महाराव शेखाजी का इतिहास | Maharav Shekha History In Hindi: वर्तमान के शेखावटी क्षेत्र (जयपुर, सीकर, झुंझुनू) के संस्थापक महाराव शेखा जी ही थे. जिनके नाम शेखा से शेखावटी क्षेत्र पड़ा.
इनका जन्म विक्रम संवत 1490 को मोकल जी के घर हुआ था. इनकी माता का नाम निरबान देवी था. शेखा जी जब अल्पायु में थे तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया था.
पिताजी के स्वर्गवास के बाद कम अवस्था में ही इन्हें चौबीस गाँवों की जागीर को सभालना पड़ा था.
महाराव शेखाजी का इतिहास में हम इस महान प्रतापी, लोक हितेषी, नारी सम्मानरक्षक के बारे में संक्षिप्त में जानेगे.
महाराव शेखाजी का इतिहास | Maharav Shekha History In Hindi
महाराव शेखा जी पन्द्रहवी शताब्दी का एक अद्वितीय व्यक्तित्व था. उसका जन्म 1433 ई में हुआ. कछवाहा वंशीय होने से आमेर राज्य का सम्मान बनाए रखने हेतु वह उसे वार्षिक कर देता था.
आमेर शासक चन्द्रसेन महाराव शेखाजी के बड़े भ्राता थे. उन्हें शेखा का स्वतंत्र राज्य मान्य नही नही था. और उनको किसी प्रकार से आमेर की अधिनता में लाने के लिए प्रयासरत थे. राव शेखा जो एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे, को आमेर की अधीनता स्वीकार नही थी.
अतः दोनों भाइयों के मध्य एक दशक तक युद्ध होते रहे. अंत में 1471 ई के युद्ध में शेख की विजय हुई. इसलिए चन्द्रसेन को शेखा को एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्वीकार करना पड़ा.
महाराव शेखाजी युद्ध कला में पारंगत थे. इसके बाद उसने अपने आस-पास के स्थानों को हस्तगत करना शुरू किया. इसके परिणामस्वरूप भिवानी, हिंसार व अन्य अनेक क्षेत्रों पर महाराव शेखाजी का आधिपत्य हो गया. इनके राज्य में गाँवों की संख्या 360 तक पहुच गई.
महाराव शेखाजी के राज्य अमरसर का क्षेत्रफल आमेर राज्य से भी अधिक बड़ा था. राव शेखाजी ने शासक के रूप में धार्मिक सहिष्णुता का भी परिचय दिया. इन्ही के प्रयासों से पठानों ने गाय के मांस को न खाने का संकल्प लिया, वे नारी अस्मिता के रक्षक थे.
नारी के सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए अपने जीवन का सन 1488 में उत्सर्ग कर दिया. जहाँ इनकी मृत्यु हुई, वहां उनकी याद में एक छतरी बनी हुई हैं.
शेखाजी का जीवनकाल
शेखावत समाज के पितृपुरुष कहे जाने वाले महाराव शेखाजी का जन्म कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी रविवार संवत 1490 को नाण बरवाडा के स्थानीय शासक राजा मोकल जी की रानी निर्वाण के गर्भ से हुआ था.
वर्ष 1502 में अपने पिता की मृत्यु के उपरांत महज 12 वर्ष की आयु में इन्होने राजकाज सभाला. उन्नीस वर्ष की आयु प्राप्त करते ही शेखाजी ने राज्य विस्तार और अपनी प्रजा की भलाई के कार्य शुरू कर दिए.
राज्य की कूटनीति को विस्तार देने तथा पड़ोसी जागीरो से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने के लिए महाराव शेखाजी ने टांको, गोडो, निर्वाणों ,तंवरो आदि जागीरदारों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये. उस समय मेवाड़ की सत्ता पर बैठे दूदाजी के साथ अपनी बेटी का विवाह कर अच्छे सम्बन्ध स्थापित किये.
आमेर के शासक चन्द्रसेन के साथ महाराव की पांच लड़ाईयां हुई, आखिर में दोनों के मध्य शान्ति समझौता हुआ और यह लम्बे समय तक कायम रहा.
स्त्री का सम्मान और गौरक्षा
महाराव शेखाजी की शासनावधि में विदेशी तुर्क आक्रान्ताओं की मार आज का समूचा राजस्थान झेल रहा था. शेखाजी गजनी, गौरी से कई बार भिड़े ऐसा माना जाता हैं. एक गौरक्षक के रूप में इन्होने गायो की सेवा की, उनके लिए गौशाला और चारे का प्रबंध किया.
इनकी स्पष्ट घोषणा थी कि अगर कोई उनके रहते गाय पर अत्याचार करेगा तो उसकी गर्दन उडा दी जाएगी. जैसी छवि इनकी गौरक्षा के प्रति थी वैसे ही नारी सुरक्षा और सम्मान के रक्षक भी थे.
गोड राजा रिडमल के साथ घाटवा के युद्ध में तीर लगने से इनका देहांत हो गया था. आज भी शेखाजी की छतरी रलावता गाँव से कुछ ही दूरी पर जीण माता के पास बनी हुई हैं. यहाँ बनी छतरी का उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटील के हाथों से हुआ था.
महाराव शेखाजी पैनोरमा
आज से 535 वर्ष पूर्व शेखावटी की धरती पर धार्मिक सौहार्द, नारी सम्मान और गौरक्षा के लिए बलिदान देने वाले शेखाजी के नाम पर राज्य सरकार ने एक स्मारक बनाया हैं. राजस्थान राज्य धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण की ओर से 11 लाख की राशि से शेखाजी पैनोरमा बनाया गया.
इनकी जन्म स्थली अमरसर में शेखाजी की 9 फुट की कांस्य प्रतिमा की स्थापना की गई. स्मारक के निर्माण के लिए करीब 2 करोड़ 27 लाख रु आवंटित किये गये. राज्य सरकार 31 करोड़ की लागत से सैनिक ट्रेनिंग स्कूल का निर्माण भी करवा रही हैं.
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