ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का इतिहास | Moinuddin Chishti History In Hindi

ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का इतिहास Moinuddin Chishti History In Hindiचिश्ती 1192 ई के पूर्व भारत में आए थे और बाद में इन्होने भारत में ही सूफी मत में चिश्ती सम्प्रदाय की शुरुआत की.

भारत में कई स्थानों पर घूमने के बाद मोईनुद्दीन चिश्ती अजमेर में स्थायी रूप से बस गये.

ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का इतिहास Moinuddin Chishti History Hindi

ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का इतिहास | Moinuddin Chishti History In Hindi

अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की प्रसिद्ध दरगाह अजमेर शरीफ के नाम से जानी जाती हैं. इनके मुरीद या चाहने वाले इन्हें ख्वाजा साहब या गरीब नवाज के नामों से याद करते हैं.

इनके एक शिष्य शेख हामिदउद्दीन नागौरी ने नागौर राजस्थान पास सुवल गाँव में अपना केंद्र बनाकर इस्लाम का प्रचार किया. चिश्ती का सिलसिला संगीत को ईश्वर प्रेम का महत्वपूर्ण साधन मानता हैं.

मुईनुद्दीन चिश्ती का पूरा नाम ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिष्ती हैं जो भारत के महान सूफी संतों में गिने जाते हैं. इनके जन्म एवं जन्म स्थान के बाद में अलग अलग राय हैं.

माना जाता हैं है कि ११४१ ई॰ में इनका जन्म ईरान के इस्फ़हान शहर में हुआ था. इस्लाम धर्म के अनुयायी चिश्ती ने हनफ़ी, मतुरीदी से अरबी तथा फ़ारसी का ज्ञान प्राप्त किया.

इनका स्वभाव एवं तरीका एक समाज सुधारक था, ईरान में इन्होने कुछ वर्षों तक धार्मिक पाखंड तथा बुराइयों को समाप्त कर एक नयें पन्त की शुरुआत चश्त शहर से की, जहाँ से इनका उपनाम चिश्ती पड़ गया.

जब १२ वी सदी में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भारत आए तो उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता, धार्मिक कट्टरता को समाप्त करने के प्रयत्न किये.

एक सन्यासी जीवन बिताते हुए लोगों को सही तौर तरीके बताने के साथ साथ इस्लाम के प्रचार का कार्य करते रहे. भारत जैसे धार्मिक देश में उनके विचारों का आमजन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा. धीरे धीरे उनकी ख्याति दूर दूर तक फैलती गई.

हिन्दू मुसलमान को समान रूप से मानने वाले ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ने इस्लाम की बंदिशों के बावजूद संगीत व कव्वाली को ईश्वर भक्ति का मार्ग बनाया. बड़ी संख्या में लोग सूफी संत बनने लगे.

क़व्वाली, समाख्वानी, और उपन्यासों को जरिया बनाकर इन्होने आम लोगों को ईश्वर भक्ति का मार्ग दिखाया. इस कार्य में मोईनुद्दीन चिश्ती को कई हिन्दू शासकों का विरोध भी झेलना पड़ा. मगर धीरे धीरे वो उनके विचारों तथा चमत्कारों के मुरीद होकर उनके शिष्य बन गए.

ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु (Moinuddin Chishti Death & Death Reason History In Hindi)

मोईनुद्दीन चिश्ती साहब की मृत्यु से जुड़ा किस्सा बेहद रोचक हैं. ६३३ हिज़री में उनका देहांत अजमेर में ही हुआ था. हज़रत बख्तियार काकी को उन्होंने अपना उतराधिकारी घोषित किया था.

उनके जनाजे की नमाज ख्वाजा फ़क्रुद्दीन जो इनका पुत्र था इनके द्वारा पढ़ी गई. ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती को अपनी मृत्यु से एक दिन पूर्व आभास हो गया था, कि अब उन्हें अल्लाह के पास जाना हैं, इस बाबत उन्होंने अपने शिष्यों से काकी को पत्र लिखावाया तथा आने को कहा.

चिश्ती साहब ने अपने अंतिम दिन काकी को अपना सबसे विश्वसनीय एवं मुहम्मद साहब का भरोसा ना तोड़ना वाला बताकर उन्हें अपनी चप्पल क़ुरान-ए-पाक, उनका गालिचा काकी को दिया. इस घटना के बाद वों अपने कमरे में गये तथा सारी रात कुरान की आयते पढ़ते रहे.

सुबह जब अंदर जाकर देखा तो उनका मृत शरीर शिथिल पड़ा था. कहा जाता हैं कि उस रात को काकी को एक सपना आया था जिसमें मुहम्मद साहब स्वयं उनसे मिलने आये तथा कहा- मेने अल्लाह के दोस्त ख्वाजा चिश्ती को अपने पास बुला लिया हैं,

उन्होंने आप पर पूर्ण भरोसा किया हैं, आप अल्लाह के परम मित्र का भरोसा मत तोड़ना. ख्वाजा साहब की अजमेर दरगाह पर हर साल उर्स भरता हैं.

ख्वाजा गरीब नवाज का इतिहास Khwaja garib nawaz history in hindi

ख्वाजा गरीब नवाज अर्थात ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के संबंध में दो तरह की धारणाएं हैं जिनमें प्रमुखता से गरीब नवाज की जिस छवि को इतिहास में महिमामंडित किया गया है वो एक उदारवादी, गरीबों के हितैषी, हिन्दू मुस्लिम समन्वय के सूत्र धार एवं इस्लाम के मानने वाले एक सूफी संत की रही हैं.

वहीँ हाल में सर्वाधिक चर्चित अन्य मत के मुताबिक ख्वाजा मुईनुद्दीन एक हिन्दू महिलाओं तथा बालिकाओं के साथ दुराचार करने वाले दुष्ट इंसान थे, दोनों मतो के अपने अपने तर्क एवं तथ्य है जिनकी प्रमाणिकता पर अभी भी सवाल हैं.

कहा जाता है कि 1135 में ख्वाजा गरीब नवाज का जन्म हुआ था इनके जन्म स्थल के बारें में दो अलग राय हैं जिनके मुताबिक ईराक के मोसुल अथवा सिस्तान में से किसी एक स्थान पर जन्म हुआ था. वे 1157 के आस पास हारून होते हुए विभिन्न देशों की यात्रा करते हुए अजमेर आ पहुचे तथा जीवन पर्यन्त यही रह गये.

ख्वाजा गरीब नवाज के पिता का नाम हजरत ख्वाजा ग्यासुद्दीन था एवंं उनकी माता जी का नाम बीबी उम्मूल था बालपन में इन्हें हसन नाम से पुकारा जाता था.

जब ये पांच वर्ष के थे तब ही गरीबों के प्रति उनके दिल में गहरी संवेदना थी एक वक्त जब वे ईदगाह जा रहे थे तो एक गरीब बच्चें के तन पर फटे कपड़े देखकर इन्हें दया आ गई और अपने कीमती वस्त्र उतारकर उसे दे दिए थे.

वह बालक आँखों से नहीं देख सकता था, अतः हसन उसे अपने साथ दरगाह ले गये तथा उसे नमाज पढ़ाई. इस तरह बचपन में गरीब नवाज ने मानव सेवा से ओत प्रेत कई कार्य किये. उम्रः बढने पर इन्हें तालीम के लिए मदरसे भेजा गया.

इनकी आयु जब नौ वर्ष की थी तब पिताजी का देहावसान हो गया और गृहस्थी की जिम्मेदारियां सम्भालते रहे. इसी दौरान गरीब नवाज पर एक सूफी संत इब्राहिम कदोज की दृष्टि इन पर पड़ी.

कदोज विख्यात सूफी संत और विद्वान् थे वे बालक हसन की मानव सेवा को देखकर बहुत प्रभावित हुए और उनके पास गये तथा अपनी झोली में से खल उसे दी.

ख्वाजा ने जैसे ही गुरु द्वारा दी गई खल खाई तो उनके आचार विचार बदल गये गरीबों की सेवा उनके जीवन का एकमात्र ध्येय हो गया. इसके उपरांत ख्वाजा कई देशों की यात्रा करते करते राजस्थान के अजमेर शहर आ पहुंचे.

उस समय अजमेर में हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान का शासन था. ख्वाजा गरीब नवाज अपने साथियों के साथ राजा के ऊंटों को बाधने के स्थान पर डेरा डालकर बैठ गये.

जब सैनिकों ने उन्हें यह कहते हुए उठने को कहा कि ये ऊंठो के बाँधने का स्थान है तो ख्वाजा यह कहते हुए उठ गये कि आप अपने ऊंट बांधिए. कहते है उसके वहां से जाने के बाद जब ऊंटों को लाकर बांधा गया तो वे सुबह हजारों कोशिश करने के बाद भी नहीं उठे.

जब यह घटना चौहान को पता चली तो उन्होंने अपने सैनिकों को उस सूफी संत से माफ़ी मांगने को कहा, ख्वाजा ने सैनिकों को माफ़ किया जब वे वापिस ऊंटों के पास पहुंचे तो वे स्वतः खड़े हो गये थे.

अजमेर जिला की जानकारी व इतिहास Ajmer History Tourism In Hindi

जयपुर से 135 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में बसें अजमेर शहर की स्थापना सातवीं सदी में अजयपाल चौहान द्वारा की गईं थी. जिस पर्वत की तलहटी में अजमेर बसा है. उसे अजय मेरु (अजय पर्वत) कहते है.

साम्प्रदायिक सद्भाव संगम राजस्थान के ह्रदय स्थल व भारत का मक्का के उपनाम से भी अजमेर को जाना जाता है.

अजमेर की स्थति व परिचय (ajmer district information & GK)

अजमेर राजस्थान का एक महत्वपूर्ण जिला है. इसे राजस्थान का ह्रदय उपनाम से भी जाना जाता है, अजमेयरू पर्वत की तलहटी में बसा होने के कारण इसका नाम अजमेर पड़ा.

अजयपाल चौहान नामक शासक ने अजमेर जिले की स्थापना की थी, जिनका मंदिर शहर से ९-१० किमी दूरी पर आज भी स्थित है. अजमेर जिले का क्षेत्रफल 8841 वर्ग कि॰मी॰ तथा इसकी जनसंख्या 2584913 ( जनगणना २०११ के अनुसार) है.

तारागढ़ पहाड़ी पर स्थित है, जिसके निचे ढलान में अजमेर शहर स्थित है. यह शहर उत्तर-पश्चिमी रेल्वे के दिल्ली-अहमदाबाद मार्ग एवं राजधानी शहर जयपुर के साउथ वेस्ट में तक़रीबन १४० किमी दूरी पर स्थित है.

यहाँ पुष्कर की घाटी के गुलाब की खेती विश्व भर में प्रसिद्ध है, तथा इत्र का बनाने का कार्य भी बड़े पैमाने पर किया जाता है.

अजमेर जिले का इतिहास (history of ajmer rajasthan in hindi)

रियासतकालीन राजस्थान में अजमेर क्षेत्र पर सर्वाधिक समय तक गुर्जर-चौहान शासकों का आधिपत्य रहा है. प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार बिसलदेव चौहान नामक शासक ने इस शहर में १२ वीं शताब्दी में अढ़ाई दिन का झोपड़ा, नामक एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की थी.

संभवतः इसे ढाई दिन में बनाया गया था. जिसे बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़कर तहस नहस कर दिया था. पृथ्वीराज चौहान तृतीय (१९९२) तक यह राजपूती राजाओं के काल में अजमेर पर आधिपत्य पर इसकें बाद मुहम्मद गौरी तत्पश्चात अजमेर क्षेत्र मुगलों के आधिपत्य में आ गया.

ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के कारण लगभग सभी मुगल शासकों का अजमेर से गहरा नाता रहा. विशेषकर अकबर को अजमेर से गहरा लगाव था, उसने यहाँ अपने निवास के लिया अकबर किले का भी निर्माण करवाया था.

अंग्रेजी काल १८७८ में इस क्षेत्र को अजमेर मेरवाड़ा दो संयुक्त रियासतों के रूप में विभाजित कर दिया गया था. राजस्थान के एकीकरण के सातवें चरण १९५६ में वृहत राजस्थान के साथ विलय कर आधुनिक राजस्थान का अहम हिस्सा बना लिया.

यहाँ पर राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय इसी शहर में स्थित होने के कारण अजमेर राज्य का महत्वपूर्ण शैक्षिक केंद्र है.

ख्वाजा साहब की दरगाह (ajmer sharif dargah history)-

अजमेर शहर में स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को मुस्लिम धर्मावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ मक्का के बाद दूसरा प्रमुख तीर्थ माना जाता है. दरगाह के निर्माण का प्रारम्भ का शमसुद्दीन अल्तमश के शासनकाल (१२११-१२३६ ई) में हुआ था.

जो सोहलवीं ईसवीं के आरम्भ में मुगल सम्राट हुमायूं के समय पूरा हुआ था. इसमें सूफी संत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का मकबरा, दो मस्जिद, एक महफिल खाना और एक भव्य द्वार (बुलंद दरवाजा) दर्शनीय/Tourism है.

हजरत शेख उस्मान हारुनी के शिष्य ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में हर वर्ष हिजरी वर्ष के रज्जब माह की १ से ६ तारिक तक विशाल उर्स भरता है, जों साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा उदहारण है.

अढ़ाई दिन का झोंपड़ा (adhai din ka jhonpra in ajmer)-

हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का नायाब नमूना मानी जाने वाली इस इमारत का निर्माण अजमेर के प्रथम चौहान सम्राट बीसलदेव चौहान द्वारा सन ११५३ ई. में संस्कृत पाठशाला के लिए करवाया था.

फिर मोहम्मद गौरी द्वारा सन ११९२ में अजमेर पर आक्रमण के पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिया.

आनासागर झील (ana sagar lake)-

अजमेर की आना सागर झील राजस्थान की खुबसूरत झीलों में से एक है. इसकानिर्माण पृथ्वीराज के दादा आनाजी (अर्णोराज ) द्वारा ११३५-५० के मध्य इस झील का निर्माण करवाया था.

यहाँ सम्राट जहाँगीर द्वारा दौलत बाग़ और शाहजहाँ द्वारा १६२७ में संगमरमर बारहदरी का निर्माण करवाया था.

सोनी जी की नसियाँ जैन तीर्थ soniji ki nasiyan ajmer jain temple

शहर के मध्य पर्यटकों को आकर्षित करती ऊँचें शिखर एवं मान स्तम्भ वाली लाल पत्थर की यह इमारत प्रथम जैन तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का मन्दिर है. स्व सेठ मूलचंद जी सोनी द्वारा निर्मित यह जैन सम्प्रदाय का प्रसिद्ध मंदिर है. इसमें आदिनाथ भगवान की मूर्ति एवं समवशशरण की रचना दर्शनीय है.

पृथ्वीराज चौहान का स्मारक (Prithviraj Smarak, Ajmer)

तारागढ़ दुर्ग के सर्पाकार सड़क मार्ग पर स्थित यह स्मारक समुद्रतल से लगभग १७५० फीट की ऊँचाई पर स्थित है. इसका निर्माण नगर सुधार न्यास ने जनवरी १९९६ में करवाया था. तारागढ़ पहाड़ी पर पृथ्वीराज तृतीय का स्मारक १३ जनवरी १९९६ को राष्ट्र को समर्पित किया गया.

तीर्थराज पुष्कर (pushkar brahma temple)

अजमेर नगर से उतर पश्चिम में लगभग ११ किलोमीटर दूर स्थित है, पुष्कर तीर्थराज. मार्ग में सुरम्य घाटी है. जो पुष्कर घाटी (गुलाब की खेती के लिए प्रसिद्ध है) के नाम से विख्यात है.

यह तीर्थ समुद्री तीर्थ से ५३० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. भारत में ब्रह्मा का एकमात्र प्राचीन मंदिर पुष्कर में ही है. कहा जाता है, कि गुरु विश्वामित्र ने यही पर अपनी तपस्या की थी और भगवान राम ने मध्य पुष्कर के निकट गया कुंड पर अपने पिता दशरथ का पिण्ड तर्पण किया था.

पुष्कर (अजमेर) में स्थित यह विश्व का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर है. यह 14 वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था, तब से लेकर आज तक यहाँ ब्रह्मा की विधिवत् पूजा होती है.

अजमेर के अन्य महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल (places to visit in ajmer in 1 day)

  • सावित्री मंदिर- पुष्कर के दक्षिण में रत्नागिरी पर्वत पर ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री का मंदिर स्थित है.
  • सलेमाबाद- यह निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रधान पीठ है.
  • रंगनाथ जी का मंदिर- पुष्कर में द्रविड़ शैली में निर्मित भव्य महल जो मूलतः विष्णु मंदिर है. अपनी गोपुरम् आकृति के लिए प्रसिद्ध रंगनाथ जी का मंदिर का निर्माण सेठ पूरणमल ने 1844 ई. में करवाया था.
  • वराह मंदिर पुष्कर- चौहान शासक अर्णोराज द्वारा १२ वीं सदी में निर्मित यह मंदिर विष्णु के वराह मंदिर के लिए प्रसिद्ध है.
  • रामदेवरा थान, खुन्डियावास धाम- अजमेर नागौर सीमा पर स्थित द्वितीय रामदेवरा के नाम से प्रसिद्ध बाबा रामदेव का स्थल जो परबतसर कस्बे के समीप स्थित है. इस स्थल को श्रद्धालु रामदेवरा के बाद रामदेवजी का रामदेवजी का दूसरा सबसे बड़ा स्थान मानते है. इसी कारण इसे मिनी रामदेवरा भी कहा जाता है.
  • खोड़ा गणेश- किशनगढ़ के निकट स्थित गणपति का मंदिर
  • नारेली- अजमेर शहर में मदार के पास स्थित यह दिगम्बर जैन तीर्थ स्थल है.
  • आन्तेड़ की छतरियाँ- अजमेर में स्थित दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की छतरियाँ.
  • पंचकुड- पुष्कर के पास स्थित पौराणिक स्थल जहाँ माना जाता है, कि पांडव अज्ञातवास के दौरान रुके थे. पंचकुंड कृष्ण अभयारण्य के नाम से भी प्रसिद्ध है. इसका अन्य नाम सुधाबाय है.
  • हैप्पी वैली- अजमेर में चारों तरफ पहाड़ियों से घिरे इस सुरम्य स्थल पर मनोरम झरना बहता है जो अति सुंदर लगता है.
  • सोंकलिया- यह स्थान राज्य पक्षी गोडावण की शरणस्थली है.
  • फॉयसागर झील अजमेर- वर्ष १८९१-९२ में अकाल राहत कार्यों के अधीन अभियंता श्री फॉय द्वारा निर्मित. इसमें बांडी नदी का जल एकत्र होता है.
  • शाहजहानी मस्जिद- दरगाह की इस इमारत का निर्माण शाहजहाँ द्वारा १६३८ में करवाया गया था.
  • मैग्जीन या अकबर का किला- मुस्लिम दुर्ग निर्माण पद्दति से बनाया गया यह राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है. यह अकबर द्वारा वर्ष 1571 -72 में सुरक्षित आवास स्थल के लिए बनाया गया था. सम्राट जहाँगीर इसी दुर्ग की खिड़की में बैठकर जनता की फ़रियाद सुनते थे. सर टॉमस रो यही पर जहाँगीर से मिला था. १९०८ से राजपूताना अजायबघर (राजकीय संग्रहालय) इसी में है.
  • तारागढ़ दुर्ग/गढ़बीठडी/अजमेयरू अजमेर-राजा अजयपाल द्वारा अजमेर शहर की बीठडी पहाड़ी पर सातवी सदी में निर्मित इसे राजस्थान का जिब्राल्टर भी कहा जाता है. मेवाड़ के राजा रायमल के युवराज पृथ्वीराज ने अपनी वीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इसका नाम तारागढ़ रखा. प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरा साहब (तारागढ़ के प्रथम गर्वनर मीर सैयद हुसैन) की दरगाह स्थित. दरगाह में घोड़े की मजार भी है.
  • टॉडगढ़ दुर्ग- कर्नल जेम्स टॉड द्वारा निर्मित. पूर्व में यह स्थान बोराड़वाडा कहलाता था.

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