मौर्य साम्राज्य व राजवंश का इतिहास History Of Mauryan Empire In Hindi

मौर्य साम्राज्य व राजवंश का इतिहास History Of Mauryan Empire In Hindi: प्राचीन भारत के शक्तिशाली राज वंशों में से एक था मौर्य वंश अथवा मौर्यकालीन साम्राज्य.

मगध की राजधानी पाटलिपुत्र से एक पंडित चाणक्य की बुद्धिमता से इसकी शुरुआत हुई. सन 322 ई सा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा शुरू किया गया यह साम्राज्य सम्राट अशोक के समय अपने चरम उत्कर्ष पर था.

करीब 137 वर्षों तक लगभग सम्पूर्ण भारत पर एकछत्र शासन करने वाला यह साम्राज्य 185 ई पू के आसपास विखंडित हो गया था.

मौर्य साम्राज्य व राजवंश का इतिहास History Of Mauryan Empire In Hindi

मौर्य साम्राज्य व राजवंश का इतिहास History Of Mauryan Empire In Hindi

भारत के १६ महाजनपदों में से एक मगध साम्राज्य की स्थापना हर्यक वंश के समय में हुई और कालांतर में मगध ने समस्त उत्तर भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया. मौर्य वंश की स्थापना ३२६ इसा के लगभग मगध के राजसिहासन पर नंद वंश का एक विलासी राजा घननंद राज्य करता था.

इस समय पश्चिमोत्तर भारत सिकंदर के आक्रमण से परेशान था. प्रजा अपने राजा के अत्याचारों से बेहद परेशान थी. भारी कर से जनता असंतुष्ट थी. इस परिस्थति में मगध को एक ऐसे व्यक्ति की जरुरत थी।

जो विदेशी आक्रमण से उत्पन्न अशांति को दूर कर सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधकर चक्रवर्ती सम्राट के आदर्शों को चरितार्थ करे. शीघ्र ही भारत के राजनयिक नभमंडल पर पर कौटिल्य का शिष्य चन्द्रगुप्त प्रकट हुआ तथा एक नविन राजवंश मौर्य वंश की स्थापना की।

चन्द्रगुप्त मौर्य एवं मौर्य साम्राज्य का उत्थान (Mauryan Empire & Chandragupta Maurya History in Hindi)

चन्द्रगुप्त मौर्य (३२२-२९८ ई. पू. )-अपने गुरु चाणक्य की सहायता से अंतिम नंद शासक घनानंद को पराजित कर २५ वर्ष की आयु में चन्द्रगुप्त मौर्य मगध के राजसिहासन पर आरूढ़ हुआ. चन्द्रगुप्त मौर्य ने व्यापक विजय अभियान चलाकर प्रथम अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की।

३०५ ई.पु. उसने तत्कालीन यूनानी शासक सिल्यूकस निकेटर को पराजित किया। संधि हो जाने के बाद सिल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से ५०० हाथी लेकर पूर्वी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंधु नदी के पश्चिम का क्षेत्र उसे दे दिया।

सिल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह भी चन्द्रगुपत से कर दिया और मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में दरबार में भेजा। चन्द्रगुप्त के विशाल साम्राज्य में काबुल, हेरात, कंधार, बलूचिस्तान, पंजाब, गंगा यमुना का मैदान, बिहार, बंगाल, गुजरात, विन्ध्य और कश्मीर के भू भाग सम्मिलित थे।

तमिल ग्रन्थ अह्ना नूरु और मुरनानुरू से विदित होता हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत पर भी आक्रमण किया था। वृद्धावस्था में उसने भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ले ली। उसने ई.पू. में श्रवण बेलगोला मैसूर में उपवास करके अपना शरीर त्याग दिया था।

मौर्य साम्राज्य एवं बिन्दुसार (bindusara Maurya History in Hindi)

बिन्दुसार चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र व उत्तराधिकारी था। जिसे यूनानी लेखक अमित्रोचेटस कहते थे। वायुपुराण में इसे भद्रसार तथा जैन ग्रंथों में सिंहसेन कहा गया हैं। उसने सुदूरवर्ती दक्षिण भारतीय क्षेत्रों को भी जीतकर मगध साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।

दिव्यावदान के अनुसार इसके शासनकाल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए जिसका दमन करने के लिए पहले अशोक और बाद में सुसीम को भेजा गया।

बिंदुसार को राजदरबार में यूनानी शासक एण्टियोकस प्रथम ने डायमेक्स नामक व्यक्ति को राजदूत के रूप में नियुक्त किया. प्लिनी के अनुसार मिस्र नरेश फिलाडेल्फस ने डियानीसियस नामक मिस्री राजदूत बिंदुसार के दरबार में भेजा था।

मौर्य सम्राज्य और सम्राट अशोक (ashoka emperor history biography in hindi)

जैन जनश्रुति के अनुसार अशोक ने बिंदुसार की इच्छा के विरुद्ध मगध पर अधिकार कर लिया। दक्षिण भारत से प्राप्त मास्की तथा गुज्जरा अभिलेखों में उसका नाम अशोक मिलता हैं।

अभिलेखों में अशोक देवानपिय तथा देवनापियदस्सी उपाधियों से विभूषित हैं। विदिशा की राजकुमारी से अशोक का विवाह हुआ तथा उससे पुत्री संघमित्रा तथा पुत्र महेंद्र का जन्म हुआ। अशोक के अभिलेखों में उसकी रानी कारुवाकी का उल्लेख भी मिलता हैं।

राज्याभिषेक के सात वर्ष बाद अशोक ने कश्मीर तथा खोतान के अनेक क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिलाया। उसके समय में मौर्य साम्राज्य में तमिल प्रदेश के अतिरिक्त समूचा भारत और अफगानिस्तान का काफी बड़ा भाग शामिल था।

राज्याभिषेक के आठवे साल में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया, जिसमें एक लाख लोग मारे गये। हाथीगुम्फा अभिलेख के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता हैं कि उस समय कलिंग पर नंदराज शासन कर रहा था।

इस व्यापक नरसंहार ने अशोक को विचलित कर दिया फलत उसने शस्त्रत्याग की घोषणा कर दी. मगध साम्राज्य के अंतर्गत कलिंग की राजधानी धौली या तोसाली बनाई गयी. श्रमण निग्रोध तथा उपगुपत के प्रभाव में आकर अशोक बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गया.

सम्राट अशोक ने भेरीघोष स्थान पर धममघोष अपना लिया। बौद्ध धर्म स्वीकारने से पूर्व राजतरगिणी कल्हण के अनुसार अशोक शिव का उपासक था।

बाद में वह गुरु मोग्गलीपुत्र तिस्स के प्रभाव में आ गया। बराबर की पहाड़ियों में अशोक ने आजीविकों के निवास हेतु चार गुहाओं का निर्माण करवाया, जिनके नाम थे सुदामा, चापार, विश्व झोपड़ी और कर्ण।

अशोक के उत्तराधिकारी तथा मौर्य सम्राज्य का पतन (mauryan empire start and end dates)

सम्राट अशोक के बाद अगले ५० वर्ष तक उसके कमजोर उत्तराधिकारी शासन करते रहे। अशोक के बाद कुणाल राजा बना जिसे दिव्यावदान में धर्मविवर्धन कहा गया हैं।

राजतरंगिणी के अनुसार उस समय जलौक कश्मीर का शासक था। तारानाथ के अनुसार अशोक का पुत्र वीरसेन गांधार का स्वतंत्र शासक बन गया था।

कुणाल के अँधा होने के कारण मगध का प्रशासन उसके पुत्र सम्प्रति के हाथ में आ गया था। कुणाल के पुत्र दशरथ ने भी मगध पर शासन किया, उसने नागार्जुनी गुफाए आजीवकों को दान में दी थी।

वृहद्रथ अंतिम मौर्य सम्राट था। उसके ब्राह्मण मंत्री पुष्यमित्र शुंग ने उसकी हत्या करके मगध में शुंग वंश के शासन की नीव डाली।

Mauryan Dynasty Dates Empire Timeline Wise

सम्राटशासन शुरूअंत शासन
चंद्रगुप्त मौर्य322 ईसा पूर्व298 ईसा पूर्व
बिन्दुसार2 9 7 ईसा पूर्व272 ईसा पूर्व
सम्राट अशोक273 ईसा पूर्व232 ईसा पूर्व
दशरथ232 ईसा पूर्व224 ईसा पूर्व
सम्प्रति224 ईसा पूर्व215 ईसा पूर्व
Salisuka215 ईसा पूर्व202 ईसा पूर्व
डेववारमन202 ईसा पूर्व195 ईसा पूर्व
Satadhanvan195 ईसा पूर्व187 ईसा पूर्व
Brihadratha187 ईसा पूर्व185 ईसा पूर्व

मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था एवं प्रकृति (mauryan empire administration in hindi)

मौर्य काल मे भारत मे पहली बार केन्द्रीक्रत शासन व्यवस्था की स्थापना हुई। सता का केन्द्रीकरण राजा मे होते हुए भी वह निरंकुश नही होता था । कौटिल्य ने राज्य के सात अंग निर्दिष्ट किए हैं।

राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, सेना और मित्र। राजा द्वारा मुख्यमंत्री व पुरोहित की नियुक्ति उनके चरित्र की भली भांति जांच के बाद ही की जाती थी।

इस क्रिया को उपधा परीक्षण कहा जाता था। ये लोग मंत्रिमंडल के अंतरग सदस्य थे। मंत्रिमंडल के अतिरिक्त परिशा म्ंत्रिना भी होता था, जो एक तरह से मंत्रिपरिषद था।

केंद्रीय प्रशासन- अर्थशास्त्र में १८ विभागों का उल्लेख हैं, जिन्हे तीर्थ कहा गया हैं। तीर्थ के अध्यक्ष को महामात्र कहा गया हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ थे मंत्री, पुरोहित, सेनापति और युवराज।

समाहर्ता– इसका कार्य राजस्व एकत्र करना, आय व्यय का ब्यौरा रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करना था।

सन्निधाता– साम्राज्य के विभिन्न कोषगृह और अन्नागार बनवाना. अर्थशास्त्र में २६ विभागाध्यक्षों का उल्लेख हैं जैसे कोषाध्यक्ष, सीताध्यक्ष, पण्याध्यक्ष , सूत्राध्यक्ष , लुणाध्यक्ष, विविताध्यक्ष , लक्षणाध्यक्ष , मुद्राध्यक्ष, पौतवाध्यक्ष, बंधनगारध्याकाश, आटविक इत्यादि। युक्त व उपयुक्त महामात्य तथा अध्यक्षों के नियंत्रण मे निम्न स्तर के अधिकारी होते थे ।

प्रांतीय प्रशासन- अशोक के समय समय में मगध साम्राज्य के पांच प्रांतों का उल्लेख हैं. उत्तरापथ (तक्षशिला), अवंतिकाराष्ट्र (उज्जयिनी), कलिंग (तोसली), दक्षिणापथ (सुवर्णगिरी), मध्यदेश (पाटलीपुत्र) ।

प्रान्तों का शासन राजवंशीय कुमार या आर्यपुत्र नामक पदाधिकारियों द्वारा होता था । प्रांत विषयों मे विभक्त थे, जो विषयपतियों के अधिन होते थे। जिले का प्रशासनिक अधिकारी स्थानिक होता था, जो समाहर्ता के अधीन था।

प्रशासन की सबसे इकाई का मुखिया गोप था, जो दस गांवों का शासन संभालता था । समाहर्ता के अधीन प्र्देश्तरी नामक अधिकारी होता था, जो स्थानिक, गोप व ग्राम अधिकारियों के कार्य की जांच करता था ।

नगर शासन– मेगस्थनीज के अनुसार नगर का शासन प्रबंध ३० सदस्यों का एक मंडल करता था, जो ६ समितियों में विभक्त था।

प्रथम समिति उद्योग तथा शिल्पों का निरिक्षण, द्वितीय समिति विदेशियों की देखभाल, तीसरी समिति जन्म मरण का लेखा जोखा रखना, चौथी समिति व्यापार वाणिज्य देखना, पांचवी समिति निर्मित वस्तुओं के विक्रय का निरिक्षण एवं छठी समिति विक्रय मूल्य का दसवां भाग कर के रूप में वसूलना. प्रत्येक समिति में पांच सदस्य होते थे।

सैन्य व्यवस्था– सेना संगठन हेतु पृथक सैन्य विभाग था। जो ६ समितियों में विभक्त था। प्रत्येक समिति में पांच सदस्य होते थे। ये समितियां सेना के पांच भागों की देखरेख करती थी। ये पांच विभाग थे- पैदल, अश्व, हाथी, रथ तथा नौसेना।

सैनिक प्रबंध की देखरेख करने वाला अधिकारी अन्तपाल कहलाता था। सीमान्त क्षेत्रों का व्यवस्थापक भी अन्तपाल होता था। मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पास ६ लाख पैदल पचास हजार अश्वारोही, नौ हजार हाथी तथा आठ सौ रथ से सुसज्जित सेना थी।

न्याय व्यवस्था- सम्राट न्याय प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था। निचले स्तर पर ग्राम न्यायालय थे, जहाँ ग्रामणी तथा ग्रामवृद्ध अपना निर्णय देते थे। इसके ऊपर संग्रहण द्रोण मुख, स्थानीय और जनपद स्तर के न्यायालय होते थे।

सबसे ऊपर पाटलिपुत्र का केंद्रीय न्यायालय था। ग्रामसंघ और राजा के न्यायालय के धर्म स्थीय एवं कंटकशोधन दो अन्य प्रकार के न्यायालय भी हुआ करते थे।

मौर्य वंश का पतन

दो सदियों से भारत को एकसूत्र में बांधकर जो राजवंश शासन करता आ रहा था, अचानक 184 ई पू में पतन हो जाता हैं. अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या उन्ही के अपने सेनापति पुष्यमित्र शुंग के हाथों से होती हैं. जिन्होंने बाद में शुंग वंश की स्थापना की और 112 वर्षों तक भारत पर शासन किया था.

मौर्य वंश के पतन के पीछे के कई बड़े कारण हैं जिनमें सबसे बड़ा कारण अयोग्य और निर्बल उत्तराधिकारी होना सबसे बड़ा कारण माना जाता हैं. सम्राट चन्द्रगुप्त और अशोक के बाद आने वाले शासक निर्बल सिद्ध हुए थे.

इसके अलावा भी कई पूरक कारण थे जिनमें प्रशासन का अधिकाधिक एकीकृत होना, राष्ट्रीय चेतना का अभाव, सांस्कृतिक और आर्थिक स्तर पर असमानता, प्रांतीय शासको और अमात्यों के अत्याचार, करो की अधिकता और अशोक की धम्म की नीति भी मौर्य वंश के पतन का एक कारण बनी.

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