प्राकृतिक आपदा परिभाषा प्रकार कारण और प्रबंधन | Natural Disaster In Hindi

प्राकृतिक आपदा परिभाषा प्रकार कारण और प्रबंधन Natural Disaster Definition Types Cause and Rescue And Relief In Hindi : नमस्कार दोस्तों आज के लेख में आपका स्वागत हैं.

आज हम प्राकृतिक आपदा के इस आर्टिकल में जानेगे कि नेचुरल डिजास्टर क्या है इसका अर्थ परिभाषा प्रकार और प्रबंधन के उपायों के बारे में जानेगे.

प्राकृतिक आपदा परिभाषा प्रकार कारण प्रबंधन Natural Disasters In Hindi

प्राकृतिक आपदा परिभाषा प्रकार कारण प्रबंधन Natural Disasters In Hindi

उत्पति के आधार पर आपदाएं दो तरह की होती है. प्राकृतिक आपदाएं और मानव जनित आपदाएं. इन दोनों आपदाओं से अपार मात्रा में जन धन की हानि होती है. इस क्षति से बचाव, सुरक्षा व प्रबंध की दृष्टि से दोनों आपदाओ के प्रभाव को सिमित किया जा सकता है.

प्राकृतिक आपदा क्या है (What Is Natural Disaster In Hindi)

परिवर्तन प्रकृति की सतत प्रक्रिया है, ऐसा परिवर्तन जिनका प्रभाव मानव हित में होता है उन्हें प्रकृति का वरदान कहा जाता है. लेकिन परिवर्तनों का प्रभाव मानव समाज का अहित करता है तो इन्हें प्राकृतिक आपदा कहा जाता है.

प्राकृतिक आपदा प्रकृति में कुछ ही समय घट जाने वाली घटना या परिवर्तन है. ऐसी घटनाओं के घट जाने के बाद मानव समाज को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, वे समस्याएं संकट मानी जाती है.

भारत में प्राकृतिक आपदा Natural Disasters In India In Hindi

आपदा प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों का परिणाम है जो जान और माल की गंभीर क्षति करके अचानक सामान्य जीवन को उस सीमा तक अस्तव्यस्त करता है.

जिसका सामना करने के लिए उपलब्ध सामाजिक तथा आर्थिक संरक्षण कार्यविधियां अपर्याप्त होती हैं अर्थात आशंकित विपत्ति का वास्तव में घटित होना आपदा है I

आपदा का अंग्रेज़ी शब्द “Disaster” फ़्रांसीसी शब्द है जो “Desastre” से आया है I यह दो शब्दों ‘Des’ एवं ‘Astre’ से बना है जिसका अर्थ है ‘ख़राब तारा’ I आपदा के अंग्रेजी शब्द ‘DISASTER’ का प्रत्येक अक्षर नकारात्मक और सकारात्मक अर्थ व्यक्त करता है.

आपदा आंतरिक और बाहरी कारकों के कारण प्रभाव से उत्पन्न होती है ,जो संयुक्त होकर घटना को भारी विनाशकारी घटना के रूप में परिवर्तित करती है I आपदा ‘संतुलन’ का बिगड़ना है जिसे नियंत्रणकारी नीतियों से पुनःस्थापित किया जा सकता है या दूर किया जा सकता है I

‘हॉफमैन’ और ‘ओलिवर स्मिथ’ के अनुसार ‘आपदा के व्यवस्था दृष्टिकोण ‘ के तहत आपदाओं के पारिस्थितिक और सामाजिक दृष्टिकोण को शामिल किया जाता है ,जहाँ आपदाओं को ऐसी सम्पूर्ण घटनाएँ माना जाता है.

जिनमें उस सामाजिक – संरचनात्मक रूपों के सभी आयामों का संगठित मानव क्रिया सहित पर्यावरणीय सन्दर्भ में शामिल करके जहाँ ये घटित होती है, अध्ययन किया जाता है I

आपदाओं का वर्गीकरण (natural disasters types)

उत्पत्ति के अनुसार आपदाएं प्राकृतिक और मानव निर्मित होती हैं I प्राकृतिक आपदाओ को निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों के रूप में देखा जा सकता है :-

1. वायुजनित आपदा – तूफान, चक्रवाती पवन, चक्रवात, समुद्री तूफानी लहर |
2. जलजनित आपदा – बाढ़, बादल का फटना, सुखा |
3. धरती जनित आपदा – भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी, भूस्खलन |
4. संक्रामक रोग – प्लेग, डेंगु, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि |

वही मानव जनित आपदाओं के अंतर्गत औद्योगिक दुर्घटना, पर्यावरणीय ह्रास, विभिन्न युध्द, आतंकी गतिविधियों आदि को शामिल किया जा सकता है |

वर्तमान समय में धर्म और जिहाद के नाम पर अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु दहशत फ़ैलाने के उद्देश्य से विभिन्न आतंकवादी घटनाएँ एक महत्वपूर्ण मानवनिर्मित आपदा के रूप में सामने आई है |

इसके साथ युध्द के के विभिन्न रूपों के अंतर्गत जैविक युध्द के लिए अनुकूल वातावरण में विभिन्न जीवाणु और विषाणुओं के साथ साथ घातक कीटों का संवर्धन कर उन्हें डिब्बो में बंद कर शत्रु कैम्पों पर विमान से छोड़ दिया जाता है जो अंततः पर्याप्त क्षेत्र में फैलकर महामारी का रूप ले लेता है I

इसी प्रकार रसायन युध्द के तहत विषैली गैसों, बम, और क्लस्टर बम को शत्रु कैम्पों पर छोड़ा जाता है I वहीँ कुछ आपदाएं कंपनियों के संयंत्रों में लापरवाही या दोषपूर्ण रखरखाव के कारण होती है जिन्हें पर्यावरणीय त्रासदी कहा जाता है ,जैसे – भोपाल गैस त्रासदी, चेर्नोबिल नाभकीय आपदा, फुकुशिमा नाभकीय रिसाव आदि प्रमुख है I

अगस्त 1999 में जे. सी. पंत की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई थी जिसने लगभग तीस आपदाओं का निर्धारण किया और ये पांच श्रेणियों में वर्गीकृत हैं-

जल और जलवायु (Water and Climate) –

  • बाढ़
  • चक्रवात
  • ओलावृष्टि (Hailstorms)
  • बादल का फटना (Cloudburst)
  • लू/ उष्ण्वेग और शीत लहर (Heat Wave and Cold Wave)
  • हिम सम्पात (Snow Avalanches)
  • सूखा (Droughts)
  • समुद्री अपरदन (Sea Erosion)
  • मेघ गर्जन और बिजली (Thunder and Lighting)

जैविक (biological) –

  • महामारी (Epidemics)
  • विनाशकारी कीटों का आक्रमण (Pest Attack)
  • पशु महामारी (Cattle Epidemics)
  • खाद्य विषाक्तता (Food Poisoning)

रासायनिक , औद्योगिक और आणविक (Chemical, Industrial and Nuclear) –

  • रासायनिक और औद्योगिक आपदाएँ
  • आणविक आपदाएँ

भूवैज्ञानिक (Geological) –

  • भूकम्प
  • विशाल अग्निकांड
  • खान/सुरंग अग्निकांड (Mine Fires)
  • भूस्खलन और पंक प्रवाह (Landslides and Mudflows)

दुर्घटनाएं (Accidental) –

  • जंगली आग
  • शहरी आग
  • हवाई, सड़क और रेल दुर्घटनाएँ
  • बड़े भवनों का ढह जाना

प्राकृतिक आपदाओं की उत्पति के कारण (Causes Of Natural Disasters In Hindi)

किसी भी प्राकृतिक आपदा के लिए एक नही अनेक कारण सयुक्त रूप से जिम्मेदार होते है. पृथ्वी की आंतरिक एवं बाह्य शक्तियों अथवा बलों का प्रभाव कुछ आपदाओं को सीधे तौर पर प्रभावित करता है, जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी आदि.

मानव के अनवरत प्राकृतिक संसाधनो के अविवेक पूर्ण विदोहन तथा बढ़ती हुई जनसंख्या ने भूमि उपयोग के स्वरूप को विकृत किया है.

इसके फलस्वरूप वनों का विनाश, भूमि का क्षरण व जल संकट जैसी समस्याओं ने पर्यावरण को संकट में डाल दिया है. इससे ग्लोबल वार्मिग की समस्या पैदा होती जा रही है. जो कही न कही प्राकृतिक आपदाओं को उत्पन्न कर रही है.

मानव जीवन के उपभोक्तावादी दृष्टिकोण ने अंधाधुंध विकास के लिए प्राकृतिक संतुलन को हानि पंहुचा रहा है. मानव के ये कार्य प्राकृतिक आपदाओं को प्रत्यक्ष रूप से आमन्त्रण दे रहे है.

प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार (Types Of Natural Disasters In Hindi)

उत्पति के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है.

  1. स्थलाकृतिक आपदाएं (Topographical disasters)– इनमे वे प्राकृतिक आपदाएं सम्मिलित की जाती है. जो स्थलाकृतिक स्वरूप में अचानक परिवर्तन होने से उत्पन्न होती है, जैसे भूकंप, भूस्खलन, हिमस्खलन व ज्वालामुखी. भारत में ज्वालामुखी सक्रिय नही है.
  2. मौसमी आपदाएं (Seasonal disasters)– इनमे वे  प्राकृतिक आपदाएं सम्मिलित की जाती है. जो मौसमी परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है. जैसे चक्रवात, सुनामी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि.
  3. जीवों द्वारा उत्पन्न आपदाएं (Disasters caused by organisms)-इनमे वे प्राकृतिक आपदाएं सम्मिलित की जाती है जो जीवों व जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होती है. जैसे टिड्डी दल का आक्रमण, महामारिया, मृत पशु, प्लेग मलेरिया आदि.

प्राकृतिक आपदाएं व प्रबन्धन (Natural Disasters And Management In Hindi)

प्रबन्धन से आशय है संकट से राहत पाने के लिए प्रत्येक स्तर पर जो जिम्मेदारी निर्धारित है उसके अनुसार समयबद्ध कर्तव्य का पालन किया जाना.

देश व समाज के चरित्र का परिचय प्राकृतिक आपदा के बाद मानव सेवा में उनके द्वारा किये गये कार्यों से मिलता है. प्रबन्धन को ये कारक प्रभावित करते है.

  1. आर्थिक स्थति
  2. व्यक्ति की सकारात्मक सोच
  3. सहयोग की भावना
  4. सामाजिक ईमानदारी व निष्ठा
  5. भौगोलिक परिस्थतियाँ
  6. परिवहन व संचार के साधनों की स्थति
  7. जनसंख्या का घनत्व

भारत की प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं (Major Natural Disasters In India In Hindi)

कश्मीर बाढ़ (Kashmir flood 2014) 

2014 कश्मीर के बड़े क्षेत्र में तेज बारिश के चलते बहुत बड़ी प्राकृतिक आपदा बाढ़ के रूप में आई. इस घटना में लगभग 500 से ज्यादा लोग मारे गये. तथा हजारों लोगों के घर बह गये. कई दिनों तक लोगों को बिना पानी भोजन तथा घर के रहना पड़ा.

बड़ी संख्या में लोग जगह जगह फंस गये, जिन्हें निकालने का कार्य भारतीय सेना द्वारा सम्पन्न की गई, इस अतिशय घटना के नुकसान का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है.

कि इस बाढ़ के दौरान 2600 गाँव बाढ़ से प्रभावित हुए थे। कश्मीर के 390 गाँव पूरी तरह से जलमग्न हो गए थे। तथा 50 से अधिक पुल ध्वस्त गये. एक सर्वेक्षण के अनुसार 5000 करोड़ से 6000 करोड़ का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा.

उत्तराखंड में भयानक बाढ़ 

साल 2013 में आई इस प्राकृतिक आपदा के दौरान गोविंदघाट, केदार धाम, रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी नेपाल मुख्य रूप से प्रभावित क्षेत्र रहे. इस महाध्वश में पांच हजार से अधिक लोग मारे गये थे.

उत्तराखंड में गंगा नदी में बाढ़ और अतिरिक्त जल के चलते बाढ़ और भूस्खलन का शिकार कई गाँवों को शिकार होना पड़ा. इस बाढ़ की विभित्षा के बारे में अनुमान लगाने के लिए यह तथ्य काफी है,

कि 14 से 17 जून, 2013 को चार दिनों तक तबाही का तांडव मचाए रखा. भारत के इतिहास की सबसे बड़ी इस प्राकृतिक आपदा की चपेट में लाखों केदारनाथ यांत्रि भी आ गये थे.

हिंद महासागर सुनामी

साल 2004 में आई इस सुनामी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह, श्रीलंका, इंडोनेशिया के क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी तबाही थी.

10 मिनट चले इस मौत के तांडव में तीन लाख से अधिक लोग मौत की भेट चढ़ गये. इस खतरनाक तूफ़ान का केंद्र हिन्द महासागर रहा इसकी तीव्रता 9.1 और 9.3 के मध्य मापी गई.

प्राकृतिक आपदाओं से खतरे में जीवन | Effects of Natural Disasters In Life in hindi

एक तरफ जहाँ विश्व कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से जूझ रहा है वहीँ दूसरी तरफ अंधाधुन विकास के कारण मानव प्रकृति पर ध्यान नहीं दे रहा जिससे समस्त प्राणियों को हो रही प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा।

भारत भी इन प्राकृतिक आपदाओं से अछूता नहीं है तभी तो भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में धरती हिल रही है, कभी स्थिति ऐसी उत्पन्न हो जाती हैं की गांव के गांव बाढ़ से डूबने को मजबूर हो जा रहे हैं, कभी आकाशीय बिजली से लोगों को अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ रहा है.

कभी निसर्ग और अम्फान जैसे तूफान भारत के अलग-अलग इलाकों में आकर तबाही मचा रहे हैं, अधिकायत मात्रा में ओला-वृष्टि हो जाने से किसानों को फ़सलों के खराब हो जाने से नुकसान उठाना पड़ रहा हैं.

कहीं इतनी बारिश हो रही है की लोगों के घर भी पानी से लबालब भर चुके हैं तो कभी टिड्डियों का दल किसानों की फ़सलों को नष्ट कर रहा है। ये विकास की आपाधापी में भूल चुके प्रकृति का तांडव मात्र है।

एक आकड़ों के अनुसार प्रथम जून से लेकर 8 जुलाई तक कुल 56 बार दिल्ली एनसीआर, मेघालय, म्यांमार सीमा, असम, कश्मीर, गुजरात और भारत के विभिन्न इलाकों में भिन्न-भिन्न दिनांकों को भूकंप से धरती काँपती रही।

भूकंप के लिहाज से सबसे खतरनाक जोन 5 और 4 में आते हैं। जोन पाँच बहुत उच्च नुकसान का जोखिम क्षेत्र जिसमें कश्मीर का क्षेत्र, पश्चिमी और मध्य हिमालय, उत्तर और मध्य बिहार, उत्तर-पूर्व भारतीय क्षेत्र, कच्छ का रण और अंडमान और निकोबार समूह इस क्षेत्र में आते हैं।

जोन चार जहाँ जोन पाँच से कम तीव्रता के भूकंप आते हैं जिसमें जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, भारत के मैदानी भागों (उत्तरी पंजाब, चंडीगढ़, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी बंगाल, सुंदरवन) और दिल्ली – एनसीआर का क्षेत्र आता है, जोन चार में रिक्‍टर पैमाने पर आठ तीव्रता वाला भूकंप आ सकते हैं।

वही सिर्फ दिल्ली एनसीआर में अप्रैल से लेकर अब तक 15 से ज्यादे बार भूकंप आ चुके हैं। 80 मौसम तथा भू-वैज्ञानिकों ने पूर्वी दिल्ली में शोध कर एक रिपोर्ट तैयार की जिसमें बताया की घनी आबादी वाले यमुना-पार समेत शाहदरा, मयूर विहार और लक्ष्मी नगर ज्यादे संवेदनशील इलाके हैं।

फ़रीदाबाद और गुरुग्राम भी ऐसे ही क्षेत्र में आते हैं। विशेषज्ञों की माने तो पूर्वी दिल्ली में बने लगभग हर घर अधिक तीव्रता वाले भूकंप की जद में आ सकते हैं, जिससे पूर्वी दिल्ली में अधिक नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। बिहार के भारत और नेपाल की सीमा के पास रक्सौल जैसे क्षेत्र भी जोन नंबर 4 में ही आते हैं।

देखना दिलचस्प होगा कि दिन प्रतिदिन बढ़ती भूकंप की संख्याओं से केंद्र सरकार एवं अन्य राज्य सरकारें कितनी तैयारियाँ करती हैं, जिससे बड़े गंभीर परिणाम भुगतने ना पड़े।

प्रत्येक साल स्थिति ऐसी उत्पन्न होती है जिससे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात और असम में जुलाई, अगस्त में बाढ़ के प्रकोप कई गावों तथा शहरों को लील लेते हैं।

बाढ़ का सबसे ज्यादे प्रकोप आज़ादी के बाद 1987 में हुआ जब 1399 लोगों की दुखद मृत्यु हुई थी। 1988 में भी पंजाब की सभी नदियों के बढे जल-स्तर से आयी बाढ़ ने भी अपना अच्छा प्रकोप छोड़ा था।

1993 में आयी बाढ़ ने भारत के कुल सात-आठ राज्य बाढ़ की जद में आये जिसने 530 लोगों को अपने आगोश में लील लिया। प्रकृति का बीसवीं सदी से ज्यादे तांडव इक्कीसवीं सदी में देखने को मिला जब 26 जुलाई 2005 को मुंबई में मात्र बारिश होने से 1094 लोग मर गए थे।

उसके बाद बाढ़ और भारी बारिश से लोगों के मरने का सिलसिला हर साल जारी है। 2013 में आयी बाढ़ ने उत्तराखंड में ऐसी तबाही मचाई जिसे लोग सदियों तक नहीं भूल सकते, जिसमें लगभग 5700 लोगों ने अपनी जान गँवाई,

अनगिनत पशु पक्षियों को भी इस ताण्डवकारी बाढ़ में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। गुजरात तथा तमिलनाडु में 2015 में आयी बाढ़ ने भी खूब तबाही मचाई।

असम में आयी बाढ़ ने 2016 में 1800 परिवारों को बेघर कर दिया था, सैकड़ों लोग मरे थे। 2017 में गुजरात में आयी बाढ़ से 200 लोग मरे फिर 2018 में केरल में आयी बाढ़ से 445 लोगों की दुखद मृत्यु हुई।

वहीँ 2019 में भारत के विभिन्न राज्यों में आयी बाढ़ से लगभग 1900 लोगों को अपनी जान से जान धोना पड़ा था, जिसमें से 382 लोग तो सिर्फ महाराष्ट्र से थे। देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र एवं राज्य की सरकारें 2020 को बाढ़ के प्रकोप से बचा पाने में कितनी सफल होंगी ये वक़्त ही बताएगा।

वहीँ आकाशीय बिजली गिरने से हर साल लोगों के मरने की दुखद घटना सुनने को मिलती है। आकाशीय बिजली गिरने की घटना इस साल भी बीते दिनों बिहार, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान से सुनने को मिली

जिसमें बिहार से 83 लोग तथा उत्तर प्रदेश से 24 लोग की मृत्यु एक दिन में ही हो गयी। इसीलिए जरूरी हो चला हैं कि सरकारें लोगों को आकाशीय बिजली से बचने का उपाय बताये।

विकास कि चकाचौंध में इंसान अँधा हो चुका, जिसने प्रकृति को ही नजर अंदाज़ कर दिया है। जिससे नज़रअंदाज़ हो रही प्रकृति भी अपने रौद्र रूप में तांडव कर रही है। मई 2019 में आये फैनी तूफान ने ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका में खूब तबाही मचाई थी जिससे 81 मौतें और 8.1 बिलियन का नुकसान हुआ था।

फैनी तूफान के ठीक बाद जून 2019 में आए वायु तूफान ने भारत, पाकिस्तान, ओमान और मालदीव में तबाही मचाई थी जिससे 8 मौतें और करोड़ो का नुकसान हुआ था।

इस साल 16 मई को आए अम्फान तूफान ने भी भारत के पूर्वोत्तर राज्य (पश्चिम बंगाल, ओडिशा, अंडमान), बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान में खूब तबाही मचाई जिसमें 128 जानें गयी 13.6 बिलियन का नुकसान हुआ।

वही 1 जून को आए निसर्ग तूफान ने भी महाराष्ट्र में अपना रौद्र रूप दिखाया जिसमें 6 लोगों कि जानें गयी। उधर पाकिस्तान में पनपे टिड्डियों के समूह ने भारत के उत्तरी राज्यों पर खूब कहर बरपाया जिससे बहुतायत मात्रा में किसानों के द्वारा डाले गए धान के बीज नष्ट हो गए।

इन टिड्डियों के समूह को अपने जिले से भागने के लिए प्रशासन को खूब मसक्कत करनी पड़ी। कहीं फायर बिग्रेड के द्वारा दवाइयों का छिड़काव करवाया जा रहा है तो कहीं घंटी, थाली बजा कर ध्वनि द्वारा टिड्डियों को भगाने की कोशिश की जा रही है।

वहीँ कुछ जिले में प्रशासन द्वारा ड्रोन के माध्यम से दवाइयों का छिड़काव कर टिड्डियों को भगाने की कोशिश अनवरत जारी है।

मानव विकास में इतना डूब चुका हैं कि उसे प्रकृति के बारे में कुछ भी सूझ नहीं रहा है, जिससे होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से जीवन खतरे में पहुंच गया है। आज के समय में मानव पूर्वजों के ज़माने कि उपजायी हरियाली को मिटा आलीशान बंगले बनवा लेने को विकास समझ बैठा है। 

जिन पेड़ों से हमारा तथा पशु, पक्षियों का जीवन है उसे मिटा हम मानव प्राकृतिक घटनाओं से निपटने कि योजनाओं को बनाने कि बजाय दूसरे ग्रहों पर जीवन ढूढ़ने के प्रयास में लगे हुए हैं।

जरुरत है सरकार विकास के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए समय रहते आवश्यक कदम उठाये एवं उचित योजनाएं बनायें।

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