उषा प्रियंवदा का जीवन परिचय | Usha Priyamvada biography in Hindi

Usha Priyamvada biography in Hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम उषा प्रियंवदा का जीवन परिचय पढ़ेगे. हिंदी साहित्य की आधुनिक महिला कथाकारों में इनका नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं.

आधुनिक जीवन की ऊब, छटपटाहट, संत्रास और अकेलेपन की स्थिति को उषा जी ने अपनी कलम से सजीव प्रस्तुती प्रदान की हैं. आपकों पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्य नारा-यण पुरस्कार सम्मान प्राप्त हो चुके हैं.

इस बायोग्राफी में हम उषा प्रियंवदा की जीवनी, इतिहास व रचनाओं को विस्तार से जानेंगे.

उषा प्रियंवदा का जीवन परिचय | Usha Priyamvada biography in Hindi

Usha Priyamvada biography in Hindi
पूरा नामउषा प्रियंवदा
जन्म24 दिसंबर, 1930
जन्म स्थानकानपुर
पहचानउपन्यासकार, कहानीकार
सम्मान2007 में केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा पद्मभूषण
यादगार कृतियाँ‘ज़िंदगी और गुलाब के फूल’, ‘एक कोई दूसरा’, ‘पचपन खंभे’, ‘लाल दीवारें’ आदि‘पहला पाठ’, ‘भटकती राख’

उषा प्रियंवदा का जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी

२४ दिसम्बर १९३० को कानपुर में इनका जन्म हुआ था. लम्बे समय तक अमेरिका में प्रवास बिताया, वर्तमान में स्वतंत्र लेखन कार्य कर रही हैं.

उषा प्रियंवदा ने अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त करने के बाद श्रीराम कॉलेज दिल्ली, इलाहबाद विश्वविद्यालय विस्कां सिन विश्वविद्यालय, मैडिसन में दक्षिण एशियाई विभाग में भी अध्यापन के कार्य से जुड़ी रही.

नई कहानी के आंदोलन के साथ उभर कर आने वाली उषा प्रियंवदा महिला कथाकारों में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं. उषा जी इलाहबाद से सम्बद्ध रही हैं. वही से इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम ए की परीक्षा उतीर्ण की.

वे वही कुछ समय के लिए अंग्रेजी की प्राध्यापिका रही. फिर अमेरिका चली गई. वहां इंडियाना विश्वविद्यालय में आधुनिक अमेरिकी साहित्य पर अनुसंधान किया. उषा प्रियंवदा लम्बे समय तक विस्कांसिन विश्वविद्यालय में हिंदी का अध्यापन कार्य करती रही.

कहानी संग्रह

  • ‘ज़िंदगी और गुलाब के फूल’
  • ‘एक कोई दूसरा’
  • ‘मेरी प्रिय कहानियां’
  • वनवास
  • कितना बड़ा झूठ
  • शून्य
  • संपूर्ण कहानियां

उपन्यास

  • ‘पचपन खंभे’
  • ‘लाल दीवारें’
  • ‘रुकोगी नहीं राधिका’
  • ‘शेष यात्रा’
  • ‘अंतर्वंशी’

उषा प्रियंवदा की प्रमुख कहानियाँ व उपन्यास

उषा प्रियंवदा नई कथाकार में अग्रणी हैं. उन्होंने दर्जनों कहानियाँ लिखी हैं. इनके तीन कहानी संग्रहों में जिन्दगी और गुलाब के फूल एक कोई दूसरा तथा कितना बड़ा झूठ उपलब्ध हैं. ये संग्रह वस्तु और शिल्प दोनों दृष्टियों से श्रेष्ठ हैं. उनकी कहानियों में वापसी, मछलियाँ और प्रतिध्वनि उल्लेखनीय हैं.

उषा प्रियंवदा की कहानियों का मूल कथ्य और विशेषताएं

उषाजी की समस्त कहानियाँ मध्यमवर्गीय जीवन के सुख दुःख, आशा, निराशा एवं जीवन संघर्ष पर आधारित हैं. स्त्रियों की दशा को लेकर नई पुरानी पीढ़ी के टकराव का चित्रण किया हैं. होस्टल में पढ़ने वाली छात्रा, नौकरी पेशा अकेली रहने वाली औरत, विदेश जाने वाली स्त्री के संत्रास का चित्रण इन्होने बखूबी किया हैं.

राजेन्द्र यादव के अनुसार वापसी कहानी हमारे समाज के टूटन की कहानी हैं. जिसमें युवा वर्ग अपने ही बुजुर्गों को अवमानना की जिन्दगी बिताने के लिए मजबूर करता हैं. आपकी कहानियों में मुख्यतः मध्यमवर्गीय व्यक्तिवादी चेतना व्यंजित हुई हैं.

उषाजी की कहानियाँ भारतीय नारी की असहायता एवं मजबूरियों को उजागर करती हैं. नारी होने के नाते वे नारी की पीड़ा को समझती भी है और उसे सशक्त कथानक व भाषा शैली में व्यक्त करने में भी सक्षम हैं.

इनकी कहानियाँ की तीन प्रमुख विशेषताएं हैं. भारतीय नारी के आदर्शस्वरूप की स्थापना, उसकी स्त्रियोचित इर्ष्या का वर्णन एवं नारी की दयनीय स्थिति का चित्रण. नारी के 

स्वभावगत गुण विनम्रता, दया एवं समर्पण की भावना को बड़ी तीव्रता के साथ अभिव्यंजित किया हैं. वह किसी का हो जाने में गर्वित अनुभव करती हैं. पश्चिमी नारी की भांति पुरुष बनाना और बदलना उसकी फिदरत में नहीं हैं. मछलियाँ एवं प्रतिध्वनि ऐसी ही कहानियाँ हैं.

उषा प्रियंवदा की कहानी कला

उषा प्रियंवदा नई कथाकारों की पंक्ति में अग्रगण्य हैं. स्त्री लेखन को समृद्ध और नई ऊँचाइयाँ प्रदान करने में इनका विशेष योगदान हैं. इनका सम्बन्ध इलाहबाद से रहा हैं.

उच्च  मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी उषाजी ने इलाहबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम ए किया और वहीँ अध्यापन कार्य भी किया.

अमेरिका जाकर अनुसंधान कार्य किया एवं विस्कांसिन विश्वविद्यालय में हिंदी शिक्षण का कार्य भी किया. वहां से लौटकर शेष समय दिल्ली में व्यतीत किया.

उषा प्रियंवदा का अधिकांश लेखन नारी विमर्श पर आधारित हैं. उन्होंने भारतीय नारी की असहाय स्थिति एवं मूक सहनशीलता का चित्रण बखूबी किया हैं. साथ ही मध्यमवर्गीय परिवार की समस्याओं, विघटनकारी स्थिति एवं बुजुर्गों की उपेक्षा का चित्रण भी सटीक भाषा में किया हैं.

भारतीय परिवारों में नारी आदर्शरूपा रही हैं. वह अपने त्याग, प्रेम एवं  समर्पण द्वारा परिवार के सदस्यों के लिए अपना सुख भूल जाती हैं. उसका पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम व समर्पण अतुलनीय हैं.

मछलियाँ कहानी की विजी कहती हैं. नटराजन मुनिष् कहा करता था कि प्यार चुक जाता है, भावनाएं मर जाती हैं. अक्सर मैं सोचती हूँ कि मुझमें ऐसा क्यों नहीं होता हैं. मैं क्यों निर्मम कठोर क्यों नहीं हो पाती. इस कथन में नारी की समर्पण भावना व्यक्त हुई हैं.

पुरुष प्रधान समाज में नारी सामाजिक उपेक्षा और तिरस्कार का कष्ट भोगती रही हैं. इसी कारण पुरुष वर्ग के शोषण का शिकार हुई हैं. वह पुरुष ही नहीं नारी के हाथों भी शोषित हो रही हैं.

मछलियाँ कहानी में ही विजी कहती है कि बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती हैं. उसकी सहेली मुकी उसके प्रेम को छीन लेती हैं. इसी कारण उसमें स्त्रियोचित इर्ष्या का भाव उदित हुआ हैं. वह भारत लौट आती हैं.

उषा प्रियंवदा की कहानियों में पुरुष के लम्पट स्वभाव का चित्रण भी हो गया हैं. पुरुष नारी के निश्छल स्वभाव को समझ नहीं पाता. मुकी नटराजन से अंत में इसलिए विवाह नहीं करती, क्योंकि उसका आकर्षण विजी की तरफ भी था.

उषाजी की कहानियाँ भावमूलक हैं. कहानी का प्रत्येक पात्र भावुक हैं. यदपि इनकी कहानियों में आर्थिक विषमता का भी चित्रण हुआ हैं, किन्तु पात्र भावात्मक धरातल पर ही जीते हैं.

उषा प्रियंवदा की उपलब्धियाँ

विदेश में रहकर हिंदी भाषा तथा साहित्य में अहम योगदान देने वाले साहित्यकारों में उषा जी भी एक हैं. अपना जीवन साहित्य के प्रति पूर्ण समपर्ण कर देने वाली इन हिंदी सेविका को मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चूका हैं.

इन्होने कथा साहित्य में खोते हुए भारतीय मूल्यों को पुनः स्थापित कर पारिवारिक विघटन को रोकने के लिए आव्हान किया हैं. इन्होने आज के जीवन की मुख्य समस्याएं जैसे ऊब, छटपटाहट, संत्रास और अकेलेपन को पहचाना तथा सटीक चित्रण भी किया,

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