सांझी पर्व का इतिहास व गीत | sanjhi art history wiki song in Hindi सांझी का त्यौहार आसौज लगते ही पूर्णमासी से अमावस्या तिथि तक मनाया जाता हैं.
कुआरी लडकियों को घरों में सांझी का पूजन करना चाहिए. घर की दिवार पर गोबर से सांझी-सांझा की मूर्ति बनाकर उसका भोग लगाना चाहिए.
पन्द्रहवें दिन अमावस्या को गोबर से विशाल कोट बनाकर पूजन करना चाहिए. जिस लड़की की शादी हो जाय तो वह शादी के केवल उसी वर्ष 16 कोटों की 16 घर जाकर पूजा करे, भोग लगावे. इससे लड़कियों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
सांझी पर्व का इतिहास व गीत sanjhi art history song in Hindi
सांझी पर्व क्या है?
बता दे कि जैसे ही भारत में गणपति स्थापना का त्यौहार खत्म हो जाता है उसके तुरंत बाद ही सांझी या फिर संझा का त्यौहार आता है। यह त्यौहार खास तौर पर ऐसी लड़कियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिनकी शादी नहीं हुई होती है।
हमारे भारत देश में अलग-अलग इलाकों में इस त्यौहार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और हर इलाके में इसका अलग अलग नाम होता है। महाराष्ट्र में इसे गुलाबाई, हरियाणा में सांझी धूंधा, ब्रज के इलाके में सांझी, राजस्थान राज्य में सांझाफूली या फिर संजया के नाम से जाना जाता है।
सांझी पर्व कौन मनाता है?
देखा जाए तो इस त्यौहार को मुख्य तौर पर कुंवारी कन्या ही मनाती हैं। कुमारी कन्या इस त्यौहार को भाद्रपद महीने में शुक्ल पूर्णिमा से पित्र मोक्ष अमावस्या तक मनाती हैं। हमारे भारत देश में मुख्य तौर पर यह त्यौहार कुंवारी कन्याएं महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के मालवा निमाड़ ईलाके में ज्यादा मनाती हैं।
इस दिन सभी कुंवारी कन्याएं एक ही जगह पर शाम के समय में इकट्ठा होती है और फिर वह अलग अलग प्रकार की रंगोली बनाती है और फिर रंगोली को फूल और पत्तियों से सजाती हैं, उसके बाद सांझी माता के गीत गाती हैं और उसके बाद सांझी माता की आरती की जाती है और फिर लोगों में प्रसाद का वितरण किया जाता है।
सांझी पर्व का इतिहास (sanjhi history in hindi)
मालवा, निमाड़, राजस्थान, गुजरात, ब्रजप्रदेश ‘सांझी पर्व’ मुख्य पर्व त्योहारों में से एक हैं. जो कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाता हैं. श्राद्ध पक्ष के सभी 16 दिन (भाद्रपद की पूर्णिमा से आसोज मास की अमावस्या) तक सांझी का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं.
सांझी पर्व के दिन कन्याओं द्वारा सवेरे अपने घर की दीवार पर सांझी का चित्र बनाया जाता हैं तथा उसे विभिन्न रंग बिरंगे फूल पत्तों द्वारा सजाकर सांयकाल को सांझी पूजन किया जाता हैं.
सांझी कैसे बनाई जाती हैं (sanjhi art wiki)
सांयकाल में कुवारी कन्याओं द्वारा घर की चौखट पर साझी बनाई जाती हैं. इसे बनाने के लिए एक निश्चित आकार के स्थान को गोबर से लीपा जाता हैं तथा उस पर वर्ग के आकार की संझिया बनाई जाती हैं. फिर इन्हें फूल तथा पत्तियों से सजाकर पूजन कर संझादेवी का प्रसाद सभी में वितरित किया जाता हैं.
मालवा मध्यप्रदेश की सांझी कला सबसे लोकप्रिय हैं. यहाँ सांझी पूजन के पश्चात बालाओं द्वारा एक विशेष प्रकार का प्रसाद तैयार किया जाता हैं, जिसे ताड़ कहा जाता हैं.
तथा जिन जिन लोगों में इस प्रसाद को वितरित किया जाता हैं उन्हें यह बताना होता है कि प्रसाद में किन किन चीजों का उपयोग किया गया हैं. जिस कन्या के हाथ से बनी प्रसाद की सामग्री की शिनाख्त नही हो पाती है उनकी सभी प्रशंसा करते हैं.
पितृ पक्ष के इस सोलह दिनों के पर्व के अंतिम पांच दिनों में सांझी के स्थान पर हाथी-घोड़े, किला-कोट, गाड़ी आदि की आकृतियाँ चित्रित की जाती हैं. अंत में अमावस्या तिथि के दिन संझा देवी को विदाई दी जाती हैं.
सांझी माता के गीत (sanjhi Song)
सांझा लाल बनरा को चाले रे बनरा टेसुरा
बनरी से क्या क्या लाए रे !! बनुरा टेसुरा !!
माया कू हंसला, बहिन कू ता कठला, तो
गोरी धन कारी कंठी लाए रे !! बनुरा टेसुरा !!
माया वाकी हंसे, बहिन बाकी खिलके, तो
गोरी धन रूठी मटकी डोले रे !! बनुरा टेसुरा !!
माया पैसे छीनों बहिन पैसे झपटी तो,
गोरी धन ले पहरायों रे !! बनुरा टेसुरा !!
माय वाकी रोवे बहिन वाकी सुवके, तो
गोरी धन फुली न समाय रे !! बनुरा टेसुरा !!
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