बूंदी के तारागढ़ किले का इतिहास | Taragarh Fort Bundi History In Hindi

Taragarh Fort Bundi History In Hindi: राजस्थान के बूंदी शहर का इतिहास तक़रीबन आठ सौ वर्ष पुराना हैं. अरावली की वादियों में नागपहाड़ी पर स्थित बूंदी का किला अथवा तारागढ़ दुर्ग का निर्माण  राव देव हाड़ा ने चौहदवीं शताब्दी में करवाया था.

अपनी स्थापत्य कला एवं ख़ूबसूरती के कारण इस किले को स्टार फोर्ट के नाम से भी जाना जाता हैं. आज हम बूंदी के तारागढ़ का इतिहास और इसके बारे में कुछ रोचक जानकारी बता रहे हैं.

तारागढ़ किले का इतिहास | Taragarh Fort Bundi History In Hindi

बूंदी के तारागढ़ किले का इतिहास | Taragarh Fort Bundi History In Hindi

Taragarh Fort Bundi का किला 1426 फीट ऊचें पर्वत पर निर्मित हैं.  इसके नामकरण के पीछे किले की ऊँचाई ही कारण रही होगी.

जिस तरह आसमा में तारे जमीन से बहुत ऊँचे होते हैं. उसी तरह बूंदी का यह किला भी धरती से तारे की तरह ही दिखाई देता हैं. इसी कारण इसे तारागढ़ के नाम से जाना जाता हैं.

मुगल काल में निर्मित होने के उपरान्त भी इस किले में मुगल स्थापत्य कला का प्रभाव नदारद है तथा इसे राजपूती स्थापत्य शैली में बनाया गया.

किले में प्रवेश के तीन बड़े द्वार है जिनके नाम लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा और गागुड़ी का फाटक हैं. किले में प्रवेश करने पर यहाँ के सुंदर भवनों की भित्तिचित्र एवं स्थापत्य का बेजोड़ नमूने छत्रमहल, अनिरूद्ध महल,रतन महल, बादल महल और फुल महल आदि में दीखते हैं.

गर्भ गुंजन तोप को इस किले में रखा गया हैं. अब तो यह मात्र एक दर्शनीय वस्तु बनकर ही रह गई हैं. मगर एक समय यह दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए यहाँ के शासकों द्वारा उपयोग की जाती थी.

बूंदी के किले में तीन बड़े सरोवर हैं. इन्हें एक विशेष शैली का उपयोग करके बनाया गया था, तालाब का तल पथरीला रखा गया था, जिसके कारण इसमें सालभर पानी खत्म नहीं होता हैं. संकट के समय किलेवासी जल के संकट का सामना नहीं करना पड़े इसके लिए इसे विशेष तकनीक के साथ बनाया गया था.

तारागढ़ किला बूंदी का इतिहास Taragarh Fort Bundi History

तारागढ़ का किला पर्वत की ऊँची चोटी पर स्थित होने के कारण धरती से आकाश के तारे के समान दिखाई देने के कारण तारागढ़ कहलाया. गिरिदुर्ग तारागढ़ का निर्माण बरसिंह ने चौहदवीं शताब्दी में मेवाड़, मालवा व गुजरात की ओर से संभावित आक्रमणों से बूंदी की रक्षा हेतु कराया.

लगभग 1426 फीट ऊँचे पर्वत शिखर पर निर्मित यह किला पांच मील के क्षेत्र में फैला हुआ हैं. हाथी पोल, गणेश पोल तथा हजारी पोल इस किले के प्रमुख प्रवेश द्वार हैं. हाथी पोल के दोनों ओर दो हाथियों की प्रतिमाएं महाराव रतनसिंह द्वारा स्थापित कराई गयी.

वीर विनोद ग्रन्थ के अनुसार महाराणा क्षेत्रसिंह बूंदी विजय के प्रयासों में वीर गति को प्राप्त हुए थे. उनके पुत्र महाराणा लाखा काफी प्रयासों के बावजूद बूंदी के किले को अधिकार में नहीं कर सके. अतः मिटटी का नकली किला बनाकर ध्वस्त किया और अपनी प्रतिज्ञा पूरी की.

लेकिन नकली किले की रक्षा के लिए भी कुम्भा हाड़ा ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी तथा हाड़ाओं की प्रशस्ति में कही गयी इस उक्ति को चरितार्थ कर दिखाया.

बालहठ बंका देवड़ा, करतब बंका गौड़
हाड़ा बांका गाढ़ में, रणबंका राठौड़

किले के भीतर बने महल अपनी शिल्पकला और भित्ति चित्रों के कारण अद्वितीय हैं. इन महलों में छत्र महल, अनिरुद्द महल, रतन महल, बादल महल और फूल महल प्रमुख हैं.

अन्य भवनों में जीवरखा महल, दीवान इ आम, सिलहखाना, नौबतखाना, दूधा महल, अश्व शाळा आदि प्रमुख हैं. चौरासी खम्भों की छतरी, शिकार बुर्ज, फूल सागर, जैत सागर और नवल सागर जलाशय बूंदी की छटा में चार चाँद लगाते हैं.

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