पहला सुख निरोगी काया पर निबंध | Pehla Sukh Nirogi Kaya Essay In Hindi

Pehla Sukh Nirogi Kaya Essay In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आज हम आपके साथ पहला सुख निरोगी काया पर निबंध आपके साथ साझा कर रहे हैं. हिंदी निबन्ध लेखन में पहला सुख निरोगी काया पर अनुच्छेद और कविता आदि लिखने के लिए विद्यार्थियों को कहा जाता हैं. 

निरोगी काया निबंध में हम कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के स्टूडेंट्स के लिए यह निबन्ध आपके लिए बेहद कारगर हो सकता हैं.

पहला सुख निरोगी काया पर निबंध

पहला सुख निरोगी काया पर निबंध | Pehla Sukh Nirogi Kaya Essay In Hindi

पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख जेब में हो माया ये संकल्पना हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों साल पूर्व की थी. अगर हमारे पास स्वास्थ्य नहीं है तो ऐसी स्थिति में हम न तो धन कमा सकते है न ही हमारे पास इक्कठे किये धन से हम जीवन का आनन्द ले पाएगे. जीवन के आनन्द उठाने के लिए हमारी सेहत का अच्छा होना बहुत जरुरी हैं.

हमारी किताबों में काया के अस्वस्थ होने के भी चार बड़े कारण मौसम, खान पान, चिंता, क्रोध व अनिद्रा बताएं गये हैं. इन सभी कारणों से मुक्ति के लिए एक सरल फोर्मुले को अपनाकर मुक्ति पा सकते है वह है हमारे 24 घंटे के वक्त में से एक घंटे का समय हमारे शरीर को देना, इसमें आप भरपूर आसान योगासन करें कसरत करे खेले,

हम जीना तो सौ साल भरपूर स्वास्थ्य के साथ चाहते है मगर बदले में अगर कुछ भी देना नहीं चाहते है तो भला यह कैसे हो सकता हैं. इसलिए हमें समझना होगा कि काया को निरोगी बनाए रखना है तो कुछ त्याग, थोड़ी केयर हमें अपने स्वास्थ्य की करनी ही पड़ेगी.

स्वस्थ रहना परम सुख- पुरानी कहावत है कि पहला सुख निरोगी काया अर्थात शरीर का स्वस्थ रहना ही सबसे बड़ा सुख हैं, सारे सुख शरीर द्वारा भी भोगे जाते हैं. अतः शरीर रोगी हो तो सारे सुख बेकार हैं.

स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मस्तिष्क अर्थात स्वस्थ मन का होना संभव हैं. तन और मन दोनों के स्वस्थ रहने पर ही, मनुष्य जीवन सच्चा सुख भोग सकता हैं.

स्वस्थ जीवन के लाभ- स्वस्थ जीवन ईश्वर का वरदान हैं. स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन के सुखों का उपभोग कर सकता हैं. स्वस्थ व्यक्ति ही अपने सारे दायित्व समय से पूरा कर सकता है. समय पड़ने पर औरों कि भी सहायता कर सकता है. शरीर स्वस्थ और बलवान होता है. तो ऐसे वैसे लोग बचकर चलते है नहीं तो.

तिनि दबावत निबल को, राजा पातक रोग

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता हैं. तन और मन से स्वस्थ व्यक्ति किसी पर भार नहीं होता बल्कि औरों के भार को भी हल्का करने में सहायक होता हैं.

स्वस्थ व्यक्ति ही सेवाओं में प्रवेश पा सकता हैं. स्वस्थ नागरिक ही देश कि शक्ति होते हैं. स्वस्थ व्यक्तियों का परिवार सदा आनन्दमय जीवन बिताता हैं.

स्वस्थ रहने के उपाय- नियमित आहार विहार स्वस्थ रहने का मूलमंत्र हैं. प्रकृति ने जहाँ रोगों के जीवाणुओं को जन्म दिया, वहीं मनुष्य के शरीर को रोग प्रतिरोधी क्षमता भी प्रदान कि हैं. इस क्षमता को समर्थ बनाये रखकर मनुष्य निरोग रहता हैं.

आज के व्यस्त और और सुख सुविधाग्रस्त जीवन ने मनुष्य के स्वास्थ्य वृत को चौपट कर दिया है. न कोई सोने का समय है न जागने का और न खाने का ना शौच जाने का . व्यायाम के नाम से आज कल के युवकों पर आफत आने लगती हैं.

संतुलित भोजन स्वास्थ्य के लिए परम आवश्यक हैं. जीने के लिए खाना ही उचित है, खाने के लिए जीना नहीं. नियमित व्यायाम चाहे वह किसी भी रूप में हो, अवश्य किया जाना चाहिए.

बच्चों को आरम्भ से ही स्वास्थ्यवर्धक भोजन और व्यायाम कि आदत डाल देनी चाहिए. समय पर सोना और समय पर जागना भी स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक हैं.

मानसिक स्वास्थ्य भी आवश्यक- आज के युग में मन के स्वास्थ्य कि प्राप्ति दिनों दिन दुर्लभ होती जा रही हैं. स्वस्थ शरीर में अस्वस्थ मन आज का आम रिवाज हो रहा है. रोटी कपड़ा और मकान की आपूर्ति के लिए मनुष्य को आज विकट संघर्ष का सामना करना पड़ता है.

यह संघर्ष शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार का है. भौतिक सुख सुविधाए पाने कि होड़ में मनुष्य ने धन कमाना ही जीवन का लक्ष्य बना दिया है. इस मनोवृति ने आदमी का सुख चैन छीन लिया है.

उसका मन रोगी हो गया है. इस संकट से बचने का एक ही उपाय है. सादा जीवन उच्च विचार, इस प्रकार तन और मन दोनों से ही स्वस्थ रहना परम आवश्यक हैं.

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