राजस्थान में बाल विवाह की कुप्रथा Rajasthan Me Bal Vivah In Hindi: एक तरफ आधुनिक समाज बनाने की बात करते वही दूसरी तरफ बाल विवाह यानि चाइल्ड मैरिज जैसी समस्याएं आज भी हमारे समाज में हैं.
मुख्य रूप से राजस्थान में बाल विवाह के मामले अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक हैं. अक्षय तृतीया के एक्से पर देशभर में हजारों नन्हे मुन्हे कुसुमों को वैवाहिक बंधन में बांध दिया जाता हैं.
राजस्थान में बाल विवाह की कुप्रथा | Rajasthan Me Bal Vivah In Hindi
वैदिक साहित्य में इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि उस युग में युवावस्था में ही विवाह होते थे परिणामस्वरूप लडकियों को पढ़ने तथा वर चुनने का पर्याप्त अवसर मिलता था लेकिन स्मृतिकाल तक आते आते यह माना जाने लगा कि कन्या का विवाह बाल्यावस्था में ही कर देना चाहिए.
विवाह सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था किन्तु स्त्री के लिए गृहस्थ आश्रम की एक आदर्श गृहणी के रूप में प्रस्तुत किया गया. कम उम्रः में विवाह को पवित्रता से जोड़ दिया गया.
विदेशी आक्रमणों के दौर में स्त्रियों की सुरक्षा के प्रश्न ने भी बाल विवाह को बढ़ावा दिया होगा. संयुक्त परिवार प्रणाली एवं अपनी ही जाति में विवाह की प्रथा ने भी बाल विवाह की प्रथा में योगदान दिया. राजस्थान में बाल विवाह का इतना अधिक प्रचलन था कि आखा तीज का दिन बाल विवाह का प्रतीक बन गया.
बाल विवाह सभी जातियों में प्रचलित था किन्तु पिछड़ी व निम्न जातियों में अधिक था. यह भी रिवाज था कि परिवार की सभी लड़कियों का विवाह एक साथ कर दिया जाता था जो आर्थिक दृष्टि से लाभदायक होता था.
पिछड़ी जातियों की लड़कियाँ घर से बाहर काम करती थी.अतः बाल विवाह के बाद उनके माता पिता आश्वस्त रहते थे कि उनके अवांछित सम्बन्ध स्थापित नहीं होंगे.
बाल विवाह की परम्परा कई पीढ़ियों से चली आ रही थी. अतः यदि बच्चा बड़ा हो जाए तो उसके लिए जीवनसाथी मिलना मुश्किल हो जाता था.
उपर्युक्त परिस्थितियों में बाल विवाह का अत्यधिक प्रचलन तो हो गया लेकिन इसने स्त्री के ही नहीं, सारे समाज के विकास को अवरुद्ध कर दिया.
बाल विवाह का सबसे घातक दुष्परिणाम यह था कि इससे स्त्रियों की शिक्षा प्राप्ति का दरवाजा बंद हो गया जो उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखा सकता था.
उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास अवरुद्ध हो गया. कम उम्रः में माँ बनने के कारण न वे स्वस्थ रह सकती थी न ही उनकी संतान हष्ट पुष्ट हो सकती थी.
बाल विवाह का एक और अनिष्टकारी प्रभाव बाल विधवाओं की समस्या के रूप में सामने आया, जिसने स्त्री से सम्बन्धित कई विसंगतियों तथा कष्टों को जन्म दिया.
राजस्थान के इन 16 जिलों दौसा, जोधपुर, भीलवाड़ा, चुरू, झालावाड़, टोंक, उदयपुर, करौली, अजमेर, बूंदी, चितौडगढ़, मेड़ता-नागौर, पाली, सवाईमाधोपुर, अलवर व बारां में बाल विवाह की कुप्रथा सर्वाधिक प्रचलित हैं.
भारत में बाल विवाह की समस्या का विवेचन करे तो राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल इन राज्यों में स्थिति अधिक भयावह हैं.
यूनिसेफ के अनुसार राजस्थान में 82 प्रतिशत विवाह 18 साल की उम्रः से पूर्व ही कर दिए जाते हैं. इनकी दूसरी रिपोर्ट में बताया है कि राज्य में ऐसी 22 फीसदी बच्चियां है जो अठारह वर्ष की आयु से पहले ही माँ बन जाती हैं.
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