मेरा बचपन हिन्दी निबंध | Mera Bachpan Essay in Hindi

My Childhood Golden Memories Mera Bachpan Essay in Hindi मेरा बचपन हिन्दी निबंध: बचपन के वे दिन और  उनकी  सुनहरी यादे जीवन भर हमारे संग रहती हैं  बेफिक्री के जमाने की यादे हर किन्ही को याद अवश्य आती हैं.   स्कूल  में बच्चों  को मेरा बचपन पर हिन्दी  में निबंध लिखने को कहा जाता हैं यहाँ आपकों निबंध की रूपरेखा बता रहे हैं.

Mera Bachpan Essay in Hindi मेरा बचपन हिन्दी निबंध

मेरा बचपन हिन्दी निबंध | Mera Bachpan Essay in Hindi

“ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छिन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझकों लौटा दो मेरा वो बचपन, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी”

सुदर्शन पाकीर के इन लफ्जों में बचपन की वो यादे झलकती हैं,  जब देश दुनियां की झंझावतों से दूर एक बालक अपने ही जीवन में मग्न नजर आता हैं. और लेखक कामना करता हैं कि उसके बचपन के वही दिन पुनः लौट आए, बेशक इसके लिए उसकी सारी दौलत शोहरत वापिस ले ली जाए.

लेकिन कटु सत्य हैं कि बचपन तो लौटकर कभी नहीं आ सकता, रह जाती हैं केवल उसकी यादें. इन यादों का भी जीवन की खुशियों से सीधा सम्बन्ध होता हैं. हम जीवन भर बचपन की यादों को ताजा करके खुश होने का मौका ढूढ़ते रहते हैं.

बचपन की यादें निबंध my childhood essay in hindi

हमारे खाने में प्रायः पकवान बिलकुल नही होते थे और हमारे कपड़ो की सूची यदि देखी जाए तो आजकल के लड़के नाक भौह सिकोड़े बिना नही रहेंगे.

दस साल की उम्रः होने के पहले किसी भी कारण से हमने मोज़े और बूट नही पहिने थे. सर्दियों में भी बंडी के उपर एक सूती कुरता पहन लिया कि बस हुआ और उससे हमे गरीबी भी नही मालूम होती थी.

हां हमारा बुढा दर्जी ”स्यामत” अगर बंडी में खीसा लगाने को भूल जाता था तो हमारा मिजाज जरुर बिगड़ जाता था.खीसे में खूब भरने के लिए जिसे कोई चीज न मिली हो, इतना गरीब बच्चा आज तक एक भी पैदा नही हुआ होगा.

दयालु भगवान् का इशारा यही मालूम होता है. कि पैसे वालों के बच्चों और गरीब माँ-बाप के बालकों की सम्मति में ज्यादा फर्क न रहे.

हममे हरेक बच्चे को चप्पल की एक जोड़ी मिलती थी लेकिन यह भरोसा नही था कि वह हमेशा पावों में ही रहेगी क्युकि हम उसे पांव से उपर फेकते और झेला करते थे. इस रिवाज से चप्पलों का वास्तविक उपयोग नही होता था, तो भी उनसे कम काम नही पड़ता था.

पहनावा खाना पीना व्यापार बातचीत और मनोरंजन में हमारे बूढ़े लोगों में हममे बहुत फर्क था. बिच बिच में उनके काम हमे दिखलाई पड़ जाते थे. लेकिन वे हमारी ताकत के बाहर होते थे.

आजकल के बच्चों के लिए तो माँ बाप आदि बड़ी सहज में मिलने वाली वस्तु हो गई है. और उन्हें वे मिल जाती है ज्यादा क्या?

यह कहना भी ठीक होगा कि आजकल बच्चों को मनचाही चीज आसानी से मिल जाती है लेकिन हमारे जमाने में कोई भी चीज इतनी आसान नही थी. हलकी से हल्की चीज हमारे लिए मुश्किल थी. हम लोग इसी भरोसे दिन निकालते थे कि बड़े होने पर ये सब चीजे मिलेगी.

भरोसा था कि आने वाले दिन इन सब चीजों को संभाल कर रखेगे. इसका नतीजा यह होता था कि हमे जो कुछ मिलता था वह चाहे थोड़ा ही क्यों न हो, उसका हम खूब उपयोग करते थे और उसका कोई हिस्सा भी यों नही जाने देते थे. आजकल तो परिवार खाने पीने से सुखी है.

उनके लडकों को देखो तो मालूम होगा कि जो चीजे उन्हें मिलती है, उनमे से आधी चीजे तो सिर्फ बेकार में ही खो देते है. इस तरह उनकी पूंजी के बहुत बड़े हिस्से का होना न होने के बराबर है. कुछ ऐसी थी हमारी बचपन की यादे

Mera Bachpan Essay in Hindi मेरा बचपन हिन्दी निबंध

मुझे भी अपना बचपन बहुत याद आता हैं. मेरा जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के एक छोटे से गाँव बघडा में हुआ था. यह गाँव गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित हैं. इसकी आबादी लगभग पांच हजार हैं. इस गाँव में राजकीय प्राथमिक विद्यालय एवं एक राजकीय माध्यमिक विद्यालय हैं.

इन्ही विद्यालयों में मैंने शिक्षा ग्रहण की. इन विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते समय मेरे कई मित्र थे. उनमें से अधिकतर मेरे मित्र मेरे गाँव बाघड़ा के ही थे.

इसके अतिरिक्त पड़ोस के गाँव के कुछ किशोर भी इन विद्यालयों में पढ़ने आते थे. उनमें से कई मेरे घनिष्ठ मित्र बन गये थे. कक्षा में मैं उन मित्रों के साथ बैठता था. आवश्यकता पड़ने पर मेरे मित्र मेरी मदद भी करते थे.

पढ़ाई के बाद खाली समय में मैं अपने मित्रों के साथ खेलना पसंद करता था. खेल में मुझे शतरंज बहुत पसंद था. मैं प्रायः रविवार के दिन अपने किसी मित्र के साथ शतरंज की एक बाजी खेल ही लेता था. शतरंज के अतिरिक्त मैदान में खेले जाने वाले खेलों में मुझे कबड्डी खेलना बहुत अच्छा लगता था.

कबड्डी के अतिरिक्त बचपन में मैं पित्टों भी खेला करता था. पिट्टो एक प्रकार का खेल हैं, जिसमें गेंद से मैदान के बीच रखी गयी गोटी को मारना होता हैं.

गोटी के गिरने के बाद विपक्षी को गेंद से मारकर उसे आउट किया जाता हैं. विपक्षी को लगी गेंदों की संख्या के आधार पर हार जीत का निर्णय होता था.

पिट्टो के अतिरिक्त मैं अपने मित्रों के साथ लुका छिपी का खेल भी खेला करता था. कई बार विभिन्न प्रकार के खेल, खेलते समय मेरी मित्रों से लड़ाई भी हुई, लेकिन कोई भी लड़ाई अधिक दिनों तक मैं चलने नही देता. मैं उन्हें मना लेता था. इस प्रकार हमारी मित्रता पुनः कायम हो जाती थी.

थोड़ा बड़ा होने के बाद मैं अपने मित्रों के साथ क्रिकेट भी खेलने लगा. लेकिन पढ़ाई की व्यस्तता और समयाभाव के कारण मैं खेल कूद में कम ध्यान देने लगा. हाईस्कूल तक पहुचते पहुचते मैं खेल कूद को पूर्णता छोड़ चुका था.

हालांकि आठवीं कक्षा में मैं कुछ दिनों तक अपने विद्यालय में खो खो खेल भी खेला करता था, किन्तु नौवी कक्षा के बाद यह खेल भी पढ़ाई की व्यस्तता की भेंट चढ़ गया.

मुझे याद हैं मैं बचपन में कभी कभी पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए जाता था. तब वहां लोगों को तैरते देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य होता था. मैं भी तैरना सीखना चाहता था.

एक दिन मेरे एक मित्र ने मुझे तैरने के गुर सिखाएं. मैंने उन गुर को आजमा कर देखा तो लगा कि मैं भी सफलतापूर्वक तैर सकता हूँ.

इसके बाद तो हर रोज तैरने का अभ्यास मेरे लिए आवश्यक हो गया. तैरने के अतिरिक्त गंगा नदी जाने का मेरा दूसरा उद्देश्य नदी के किनारे की सैर था. नदी किनारे बालूतट पर अपने मित्रों के साथ बिताएं हुए मुझे आज भी याद आते हैं.

बचपन के दिन बेफिक्री के होते हैं. इस समय प्राय पढ़ाई लिखाई की चिंता नहीं होती. मुझे भी केवल गृहकार्य पूरा करने से मतलब रहता था. स्कूल का काम खत्म करने के बाद मुझे पढाई से कोई मतलब नहीं रहता था.

पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई के प्रति मेरा लगाव बढने लगा. उसके बाद मुझे पाठ्यक्रम की किताबों के अतिरिक्त समाचार पत्र एवं बाल पत्रिकाएँ पढ़ना भी अच्छा लगने लगा.

बाल पत्रिकाओं में नन्दन, नन्हें सम्राट एवं पराग मुझे प्रिय थी. पत्रिकाओं के अतिरिक्त मैं मनोरंजन के लिए कॉमिक्स भी पढ़ा करता था. नागराज, सुपर कमांडों ध्रुव, भोकाल, चाचा चौधरी इत्यादि मेरी प्रिय कॉमिक्स पात्र थे.

मैं पत्रिकाएँ एवं कॉमिक्स अपने मित्रों के साथ बांटकर पढ़ता था. मेरे पास जो पत्रिकाएँ एवं कॉमिक्स होती थी, उन्हें मैं अपने मित्रों को पढने के लिए दे देता था. मेरे मित्र भी मुझे उनके बदले अपनी पत्रिकाएँ एवं कॉमिक्स पढने के लिए दे दिया करते थे.

ग्राम्य जीवन का अपना एक अलग ही आनन्द हैं. अपने मित्रों के साथ मिलकर खेतों में मटर तोड़कर खाने में जो स्वाद आता था, वह अब तक मटर पनीर में भी नहीं मिला.

मिट्टी पत्थर के ढेले से तोड़े गये झड़बेली के बेर में जो स्वाद मैंने बचपन में प्राप्त किया हैं. वह सेब संतरों में भी दुर्लभ हैं. बेर और अमरुद की बात तो छोड़ ही दीजिएं, गर्मी के दिनों में आम के बाग़ में सबसे छुप छुपाकर तोड़े गये खट्टे आमों का स्वाद बम्बइया, मालदह मीठे आमों से कहीं बेहतर था.

बरसात के मौसम में सबसे नजरें चुराकर भीगना एवं भीगते हुए पानी की नाव को रास्ते में पानी में बहाने का एक अलग ही आनन्द था. सभी मित्र अपनी अपनी नावों के साथ नावों की दौड़ के लिए तैयार रहते थे.

इस तरह बरसात का मजा दोगुना हो जाता था. बरसात के मौसम में प्रायः मेरे गाँव में हर साल बाढ़ आती थी. गाँव के लोग दुआएं करते थे कि इस साल भी बाढ़ न आए और हम सभी मित्र यही कामना करते थे कि बाढ़ आए तो जीने का मजा आ जाए.

लेकिन अब सोचता हूँ कि उस समय कितना गलत सोचा करता था. हालांकि उस वक्त बाढ़ का सामना मेरे बालपन की खेल एवं आनन्द की भावना मात्र थी. वास्तव में बाढ़ अपने साथ विनाश ही लाती हैं.

खैर बचपन के दिन जब बीतने लगे तो दीन दुखियों की चिंता सताने लगी. और अच्छे जीवन के लिए संघर्ष में बचपन कहाँ गम हो गया पता ही नहीं चला.

तू न सही तेरी याद ही सही की तरह बचपन की यादें भी कम ख़ुशी नहीं देती. आज भी जब बचपन की याद आती हैं तो मैं सोचता हूँ कि कोई लौटा दे मेरे बचपन के वे खुशियों भरे दिन.

कोई मेरे वे खूबसूरत दिन लौटा तो नहीं सकता, किन्तु जिन्दगी की भाग दौड़ में भी बचपन को याद कर खुश होने का मौका मैं कभी नहीं छोड़ता.

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आपका कीमती समय हमारे साथ बिताने के लिए आपको धन्यवाद् देते हैं. Mera Bachpan Essay in Hindi मेरा बचपन हिन्दी निबंध  इस लेख में आपकों दी गई जानकारी अच्छी लगी होगी. यदि आपकों माय चाइल्डहुड एस्से इन हिन्दी का यह लेख पसंद आया हो तो प्लीज अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे.

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