पुरुषार्थ क्या है अर्थ, महत्व व प्रकार | Importance Meaning & Types Of Purushartha In Hindi

पुरुषार्थ क्या है अर्थ, महत्व व प्रकार | Importance Meaning & Types Of Purushartha In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम हिन्दू धर्म के चार पुरुषार्थों अर्थात पुरुषार्थ चतुष्टयं के बारे में जानकारी दे रहे हैं. पुरुषार्थ के जीवन में महत्व को जानेगे.

चार प्रकार के पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का क्या महत्व हैं. आज हम पुरुषार्थ का अर्थ परिभाषा मीनिंग और डेफिनिशन के विषय में जानेगे,

आज के लेख निबंध स्पीच व अनुच्छेद के माध्यम से पुरुषार्थ क्या है इसका अर्थ समझने का प्रयास करेगे.

पुरुषार्थ क्या है अर्थ, महत्व व प्रकार Purushartha In Hindi

पुरुषार्थ क्या है अर्थ, महत्व व प्रकार | Importance Meaning & Types Of Purushartha In Hindi

Meaning Of Purushartha In Hindi – पुरुषार्थ का अर्थ

पुरुषार्थ का अर्थ- प्राचीन भारतीय विचारकों ने मनुष्य के जीवन को आध्यात्मिक, भौतिक और नैतिक दृष्टि से उन्नत करने के लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता पर बल दिया था. इन विचारकों के अनुसार जीवन में सुख के दो आधार है एक भौतिक और दूसरा आध्यात्मिक.

भौतिक सुख के अंतर्गत सांसारिक आकर्षण और एश्वर्य तथा आध्यात्मिक सुख के अंतर्गत त्याग और तपस्या माने जाते थे. भौतिक सुख और अस्थिर है, जो असत्य है तथा आध्यात्मिक सुख स्थायी और परमानंद है, जो सत्य हैं.

हिन्दू शास्त्रकारों की मान्यता है कि मनुष्य के जीवन में भोग और कामना का ही नहीं, बल्कि संयम, नियम, आदर्श तथा आध्यात्मिक विचारों का भी महत्व माना गया हैं.

समस्त भौतिक सुख क्षणिक और अस्थायी हैं. सांसारिक मोह माया, भोग विलास आदि मनुष्य को सन्मार्ग पर नहीं ले जाते, बल्कि भ्रमित करते हैं. ऐसी स्थिति में मनुष्य के संयमित आचार तथा आध्यात्मिक विचार ही उसे सन्मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं.

अतः मनुष्य के जीवन का लक्ष्य भौतिक सुख न होकर आध्यात्मिक सुख होना चाहिए और उनकी कार्य पद्धतियाँ विलासपरक न होकर धर्मपरक होनी चाहिए.

मनुष्य को यह समझ लेना चाहिए कि सांसारिकता के साथ साथ आध्यात्मिकता भी है, भोग के साथ साथ योग भी है तथा कामना के साथ साधना भी हैं. इस प्रकार हिन्दू दर्शन जीवन के प्रति विविध दृष्टिकोण में समन्वय स्थापित करता हैं.

इसके अनुसार न तो मनुष्य को सर्वस्व त्याग कर देना चाहिए और न ही सांसारिक सुख भोगों में लिप्त होना चाहिए.

इस प्रकार हिन्दू दर्शन के अनुसार मानव जीवन के वास्तविक स्वरूप तथा परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भौतिक एवं आध्यात्मिक तत्वों में समन्वय करना आवश्यक हैं.

डॉ जयशंकर मिश्र लिखते है कि वस्तुतः जीवन में भौतिक सुख व आध्यात्मिक सुख दोनों का महत्व हैं. तथा दोनों का समन्वित रूप जीवन को उन्नत करता हैं. जीवन की सार्थकता इसी में हैं कि दोनों का समन्वित और संतुलित रूप ग्रहण किया जाए.

अतः भारतीय जीवन दर्शन इन दोनों प्रवृतियों का संतुलित तथा समन्वित रूप है जिसे पुरुषार्थ कहते हैं. भौतिक तथा लौकिक सुख के अंतर्गत अर्थ और काम है तथा आध्यात्मिक अथवा पारलौकिक सुख के अंतर्गत धर्म और मोक्ष हैं.

पुरुषार्थ का अर्थ अवधारणा महत्व – Purushartha Meaning In Hindi

मनुष्य का सर्वांगीण विकास पुरुषार्थ के माध्यम से होता है. पुरुषार्थ मनुष्य का वह आधार है जिसके अनुपालन से वह अपना जीवन जीता है तथा विभिन्न कर्तव्यों का पालन करता हैं.

वह भौतिक पदार्थों का भोग करने के बाद जगत की परिधि से बाहर आकर भक्ति का मार्ग अपनाता है और मुक्ति की ओर उन्मुख होता हैं.

अतः पुरुषार्थ से मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास तो होता है, साथ ही समाज का भी उत्कर्ष होता है. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों के बल पर व्यक्ति अपने समस्त कर्म करता है तथा जीवन, जगत तथा परमात्मा के प्रति अपनी कर्मनिष्ठता व्यक्त करता हैं.

पुरुषार्थ से ही मनुष्य बौद्धिक, नैतिक, शारीरिक, भौतिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष करता हैं. इस प्रकार मनुष्य लौकिक जीवन के प्रति जागरूक होते हुए पारलौकिक जीवन के प्रति भी उत्कंठित रहता हैं. भौतिक और आध्यात्मिक सम्रद्धि के मध्य का संतुलित दृष्टिकोण ही पुरुषार्थ का सही रूप हैं. पुरुषार्थ के चार उद्देश्य है जो निम्न हैं.

पुरुषार्थ के उद्देश्य (Purpose of Purushartha In Hindi)

धर्म मनुष्य को सन्मार्ग दिखाता है, धर्म के माध्यम से मनुष्य नैतिक सिद्धांतों, उत्तम प्रवृत्तियों तथा न्यायपूर्ण क्रियाओं को सही रूप में समझता हैं. और उनका अनुकरण कर सकने में समर्थ होता हैं.

अर्थ भी मनुष्य का प्रमुख उद्देश्य है. जीवन में भौतिक सुखों की पूर्ति अर्थ के उपार्जन और संग्रह से ही सम्भव हैं. सांसारिक और भौतिक सुख अर्थ पर ही निर्भर करता हैं.

इस प्रकार भारतीय विचारकों ने मनुष्य के जीवन में धनार्जन करने की प्रवृत्ति को पुरुषार्थ के अंतर्गत रखकर मानव मन की सहज आकांक्षाओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया हैं.

काम मानव की सुखद और सहज अनुभूति से सम्बद्ध है, विवाह और सन्तान की उत्पत्ति इसी के आधार पर संभव हैं. यौन भावना के साथ सौंदर्यानुभूति की तुष्टि काम के माध्यम से ही होती हैं.

परन्तु मनुष्य में कामोपभोग की भावना एक निश्चित सीमा तक ही स्वीकार किया गया हैं. काम का अतिरेक निंदनीय हैं.

मोक्ष भारतीयों के जीवन का अंतिम लक्ष्य हैं. परन्तु मोक्ष की प्राप्ति सरल और आसान नहीं है इसके लिए मन और मस्तिष्क की शुद्धि और पवित्रता अनिवार्य मानी गई हैं.

जब मनुष्य पूर्णरूपेण प्रवृत्ति तथा निवृत्ति में समन्वय स्थापित कर लेता है, तब वह समस्त बन्धनों से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता हैं.

इस दृष्टि से पुरुषार्थ मानव जीवन के सर्वांगीण विकास में सहायक होता हैं. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष से समन्वित पुरुषार्थ व्यक्ति के जीवन को गरिमापूर्ण बनाता हैं.

पुरुषार्थ का महत्व | importance of purusharthas in hindi

हिन्दू दर्शन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदर्श जीवन स्थिति के प्रतीक हैं. जीवन की इस व्यवस्था के अंतर्गत मानव जीवन के अधिकारों और उत्तरदायित्वों का महत्वपूर्ण समन्वय किया गया हैं. इस समन्वय द्वारा ही जीवन की श्रेष्ठ आदर्श स्थिति को प्राप्त किया जा सकता हैं.

मनुष्य के व्यक्तित्व का उत्कर्ष पुरुषार्थ से ही सम्भव रहा हैं. उसके जीवन के विभिन्न भागों में पुरुषार्थ का ही योगदान रहा तथा उसके संयोग से व्यक्ति आदर्श बनता रहा.

मनुष्य अपने कर्मों और कर्तव्यों का सम्पादन पुरुषार्थ के संयोग से करता है तथा इसी के माध्यम से अपने विविध उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक कर सकने में समर्थ होता हैं.

मनुष्य का सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, आर्थिक पुरुषार्थ से ही होता हैं. इसके अंतर्गत व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता हैं.

भारतीय विचारकों का यह जीवन दर्शन विश्व का अकेला और अनुपम जीवन दर्शन है जिसमें जीवन के प्रति मोह है तो योग भी हैं बंधन है मुक्ति भी, कामना है साधना भी है, आसक्ति है तो त्याग भी है.

निश्चय ही पुरुषार्थ ही योजना व्यक्ति के जीवन को व्यवस्थित और संतुलित आधार पर विकसित करने के लिए की गई थी. पुरुषार्थ अपनी संतुलित व्यवस्था में आदर्श व्यक्तित्व का जीवन का प्रतीक है.

पुरुषार्थ से मानव जीवन का संतुलित तथा सर्वांगीण विकास होता है. आश्रमों की कल्पना भी पुरुषार्थ के सिद्धांत पर आधारित हैं.

संक्षेप में पुरुषार्थ के महत्व को निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत स्पष्ट किया जा सकता हैं.

  • आदर्श व्यक्तित्व या जीवन के प्रतीक– धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ आदर्श व्यक्तित्व या जीवन का प्रतीक हैं.
  • मानव जीवन के संतुलित या सर्वांगीण विकास में सहायक– मानव जीवन के संतुलित तथा सर्वांगीण विकास में पुरुषार्थ सहायक हैं.
  • धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों के लिए प्रेरित करना– पुरुषार्थ इस बात के लिए बाध्य करते हैं कि मनुष्य को धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों को अर्थ और काम के साथ पूरा करना चाहिए.
  • पुरुषार्थों पर ही आश्रमों की कल्पना का आधारित होना– आश्रमों की कल्पना भी इसी सिद्धांत पर आधारित हैं.
  • अर्थ और काम का डटकर मुकाबला करने की प्रेरणा देना– पुरुषार्थ व्यक्ति को अर्थ और काम का डटकर मुकाबला करने, कर्तव्यों का पालन करने तथा जीवन के उच्चतम आदर्शों को प्राप्त करने के लिए संदेश देते हैं.
  • विभिन्न कर्मों और कर्तव्यों का सम्पादन करने में सक्षम बनाना– मनुष्य अपने विभिन्न कर्मों और कर्तव्यों का सम्पादन पुरुषार्थ के ही संयोग से करता है तथा इसी के माध्यम से अपने विविध उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक कर सकने में समर्थ होता हैं.
  • मानसिक संतोषकारी- डॉ प्रभु के अनुसार पुरुषार्थ मानसिक संतोष प्रदान करता हैं. व्यक्ति धर्म, अर्थ काम की पूर्ति के द्वारा मानसिक संतुष्टि प्राप्त कर मोक्ष प्राप्ति की ओर बढ़ता रहता हैं.

पुरुषार्थ के प्रकार | Types Of Purushartha In Hindi

पुरुषार्थ के चार प्रकार बताएं गये है ये है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. इनका विस्तृत विवेचन इस प्रकार हैं.

धर्म– धर्म पुरुषार्थ का महत्वपूर्ण प्रकार हैं. धर्म व्यक्ति का मार्ग दर्शन करता हैं, वह व्यक्ति को विवेक और तर्क बुद्धि प्रदान करता हैं.

धर्म वही है जिसे धारण किया जा सके, जिसके अनुकूल आचरण किया जा सके. पुरुषार्थ के रूप में धर्म के सामाजिक पक्ष पर जोर दिया गया हैं.

इसके सामाजिक पक्ष के अंतर्गत धर्म का तात्पर्य उन सभी कर्तव्यों के पालन से हैं जो व्यक्ति के साथ साथ समाज की प्रगति में भी योग देते हैं,

धर्म का तात्पर्य सामान्य धर्म एवं स्वधर्म दोनों के पालन से हैं. यह एक ऐसा पुरुषार्थ है जो व्यक्ति को इस जीवन और पारलौकिक जीवन में सुंदर समन्वय स्थापित करने की ओर बढ़ाता हैं.

वह काम और अर्थ पुरुषार्थ को संयमित तथा नियंत्रित कर मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने के कर्म की ओर निर्देशित करता हैं. इस प्रकार धर्म का अर्थ कर्तव्यपालन से हैं.

ऐसे सभी कर्तव्य जिनके पालन से उस व्यक्ति के स्वयं के व्यक्तित्व के विकास के साथ साथ समाज की प्रगति भी होती हैं, धर्म के अंतर्गत आते हैं.

यथा स्वयं के वर्ण धर्म का पालन, पंच महायज्ञों का पालन तथा माता पिता, देवी देवता, ऋषि मुनियों, अतिथियों और प्राणिमात्र के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करना.

अर्थ- मनुष्य के शरीर के लिए भोजन, वस्त्र तथा अनेक अन्य भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती हैं. जिनकी पूर्ति के लिए व्यक्ति अर्थ का उपार्जन करता हैं. इस हेतु वह जो कुछ प्रयत्न करता है, वही अर्थरुपी पुरुषार्थ हैं.

अर्थ को भारतीय जीवन दर्शन में बहुत महत्व दिया गया हैं. यह मोक्ष प्राप्ति की साधन है इसके द्वारा ही व्यक्ति अनेक सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करता हैं.

वैदिक साहित्य के आधार पर गोखले ने स्पष्ट किया है कि अर्थ के अंतर्गत वे सभी भौतिक वस्तुएं आ जाती है जो परिवार बसाने, गृहस्थी चलाने एवं विभिन्न धार्मिक दायित्वों को निभाने के लिए आवश्यक हैं.

महाभारत, कौटिल्य के अर्थशास्त्र, पंचतन्त्र, स्मृतियों के सभी ग्रंथों में अर्थ के महत्व को स्वीकार किया गया हैं. स्मृतियों में तो यहाँ तक कहा गया है कि जो व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में अर्थ के पुरुषार्थ को प्राप्त किये बिना वानप्रस्थ या सन्यास आश्रम में प्रवेश करता है, उसे जीवन में मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि अर्थ प्राणी की रक्षा करता है.

उसे जीवन शक्ति और गति प्रदान करता है, जिससे प्राणी आगे चलकर पुनः जीव को जन्म देता हैं. इस प्रकार सृष्टि व समाज की निरन्तरता बनी रहती हैं. लेकिन अर्थ अपार शक्ति का स्वामी और अनियंत्रित होता है, अतः उसे संयमित और नियंत्रित करना आवश्यक हैं.

यह कार्य धर्म करता है. वह उचित अनुचित कार्य का भेद बताकर उचित कार्य करने का निर्देश देता है क्योंकि उचित कार्यों से कमाया हुआ धन ही सुख और संतोष में वृद्धि करता हैं.

मोक्ष प्राप्ति के लिए व्यक्ति क उचित तरीके से अर्थ की प्राप्ति करना आवश्यक हैं. गृहस्थाश्रम में ही अर्थ अर्जन पर जोर दिया गया हैं और शेष तीन आश्रमों में व्यक्ति को अर्थ से पृथक रहने को कहा गया हैं.

काम– हिन्दू विचारकों ने काम को भी पुरुषार्थ का एक रूप माना हैं. काम का तात्पर्य सभी प्रकार की इच्छाओं व कामनाओं से हैं. संकुचित अर्थ में काम का तात्पर्य यौनिक प्रवृत्ति की संतुष्टि से है और व्यापक अर्थ में काम के अंतर्गत मानव की सभी प्रवृतियाँ, इच्छाएं, कामनाएं आ जाती हैं.

डॉ कापड़िया के अनुसार काम मानव के सहज स्वभाव एवं भावुक जीवन को व्यक्त करता है तथा उसकी काम भावना और सौन्दर्यप्रियता की वृद्धि की संतुष्टि की ओर संकेत करता हैं.

कापड़िया के कथन के दो पक्ष हैं. एक पक्ष मानव की यौन संबंधी जीवन को व्यक्त करता है और दूसरा पक्ष उसके सौन्दर्यात्मक या भावुक जीवन को व्यक्त करता हैं.

जीवन के अस्तित्व के लिए काम आवश्यक है. उसकी यौन सम्बन्धी इच्छा स्वाभाविक हैं क्योंकि यह उसकी मूल प्रवृत्ति के अंतर्गत आती है. परन्तु यौन सुख ही सब कुछ नहीं.

यौन सम्बन्धों के पीछे उत्तम संतानों के जन्म की प्रक्रिया है. लेकिन इसका अनियंत्रित उपयोग व्यक्ति को सर्वनाश की ओर ले जाता हैं.

धर्म के माध्यम से बुद्धि काम के उपभोग को दिशा प्रदान करती हैं. उसे संयमित और मर्यादित करती है जिससे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके.

काम सौन्दर्य और स्रजन की वृत्ति का बोधक हैं. व्यक्तित्व संतुलित विकास के लिए जीवन की संतुष्टि आवश्यक हैं. समाज और सृष्टि की निरन्तरता के लिए काम आवश्यक हैं.

मोक्ष– मोक्ष सर्वोच्च पुरुषार्थ है, यह साध्य है और धर्म, अर्थ और काम इसके साधन हैं. काम और अर्थ का संबंध जीव के बाह्य लौकिक परिवेश से हैं.

इनसें भी काम का संबध जीव से है और अर्थ का जीव और जगत दोनों से हैं. इसलिए अर्थ काम से श्रेष्ठ है, अर्थ के अभाव में काम रुपी शक्ति कुंठित हो जाती हैं.

धर्म का संबध जीव एवं जगत के साथ साथ पारलौकिक तत्वों से भी हैं. इसलिए धर्म, काम और अर्थ दोनों से श्रेष्ठ हैं.

धर्म के अभाव में अर्थ और काम दोनों अनियंत्रित एवं अमर्यादित होकर दिशाहीन हो जाते हैं, जो विनाश की ओर ले जाते हैं. धर्म इनको मर्यादित कर व्यक्ति को जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष की ओर बढ़ाता हैं.

मोक्ष सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह जैविक, लौकिक और पारलौकिक आधारों से परे है, यह आत्मा की अमरता है. इसको प्राप्त कर व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्ति पाता हैं.

इस प्रकार आत्मा का परमात्मा में विलीन होना, जन्म मरण की प्रक्रिया से मुक्ति पाना, ह्रदय की अज्ञानता का समाप्त होना जिसे तत्व ज्ञान की प्राप्ति भी कहा जाता है, आदि लक्षण मोक्ष के हैं.

मोक्ष प्राप्ति के साधन– मोक्ष प्राप्ति के तीन प्रकार के साधन बताए गये हैं.

  • कर्म मार्ग- जो व्यक्ति अपने स्वधर्म का ठीक प्रकार से पालन और धर्मानुकुल आचरण करता है, वही मोक्ष प्राप्त करता हैं.
  • ज्ञान मार्ग– मनुस्मृति में कहा गया है कि व्यक्ति आत्म ज्ञान के द्वारा ही जन्म मरण के बन्धनों से मुक्त होता है और मोक्ष का अधिकारी बनता हैं.
  • भक्ति मार्ग– इसके अंतर्गत व्यक्ति ईश्वर की सगुण उपासना करता हैं और ईश्वर के प्रति अपने को समर्पित कर देता हैं. इस प्रकार वह प्रेम और भक्ति के द्वारा ईश्वर को पाने का प्रयत्न करता हैं.

FAQ

मनुष्य के लिए वेदों में कितने पुरुषार्थ बताए गये हैं?

चार (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष)

पुरुषार्थ का सरल शब्दों में अर्थ क्या हैं?

मनुष्य का लक्ष्य या उद्देश्य

पुरुषार्थ किन दो शब्दों से मिलकर बना हैं?

पुरुष और अर्थ

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One comment

  1. Sadhuvad apko ye char purusharth hi sanatan dharm ki niu hai ye samajme mere nahi arahe the lekin bhagwan ne rasta dikhaya ho dharmik hota hai vahi dukhi hota hai dharm shlok prarthana Puja inse bhi mahatwa rakhta hai ye purushart kaha karna hai nahi to dharmik adami bhi suside ki sochta hai

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