दक्षिण भारत के राजवंश (राष्ट्रकूट, चालुक्य, पल्लव, चोल) का इतिहास | South Indian Dynasty Kings Name List History In Hindi

दक्षिण भारत के राजवंश (राष्ट्रकूट, चालुक्य, पल्लव, चोल) का इतिहास | South Indian Dynasty Kings Name List History In Hindi

उत्तर भारत में गुर्जर प्रतिहार, पुर्व भारत में पाल और दक्षिण भारत में राष्ट्रकूट ये शक्तियाँ मध्यकाल में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए एक दूसरे पर आक्रमण करते रहे. सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद भारत में पुनः कई छोटे छोटे राज्य स्थापित हो गये थे.

दक्षिण भारत के राजवंश का इतिहास | South Indian Dynasty History In Hindi

उत्तर और दक्षिण के इन राज्यों ने अपनी स्वतंत्र सता स्थापित कर ली थी. इन स्वतंत्र राजवंशों ने आठवीं से बाहरवी सदी तक राज्य किया. अपने राज्य विस्तार के लिए यदपि ये आपस में लड़ते रहे,

परन्तु इन्होने किसी विदेशी शासक को सिंधु नदी से आगे नही बढ़ने दिया. आठवी से बाहरवीं शताब्दी तक जिन प्रमुख राजवंशों ने दक्षिण भारत में शासन किया, उनकी संक्षिप्त जानकारी नीचे दी गई हैं.

राष्ट्रकूट वंश इतिहास (rashtrakuta dynasty in hindi)

दक्षिण भारत के राजवंशों में राष्ट्रकूट राज्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण था. राष्ट्रकूटों ने कन्नौज व उसके आस-पास के प्रदेशों पर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए बार बार प्रयास किए. उन्होंने नर्मदा नदी के दक्षिण में वर्तमान में महाराष्ट्र प्रदेश में अपना राज्य स्थापित किया.

प्रारम्भ में वे चालुक्यों के अधीन थे. बाद में राष्ट्रकूट दन्तिदुर्ग ने चालुक्यों को हराकर 753 ई में अपने राज्य का विस्तार किया. इस वंश के पराक्रमी शासक कृष्ण तृतीय, ध्रुव, गोविन्द, अमोघवर्ष आदि थे.

चालुक्य वंश इतिहास (chalukya dynasty history in hindi)

इस वंश का राज्य नर्मदा नदी के दक्षिण से कृष्णा नदी तक फैला हुआ था. राष्ट्रकूटों और पल्लवों से चालुक्यों का निरंतर युद्ध होता रहता था. इस वंश का पराक्रमी शासक पुलकेशियन द्वितीय था, जिसने सम्राट हर्षवर्धन को भी पराजित किया था.

विक्रमादित्य द्वितीय भी इस वंश का शक्तिशाली शासक था. एक बार 753 ई में राष्ट्रकूटों से पराजित होकर चालुक्यों ने 973 ई में पुनः अपना राज्य स्थापित किया और मध्य हैदराबाद में कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया.

पल्लव वंश इतिहास (Pallava Dynasty History)

यह दक्षिण भारत का प्राचीन राजवंश था. इस वंश के शासक महेंद्रवर्मन था जो चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय से पराजित हो गया था. बाद में उसके पुत्र नरसिंहवर्मन ने ६४२ ई में चालुक्यों की राजधानी पर अधिकार कर लिया.

पल्लवों और चालुक्यों के मध्य निरंतर संघर्ष होता रहता था. नवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट और चोल शासकों ने भी पल्लवों पर आक्रमण कर दिया.

८८५ ई में चोल शासक आदित्य प्रथम ने पल्लवों को हराकर उनकी राजधानी काँची पर अधिकार कर लिया और इस प्रकार पल्लव राज्य का अंत हो गया.

चोल वंश इतिहास (Chola Dynasty History)

चोल राज्य कृष्णा और कावेरी नदियों के बिच समुद्रतट पर स्थित था. इस राज्य का विस्तार 864 ई में चोल शासक विजयालय द्वारा किया गया.

उसने पल्लवों की अधीनता से चोल राज्यों को मुक्त किया. बाद में उसके पुत्र आदित्य ने पल्लव नरेश अपराजित वर्मन को परास्त कर काँची पर अधिकार कर लिया.

इस राजवंश का सबसे प्रतापी शासक राजेन्द्र प्रथम था, जो 1012 ई में गद्दी पर बैठा. उसने सम्पूर्ण दक्षिण में अपना राज्य स्थापित कर लिया और उत्तर भारत की ओर आक्रमण किए. वह कलिंग और बंगाल को जीतता हुआ गंगातट तक पहुच गया और गंगे कौंड की उपाधि धारण की.

उसने जल सेना बनाकर बंगाल की खाड़ी और बर्मा पर भी विजय प्राप्त की, राजेन्द्र प्रथम एवं अन्य चोल शासकों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण में विशेष योगदान दिया.

यादव वंश इतिहास

बता दें कि यादव वंश की स्थापना करने का श्रेय वल्लभ-V को जाता है।  यादव वंश के सबसे शक्तिशाली राजा सिंहण थे, जिन्होंने इसवी सन 1210 से लेकर के ईसवी सन 1246 तक यादव वंश की बागडोर संभाली थी।

यादव वंश के अंतिम शासक कहे जाने वाले राजा रामचंद्र ने काफी वीरता के साथ अलाउद्दीन खिलजी की सेना से टक्कर ली थी परंतु दुर्भाग्यवश उन्हें इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा और अलाउद्दीन खिलजी के जनरल मालिक कफूर ने उनकी हत्या कर दी। राजा सिंहण के दरबार में संगीत रत्नाकर सांरधर और प्रसिद्ध ज्योतिषी चंगदेव थे।

होयसल वंश इतिहास

12वीं शताब्दी में होयसल वंश की स्थापना विष्णु वर्धन ने की थी, जिसकी राजधानी द्वारसमुद्र थी। इस वंश के अंतिम शासक वीर बल्‍लाल-।।। थे। बेलूर के चेन्ना केशव मंदिर का निर्माण विष्णु वर्धन ने हीं करवाया था।

आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि होयसल वंश दक्षिण भारत के यादव वंश की एक शाखा है और जब होयसल वंश था तब इनके राज्य का इलाका मैसूर प्रदेश तक था।

कदंब वंश इतिहास

कदंब वंश भी दक्षिण भारतीय राजाओं का एक शक्तिशाली वंश था, जिसकी स्थापना करने का श्रेय राजा मयूर शर्मन को जाता है। जब आंध्र सातवाहन राज्य का पतन हो गया था तो उसके बाद इस वंश की स्थापना की गई थी।

अगर इस वंश के सबसे शक्तिशाली शासक की बात करें तो उनका नाम का काकुतस्‍थ वर्मन था। अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध में कदम वंश का पूरा पतन हो गया था।

गंग वंश इतिहास

मैसूर रियासत के अधिकतर भागों पर गंग राजाओं के राज्य का विस्तार था। जहां जहां पर गंग वंश के राजाओं का अधिकार था वहां वहां के इलाके को गंगा बाड़ी के नाम से जाना जाता था। जब गंग राज्य की स्थापना हुई थी तब शुरुआत में उनकी राजधानी 

कुलुवल (कोलार) थी। गंग वंश के शासक हरिवर्मान ने तकरीबन 5 वी शताब्दी के आसपास में इस वंश की राजधानी को मैसूर जिले के तलवाड नाम के इलाके में स्थापित किया और आगे चलकर के राष्ट्रकूट वंश के राजाओं ने इस पर अपना अधिकार जमा लिया था।

दक्षिण भारत के राजवंश की शासन व्यवस्था (administration of South India Dynasty Empire)

दक्षिण भारत के राजवंशों की शासन व्यवस्था में राजा सर्वोपरि माना जाता था. राजा शासन की सहायता हेतु मंत्रियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति एवं नियंत्रण करता था. पल्लवों ने राज्य को राष्ट्र, कोट्टम और ग्रामों में विभाजित किया था. चोलों ने मंडल और नाडू में विभाजन किया था.

तमिल प्रदेश के इन नाडुओं के कारण ही वर्तमान नाम तमिलनाडु रखा गया हैं. उस समय स्थानीय स्वशासन संस्थाएं कार्य करती थी. ग्राम सभाओं का प्रमुख स्थान था. ग्राम सभा सामान्य प्रबंध के अतिरिक्त न्याय, कानून एवं दान की व्यवस्था भी देखती थी.

दक्षिण भारत के राजवंश का साहित्य व कला

दक्षिण भारत में तमिल एवं संस्कृत दोनों भाषाओं की उन्नति हुई. राजा साहित्य प्रेमी थे. राष्ट्रकूटों के समय वल्लभी और कान्हेरी विश्वविद्यालय प्रसिद्ध थे. काँची विद्या का बड़ा केंद्र था. तमिल भाषा में लिखित कम्बन रामायण दक्षिण में बहुत लोकप्रिय हैं.

जैन व बौद्ध विद्वानों ने भी अनेक ग्रंथ लिखे. दक्षिण भारत के राजाओं की मंदिर एवं मूर्तियों के निर्माण में विशेष रूचि थी. ये मंदिर आज की कला के उत्तम उदाहरण हैं,

मूर्तियाँ पत्थर या कांचे की होती थी. चालुक्य राजाओं ने हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर बनवाएं, इनमें वातापी का विरूपाक्ष मंदिर प्रसिद्ध हैं.

महाबलीपुरम का मंदिर, ऐलोरा का कैलाश मंदिर और होसबल मंदिर इसी काल में बने हैं. तंजौर वे वृहदेश्वर मंदिर में धातु की बनी नटराज की मूर्ति स्थापित हैं.

अजन्ता के भित्ति चित्र और वृहदेश्वर मंदिर के देवचित्र चित्रकला के अनुपम उदाहरण हैं. चोल शासकों द्वारा विष्णु, राम सीता आदि की सुंदर मूर्तियाँ बनवाई गई.

दक्षिण के शासकों, विशेष रूप से चोल शासकों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण में विशेष योगदान दिया.

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