बाबु वीर कुंवर सिंह पर कविता Poem On Veer Kunwar Singh Jayanti

Poem On Veer Kunwar Singh In Hindi Jayanti  बाबु वीर कुंवर सिंह पर कविता: भारत की भूमि को वोरियर लैंड अथवा वीरों की भूमि कहा गया हैं.

अपने वतन की खातिर कुबार्नी देने वालों का इतिहास बेहद लम्बा हैं. भारत की स्वतंत्रता की जंग में ना जाने कितने ही वीरों ने अपने सर्वस्व बलिदान कर दिया था,

उनमें 18 साल की आयु में फांसी चढ़ने वाले खुदीराम बोस और 80 साल की आयु में बिहार में 1857 की क्रांति का नेतृत्व करने वाले वीर कुंवर सिंह का नाम बड़े सम्मान साथ लिया था.

वतन की आजादी के रखवाले कुंवर सिंह ने उम्रः के इस पड़ाव में जमकर लोहा लिया और 26 अप्रैल 1856 को शहीद हो गये थे.

Poem On Veer Kunwar Singh In Hindi

बाबु वीर कुंवर सिंह पर कविता Poem On Veer Kunwar Singh Jayanti

kunwar singh freedom fighter: बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर में 12 अप्रैल 1782 के दिन वीर कुंवर सिंह जी का जन्म एक राजपरिवार में हुआ था.

उनके पिताजी के बाद 1826 में वे अपनी रियासत के जमीदार बने. इनका विवाह भी मेवाड़ के सिसोदिया वंश की राजकुमारी के साथ सम्पन्न हुआ था. रियासत के जमीदार होने के कारण इनकी आमदनी लाखों में थी.

आरम्भ में इन्हें अंग्रेजों की कुटिल नीतियों का ज्ञान नहीं था, जबकि उन्हें ब्रिटिश शासन का भारत के लोगों पर अत्याचार बढने लगा तो वे उनके इरादों को जान गये तथा ८० साल की आयु में इन्होने बिहार में ब्रिटिश सत्ता से बगावत के लिएकई क्रांतिकारी  दल तैयार कर दिए.

नाना साहब तथा तात्या टोपे के साथ मिलकर इन्होने अंग्रेजों को भारत से भगाने की कई योजनाएं भी बनाई, जगदीशपुर के गढ़ में इन्होने गोला बारूद का कारखाना भी बनाया.

veer kunwar singh poem in hindi

veer ras kavita in hindi: 23 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर से कुछ ही दूरी पर ली ग्रैंड की अंग्रेजी सेना के साथ मुकाबला हुआ, जिसे उन्होंने आसानी से जीत लिया.

मगर इस विजय के ठीक तीन दिन बाद 26 अप्रैल को अस्वस्थता के चलते इन्होने प्राण त्याग दिए, ऐसे पराक्रमी यौद्धा की वीरता को हम आपके लिए कुछ कवियों द्वारा वीर कुँवरसिंह पर कविता प्रस्तुत कर रहे हैं वीर रस की ये कविताएँ आपकी रग रग में ज्वार ला देगी.

short poem on veer kunwar singh Par Kavita in hindi

आज कहानी एक सुनानी,
वीर जिसकी थी अलग जिंदगानी,
जब देश के युवाओं का पुरुषार्थ
दम तोड़ रहा था,
८० बसत देख चुके बाबु कुवर का कर्तव्य,
उन्हे झकझोर रहा था,
उनकी कहानी उन्ही की जुबानी,
वीर जिसकी थी अलग जिदगानी|
राजा क्या सुख पाने बने हो,
जनता को मरवाने बने हो,
ऐ देशवासियो क्या हम इतने नरम है,
हजारो साल की सस्कृति में क्या इतना ही दम है|
मुट्ठी भर गोरे हमे लूट जा रहे है,
और राजाओ के आत्मस्वाभिमान डूबते जा रहे हैं|
क्या ये प्रजा हमारी नही?
क्या महल के बाहर हमारी जिम्मेदारी नही|
अग्रेजो को टुकड़े खा रहे हो ,
आर्यवर्त का नाम डूबा रहे हो,
कुत्ते कहे जाते है ऐसे लोग, राजा नही कहलाते है,
स्वाधीनता छोड़ने वाले, महल में रह भी दास हो जाते हैं|
जगदीशपुर वो कमजोर रियाशत नही है,
न कमजोर उनका राजा है,
बूढी है हड्डिया मेरी,
लेकिन इन्हे हरा सके,गोरे वो में ताकत नही है|
८० साल की उम्र तक
शायद मुझे इसलिए जीना था|
आज इन हरामियो के गलत इरादे और उनके खून के साथ गिराना,
अपना पसीना था|
अगर नही साथ मेरे लोग तो क्या हुआ,
इन चमगादडो की फ़ौज के लिए,
एक शेर है आरा का खड़ा|
जगदीशपुर से आरा तक की सुरग मे,
इनकी लाशे क्र्मश बिछाऊगा |
चाहे शहीद हो जाऊ लेकिन स्वतत्र जिया हू,
स्वतत्र ही इस धरा से जाऊंगा|

जानता हू ये क़ुरबानी,
मेरी व्यर्थ जानी है|
गुमनामी में जायेगी मेरी पीड़ी,
यही हमारी कहानी है|
तलवे चाट अग्रेजो के लोग राजा रह जायगे,
और ९० साल बाद आजादी पे उनके पूत बिजनेस मैन बन जायगे|
वही बनगे सांसद विधायक, अग्रेजो का काम वही बढ़ाएगे|
खून पीयगे वो जनता का और शोषण करते जायगे|
आज मुझे मरवाने पे है जो लगे,
उनके बच्चे मेरी मूर्ति लगाएगे|
हर साल में दो बार माला भी चढ़ाएगे|
मै आज खड़ा हू तब भी खड़ा ही रहूगा|
खूब गिरगे ओले पत्थर पर शीश न झुकाउगा |
नयी पीड़ी से आख मैं मिलाऊगा|
जब आख न झुकाई अब मैने, न कभी झुकाउगा|
एक फक्र हमेशा रहेगा,
मा का वादा पूरा कर जाऊगा|
चाहे हो जाये कुछ भी मुझे,
भारत माँ का सच्चा सपूत कहलाऊगा|

Poem On Veer Kunwar Singh

इस स्वतत्रता महायज्ञ मे कई वीरवर आए काम,
नाना धुधूपत, तातिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन मे अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुदेले हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

Poem On Veer Kunwar Singh 3 कुंवर सिंह पर कविता

कहते है एक उमर होती, दुश्मन से लड़ भिड़ जाने की
कहते हैं एक उमर होती, जीवन में कुछ कर जाने की।

लेकिन है ये सब लफ़्फ़ाज़ी, कोई उम्र नहीं कुछ करने की
गर बात वतन की आये तो, हर रुत होती है मरने की।

ये सबक हमे है सिखलाया, इक ऐसे राजदुलारे ने
सन सत्तावन की क्रांति में, जो प्रथम था बिगुल बजाने मे।

अस्सी की आयु थी जिसकी, पर लहू राजपूताना था
थे कुवर सिंह जिनको सबने, फिर भीष्म पितामह माना था।

जागीरदार वो ऊचे थे, अग्रेजों का मन डोला था
उस शाहाबाद के सिहम पर, गोरो ने हमला बोला था।

फ़रमान मिला पटना आओ, गोरे टेलर ने बोला था
पटना ना जाकर सूरा ने, खुलकर के हल्ला बोला था।

सन सत्तावन की जग अगर, इतनी प्रचड हो पाई थी
था योगदान इनका महान, जमकर हुड़दग मचाई थी।

नाना टोपे मगल पांडे, वो सबके बड़े चहेते थे
भारत माता की अस्मत के, सच्चे रखवाले बेटे थे।

चतुराई से मारा उनको, गोरे बर्षों कुछ कर ना सके
छापेमारी की शैली से, अंग्रेज फ़िरगी लड़ ना सके।

वन वन भटका कर लूटा था, सालो तक उन्ही लुटेरो को
है नमन तुम्हे हे बलिदानी, मारा गिन गिन अग्रेजो को।

वीर कुंवर सिंह की जयंती पर कविता

मस्ती की थी छिड़ी रागिनी, आजादी का गाना था।
भारत के कोने-कोने में, होगा यह बताया था ॥
उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई, और पेशवा नाना था।
इधर बिहारी वीर बाँकुरा, खड़ा हुआ मस्ताना था ॥
अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

नस-नस में उज्जैन वंश का बहता रक्त पुराना था।
भोजराज का वंशज था, उसका भी राजघराना था।
बालपने से ही शिकार में उसका विकट निशाना था।
गोला-गोली, तेग-कटारी यही वीर का बना था।
उसी नींव पर युद्ध बुढ़ापे में भी उसने ठाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था॥

रामानुज जग जान, लखन ज्यों उनके सदा सहायी थे।
गोकुल में बलदाऊ के प्रिय जैसे कुंवर कन्हाई थे।
वीर श्रेष्ठ आल्हा के प्यारे ऊदल ज्यों सुखदायी थे।
अमर सिंह भी कुंवर सिंह के वैसे ही प्रिय भाई थे।
कुंवर सिंह का छोटा भाई वैसा ही मस्ताना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

देश-देश में व्याप्त चहुँ दिशि उसकी सुयश कहानी थी।
उसके दया-धर्म की गाथा सबको याद जबानी थी॥
रूबेला था बदन और उसकी चौड़ी पेशानी थी।
जग-जाहिर जगदीशपुर में उसकी प्रिय रजधानी थी॥
वहीं कचहरी थी ऑफिस था, वहीं कुंवर का थाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

बचपन बीता खेल-कूद में और जवानी उद्यम में।
धीरे-धीरे कुंवर सिंह भी आ पहुँचे चौथेपन में॥
उसी समय घटना कुछ ऐसी घटी देश के जीवन में।
फैल गया विद्वेष फिरंगी के प्रति सहसा सबके मन में॥
खौल उठा सन् सत्तावन में सबका खून पुराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

बंगाल के बैरकपुर ने आग द्रोह की सुलगाई।
लपटें उसकी उठी जोर से दिल्ली औ’ मेरठ धाई॥
काशी उठी लखनऊ जागा धूम ग्वालियर में छाई।
कानपुर में और प्रयाग में खड़े हो गए बलवा।
रणचंडी हुंकार कर उठी शत्रु हृदय थर्राना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

सुनकर के आह्वान, समर में कूद पड़ी लक्ष्मीबाई।
स्वतंत्रता की ध्वजा पेशवा ने बिठूर में फहराई।
खोई दिल्ली फिर कुछ दिन को वापस मुगलों ने पाई।
थर-थर करने लगे फिरंगी उनके सिर शामत आई॥
काँप उठे अंग्रेज कहीं भी उनका नहीं ठिकाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आग क्रांति की धधक उठी, पहुँची पटने में चिनगारी।
रणोन्मत्त योद्धा भी करने लगे युद्ध की तैयारी॥
चंद्रगुप्त के वंशज जागे करने माँ की रखवारी।
शेरशाह का खून लगा करने तेजी से रफ्तारी॥
पीर अली फाँसी पर लटका, वीर बहादुर दाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

पटने का अंग्रेज कमिश्नर टेलर जी में घबराया।
चिट्ठी भेज जमींदारों को उसने घर पर बुलवाया ।
बुद्धि भ्रष्ट थी हुई और आँखों पर था परदा छाया।
कितनों ही को जेल दिया और फाँसी पर भी लटकाया॥
कुंवर सिंह के नाम किया उसने जारी परवाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

कुंवर सिंह ने सोचा जब उनके मुंशी की हुई तलाश।
दगाबाज अब हुए फिरंगी इनका जरा नहीं विश्वास ॥
उसी समय पहुँचे विद्रोही दानापुर से उनके पास।
हाथ जोड़कर बोले वे सरकार आपकी ही है आस
सिंहनाद कर उठा केसरी उसे समर में जाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ।

गंगा तट पर अर्धरात्रि को हुई लड़ाई जोरों से।
रणोन्मत्त हो देसी सैनिक उलझ पड़े जब गोरों से॥
शून्य दिशाएँ काँप उठी तब बंदूकों के शोरों से।
लेकिन टिके न गोरे भागे प्राण बचाकर चोरों से॥
कुछ क्षण में अंग्रेज फौज का वहाँ न शेष निशाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आरा पर तब हुई चढ़ाई, हुआ कचहरी पर अधिकार।
फैल गया तब देश-देश में कुंवर सिंह का जय-जयकार॥
लोप हो गई तब आरा से बिलकुल अंग्रेजी सरकार।
नहीं जरा भी होने पाया मगर किसी पर अत्याचार ।।
भाग छिपे अंग्रेज किले में, सब लुट चुका खजाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

खबर मिली आरा की तो, आयर बक्सर से चढ़ धाया।
विकट तोपखाना था, सँग में फौजें था काफी लाया ॥
देशद्रोहियों का भी भारी दल था उसके संग आया।
कब तक टिकते कुंवर सिंह आरे से उखड़ गया पाया।
अपने ही जब बेगाने थे, उलटा हुआ जमाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था॥

हुआ युद्ध जगदीशपुर में मचा वहाँ पूरा घमासान।
अमर सिंह का तेज देखकर दुश्मन दल भी था हैरान ॥
महाराज डुमराव वहीं थे, ज्यों मुगलों में राजा मान।
अमर सिंह झपटा तेजी से लेकर उन पर नग्न कृपाण॥
झपटा जैसे मानसिंह पर वह प्रताप सिंह राणा था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ।

हौदे में थे महाराज, पड़ गई तेग की खाली वार।
नाक कट गई पीलवान की हाथी भाग चला बाजार ॥
अमर सिंह भी बीच सैन्य से निकल गया सबको ललकार।
दादाजी थे चले गए, फिर लड़ने की थी क्या दरकार।
पड़ा हुआ था शून्य महल, जगदीशपुर अब वीराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

राजा कुंवर सिंह जा पहुंचे, अतरौलिया के मैदान
आ पहुँचे अंग्रेज उधर से, हुआ परस्पर युद्ध महान॥
हटा वीर कुछ कौशलपूर्वक, झपट पड़ा फिर बाज समान।
भाग चले मिलमैन बहादुर बैल-शकट पर लेकर प्राण ॥
आकर छिपे किले के अंदर, उनको प्राण बचाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

विजय राज कुंवर सिंह जो आजमगढ़ पर चढ़ गया।
कर्नल डेम्स फौज ले सँग में, उससे लड़ने को आया।
किंतु कुंवर सिंह के साथ तनिक भी नहीं समझ में टिक पाया।
भागा वह भी गढ़ के अंदर, करके प्राणों की माया॥
आजमगढ़ में कुंवर सिंह का फहरा उठा निशाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

चले बनारस, तब कैनिंग के जी में घबराहट छाई।
अस्सी वर्षों के इस बूढ़े ने अजीब आफत ढाई॥
लॉर्ड मार्क के संग फौजें सन्मुख समझ में आई।
किंतु नहीं टिक सकीं देर तक उनने भी मुँह की खाई॥
छिपा दुर्ग में सेनापति, उसका भी वहीं ठिकाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

आगे बढ़ते चले कुँअर, था ध्यान लगा झाँसी की ओर।
सुनी मृत्यु लक्ष्मीबाई की लौट पड़े तब बढ़ना छोड़॥
पीछे से पहुँचा लगर्ड, थी लगी प्राण की मानो होड़।
गाजीपुर के पास पहुँचकर, हुआ युद्ध पूरा घनघोर॥
विजय हाथ था कुंवर सिंह के किसको प्राण गँवाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

डगलस आकर जुटा उधर से, लेकर के सेना भरपूर।
शत्रु सैन्य था प्रबल और सब ओर घिर गया था वह शर॥
लगातार थी लड़ी लड़ाई थे थककर सब सैनिक चूर।
चकमा देकर चला बहादुर, दुश्मन दल था पीछे दूर ।।
पहुँची सेना गंगा तट उस पार नाव से जाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बडा वीर मर्दाना था ॥

दुश्मन तट पर पहुँच गए जब कुंवर सिंह करते थे पार।
गोली आकर लगी बाँह में दायाँ हाथ हुआ बेकार।
हुई अपावन बाहु जान बस, काट दिया लेकर तलवार।
ले गंगे, यह हाथ आज तुझको ही देता हूँ उपहार॥
वीर मात का वही जाह्नवी को मानो नजराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

इस प्रकार कर चकित शत्रु दल, कुंवर सिंह फिर घर आए।
फहरा उठी पताका गढ़ पर दुश्मन बेहद घबराए॥
फौज लिये लीग्रैंड चले, पर वे भी जीत नहीं पाए।
विजयी थे फिर कुंवर सिंह अंग्रेज काम रण में आए ।
घायल था वह वीर किंतु आसान न उसे हराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

यही कुंवर सिंह की अंतिम विजय थी और यही अंतिम संग्राम।
आठ महीने लड़ा शत्रु से बिना किए कुछ भी विश्राम॥
घायल था वह वृद्ध केसरी, थी सब शक्ति हुई बेकाम।
अधिक नहीं टिक सका और वह वीर चला थककर सुरधाम।॥
तब भी फहरा दुर्ग पर उसका विजय निशाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

बाद मृत्यु के अंग्रेजों की फौज वहाँ गढ़ पर आई।
कोई नहीं वहाँ था, थी महलों में निर्जनता छाई॥
किंतु शत्रु ने शून्य भवन पर भी प्रतिहिंसा दिखलाई।
देवालय विध्वंस किया और देव-मूर्तियाँ गिरवाई॥
दुश्मन दल की दानवता का कुछ भी नहीं ठिकाना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ॥

रानी लक्ष्मी बाई और वीर बाबू कुंवर सिंह भारत माँ के सिपाही थे, आजादी की जंग में स्वयं की बलि दे दी थी. ऊपर दी गई कविता मनोरंजन प्रसाद सिंह जी द्वारा लिखी गई थी, वर्ष 1929 में रामवृक्ष बेनीपुरी जी की पत्रिका युवक में इसका पहली बार प्रकाशन हुआ था.

अंग्रेजी हुकुमत ने देशभक्तों के रक्त में हिलोरे मार देने वाली इस कविता को प्रकाशित करने से रोक दिया था. काफी हद तक यह कविता सुभुद्रा कुमारी चौहान की लोकप्रिय रचना झांसी की रानी से मेल खाती हैं.

भले ही झाँसी की रानी की कविता को भारतीय जनमानस में अधिक लोकप्रियता मिली. वीर कुंवर सिंह का बलिदान भी कमतर नहीं था. दोनों देश को चाहने वाले थे.

कुंवर सिंह की इस कविता के प्रकाशन के करीब एक साल बाद सुभुद्रा कुमारी चौहान ने 1930 में अपने मुकुल काव्य संग्रह में खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी कविता का प्रकाशन किया था.

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आशा करता हूँ दोस्तो आपको बाबु वीर कुंवर सिंह पर कविता Poem On Veer Kunwar Singh Jayanti का लेख अच्छा लगा होगा.

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