भारत में राष्ट्रवाद का उद्भव और विकास | Nationalism In India In Hindi: राष्ट्र या देश एक ऐसा जनसमूह है जो स्वतंत्र रूप से एक निश्चित भू भाग पर रहता हो और वह स्वतंत्रता, समानता व बन्धुत्व की सामुदायिक भावना के आधार पर संगठित हो. राष्ट्र के सदस्यों में पाई जाने वाली राष्ट्रभक्ति, आत्मीयता, देश प्रेम एवं देश के प्रति त्याग व समर्पण का भाव ही राष्ट्रवाद है.
भारत में राष्ट्रवाद का उद्भव और विकास | Nationalism In India In Hindi
पश्चिमी देशों में राष्ट्र की अवधारणा राज्य के रूप में थी. एक जाति या नस्ल और उसका भू भाग राष्ट्र की श्रेणी में आता था. राष्ट्र की भारतीय अवधारणा में संस्कृति का विशेष महत्व था. भारत में राष्ट्र देश और राज्य में ये तत्व अनिवार्य रूप से माने जाते है.
राष्ट्र,देश,राज्य=जनता+भूमि+संप्रभुता
यदि जन, भूमि, संप्रभुता व संस्कृति चारों तत्व उपलब्ध है. तो वह आदर्श राष्ट्र की श्रेणी में आता है.
राष्ट्रवाद का उद्भव और विकास (Nationalism,Definition,History & Facts In Hindi)
ब्रिटिश विद्वान् सर जॉन स्ट्रेची एवं सर जॉन सीले ने भारतीय राष्ट्रवाद का जन्म 19 वीं शताब्दी की देन बताया. वे भारतीय राष्ट्रवाद को ब्रिटिश उपनिवेशवाद का परिणाम मानते है. लेकिन भारत में राष्ट्रवाद की धारणा अति प्राचीन है. वैदिक साहित्य से हमे राष्ट्रीयता की स्पष्ट जानकारी मिलती है.
यजुर्वेद और अथर्वेद में राष्ट्र की स्पष्ट व्याख्या की गई है तथा राष्ट्र के प्रति नागरिकों के क्या कर्तव्य होने चाहिए, उसे भी यजुर्वेद में समझाया गया है. इस तरह जब वेदों में राष्ट्र की स्पष्ट अवधारणा बताई गई है तो ब्रिटिश व पाश्चात्य प्रभाव से राष्ट्रीय भावना या राष्ट्रीयता का उदय हुआ.
यह कहना उचित नही है. वस्तुतः भारतियों में भारतवर्ष या भारत के प्रति सम्मान एवं भक्ति की भावना थी. यह हमारी राष्ट्रीयता की प्रतीक थी. यही नही, भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा का भी विशेष महत्व था.
प्राचीन काल में वृहतर भारत का उल्लेख मिलता है. जिसके अंतर्गत भारत का सांस्कृतिक प्रभाव सम्पूर्ण मध्य एशिया तक व्याप्त था. 19 वीं शताब्दी के मध्य से भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों में राष्ट्रीय चेतना की भावना विकसित हुई, जिसकी परिणिति भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में हुई. राष्ट्रीय जनता में मै के स्थान पर हम की भावना उत्पन्न करती है.