप में से कोई भी इसे पूरा न होने देता, हो सकता था इर्ष्या, लोभ और अपमान के वशीभूत आप मुझे मौत के घाट भी उतरवा देते.

Hindi Kahani : बालक का स्वप्न की शिक्षा (MORAL)- सच हैं, अपने मस्तिष्क में जो विचार आए, उसकी व्यर्थ चर्चा न करते हुए योजनाबद्ध तरीके से इसे पूर्ण करने में लग जाना चाहिए. कर्म, कठोरता, लगन और निष्ठां से कोई भी व्यक्ति महान बन सकता हैं.

घोंसला हिंदी कहानी (Ghosla Birds Story In Hindi)

बाल कहानियों के इस लेख में आज हम “घोंसला” हिंदी कहानी आपके साथ शेयर कर रहे हैं. इस शोर्ट बर्ड स्टोरी को बच्चों के लिए प्रेरणा के लिए उन्हें सुना सकते है. कक्षा १,२,३,४,५,६,७,८,९,१० के बच्चों को यह कहानी आप बता सकते हैं.

hindi tales- उमा के घर के पीछे एक बबूल का पेड़ था. उमा ने अपने कमरे की खिड़की से उसे देखती रहती थी. एक दिन उसने देखा कि एक चिड़िया बार बार आ जा रही थी. वह हर बार अपनी सोंच में भरकर एक घास का तिनका लेके आती, उस वृक्ष की डाल पर उन्हें रखती और फिर वापिस चली जाती.

उमा ने ध्यान दिया तो उस डाल पर एक सुंदर घास का घौसला बन रहा था. उसे बड़ी जिज्ञासा हुई तथा अपनी माँ से पूछने लगी, माँ यह चिड़िया पेड़ पर कितना सुंदर घौसला बना रही हैं जबकि हमारे घर में तो वह ऐसा नही बनाती हैं.

माँ से बड़े मीठे स्वर में बेटी को जवाब दिया- आप जो पेड़ पर घौसला देख रही हो, वह एक चिड़िया का है जिसका नाम बया हैं. बया के घौसले बेहद प्रसिद्ध होते है तथा यह बेहद सुंदर नीड़ बनाती हैं.

जब बेटी ने पूछा कि माँ यह अन्य पक्षियों की तुलना में इतना सुंदर घौसला कैसे बनाती है तो माँ ने कहा- यह अपनी पूरी सिद्धत से इस काम में लगी हैं तथा पूर्ण मेहनत और निष्ठां के साथ अपना कार्य करती हैं. इसकी मेहनत का परिणाम यह सुंदर घौसला हैं.

इतना कहने के पश्चात जब माँ रसोईघर में खाना बनाने के लिए निकल गई तो उमा को एक शरारत सूझी उसने एक लम्बा डिंडा लेकर बया के उस घौसले को पेड़ से गिरा दिया.

जब वह चिड़िया एक तिनका लेकर पेड़ की तरफ उड़ी तो उसने देखा कि उसका घौसला बिसरा पड़ा है सारे तिनके बिखर गये हैं.

अपनी मेहनत को धुल में मिला देख बया को बड़ी ग्लानी हुई. थोड़े वक्त तक वह अपनी कराहती आवाज में रोती रही, फिर उन्हें लगा कि रोने से क्या फायदा है सिर पीटने और रोने से कोई फायदा नही हैं

ऐसा करने से जो हो चुका हैं वह अपने आप ठीक नही होने वाला हैं. अतः उसने निश्चय किया कि वह फिर से घौसला बनाने के कार्य में पूरी सिद्धत से लग जायेगी.

उधर उमा की उदंडता भी बढती ही जा रही थी, बया जैसे ही नया घौसला बनाती वह उन्हें गिरा कर जमीन पर तिनको को बिखेर डालती. यह क्रम कई दिन तक चलता रहा, अचानक जैसे ही उमा एक दिन खिड़की से डंडा निकालकर उस घौसले को गिरा रही थी,

कि उसकी माँ ने यह देख लिया और उसे समझाने लगी. उमा तुम यह क्या कर रही हो, कोई काम कर रहा हो तो उसकी मदद करनी चाहिए, इंसान होकर हमें जीव जन्तुओं को कष्ट पहुचाने की बजाय उनकी मदद करनी चाहिए.

इन सब बातों का उमा पर कोई असर नही था. जैसे ही बया कोई घौसला बनाती वह उन्हें फिर से गिराकर स्वयं को आनन्दित महसूस करती, मगर बया भी कहाँ हार मानने वाली थी. उमा की शरारतों का वह अपनी मेहनत से जवाब देती रही, जैसे ही वह घौसला गिराती वह नया तैयार कर देती थी.

माँ को लगा इस तरह उमा नही मानने वाली हैं उन्हें उपाय सुझा की किसी तरह इसे दुःख पहुचा कर उनकी गलतियों का एहसास कराया जाए.  माँ ने उमा की प्रिय गुडिया को तोड़ डाला, जब उमा ने इसे देखा तो वह बेहद खिन्न हुई और रोने लगी.

उमा की माँ ने कहा मैं तुम्हारी गुडिया को जोडकर तब तक तैयार कर दूंगी जब तक तू बया का घौसला तैयार नही कर देती, यदि तू उसके कार्य में विद्य न डालकर उनकी मदद करती तो बया अब तक अपना घौसला बना देती. ऐसा सुनते ही उसने अपने घर के बगीचे से घास फूस को इकट्ठा किया और बया का घौसला बनाने के लिए तेजी से निकल पड़ी.

उसने सोचा यह कुछ ही मिनट का काम है वह तिनकों को लेकर पेड़ की डाल पर चढ़ी और उन पर रखती गयी मगर जैसे जैसे वह तिनका रखती वह नीचे गिरती रही.

काफी मेहनत के बाद भी काम बनता न देखकर वह दुखी होकर पेड़ की डाल पर ही रोने लगी. वह इसे जितना सरल काम समझ रही थी वह उतना ही कठिन निकला.

थोड़ी देर बाद उसे लगा कि उसके सिर पर कोई हाथ फेर रहा हैं. जब उमा ने नजर उठाकर देखा तो सामने उसकी माँ थी वह समझाते हुई बोली, बेटा कोई भी काम बिगाड़ना आसान है मगर उसे बनाना बहुत कठिन हैं.

आप उसकी मदद करों. उसकी परेशान मत करो सताओ मत , उन्हें लगा कि उसने माँ की बात न मानकर बहुत बड़ी भूल की हैं आगे से वह अपनी माँ की हर आज्ञा का पालन करेगी.

प्रेरक हिंदी कहानी ज्ञान सूत्र | Inspirational Stories In Hindi

कहानी वो विधा हैं, जो कई बार ऐसा ज्ञान भेट कर जाती हैं. जो लोगों को सालों के अनुभव के बाद भी प्राप्त नही होता हैं. प्रेरणादायक हिंदी कहानियाँ सत्य भी हो सकती हैं, और काल्पनिक भी. मगर उसका ज्ञान तो बहुमूल्य होता हैं,

सही सीख देने वाली एक कहानी किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती हैं. यहाँ आपकों ज्ञान का सूत्र नामक अच्छी सीख देने वाली (story in hindi with moral ) कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं, यकीनन इस कहानी को पढ़ने के बाद ‘ मान गये गुरु’ तो यकायक ही निकल आता हैं.

ज्ञान का सूत्र

इस कहानी को आप एक अन्य शीर्षक भी दे सकते हैं, क्रोध के 2 मिनट’ अपने पिता के एकलौते युवक की शादी के दो साल बाद उन्होंने कमाई के लिए विदेश जाने का फैसला किया.

उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी. मगर उन्हें माता-पिता के पास छोड़कर उनकी आज्ञा से कमाई करने के उदेश्य से विदेश चला गया. 20 सालों तक व्यापारी के लड़के ने विदेश में खूब पैसा-माल कमाया और आखिर फिर से अपने घर लौट जाने का निश्चय किया.

आज से 20 वर्ष पूर्व का निर्धन नवयुवक एक धनी सेठ बन चूका था, उस समय सुदूर यात्रा का एक ही जरिया था. जलयान. उस नवयुवक ने एक नाव में अपने सामान को डाला और वतन वापसी की यात्रा आरम्भ की.

तभी उनकी नजर एक व्यक्ति पर गईं. देखने से पंडित लगने वाला व्यक्ति भारतीय लगता था. वह धनी नवयुवक उस परेशान व्यक्ति के पास पंहुचा और उनसे ख़ामोशी का कारण पूछा

तो उन्होंने बताया मै एक पंडित हु और ज्ञान सूत्र बेचता हु. तो वह बोला इन देशो में ज्ञान की कोई कीमत नही हैं, हर कोई पैसे के पीछे पड़ा रहता हैं.

यह बात उस धनी युवक के दिल पर जा लगी, उसने ज्ञान सूत्र खरीदने का फैसला किया. सोचा हमने ढेरों पैसा कमाया हैं, वैसे भी यह अपने वतन का आदमी हैं,

अपने वतन की मर्यादा रखने के लिए उनके उस ज्ञान मन्त्र को खरीदने की तम्मना जताई. उस पंडित ने अपनी एक ज्ञान के सूत्र की कीमत 1000 सोने की मुद्रा बताया .

वैसे तो उसको यह कीमत कुछ ज्यादा ही लगी, मगर अपने वतन की लाज रखने की खातिर उन्होंने वो एक सूत्र खरीद लिया.

उस पंडित ने इस ज्ञान के सूत्र को समझाते हुए उसका सार बताया कि- कोई भी कर्म करने से पूर्व 2 मिनट तक रुके फिर उस कार्य को अंजाम दे.

धनवान युवक ने यह सूत्र अपनी पुस्तिका में लिख दिया, और यात्रा करने लगे.कुछ दिनों की यात्रा के बाद वो धनी युवक अपने शहर पंहुचा.

उसने सोचा बिना किसी को मेरे आने की खबर दिए यकायक उनके सामने जाकर आश्चर्यचकित कर दू. इसी उद्देश्य से उन्होंने द्वारपालों को बिना उनके आने की सूचना दिए सीधे अपनी पत्नी के सामने जाकर हाजिर हुआ,

विदेश जाते वक्त उन्हें गर्भवती छोड़कर गया था. पत्नी के कमरे में वह युवक पंहुचा तो उनकी आखोँ पर यकीन नही हो रहा था.

पत्नी एक युवक के साथ लिपटकर सोई हुई थी. उस धनी युवक का दिमाग बिलकुल काम नही कर रहा था, मै विदेश में भी इसकी दिन ब दिन चिंता किये जा रहा था. और ये तो पराए मर्द के साथ मजे ले रही हैं.

यह सोच उनका गुस्सा कई गुना बढ़ गया. उसने झट से तलवार उठाई और दोनों को मौत के घाट उतारने ही वाला था. कि उन्हें 1000 सोने की मुद्रा वाले ज्ञान के सूत्र की याद आई.

झट स्वय को नियंत्रित किया और सोचने के लिए अपनी तलवार वापिस खिची तो पास ही रखे बर्तन से टकरा गईं, बर्तन की आवाज सुनते ही उसकी पत्नी की नीद खुल गईं.

जब सालों से परदेश गये पति उनके सामने खड़े थे वो रोते हुए उनसे लिपट गईं. और बीते वर्षो की सूनी जिन्दगी की दासता सुनानी लगी, मगर उस युवक का ध्यान तो बिस्तर पर लेटे युवक पर था.

पत्नी से भावावेग में सोए हुए बेटे को उठाकर कहा- देख बेटे तेरे पापा कितने वर्ष बाद आए हैं, उस बेटे ने जैसे ही उस धनी पिता को दंडवत प्रणाम किया. सिर से उसकी पगड़ी गिर गईं,

घने और लम्बे बाल भुजाओं पर बिखर गये.उस नवयुवक की पत्नी बोली- स्वामी ये आपकी बेटी हैं, आपके चले जाने के बाद दुनिया की नजरो से बचाने के लिए मैंने इसका एक बेटे की तरह पालन-पोषण किया.

यह सुनकर उस धनी युवक की आँखों से प्रेम की धारा बह पड़ी, और बेटी को गले लगा दिया. तभी वह मन ही मन सोचने लगा,

काश मेने इस 1000 सोने की मुद्रा के ज्ञान सूत्र का उपयोग ना किया होता, तो कितना बड़ा अनर्थ हो जाता. 2 मिनट में मेरा परिवार तबाह हो जाता.ये ज्ञान तो बहुमूल्य हैं, पूरी जिन्दगी की पूंजी देकर भी खरीदता तो भी महंगा नही होता.

शिक्षा-

Inspirational Stories In Hindi ज्ञान के सूत्र कहानी से मित्रो हमे यही शिक्षा मिलती हैं, कि कोई भी कार्य करने से पूर्व 2 मिनट सोचना चाहिए, ज्ञान बहुमूल्य होता हैं. उसकी कद्र करे और अपने जीवन में उसका अमल करे.

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