महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi

महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi -परम पूज्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कोन नही जानता हैं | सत्य और अहिंसा को वो मूरत जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी भारत की आजादी में लगा दी|

एक लकड़ी के सहारे चलने वाले गाँधीबाबा ने सत्य अहिंसा को अपना शस्त्र बनाकर करोड़ो हिन्दुस्थानियो के साथ जंग-ए-आजादी लड़ी| उनकी कुर्बानियों की वजह से ही आज हम खुले वातावरण में सांस ले रहे हैं|

ऐसी महान आत्मा के जन्म के लिए धरती स्वय तरस जाती हैं| मानवता और हिन्दू मुस्लिम एकता की मिशाल बने महात्मा गांधी के जीवन में विपतियों के सिवाय कुछ नही था| जिन्हें सता प्राप्ति का कोई लोभ न था|

प्यारा था तो वतन और उसकी आजादी| ऐसें प्रेरणादायक महापुरुष महात्मा गांधी का जीवन परिचय जीवनी और इतिहास में उनके जीवन से जुड़ीं मुख्य घटनाओं पर प्रकाश डालने की छोटी सी कोशिश की गईं हैं|

महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi

 जीवन परिचय बिंदु महात्मा गांधी का जीवन परिचय
 पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी
 धर्म हिन्दू
 जन्म 2 अक्टूबर 1869
 जन्म स्थान पोरबंदर, गुजरात
 माता-पिताकरमचन्द गाँधी, पुतलीबाई
 विवाहकस्तूरबा गाँधी (1883)
 बच्चेहरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास
 राजनैतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस

गांधी जी की जीवनी व इतिहास (Gandhiji’s biography and history)

आज इस हस्ती के बारे में कोन नही जानता देश का बच्चा-बच्चा महात्मा गांधी की ऑटोबायो ग्राफी से वाकिफ हैं, गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गाँधी था| इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर शहर में हुआ था| उस समय यह प्रान्त बम्बई प्रेजिडेंसी के अंतर्गत आता था|

इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी जो पंसारी जाति के थे| अग्रेज सरकार में वो दीवान के पद पर सेवारत थे| इनकी माँ का नाम पुतलीबाई था | जो मध्यम वर्ग से आती थी |

गृहणी का काम किया करती थी| दरअसल पुतलीबाई करमचन्द गांधी की चौथी पत्नी थी| इनसे पूर्व की तीन पत्नियों का देहांत हो चूका था|

महात्मा गांधी का आरंभिक जीवन (Early life of Mahatma Gandhi)

कट्टर हिंदूवादी विचारधारा के परिवार में जन्मे गाँधी के जीवन पर भी धार्मिक परवर्तियो का प्रभाव पड़ा| इनकी माता धार्मिक विचारो वाली महिला था| इनके पिताजी करमचंद गाँधी को कबा गाँधी उपनाम से भी जाना जाता हैं|

हालाँकि वे शिक्षित तो नही थे| मगर जीवन के कड़े अनुभवो ने उनमे ऐसी शिक्षा का प्रदुभाव कर दिया था| जिससे वे हित और अहित को भली भांति जानते थे|

वे नही चाहते थे उनका बेटा मोहनचंद इसी अंग्रेजी हुकूमत का बाशिंदा बने| इसी पर इन्होने मोहनदास का दाखिला स्थानीय सामलाल कॉलेज में दिलाया| जहा से स्कूली शिक्षा पूरी करने के त्त्पश्तात गाँधी को बम्बई विश्विद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए भेज दिया|

उन्हें शुरुआत से पढ़ाई में मन नही लगता था इसकी वजह अंग्रेजी भाषा थी| वे अग्रेंजी और अपनी मातृभाषा गुजराती में पूर्णत सामजस्य नही बिठा पाते थे| गाँधी बचपन से अपनी लिखावट में अच्छे नही थे|

उनका मन और कही था| मगर परिवार तो कुछ और ही चाहता था| महात्मा गांधी शुरू से ही बेहद सवेदनशील इंसान थे| मानव पीड़ा उनके लिए सबसे बड़ा दर्द था| इसमे कमी लाने के लिए वे डोक्टर बनना चाहते थे|

मगर कट्टर ब्रह्मण वादी सोच अपने कुल में चिर फाड़ और ऐसे कार्यो को बिलकुल इजाजत नही देती थी| अपनी कुल परम्परा के मुताबिक उन्हें वकील बनने की हिदायत दी गईं|

ब्रिटिश भारत में उस समय लो की शिक्षा का स्तर न्यून था| इसलिए माता-पिता ने महात्मा गांधी को इंग्लैंड भेजने का निश्चय किया गया|

गांधी जी की अफ्रीका यात्रा व भारत लौटना (Gandhiji’s visit to Africa and returning to India)

गांधी जब 19 वर्ष के थे तो कॉलेज में मन ना लगने के कारण इन्हे इंग्लैंड जाने का ऑफर मिला| जिन्हें गांधी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया| कानून की पढ़ाई करने जाने से पूर्व इनकी मुलाकात एक जैन भिक्षु के साथ हुई|

कुछ दिन साथ रहने के बाद इनका काफी प्रभाव पड़ा| इसके अतिरिक्त इनकी जीवनचर्या पर माँ के विचारो का प्रभाव पड़ा| लन्दन में रहने के दोरान उनके शाकाहारी जीवन प्रवर्ती में बड़ा बदलाव आया|

अग्रेंजी रीती-रिवाज और शैली से बिलकुल अलग और शाकाहारी और साधू के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे| बोध धर्म की एक संस्था थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्यता ग्रहण की और इसके साथ काम करते रहे

लन्दन से बेरिस्टर की डिग्री हासिल करने के बाद मुंबई लौट आए| यहाँ उन्होंने कई बार वकालत की| मगर उन्हें यहाँ इतनी सफलता नही मिली| एक अग्रेज अधिकारी की लापरवाही के कारण गांधी को इस जॉब से हाथ धोना पड़ा फिर उन्हें एक शिक्षक के रूप में एक संस्था द्वारा आमत्रित किया गया| मगर गांधी ने इच्छा न जताते हुए अनिच्छा जाहिर की|

उस समय अग्रेंजी हुकूमत दक्षिण अफ्रीका में भी थी| अत: रिश्तेदारों के बुलावे पर महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर गये| मगर यहाँ उन्हें जो कुछ झेलना पड़ा Mahatma Gandhi Biography में इसका वर्णन आगे दिया जा रहा हैं|

जीवन की घटनाएं

यदि मोहनदास कर्मचन्द गाँधी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा नही करते तो शायद वो महात्मा गांधी भी नही बनते | जब 1895 में गांधीजी ने अफ्रीका की यात्रा की तो उस समय वहा ब्रिटिश हुकूमत थी| जो वहा के निवासियों और अग्रेंजो के बिच रंगभेद की दीवार खड़ी कर चुके थे|

काले और गोरे लोगों के बिच हर क्षेत्र में भेदभाव किया जाता था| यहाँ तक कि वे एक ही बस्ती में नही रह सकते थे| गांधीजी ने जब दक्षिण अफ्रीका में पहला ही कदम रखा| तो उन्हें रंगभेद का शिकार होना पड़ा|

एक घटना जिन्होंने अग्रेंजो के प्रति गुस्सा भर दिया | जब वे रेल मे यात्रा कर रहे थे| तब उनके पास फरिस्त क्लास की वैध्य टिकट होने के बावजूद डिब्बे में सवार गोरे लोगों ने उन्हें थर्ड क्लास में जाना को कहा गया| महात्मा गाँधी ने जब इसका विरोध किया तो कुछ गोरे लोगों ने उठाकर उन्हें चलती गाड़ी से बाहर फेक दिया|

उस समय गांधी की वेशभूषा एक धोती कुर्ता और पगड़ी पहने थी| गोरे लोगों ने उन्हें अपनी बस्ती के आस-पास आने जाने रेस्टोरेंट में रुकने से पाबंदी लगा दी| साथ ही जब वे एक मुकदमें को लेकर कोर्ट गये तो अग्रेंजी कोर्ट ने उन्हें पगड़ी तक उतारने का आदेश दिया|

उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की तादाद बड़ी संख्या में थी, उनके साथ रंगभेद का घोर अपमान किया जाता था| गांधी ने भारतीयों को जाग्रत कर जुलू से अग्रेंजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया| इन्होने भारतीय जनमत इंडियन ओपिनियन के जरिए भारतीयों को न्याय दिलाने की कोशिश भी की|

दक्षिण अफ्रीका से भारत आना

कई सफल और विफल प्रयासों के बाद महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका छोड़कर 1915 में अपने वतन हिंदुस्तान लौट आए| भारत आकर इन्होने भारतीयों की अपने ही देश में राजनितिक आर्थिक दुर्दशा देखी|

अग्रेजो की फुट डालो और राज करो की निति का पूर्ण अध्ययन करने के बाद उन्होंने कई सभाओ को सम्बोधित किया| उस समय भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) थे| जो महात्मा गांधी के विचारों से सहमत थे|

गांधीजी उस समय प्रत्येक क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे ताकि वास्तविक स्थति का पता लगाया जाए| तभी उनसे गुजरात के खेड़ा और बिहार के चम्पारण के किसान अपनी परेशानियों को लेकर पहुचे|

अंग्रेजी हुकूमत उन से अन्यायपूर्ण तरीके से नील और अफीम की खेती करवाती थी| गाँधी जी ने बहुत सोच-विचार के बाद इन किसान की आवाज बनने का निर्णय किया और हजारो किसानो और किसान नेताओ के साथ 1918 में खेड़ा चम्पारण का आन्दोलन आरम्भ कर दिया|

यह पहला अवसर था जब मोहनदास कर्मचन्द गांधी को लोगों ने बापू और महात्मा गांधी के नाम से पुकारना शुरू किया| इस आन्दोलन में किसानो की तरफ से रखी गईं मांगो में बढे हुए राजस्व में कमी, कृषक का उनके खेत पर पूर्ण स्वामित्व, साथ ही सभी अन्यायपूर्ण सहमती पत्र रद्द किये गये|

अंग्रेजी हुकूमत ने खेड़ा और चम्पारण के किसानो की आवाज दबाने की पूरी कोशिश की महात्मा गांधी को जेल में भी डाला गया| मगर किसानो के आन्दोलन की बढती लोकप्रियता और दवाब के कारण सरकार को अपने कदम वापिस लेने पड़े|

इस आन्दोलन से बिखरे समाज में न केवल एकता लाने का काम किया बल्कि महात्मा गांधी की लोकप्रियता भी बढ़ी| लोगों में यह विश्वास जगा कि शांतिपूर्ण तरीको से भी सरकार पर दवाब बनाकर अपनी मांगे मनवाई जा सकती हैं|

महात्मा गांधी के आंदोलन नमक सत्याग्रह (Salt satyagraha)

दांडी नमक यात्रा गांधीजी की एक विरोधात्मक रैली और आन्दोलन था| जिनमे हजारो लोगों ने भाग लिया था| 5 अप्रैल 1930 को गुजरात की दांडी नामक स्थल से आरम्भ की गईं|

लगभग 450 किलोमीटर की इस यात्रा को पूरी कर महात्मा गांधी ने सत्याग्रहियों के साथ मिलकर नमक बनाकर अंग्रेजी सरकार के उस नमक कानून का उल्लघंन किया| इस आन्दोलन से अंग्रेजी सरकार की नीव पूर्णत हिलाकर रख दी थी|

12 मार्च के दिन लगभग 1 लाख से अधिक लोगों ने सरकार के नामक निर्माण और उसकी बिक्री के एकाधिकार का हनन कर सरकार को कड़ा संदेश देने का कार्य किया| महात्मा गांधी के इस आन्दोलन के बाद तकरीबन 70 हजार लोगों को जेल में डाला गया|

आखिर मार्च 1931 को इरविन गांधी समझोते के बाद सभी कैदियों को रिहा करने के साथ सरकार ने सभी सत्याग्रहियों की मांग को स्वीकार कर लिया| जिसके बाद गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को रोक दिया|

दांडी नमक यात्रा और खेड़ा चम्पारण के अतिरिक्त महात्मा गांधी ने कई बड़े राजनितिक और सामाजिक आन्दोलन किये जिसकी वजह से अंग्रेजी सता को कमजोर और भारतीय आंदोलनकारियो के विशवास को मजबूत करने में मदद मिली| आएये Mahatma Gandhi Biography में जानते हैं उनके कुछ प्रभावशाली जन-आंदोलनों के बारे में सक्षिप्त में|

अन्य आंदोलन

असहयोग आन्दोलन-गांधीजी के सबसे लोकप्रिय जनआंदोलनों में से एक था| पहले विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेजी सरकार ने भारत में समाचार पत्रों पर पूर्णत पाबंदी लगा दी|

साथ ही इसका उलघंन करने पर बिना कोई न्याय प्रक्रिया के कठोर कारावास का प्रावधान कर दिया| महात्मा गांधी ने इस रोलेट एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया| इस विरोध का सबसे अधिक प्रभाव पंजाब में पड़ा|

वहा पर सालो से अंग्रेजी हुकूमत की सेवा करने वाले लोगों को भी जेलों में डाला गया| महात्मा गांधी के आव्हान पर हजारो युवको ने अम्रतसर और आस-पास के सभी शहरों में हड़ताल पर चले गये| बाजार पूरी तरफ ठप हो गये थे|

सभी सत्याग्रही पंजाब के जलियावाला बाग़ नामक स्थान पर एकत्रित होकर शांति पूर्ण सभा कर रहे थे| अंग्रेजी सरकार को इसकी सुचना मिलने पर जनरल डायर के आदेश पर उन बेकसूर लोगों को गोलियों से भुन दिया गया| 

भारतीय इतिहास में इस हत्याकांड को जालियाँवाला बाग हत्याकांड Jallianwala Bagh massacre के नाम से जाना गया|

सरकारी आकड़ो के अनुसार इस में चार सो लोग मारे गये| मगर मरने की वास्तविक संख्या 2 हजार से अधिक थी| सरकार के इस दमनकारी रवैये के बाद महात्मा गांधी ने देशभर में सविनय आन्दोलन आरम्भ कर दिया|

1921 तक चले इस प्रोटेस्ट के लिए सभी भारतीय लोगों की अंग्रेजी नौकरी और सेना सहित किसी कार्य में सहयोग न करने की अपील की गईं|

तक़रीबन चार सौ हडतालों में 10 लाख से अधिक मजदूर और किसान सम्मलित हुए थे| इस आन्दोलन से भले ही भारत को आजादी नही मिल पाई हो मगर अंग्रेजो को यह एहसास हो चूका था| कि अब भारत को अधिक वर्षो तक दबाकर नही रखा जा सकता|

भारत छोड़ो आन्दोलन ( Quit India Movement )-अभी तक के महात्मा गांधी के सभी आंदोलनों में सबसे व्यापक और शक्तिशाली आंदोलनों में से भारत छोड़ो आन्दोलन सबसे अधिक प्रभावकारी था|

सरकार के दमनकारी रेवैये के कारण गाँधी को दुश्मन बना चुके थे| इस आन्दोलन की शुरुआत तो दुसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत से ही हो गईं|

महात्मा गांधी इस विश्व युद्ध का फायदा उठाना चाहते थे| सरकार की शक्ति दोनों तरफ बटी होने के कारण इस आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी रूप से शुरू किया गया|

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के बाद यह पहला अवसर था जब वतन की आजादी की खातिर सभी वर्ग जिनमे बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी इस जन आन्दोलन में हिस्सा लिया|

महात्मा गांधी ने अब तक सरकार के खिलाफ उपयोग किये गये सभी उपक्रमों का एक साथ प्रयोग किया| जिनमे अहिंसा सत्याग्रह अवज्ञा के साथ-साथ हिंसा भी बड़े पैमाने में इस आन्दोलन में शामिल रही| गाँधी के लिए यह आन्दोलन उनकी पराकाष्टा थी| वर्ष 1942 में ही इन्होने करो या मरो का नारा दिया था|

इसी दोरान उन्हें दो वर्ष तक की कठोर कारावास में भी रहना पड़ा| जेल से छुटने के बाद उनकी पत्नी कस्तूरबा गाँधी और परम मित्र और सहयोगी महादेव देसाई का निधन हो चूका था| डू ऑर डाय के नारे के बाद लाखो की संख्या में आंदोलनकारी सड़को पर उतर आए थे|

कही सरकार की सेना पर हमला हो रहा था तो कही लुट मार मची थी| बड़ी संख्या में जेल भरो निति से अपनी गिरफ्तारी दे रहे थे| 1943 तक भारत छोड़ो आन्दोलन को सरकार ने दबा भी दिया था| मगर सभी कैदियों की रिहाई के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के संकेत भी दे दिए|

हरिजन आंदोलन (Harijan movement)-डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा भारत के नए सविधान में मुस्लिम और हिन्दू निर्वाचन क्षेत्रो के अतिरिक्त दलित समुदाय के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण की माग की|

इस पर अंग्रेजी सरकार भी सहमत थी| मगर सितम्बर में महात्मा गांधी ने इस जातीय विभाजन को रोकने के लिए 6 दिनों तक भूख हड़ताल की|

आखिर तीनो पक्षों ने मिलकर इस नई व्यवस्था को छोड़कर पुन: पुरानी व्यवस्था को अपनाए रखा| महात्मा गांधी दिन हिन् और पिछड़े वर्ग के उद्दारक थे| इन्होने सामाजिक आन्दोलन द्वारा समाज में दलितों की स्थति सुधारने के कई अथक प्रयास किये|

जिनमे से एक था अछूत वर्ग के लोगों को अब से हरिजन नाम से बुलाए जाने की व्यवस्था की शुरुआत की|इन्ही के प्रयासों की बदोलत नीची जाति के लोगों का धार्मिक स्थलों में प्रवेश संभव हो पाया|

महात्मा गांधी की आलोचना (Criticism of Mahatma Gandhi)

एक महान देश नायक और राष्ट्रपिता होने के बावजूद उनके काम करने का तौर तरीका और किसी सम्प्रदाय के प्रति नजदीकी और किसी के साथ दुरी बनाए रखने के विषय पर महात्मा गांधी पर कई तरह के आरोप और आलोचनाए हुई हैं|

  1. शुरुआत के दोनों वर्ल्ड वॉर में ब्रिटिश राज्य को समर्थन देना|
  2. अग्रेंजो की दमनकारी निति के आगे सत्य और अहिंसा बेकार हैं|
  3. देश को आजादी मिलने के बाद प्रधानमन्त्री पद के लिए नेहरु को समर्थन देना|
  4. जब असहयोग आन्दोलन पुरे उफान पर था अग्रेंजी पुलिस थाने पर हमले से आन्दोलन वापिस ले लेना|
  5. भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान का विभाजन
  6. विभाजन में पाकिस्तान को 55 करोड़ की आर्थिक मदद मज़बूरी से दिलाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठना|
  7. कांग्रेस के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार नेताजी सुभाषचंद्र बोस को समर्थन ना देना|
  8. गांधी-इरविन समझौता जो पूर्णत अंग्रेजी हुकूमत के फायदे की शर्तो पर था इसे मंजूरी देना|
  9. सशस्त्र क्रान्तिकारियों को हताश करना उनकी राह में रोड़ा बनना|

महात्मा गांधी की बेटी का नाम

बहुत से लोग महात्मा गांधी की बायोग्राफी में जानना चाहते हैं कि बापू की बेटी का क्या नाम था. मगर उनको संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता हैं. इसका कारण यह है कि बापू की कोई बेटी नहीं थी. उनके चार बेटे थे जिनका नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास.

गांधी अपने दो भाइयों और एक बहिन में सबसे छोटे थे. इनकी बहिन का नाम रलियत और दो भाइयों के नाम लक्ष्मीदास और कृष्णदास था. नंद कुंवरबेन, गंगा ये गांधीजी की भाभियाँ थी.

आज के समय में हम महात्मा गाँधी के वंशजों की बात करें तो उनके 154 परिवार के सदस्य हैं जो दुनियां के 6 देशों में रह रहे हैं. जिनमें 12 चिकित्सक और इतने ही प्रोफेसर हैं. इनके अलावा इंजीनियर, पत्रकार, वकील, प्रशासनिक अधिकारी, चार्टेड एकाउंटेंट और 4 पीएचडी डिग्री धारी भी शामिल हैं.

महात्मा गांधी की मृत्यु हत्या Death of Mahatma Gandhi

30 जनवरी 1948 का दिन शाम पांच बजकर 20 मिनट का समय हो रहा था. आज बापू रोजाना की प्रार्थना सभा में कुछ देरी से जा रहे थे. बिरला भवन में उनकी सरदार पटेल के साथ एक अहम बैठक थी इसी वजह से उनकी देरी हो गई थी.

आभा और मनु के कंधे पर हाथ रखे महात्मा गांधी तेजी से बिडला भवन की तरफ निकल रहे थे उनके साथ कुछ अनुयायी थे. तभी उनके सामने नाथूराम गोडसे नामक एक शख्स आकर प्रणाम मुद्रा में झुकता है तथा उन्हें आगे बढने से रोक देता हैं.

इस पर मनु उन्हें सामने से हटने के लिए कहती है मगर वो मनु को धक्का देकर अपने कपड़ों में छिपाई गई बैरेटा पिस्टल निकालकर गांधी जी पर एक के बाद एक तीन फायर करते हैं. दो गोलियां उनके शरीर के आर पार निकल जाती हैं वहीँ एक गोली शरीर में ही अटक जाती हैं.

उस मौके पर बेटा देवदास भी आ पहुचे थे. 78 साल के महात्मा गांधी की इस तरह हत्या से भारत ही नहीं दुनियां भर में शोक की लहर फ़ैल गई.

बापू पर हुए इस हमलें में नाथूराम गोडसे मुख्य अभियुक्त समेत आठ आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया जिसमें वीर सावरकर का भी नाम थे जिन्हें अदालत ने बेगुनाह पाया था. गांधी हत्या प्रकरण में नारायण आप्टे और नाथूराम विनायक गोडसे को फांसी दे दी गई.

महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी कहानियाँ प्रेरक प्रसंग Gandhi Story

Story Of Mahatma Gandhi in hindi: शीर्षक के इस लेख में पूज्य राष्ट्रपिता गांधीजी के जीवन से जुड़ी एक कहानी दी जा रही हैं.सत्य और अहिंसा की प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले महात्मा गांधी की इस कहानी में हम जान जाएगे,

वो कितने अपने सिद्दांतो के पक्के और परिश्रमी थे, लोगों का उनके प्रति क्या नजरिया और रुझान था. यह बतलाने की जरुरत नही हैं, कि महात्मा गांधी अत्यंत परिश्रमी थे.

कभी-कभी वे तो रात के ठाई बजे उठ बैठते और दिन में आधे घंटे तक विश्राम करके रात के दस बजे तक काम करते रहते, उनके सिर पर काम का बोझ निरंतर बना रहता था. समस्त देश की चिंता महात्मा गांधी को इतना व्यस्त रखती थी.

उनके लिए हँसना हंसाना अत्यंत आवश्यक हो गया था. एक बार किसी विलायती सवाददाता ने उनसे पूछा- गांधीजी क्या आपमें हास्य की प्रवृति भी हैं, उन्होंने तुरंत जवाब दिया’ यदि मुझमे हास्य प्रवृति ना होती तो मैंने कभी का आत्मघात कर लिया होता.

महात्मा गांधी का मजाक छोटे-बड़े सभी के साथ चलता था. मन-बहलाव के लिए खास तौर पर बच्चों के साथ खूब दिल्लगी करते थे. एक बार महात्मा गांधी ने आश्रम की सभी महिलाओं की मीटिंग अपने कमरे में की. बातचीत का विषय था,

उनकी गोद ली हुई अछूत कन्या को अपने चौके में बिठला कर रसोई बनाना कोई सिखाएगा. डेढ़ घंटे तक गंभीर वार्तालाप होता रहा. एकत्रित स्त्रिओ में से कोई भी इस पुण्य कार्य के लिए तैयार नही हुई. सभी ने एक स्वर में ना कह दिया.

स्नान कराने, सिर के बाल काढ देने इत्यादि छोटी-छोटी सेवा के लिए स्त्रियाँ तैयार हो गईं परन्तु अपने चौके में उस बालिका को ना घुसने देना को स्वीकार नही था. वातावरण कुछ गम्भीर सा हो गया.महात्मा गांधी जी ने उस समय मुस्करा कर इतना ही कहा- ” तब मुझे अभी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी”

इसके तुरंत बाद इन्होने छोटे-छोटे बच्चों पर, जो अपनी माताओ के साथ बापू के पास गये थे. निगाह फेकी. एक बच्चे के हाथ में उन्हें एक पैसा दिख पड़ा.

बापू को बस मौका मिल गया. उन्होंने उस बालक से कहा “अरे भाई पैसा मुझे दे दे”

बालक ने कहा- “मलाई बर्फ खाइये”

बापू ने कहा-“हमको तो मलाई की बर्फ मिलती नही”

बालक ने कहा-“हमारे घर चलो हम तुम्हे खूब खवावेगे”

इसके बाद बापू ने कुछ, जिसमे “शु” गुजरती शब्द आया था, जिसकी मानी हैं क्या”

वह बच्चा ”शु”न सनझ सका और सब महिलाएं हंस पड़ी, बापू भी हंस पड़े.

दुसरे दिन जब उस लड़के के पिता ने बापू की सेवा में उपस्थित होकर माफ़ी मांगी तो हसते हुए महात्मा गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा” अरे यह बच्चा तो मेरा पुराना दोस्त हैं” बापू की इस स्वभाविक कोमलता के साथ-साथ कठोर नियन्त्रण वृति भी काम करती थी.

महात्मा गांधी ने अन्य महिलाओं से तो कुछ नही कहा, पर अपनी भतीजे मगनलाल गाँधी की धर्मपत्नी को हुक्म दिया” आप अपने मायके चली जाएं.

पर बच्चों को यही छोडती जाए, मुझे ऐसी बहु नही चाहिए. जो मेरी लड़की को चौके में घुसने न दे. श्री मगनलाल की धर्मपत्नी को अपने पिताजी के यहाँ जाना पड़ा और छ; सात महीने वही रहना पड़ा.

यह बतलाने की आवश्यकता नही हैं कि अतत उस तथाकथित अछूत बालिका को रसोई में ले जाना स्वीकार कर लिया.एक बार बापू की सवेरे की प्रार्थना में शामिल होने के लिए सवेरे चार बजे मै भी गया था.

मेरे हाथ में हॉकी स्टिक थी. उसे प्रार्थना स्थल के बाहर रखकर मै बैठ गया. प्रार्थना समाप्त होने पर ज्यो ही अपने हाथ में ली बापू उधर से आ निकले.

हंसकर कहा- ये लाठी आपने बड़ी मजबूत बाँधी हैं. मैंने उतर दिया” इसका नाम माखनलाल चतुर्वेदी ने मस्तक भजन रख दिया हैं”

बापू बोले-हाँ और सत्याग्रह आश्रम में मस्तक-भंजन रखनी ही चाहिए, आस-पास खड़े व्यक्ति हंस पड़े.

एक बार महात्मा गांधी ने मुझे सवेरे सात बजे और सवा सात बजे का टाइम बातचीत के लिए दिया.

मै उन दिनों नया-नया आश्रम में गया था. मन में सोचा कि बापू जाते थोड़े ही हैं, दो-चार मिनट की देरी भी हो जाएं तो क्या? सात बजकर दस बारह मिनट पर पंहुचा. बापू मुस्कराकर बोले-तुम्हारा टाइम तो बीत गया. अब भाग जाओ,

फिर कभी वक्त तय करके आना” मुझे बहुत लज्जित होना पड़ा. एक बार फिर ऐसी घटना घट गईं, परन्तु उसमे मेरा कोई अपराध नही था. बापू ने एक राजा साहब को शाम को तीन बजे का टाइम दिया था.

और मेरे सुपुर्द का काम यह था कि उनको लाऊ. उन्हें अहमदाबाद से आना था, बस एक मिनट की देरी हो गईं. मै राजा साहब को लेकर बापू की सेवा में पंहुचा तो वे बोले” मै तो मिनट भर से आपका इन्तजार कर रहा हु.  

महात्मा गांधी चाय को स्वास्थ्य के लिए सबसे हानिकारक मानते थे. परन्तु जिनको चाय पीने की आदत पड चुकी थी, उनके लिए चाय का प्रबंध भी अवश्य कर देते हैं.

एक बार मिस आगेथा हैरिसन नामक महिला अंग्रेज उनके साथ यात्रा पर आ रही थी और उन्हें इस बात की चिंता थी,कि प्रातकालीन चाय का इंतजाम कैसे होगा. 

महात्मा गांधी जी को जब यह पता लगा तो वे बोले ” आप फ़िक्र ना करिए आपके लिए मैंने आधा पौंड जहर रख दिया हैं. एक बार बापू ने मेरे साथ भी चाय के बारे में कई मजाक किये.

कलकता से चलकर वर्धा में उनकी सेवा में उपस्थित हुआ था. रात के साढ़े आठ से नौ बजे तक तक का टाइम मुझे दिया.

ठीक वक्त पर पंहुचा, आधे घंटे तक बातचीत होती रही.चलते वक्त महात्मा गांधी जी कहा-”खूब आराम से चाय पीना” मैंने कहा- क्या बापू आपकों मेरे चाय पीने का पता लग गया हैं? उन्होंने कहा- हाँ काका साह्ब मुझे बतला दिया हैं कि तुम कलकते में चाय पीने लग गये हो.

मुझे भी उसी वक्त मजाक सुझा, मैंने कहा-बापू आप मि. एंड्रयूज को छोटा भाई मानते हैं?

उन्होंने कहा- हाँ.

” और वे आपकों बड़ा भाई मानते हैं”

बापू ने कहा- हाँ.

मैंने तुरंत ही कहा-तो मै बड़े भाई की बात न मानकर छोटे भाई की बात मानता हु,

बापू हंसकर बोले- ” तब तो मै एंड्रयूज को लिख दू कि तुमको कितना अच्छा शिष्य मिल गया हैं.

फिर बापू ने गम्भीरतापूर्वक कहा-‘ रात के ढाई बजे से उठा हुआ हुआ हु,अब नौ बज रहे हैं, दिन में बीस मिनट आराम मिला हैं. मै चकित रह गया. अठारह घंटे मेहनत के बाद भी बापू कितने सजीव हैं. मानो वे हमारी काहिली का प्रायश्चित कर रहे थे.

संध्या समय जब महात्मा गांधीडच-गायना प्रवासी भारतीयों के लिए संदेश लिखाने बैठे तो मैंने अपनी जेब से फाउन्टेन पैन निकाला, तुरंत ही महात्मा गांधी जी ने कहा- कब से फाउन्टेन पेन से लिखते हो?

मैंने कहा- कई साल हो गये”

“कितने साल”

मैंने कहा-ठीक-ठीक नही बतला सकता”

तब महात्मा गांधी जी ने कहा-दक्षिण अफ्रीका में जब मेरे पास फाउन्टेन पैन था, परन्तु अब तो कलम से लिखता हु. डच गायना वाले भी क्या कहेगे कि इनके पास घर की कलम भी नही हैं” तुरंत चाक़ू और कलम मंगाई गईं. परन्तु मै जिस कागज पर लिखने चला था, वह था बढ़िया बैक पेपर.

महात्मा गांधी जी ने कहाँ यह बढ़िया कागज हम लोगों को कहा से मिल सकता हैं?

यह तुम्हारे ऑफिस वालों को ही मिलता हैं, जहाँ चाय भी मिलती हैं,

हम तो कोरा पानी पीने वाले गरीब आदमी ठहरे. मै लज्जित हो गया,

फिर महात्मा गांधी जी गम्भीर होकर बोले -मेरा संदेश स्वदेशी कागज पर लिखो. आज तो हम लोगों ने आश्रम में कार्ड और लिफ़ाफ़े भी बनवाएं हैं हाथ का बना कागज लाया गया और मैंने नेजे की कलम से और घर की स्याही से महात्मा गांधी का वो संदेश लिखा.

महात्मा गांधी अपने अधिनस्थो को पूरी-पूरी स्वाधीनता देते थे. और वे भी उनसे मजाक करने से नही चुकते थे. मै भी यह ध्रष्टता कर बैठता था.

जब श्री पदमजा नायडू के लिए कॉफ़ी का सब सामान लाया गया.

तो बापू ने हंसकर कहा- यह सब तुम्हारा साज-समान हैं.

मैंने कहा- ”देखिए बापू , मेरी वोट हो रही हैं”

”कैसे”

मैंने कहा- महादेव भाई चाय पीते हैं, बां काफी पीती हैं और पदमजा जी भी कोफ़ी पीती हैं और मै चाय, चार वोट हो गयी.

बापू ने तुरंत उत्तर दिया-बुरी चीजों के प्रचार के लिए वोट की जरुरत थोड़े ही पड़ती हैं, वे तो अपने आप फैलती हैं.

महात्मा गांधी जी मजाक में पीछे रहने वाले आदमी नही थे. वे बड़े हाजिर जवाब थे.

एक बार विद्यापीठ के प्रिंसिपल कृपलानीजी बोले- जब हम लोग आपस में दूर रहते हैं, तो हमारी अक्ल ठीक रहती हैं, परन्तु पास होते ही खराब हो जाती हैं’

बापू हंसकर बोले-”तब तो मै आपकी खराब अक्ल का जिम्मेदार मै अकेला ठहरा”

खूब हंसी हुई, कलकत्ते में बापू ने बीस मिनट का टाइम दिया-सवेरे पौने चार बजे का.

अकेले जाने की बजाय में 16-17 आदमियों के साथ गया. जब जीने पर चढने लगा, तब महादेव भाई नाराज हुए और बोले” आप तो आश्रम में रह चुके हैं, यह क्या बे-नियम कार्यवाही करते हैं. परन्तु महात्मा गांधी जी ने इतना ही कहा- तुम तो पूरी की पूरी फोज ले आए.

मैंने कहा- क्या करता, ये लोग माने ही नही, मैंने इन्हे वचन दे रखा था कि बापू के दर्शन निकट से कराउगा.

बीस मिनट तक वार्तालाप होता रहा जब प्रार्थना के लिए महात्मा गांधी जी उठे तो मैंने कहा-बापू मै तो ,मासिक पत्र में आपके खिलाफ बहुत कुछ लिखा करता हु” पर बापू बोले- सो तो ठीक हैं, पर कोई सुनता भी हैं? ”सब हंस पड़े”

मुनि श्री जिनविजय ने महात्मा गांधी का एक किस्सा सुनाया था. महात्मा गांधी पहले मोटर से बाहर निकले परन्तु थोड़ी दूर चलकर कोने में अपनी मोटर खड़ी कर ली. इसके दो मिनट बाद ही पंडित मोतीलाल जी नेहरु और मुनि जी की मोटर निकली, मोतीलाल जी ने मुनि से कहा- देखा आपने? 

महात्मा गांधी जी ने मेरे ख्याल से अपनी मोटर रोक रखी हैं.चलकर उनसे कारण पूछे, पंडितजी ने जब पूछा तो महात्मा गांधी जी बोले” मै नही चाहता था कि आपकों धुल फाक्नी पड़े, मै तो आपकों ज्यादा दिन जिन्दा देखना चाहता हु.

महात्मा गांधी जी के मजाक, हाजिर-जवाबी और उनकी जागरूकता के सैकड़ो किससे हैं, जो उनके भक्तो को सैम-समय पर याद आ जाते हैं. साथ ही अपनी घ्रष्टता का ख्याल करके लज्जा का बोध भी होता हैं.

ऐसे अवतारी महापुरुष मर्यादा पुरुषोतम के किसी भी प्रकार के मजाक की हिमाकत तो था, ही परन्तु वे अत्यंत क्षमाशील थे और सबको पूर्ण स्वाधीनता देने के पक्षपाती. उनकी पावन स्मृति में सहस्त्र बार प्रणाम!-बनारसीदास चतुर्वेदी

उम्मीद करता हूँ दोस्तों महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi का यह लेख आपकों पसंद आया होगा. यदि आपकों इस लेख में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *