साहित्य और समाज पर निबंध | Essay On Literature And Society In Hindi

Essay On Literature And Society In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आपका स्वागत है आज हम साहित्य और समाज पर निबंध जानेगे.

कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चों के लिए सरल भाषा में यहाँ छोटा बड़ा Essay On Literature And Society In Hindi निबंध अनुच्छेद 100, 200, 250, 300, 400 और 500 शब्द सीमा में दिया गया हैं.

साहित्य समाज पर निबंध Essay On Literature And Society In Hindi

साहित्य और समाज पर निबंध | Essay On Literature And Society In Hindi

Here You Will Get Essay On Literature And Society In Hindi Language Short & Long Length Essay For School Students & Kids.

साहित्य समाज का दर्पण है 400 शब्दों में निबंध Sahitya Samaj Ka Darpan Hai Essay In Hindi

किसी भी राष्ट्र या समाज के सांस्कृतिक स्तर का अनुमान उसके साहित्य के स्तर से लगाया जा सकता हैं. साहित्य न केवल समाज का दर्पण होता हैं. बल्कि वह दीपक भी होता हैं.

जो समाज का उसकी बुराइयों की ओर ध्यान दिलाता हैं. तथा एक आदर्श समाज का रूप प्रस्तुत करता हैं. विद्वानों ने किसी देश को बिना साहित्य के मृतक के समान माना हैं.

अंधकार हैं वहाँ जहाँ आदित्य नही हैं
मुर्दा हैं वह देश जहाँ साहित्य नही हैं |

यह माना जाता हैं कि किसी देश की सभ्यता तथा संस्कृति के इतिहास को पढ़ने के लिए उसके साहित्य को ही पढना पर्याप्त होता है | इसीलिए साहित्य किसी देश ,समाज तथा उसकी सभ्यता या संस्कृति का दर्पण होता हैं.

भारतीय साहित्य की महान परम्पराओं के कारण ही इस देश का गौरव विश्व के मानचित्र पर अक्षुण्ण बना रहा हैं.

जिसमे साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से विश्व समाज का सदैव मार्गदर्शन किया हैं. कालिदास, पाणिनी याज्ञवल्क्य, तुलसी, कबीर सूर मीरा आदि ने प्राचीन तथा मध्यकालीन कवियों द्वारा फैलाए गये प्रकाश से भारतीय समाज सदैव आलोकित होता रहा हैं.

साहित्य ही वह क्षेत्र हैं जो मनुष्य को परमार्थ, समाज सेवा, करुणा, मानवीयता, सदाचरण तथा विश्व बन्धुत्व जैसे उद्दात मानवीय मूल्यों का अनुसरण करना सिखाता हैं. संस्कारवान व्यक्ति वही हैं जो ह्रदय से उदार हो,

निष्कपट व्यवहार करने वाला हो तथा अपने लिए किसी प्रकार के लोभ लालच की अपेक्षा ना करता हो. साहित्य सदैव ऐसे ही महान मानवीय मूल्यों की रचना करता है जो प्राणिमात्र के सुखद जीवन की कल्पना करते हों |

तुलसी ने अपनी प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस में ऐसी अनेक सूक्ति परक चौपाइयों  की रचना की है जो व्यक्ति तथा समाज को सीधे -सीधे  निर्देश करती हैं ,जैसे  -का वर्षा  जब कृषि सुखाने   कर्म प्रधान विश्व करि राखा आदि |

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, मुंशी प्रेमचन्द ,निराला ,मुक्तिबोध जैसे अनेक साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय समाज में सदाचार के संस्कार,श्रम साधना के संस्कार , राष्ट्रभक्ति के संस्कार, निस्वार्थ समाज सेवा के संस्कार, आचरण की सभ्यता के संस्कार तथा विश्व मानवता के संस्कार, सामाजिक समरसता के संस्कार आदि की स्थापना की हैं.

अत: कहा जा सकता हैं कि साहित्य ही वह उपकरण हैं  जो व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र को संस्कारवान बनाता हैं.

500 शब्दों में साहित्य व समाज पर निबंध Essay On Literature And Society In Hindi

साहित्य और समाज का सम्बन्ध- सामाजिक मस्तिष्क अपने पोषण के लिए जो भाव सामग्री निकालकर समाज को सौपता है उसी के भंडार का नाम साहित्य हैं.

साहित्य और समाज का अटूट संबंध  हैं. जो हित सहित हो वही साहित्य हैं, यह हित समाज का ही हित हो सकता है. अतः समाज अपने हित के लिए साहित्य का स्रजन किया करता हैं.

किसी कवि ने कहा है-

अंधकार है वहां जहाँ आदित्य नहीं है
मुर्दा है वह देश जहाँ साहित्य नहीं हैं

साहित्य समाज को प्रकाश देने वाला सूर्य हैं. साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता हैं इसका भाव यही है कि समाज में जो कुछ घटित होता हैं उसका प्रतिबिम्ब साहित्य पर अवश्य पड़ता हैं.

साहित्य समाज का प्रेरणा स्रोत- साहित्य ने समाज को सदा दिशा निर्देश किया हैं. इतिहास में इसके अनेक प्रमाण हैं. कि साहित्य ने अपनी क्रन्तिकारी विचारधाराओं से समाज में आश्चर्यजनक परिवर्तन किये हैं. फ्रांस की क्रांति के प्रेरणा स्रोत रूसों और वाल्टेयर के लेख ही थे.

मैजिनी के विचारों ने इटली को जीवनी प्रदान की. भारतीय साहित्यकारों ने विदेशी शासन से जूझते हुए नौजवानों को मर मिटने की भावना भर दी थी. साहित्य ने केवल राजनीतिक परिवर्तन का ही नहीं अपितु धार्मिक और सांस्कृतिक क्रांतियों का भी मार्गदर्शन किया हैं.

हिंदी साहित्य और समाज- हिंदी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करने से साहित्य और समाज के सम्बन्ध का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता हैं.

वीरगाथाकालीन समाज का प्रतिबिम्ब तत्कालीन साहित्य पर स्पष्ट रूप से पड़ा हैं. रासो ग्रन्थ की पंक्ति पंक्ति में तलवारों की झंकार और वीरों की हुंकार भरी हैं.

इसी प्रकार भक्तिकालीन साहित्य ने भारत की पराभूत और हताश जनता को भक्ति की भागीरथी में स्नान कराया हैं. रीतिकालीन राजाओं की विलासप्रियता बिहारी, मतिराम और वोधा की पंक्तियाँ झाँक रही हैं.

इसी प्रकार आधुनिककालीन हिंदी साहित्य जहाँ सामाजिक परिवेश से प्रभावित हुआ हैं वहीँ उसने हिंदी समाज को भी सपनों से यथार्थ की कठोर भूमि पर उतारा.

भारत का स्वतंत्रता संग्राम, देशभक्ति का ज्वार, स्वतंत्रता की प्राप्ति और स्वतंत्रयोतर भारतीय समाज की दशा दिशा आदि आधुनिक और समसामयिक हिंदी साहित्य में पूर्णतया प्रतिबिम्बित होता आ रहा हैं.

भारतेंदु हरिश्चंद्र, मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, प्रेमचन्द इत्यादि साहित्यकारों ने भारत के युवकों का मार्गदर्शन किया हैं.

तथा उनको भारत की स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व त्यागकर समर्पित होने की प्रेरणा दी हैं. गुप्त जी की भारत भारती तथा प्रेमचन्द की कहानी सोजे वतन का अंग्रेजी शासन के प्रतिबंध का भी सामना करना पड़ा.

साहित्य का दायित्व- साहित्य और समाज का अटूट संबंध यह संदेश देता है कि साहित्य को समाज का सही मार्गदर्शन करना चाहिए. उसके उत्थान में और उसकी आकांक्षा को स्वर देने में सहभागी बनना चाहिए.

अपने पाठकों को उद्देश्यविहीन मनोरंजन की ओर ले जाना अथवा जीवन से हटाकर कोरी कल्पना की दुनियां में भटकाना अच्छे साहित्य का उद्देश्य नहीं हो सकता. सामाजिक सरोकारों से जुड़ने के कारण ही प्रेमचंद को हिंदी जगत का अपूर्व सम्मान प्राप्त हो सका.

600 शब्दों में साहित्य और समाज पर निबंध Essay On Literature And Society In Hindi

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह पशु की प्रवृतियों से उपर उठकर अपनी बुद्धि श्रेष्टताआधार पर समाज बनाता है. और अपनी सामाजिकता का परिचय देता है.

समाज में रहकर वह जो कुछ देखता है और अनुभव करता है उसे अपनी रचना के माध्यम से प्रस्तुत भी करता है. उसका यही साहित्य सर्जन समाज और देश का पथ प्रदर्शन करता है.

साहित्य मानव के मस्तिष्क का भोजन है, जिसकी वैचारिक चेतना के विकास का सूचक और भावों का आदर्श है. इसी कारण मानव समाज में साहित्य का अत्यधिक महत्व है.

यही एक माध्यम है जिससे मानव मस्तिष्क का विकास क्रम तथा मानवीय भावनाओं का परिचय मिलता है. परोक्ष रूप में साहित्य मानव सभ्यता के विकास का सूचक भी है.

साहित्य का उद्देश्य क्या है (Hindi Essay on Sahitya Ke Udeshya)

विद्वानों ने साहित्य की अनेक परिभाषाएं दी है. पंडितराज विश्वनाथ ने साहित्य का अर्थ उन समस्त काव्य रचनाओं से है., जिसमे  लोकिक ज्ञान का समावेश है.

इस कारण साहित्य शब्द की व्युत्पति यह की गई ”हितेन सहितं सह वा सहितम तस्य भाव साहित्यम. अर्थात जिसमे हित की भाव, लोकमंगल का भाव विद्यमान हो, जिसके द्वारा समाज का हित चिन्तन व्यक्त हो

यद्यपि अपने हित और अहित का ज्ञान पशु पक्षियों को भी होता है. परन्तु मानव बुद्धिजीवी प्राणी है, वह अपने हित का चिन्तन अच्छी तरह से कर सकता है. समाज का संगठन भी मानव हित के लिए हुआ है. और मानव द्वारा समाज का हित करने के लिए साहित्य की रचना की जाती है.

इसी प्रकार आचार्य हजारीप्रसाद द्वेदी ने साहित्य की यह परिभाषा दी है- ज्ञान राशि के संचित कोष का नाम साहित्य है. आधुनिक काल में यह परिभाषा सर्वमान्य है और इससे साहित्य का महत्व स्पष्ट हो जाता है.

क्यों साहित्य हमारे लिए महत्वपूर्ण है (Importance of literature)

जैसा कि पहले बताया जा चूका है साहित्य रचना का उद्देश्य मानव समाज का हित चिन्तन करना तथा उसकी चेतना का पोषण करना है. इससे यह सिद्ध होता है कि साहित्य लोक संग्रह के कारण ही उपयोगी माना जाता है. बिना उद्देश्य एवं उपयोगिता के किसी वस्तु की रचना नही की जा सकती है.

बिना उपयोगिता के रचा गया साहित्य मात्र कूड़ा कचरा ही है. जो रद्दी के ढेर में विलीन हो जाता है. लेकिन उपयोगी साहित्य अमर बन जाता है. इसलिए साहित्य की कसौटी उपयोगिता ही है.

साहित्य और समाज का सम्बन्ध (relationship literature and society)

साहित्य और समाज का अविच्छिन्न सम्बन्ध है. समाज यदि आत्मा है तो साहित्य उसका शरीर है. बिना समाज के साहित्य जीवित नही रह सकता है. बिना साहित्य के समाज का स्पष्ट प्रतिबिम्ब नही देखा जा सकता है. साहित्यकार एक समाज का ही अंग होता है.

उसकी शिक्षा दीक्षा समाज में ही होती है. उसे सामाजिक जीवन में ही अपने भावों तथा अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की प्रेरणा मिलती है.

इसलिए यह तात्कालीन समाज की रीती निति, धर्म-कर्म, आचार व्यवहार तथा अन्य परिस्थतियों में प्रभावित होकर अपनी प्रति के लिए प्रेरणा ग्रहण करता रहता है. साहित्य में उसी की अभिव्यक्ति रहती है.

समाज में जैसी परिस्थतियाँ एवं विचार होते है साहित्य में भी वैसा ही परिवर्तन आ जाता है. यदि समाज में वीर भावना है साहित्य में भी शौर्य का स्तवन होगा. समाज में विलासिता का सम्राज्य है तो साहित्य भी श्रंगारिक होगा.

इसी कारण साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है. इस प्रकार स्पष्ट कहा जा सकता है कि साहित्य और समाज परस्पर आश्रित और एक दूसरे के पूरक है.

साहित्य पर समाज का प्रभाव (Impact of society on literature)

कोई भी साहित्य अपने समाज से अछुता नही रह सकता है. साहित्य का प्रतिभा प्रासाद समाज के वातावरण पर ही खड़ा होता है. यह स्पष्ट देखा जाता है कि जैसा समाज होता है वैसा ही उस काल का साहित्य बन जाता है.

उदहारण के लिए हिंदी साहित्य का आदिकाल एक प्रकार से युद्ध युग था. समाज में शौर्य और बलिदान की भावना थी वीरयोद्धा प्राणोत्सर्ग करना सामान्य बात समझते थे.

फलस्वरूप वीरगाथा काव्यों की रचना हुई. परवर्ती काल में मुगलों के आक्रमण से हिन्दू जनता पीड़ित थी इस कारण सूर और तुलसी आदि भक्त कवियों ने भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया तथा सामाजिक समन्वय की भरपूर चेष्टा की.

वर्तमान काल में साहित्य में सामाजिक द्रष्टिकोण का परिचायक है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि समय की परिवर्तनशीलता के कारण समाज का साहित्य पर भी प्रभाव पड़ा है.

साहित्य की विशेषताएँ (Literature Features)

साहित्य सामाजिक चेतना का परिचायक और मानव मस्तिष्क का पोषण है. समाज का साहित्य से और साहित्य का समाज से मौलिक सम्बन्ध है. समाज के बिना साहित्य की रचना संभव नही है. सामाजिक जीवन के साथ साथ साहित्य में भी परिवर्तन होता रहता है.

साहित्य का सौदर्य उसकी सामाजिक उपयोगिता ही है. यह व्यक्ति और समष्टि रूप में मानव समाज का उपकारक और उपदेष्टा है. इससे ही सत्य शिवम सुन्दरम की भावना पल्लवित होती है.

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