राष्ट्र निर्माण में नारी का योगदान निबंधn Nibandh (Role of Women in Nation Building): नारी हमेशा राष्ट्र हितों के लिए पुरुषों का साथ लेने के लिए आगे आई है.
चाहे प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन की बात हो या सभी राष्ट्रीय आन्दोलन में नारियों की भूमिका की बात हो, उन्होंने हमेशा राष्ट्र निर्माण के लिए कदम बढ़ाया हैं.
आज हम भारत के राष्ट्र निर्माण में महिलाओं के योगदान पर निबंध बता रहे हैं. राष्ट्र निर्माण में नारी के रूप में भी पढ़ सकते हैं.
राष्ट्र निर्माण में नारी का योगदान निबंध
नारी ब्रह्मा विद्या हैं श्रद्धा है आदि शक्ति है सद्गुणों की खान हैं और वह सब कुछ है जो इस प्रकट विश्व में सर्वश्रेष्ठ के रूप में दृष्टिगोचर होती होता हैं.
नारी वह सनातन शक्ति है जो अनादि काल से उन सामाजिक दायित्वों का वहन करती आ रही हैं, जिन्हें पुरुषों का कंधा सम्भाल नहीं पाता. माता पिता के रूप में नारी ममता, करुणा, वात्सल्य, सह्रदयता जैसे सद्गुणों से यूक्त हो.
किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उस राष्ट्र की आधी आबादी की भूमिका की महत्ता से इनकार नही किया जा सकता हैं. आधी आबादी यदि किसी भी कारण से निष्क्रिय रहती हैं तो उस राष्ट्र या समाज की समुचित और उल्लेखनीय प्रगति के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती हैं.
लेकिन समय के साथ साथ भारतीय समाज में उत्तर वैदिक काल से ही महिलाओं की स्थिति निम्नतर होती गई और मध्यकाल तक आते आते समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों ने स्त्रियों की स्थिति को और बदतर कर दिया.
आधुनिकता के आगमन एवं शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं की स्थिति में सुधार लाना प्रारम्भ किया, जिसका परिणाम राष्ट्र की समुचित प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर होने के रूप में सामने हैं.
आधुनिक युग में स्वाधीनता संग्राम के दौरान महारानी लक्ष्मीबाई, विजयालक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, कमला नेहरु, सुचेता कृपलानी, मणीबेन पटेल अमृत कौर जैसी स्त्रियों ने आगे बढ़कर पूरी क्षमता एवं उत्साह के साथ भाग लिया.
भारतीय नारी के उत्थान हेतु समर्पित विदेशी स्त्रियाँ एनी बेसेंट, मैडम कामा, सिस्टर निवेदिता आदि से अत्यधिक प्रेरणा मिली.
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद स्त्रियों ने सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में अपनी स्थिति को निरंतर सुद्रढ़ किया हैं. श्रीमती विजयालक्ष्मी पंडित विश्व की पहली महिला थी जो संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा की अध्यक्षा बनी.
सरोजनी नायडू स्वतंत्र भारत की पहली महिला राज्यपाल थी. जबकि सुचेता कृपलानी प्रथम मुख्यमंत्री. श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्र को दिए जाने वाले योगदान को भला कौन भूल सकता हैं, जो लम्बे समय तक भारत की प्रधानमंत्री रही.
चिकित्सा का क्षेत्र हो या इंजीनियरिंग का, सिविल सेवा का हो या बैंक का, पुलिस का हो या फौज का, वैज्ञानिक हो या व्यवसायी प्रत्येक क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर स्त्रिया आज सम्मान के पद पर आसीन हैं.
किरण बेदी, कल्पना चावला, मीरा कुमार, सोनिया गांधी, बछेंद्री पाल, संतोष यादव, सानिया मिर्जा, सायना नेहवाल, पी टी उषा, कर्णम मल्लेश्वरी आदि की क्षमता एवं प्रदर्शन को भुलाया नहीं जा सकता. आज नारी पुरुषों से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं और देश को आगे बढ़ा रही हैं.
राष्ट्र के निर्माण में स्त्रियों का सबसे बड़ा योगदान घर एवं परिवार को संभालने के रूप में हमेशा रहा हैं. किसी भी समाज में श्रम विभाजन के अंतर्गत कुछ सदस्यों को घर एवं बच्चों को संभालना एक अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व हैं. अधिकांश स्त्रियाँ इस दायित्व का निर्वाह बखूबी कर रही हैं.
घर को संभालने के लिए जिस कुशलता और दक्षता की आवश्यकता होती है उसका पुरुषों के पास सामान्यतया अभाव होता हैं इसलिए स्त्रियों का शिक्षित होना अनिवार्य हैं,
यदि स्त्री शिक्षित नहीं होगी तो आने वाली पीढियां अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकती एक शिक्षित स्त्री पूरे परिवार को शिक्षित बना देती हैं.
निश्चित रूप से नारी ने अनेक बाधाओं के बावजूद नई बुलंदियों को छुआ हैं. और घर के अतिरिक्त बाहर भी स्वयं को सुद्रढ़ता से स्थापित किया हैं. लेकिन इन सबके बावजूद उसकी समस्याए अभी भी बनी हुई हैं.
उन्होने अपनी सफलताओं के झंडे ऐसे गाड़े है कि पुरानी रूढ़िया हिल गई हैं शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जो महिलाओ की भागीदारी से अछूता हो.
उसकी स्थिति में आया अभूतपूर्व सुधार उसे हाशिये पर रखना असम्भव बना रही हैं. नारी के जुझारूपन का लोहा सबकों मानना पड़ रहा हैं.
वास्तव में स्त्री के प्रति उपेक्षा का सिलसिला उसके जन्म के साथ ही शुरू हो जाता हैं और घर परिवार ही उसका प्रथम उपेक्षा का स्थल बन जाता हैं. स्त्री की उपेक्षा की मुक्ति घर की देहरी पार करने के बाद ही मिलती हैं.
हमारे यहाँ शास्त्रों में कहा गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता हैं, और हम मानते है कि देवता कार्यसिद्धि में सहायक होते हैं.
इसलिए कहा जा सकता है कि जिस समाज में नारी बढ़ चढ़कर विभिन्न क्षेत्र से सम्बन्धित कार्यों में हिस्सा लेती है वहां प्रगति की संभावनाएं अत्यंत बढ़ जाती हैं.
घर गृहस्थी का निर्माण हो या राष्ट्र का निर्माण नारी के योगदान के बिना कोई भी निर्माण पूर्ण नहीं हो सकता हैं. वह माता, बहन, पुत्री एवं मित्र रुपी विविध रूपों में पुरुष के जीवन के साथ अत्यंत आत्मीयता के साथ जुड़ी रहती हैं.
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक़ भारत में लगभग 40 करोड़ कार्यशील व्यक्ति है जिसमें 12.5 करोड़ से अधिक महिलाएं हैं.
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 39 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या हैं, जिनमें लगभग एक चौथाई महिलाएं हैं कृषि प्रधान भारत में कृषि कार्य में सक्रिय भूमिका अदा करते हुए स्त्रियाँ प्रारम्भ से ही उचित रूप से मूल्यांकित नहीं किया गया है
महिलाओं के मामले में संवैधानिक गारंटी और वास्तविकता के बिच विरोधाभास हैं. यदपि महिलाओं ने अनेक क्षेत्रों में प्रगति की है. परन्तु अनेक महिलाओं को बहुत कुछ करना बाकी हैं.
लिंग अनुपात को संतुलित किया जाना हैं. सभी आयु समूहों की महिलाओं की जीवन शैली में सुधार किया जाना है, आज भी अधिकांश भारतीय नारी आर्थिक दृष्टि से पुरुषों पर आश्रित बनी हुई हैं. सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक दृष्टि से भी उसकी प्रस्थिति पुरुषों के समान नहीं हैं.
भारत में अदालती कानून की अपेक्षा प्रथागत कानूनों का भी ख़ास स्थान हैं. अतः सिर्फ कानूनी प्रावधान ही महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे बल्कि लोगों की मनोवृति में परिवर्तन लाने की भी आवश्यकता हैं.
आवश्यकता इस बात की भी हैं कि भारतीय समाज महिलाओं को उनका उपयुक्त स्थान दिलाने के लिए कटिबद्ध हो. उनकी मेधा और ऊर्जा का भरपूर उपयोग हो तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनके साथ समानता का व्यवहार हो.
जिससे उनके अपने विकास का पूरा अवसर प्राप्त हो सके. क्योंकि ऐसी स्थिति में ही भारतीय समाज में स्त्रियों का योगदान अधिकतम हो सकता हैं. वास्तव में शक्ति और अधिकार तब तक उनकी सहायता नहीं कर सकते है.
जब तक महिलाएं स्वयं अपनी मानसिकता को ऊपर उठाकर दृढ इच्छा शक्ति के बिना किया गया प्रयास सफलता की चरम उपलब्धि से उन्हें हमेशा वंचित कर देगा.
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आशा करता हूँ फ्रेड्स आपकों Rashtra Nirman Me Nari Ka Yogdan Nibandh का लेख अच्छा लगा होगा.
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bahut achaa hai