पर्दा प्रथा पर निबंध : Parda Pratha Essay In Hindi

पर्दा प्रथा पर निबंध Parda Pratha Essay In Hindi: विद्यार्थियों यहाँ पर Purdah system par nibandh आपके साथ साझा कर रहे हैं.

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Parda Pratha Essay In Hindi

पर्दा या बुर्का अरब की देन है जिसे भारत में मुसलमानों द्वारा प्रचलित किया गया था. पर्दा एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ ढकना होता हैं. सामान्य अर्थ में यह एक घुंघट है अधिकतर मुस्लिम महिलाओं द्वारा पुरुषों से नजर बचाने के लिए किया जाता था.

मध्यकाल में जब भारत में मुस्लिम आक्रमण होते रहे उस समय हिन्दू महिलाओं ने इन आक्रमणकारियों से बचने के लिए पर्दा प्रथा शुरू किया. 12 वीं सदी से ही भारत में इस प्रथा का आरम्भ माना जाता हैं उत्तर भारत विशेष कर राजस्थान के राजपूत समाज में यह प्रथा अधिक कठोरता के साथ अपनाई गई.

पर्दा प्रथा का अर्थ राजस्थान में पर्दाप्रथा Parda Pratha Kya Hai In Hindi

इसमें कोई संदेह नहीं कि वैदिक काल में पर्दा जैसी कोई प्रथा नहीं थी और स्त्रियाँ सार्वजनिक जीवन में भाग लेती थी. महाकाव्य पाणिनि के साहित्य से ज्ञात होता है कि शाही परिवारों में पर्दा प्रथा का प्रचलन था. मध्यकाल तक आते आते राजपूताना के शासकपीरशरो में पर्दा का प्रचलन आम था.

पर्दा समान, प्रतिष्ठा तथा कुलीनता का प्रतीक था. राजपूतों में पर्दा प्रथा अत्यंत कठोर थी. राजमहलों तथा ठाकुरों की हवेलियों में स्त्रियों के लिए अलग से जनानी ड्योढ़ी होती थी. जहाँ पर पुरुषों का जाना निषिद्ध होता था.

यदि महिलाओं को बाहर जाना होता तो उन्हें बंद पालकी में बिठाकर ले जाया जाता था. कालान्तर में पर्दा स्त्री के सतीत्व, सामाजिक समान तथा प्रतीक्षा का प्रतीक बन गया. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के तहत निम्न वर्ग की महिलाओं में भी पर्दा प्रथा को अपना लिया जिसे घूंघट कहा जाता हैं.

इस प्रथा में जिस व्यक्ति का घूंघट किया जाता हैं. उससे वह स्त्री बात नहीं कर सकती. पर्दा प्रथा ने राजस्थान की महिलाओं के लिए न केवल शिक्षा प्राप्ति का मार्ग बंद कर दिया बल्कि उनका जीवन घर की बाहर दीवारी में सिमट का रह गया. ऐसे में उनके स्वतंत्र व्यक्तित्व के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती थी.

पर्दा प्रथा पर निबंध

purdah system in india: पर्दा एक अरबी शब्द है जिसका आशय ढकना या अलग करना होता हैं. पर्दा इस्लामिक देशों की प्रथा थी जो आजकल बुर्के के रूप में भी विद्यमान हैं. इस्लाम में महिलाओं को हिजाब व बुर्के में रहने की हिदायत दी जाती हैं, पुरुषों की निगाहों से बचाने के लिए पर्दा किया जाता हैं.

हिन्दू समाज में पर्दा प्रथा इस्लाम की देन हैं. मध्यकाल में निरंतर हो रहे इस्लामी आक्रान्ताओं के आक्रमण और उनकी बुरी नजर से बचने के लिए हिन्दू औरते पर्दा करने लगी. लम्बे समय तक भारत में रहे इस्लामी शासन ने इस व्यवस्था की जड़े और मजबूत की.

विधिवत रूप से भारत में पर्दा प्रथा की शुरुआत 12 वीं सदी से मानी गयी हैं. भारत में खासकर राजस्थान के राजपूत समाज में इस प्रथा का प्रचलन अधिक रहा हैं. हालांकि स्वतंत्रता के बाद शहरी क्षेत्रों में पर्दा व्यवस्था को समाज ने अस्वीकार तो किया मगर आज भी गांवों में स्थिति त्यों की ज्यों हैं.

पर्दा प्रथा नारी के सम्मान उसकी चेतना को अवरुद्ध करती हैं. उन्हें हर पल गुलामी के जीवन का एहसास करवाती हैं. कई बार न चाहने पर भी लोक लाज और सामाजिक व्यवस्था के चलते उन्हें इस बंधन को स्वीकार करना पड़ता हैं.

पर्दा करने वाली स्त्रियों का जीवन घर तक ही सिमित होता हैं. बाजार जाना तो दूर अस्वस्थता की स्थिति में वह अपने ईलाज भी नही करवा पाती हैं.

आज के परिपेक्ष्य में देखे तो पर्दा व्यवस्था का कोई फायदा नहीं हैं इसके घातक नुकसान ही हैं. भारत के ऐतिहासिक स्रोतों व ग्रंथों में पर्दा प्रथा या घुंघट के कोई पदचिह्न नहीं मिलते हैं.

ईसा के पांच सौ साल पहले रचित निरुक्त ईसा से 200 वर्ष पूर्व की रचनाओं में स्त्री व समाज के बारे में व्यापक वर्णन है जिनमें औरते पुरुषों के समान ही सभी कार्यों में भाग लेती थी.

वेद तथा उपनिषद में भी इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता हैं. इससे स्पष्ट हैं पर्दा प्रथा कभी भी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं रही हैं. स्त्रियाँ खुले सिर ही रहा करती थी. भारत में मुगलों के आगमन के बाद से यह भारतीय समाज का अभिन्न बनकर आज भी अनवरत रूप से जारी हैं.

यदि हम हिन्दुओं के महत्वपूर्ण ग्रंथ महाभारत व रामायण में भी पर्दा अथवा घूंघट का उपयोग नहीं करती थी. अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में बने चित्र में स्त्रियों को बिना घूंघट के दिखाया गया हैं. मनु और याज्ञवल्क्य ने स्त्रियों की जीवन शैली के बारे में कुछ नियम बनाए है मगर पर्दा जैसी कोई उल्लेख नहीं मिलता हैं.

10 वीं सदी के आस-पास भी राजपरिवारों में स्त्रियाँ बिना सिर ढके दरबार में आया जाया करती थी. इसका उल्लेख अरबी यात्री अबू जैद ने भी अपनी पुस्तक में किया हैं.

भारत में पर्दा प्रथा की शुरुआत इतिहास

भारत के अतीत की ओर झाके तो ईसा पूर्व ५०० के ग्रंथों में देश की स्त्रियों को उस समय की अदालतों में जाने की अनुमति थी, उन्हें तमाम तरह की स्वतंत्रता प्राप्त की.

जहाँ भी स्त्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराती वहां उन्हें पर्दे या घुंघट में जाने का कोई विवरण नहीं मिलता हैं. यह इस बात का संकेत है कि प्राचीन भारत में पर्दा प्रथा जैसी कोई चीज नहीं हुआ करती थी.

तमाम धर्मग्रंथों ऋग्वेद आदि के सामाजिक जीवन के वर्णन में भी पुरुष की भांति महिला को सभी तरह की स्वतंत्रता दी जाती थी. रामायण और महाभारत काल में भी पर्दा प्रथा के कोई निशान नहीं मिलते हैं.

कालान्तर में कुछ राजपरिवारों या बड़े घरानों में इसके चिह्न अवश्य देखे जाते हैं मगर यह समस्त भारतीय समाज में कभी नहीं था. अजन्ता और खजुराहों की कलाकृतियों में स्त्री को पहली बार घुंघट में दिखाया जाता हैं, सम्भवत यह कलाकार की सृजनात्मकता भी हो सकती हैं.

इतिहास के पन्नों में पहली बार एक सामाजिक प्रथा के रूप में पर्दा प्रथा के दर्शन मुगलकाल में दीखते हैं. जब मुस्लिम आक्रांता भारत में आए तो हिन्दुओं की महिलाओं और बेटियों के साथ बलात्कार की घटनाएं आम सी हो गई. शायद सुरक्षा के दृष्टिकोण से पर्दा प्रथा ने जन्म लिया. महिलाओं ने स्वयं को बुरी नजरों से बचाने के लिए पर्दा प्रथा को अपनाया था.

पर्दे की प्रथा का इतिहास और जड़े

गहराई से अगर हम पर्दा प्रथा का अध्ययन करते है तो यह पाते है कि इसका अतीत एक दो सौ साल नहीं बल्कि हजारों साल पुराना हैं.

ज्ञात इतिहास के अनुसार मेसोपोटामिया की सभ्यता के दौर में असीरिया के निवासियों में यह प्रथा पाई जाती थी. करीब 600 ई पू में असीरियाई कानूनों में स्त्रियों को घुंघट रखना अनिवार्य कर दिया था.

फरमान का उल्लघंन करने वालों को दंड दिया जाता था. असीरियाई समाज में विवाहित महिलाओं के लिए घुंघट करके बाहर निकलना अनिवार्य कर दिया था,

मगर कुमारियों, पुजारिनों, वेश्याओं तथा दासियों को इस अनिवार्यता से बाहर रखा गया था. प्रो आमस्टीड के अनुसार पर्दे की प्रथा का जन्म असीरिया में ही हुआ था.

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