राजस्थान सूती वस्त्र उद्योग | Rajasthan cotton textile industry

Rajasthan cotton textile industry: नमस्कार मित्रों आपका स्वागत है राजस्थान के उद्योग में आज हम कृषि पर आधारित सूती वस्त्र उद्योग के बारें में पढेगे.

राजस्थान में सूती वस्त्र उद्योग का इतिहास, प्रमुख मिले, स्थापना वर्ष और उनके स्वामित्व के बारें में यहाँ सामान्य जानकारी दी गई हैं.

राजस्थान सूती वस्त्र उद्योग | Rajasthan cotton textile industry

Rajasthan cotton textile industry

यह देश का सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग हैं. वर्तमान में देश की सूती वस्त्र मिलें गुजरात, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडू में मुख्य रूप से केन्द्रित हैं. कपास उत्पादन का सर्वाधिक क्षेत्र महाराष्ट्र में हैं लेकिन सर्वाधिक वस्त्र उत्पादन क्रमशः गुजरात व महाराष्ट्र में होता हैं.

सूती वस्त्र उद्योग राजस्थान का प्राचीनतम, परम्परागत, संगठित एवं सर्वाधिक रोजगार देने वाला सबसे बड़ा उद्योग हैं. राज्य में प्रथम सूती वस्त्र मिल दी कृष्णा मिल लिमिटेड 1889 में ब्यावर अजमेर में निजी क्षेत्र में सेठ दामोदर दास द्वारा स्थापित की गई थी.

1906 में दूसरी मिल ब्यावर में ही एडवर्ड मिल्स लिमिटेड स्थापित की थी. 1 नवम्बर 1956 तक राजस्थान के एकीकरण तक राज्य में 7 सूती वस्त्र मिलें थी.

राजस्थान में सूती वस्त्र उद्योग किन जिलों में है

वर्तमान में राजस्थान में 34 सूती वस्त्र मिलें कार्यरत हैं जिनमें 14 भीलवाड़ा जिले में स्थित हैं. इस कारण इसे वस्त्र नगरी या राजस्थान का मेनचेस्टर भी कहा जाता हैं.

फरवरी 2009 में भारत सरकार द्वारा भीलवाड़ा को सूती वस्त्र उद्योग केंद्र के रूप में वस्त्र नगरी का दर्जा दिया था. इसे टाउन ऑफ़ एक्सपोर्ट एक्सीलेंस फॉर टेक्सटाइल भी कहा जाता हैं.

राज्य में सूती वस्त्र मिलें मुख्यतः ब्यावर, पाली, भीलवाड़ा, कोटा, चित्तोडगढ, जयपुर, श्रीगंगानगर, किशनगढ़ एवं बाँसवाड़ा में केन्द्रित हैं.

सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना पर कच्चे माल एवं श्रम की उपलब्धता, बाजार की समीपता, जल एवं विद्युत् की आपूर्ति व अनुकूल जलवायु का प्रभाव पड़ता हैं. सरकारी नीतियाँ भी इनके केन्द्रीयकरण को प्रभावित करती हैं.

राजस्थान में इस समय सूती वस्त्र मिलें निजी, सार्वजनिक एवं सहकारी तीनों क्षेत्रों में कार्यरत हैं. वर्ष 1974 में राष्ट्रीय वस्त्र निगम ने आर्थिक रुग्णता के चलते एडवर्ड मिल्स, महालक्ष्मी मिल्स और विजय कॉटन मिल्स का अधिग्रहण कर लिया था.

राज्य में 1 अप्रैल 19९३ को राजस्थान सहकारी कताई मिल्स, गंगानगर सहकारी कताई मिल्स, गंगापुर कताई मिल्स को मिलाकर राजस्थान राज्य सहकारी स्पिनिंग एंड जिनिंग संघ लिमिटेड SPINFED की स्थापना की. इसका उद्देश्य राज्य में सहकारी और निजी क्षेत्र की सूती वस्त्र मिल्स पर नियन्त्रण स्थापित करना था.

शेष सूती वस्त्र मिलें निजी क्षेत्र में हैं. राज्य की सूती वस्त्र मिलों के समक्ष कच्चे माल की कमी, आधुनिक व उन्नत मशीनों का अभाव, शक्ति के साधनों की अपर्याप्तता, पूंजी की कमी आदि समस्याएं हैं.

राज्य में स्वतंत्रता पूर्व स्थापित सूती वस्त्र मिलें

  • दी कृष्णा मिल्स ब्यावर अजमेर, 1889
  • दी एडवर्ड मिल्स ब्यावर अजमेर, 1906
  • श्री महालक्ष्मी मिल्स ब्यावर अजमेर, 1925
  • मेवाड़ टेक्सटाइल मिल्स, भीलवाड़ा, 1938
  • महाराणा उम्मेदसिंह मिल्स पाली, 1942
  • सार्दुल टेक्सटाइल मिल्स गंगानगर, 1946

स्वतंत्रता पूर्व स्थापित सभी मिलें निजी क्षेत्र के स्वामित्व में थी. आजादी के पश्चात ये सहकारी क्षेत्र में सम्मिलित की गई तथा 1974 में इन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में डाला गया. वर्तमान में ये तीनों क्षेत्रों में हैं.

स्वतंत्रता पश्चात राज्य में स्थापित सूती वस्त्र मिल्स

  • आदित्य मिल्स किशनगढ़ अजमेर
  • राजस्थान टेक्सटाइल मिल्स भवानीमंडी झालावाड़
  • श्री विजयनगर कोटन मिल्स विजयनगर, अजमेर
  • उदयपुर कोटन मिल्स
  • राजस्थान सहकारी मिल्स गुलाबपुरा, भीलवाड़ा
  • श्री गोपाल टेक्सटाइल मिल्स, कोटा

भारत के सूती वस्त्र उद्योग का भौगोलिक वितरण

भारत के वृहत उद्योगों में से एक सूती वस्त्र उद्योग है जिसकी शुरुआत 1818 ई. से मानी जाती हैं, इस साल कलकत्ता शहर के फोर्ट ग्लस्टर में कपड़ा मिल खोली गई. अगर आधुनिक भारत की पहली कपड़ा मिल की बात करे तो यह 1854 में बॉम्बे स्पिनिंग एंड वीविंग थी.

देश के सूती वस्त्र उद्योग को अध्ययन की दृष्टि से चार भागों पश्चिमी क्षेत्र, दक्षिणी क्षेत्र, उत्तरी क्षेत्र और पूर्वी क्षेत्र में विभक्त किया गया हैं. महाराष्ट्र देश का बड़ा सूती वस्त्र निर्माता राज्य है इसे कॉटनपोलिस ऑफ इंडिया भी कहा जाता हैं.

इसके अलावा गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश में भी बड़े स्तर पर सूती वस्त्र कपड़ा उद्योग फला फूला हैं.

1995 से 1996 के दौरान कॉटन टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने 64 मिलियन लोगों को आजीविका का अवसर प्रदान किया, जो कृषि क्षेत्र के बाद सबसे अधिक लोगों को रोजगार दिलाने का दूसरा बड़ा क्षेत्र भी बना.

भारत में मिल्स, पावरलूम और हैंडलूम इन तीन स्तरों पर कपड़ा निर्माण कार्य होता हैं, जिनमें पावरलूम तथा हैण्डलूम का योगदान 95 प्रतिशत हैं.

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