गांधीवाद विचारधारा क्या है अर्थ स्रोत राजनीतिक आर्थिक विचार | What Is Gandhism In Hindi

गांधीवाद विचारधारा क्या है अर्थ स्रोत राजनीतिक आर्थिक विचार What Is Gandhism In Hindi : महात्मा गांधी उस युग पुरुष का नाम है जिनके नाम से गांधीवाद का युग चल चुका हैं.

गांधीजी के जीवन के आदर्शों को कुल मिलाकर गान्धिज्म अर्थात गांधीवाद ही हैं. आज के लेख में जानेगे कि गांधीवाद क्या है गांधीवाद का अर्थ गांधीवाद की परिभाषा निबंध देन मूल्यांकन के बारे में चर्चा करेगे.

गांधीवाद विचारधारा क्या है – What Is Gandhism In Hindi

गांधीवाद विचारधारा क्या है अर्थ स्रोत राजनीतिक आर्थिक विचार | What Is Gandhism In Hindi

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What Is Gandhism In Hindi (गांधीवाद क्या है)

गांधीजी के विचारों और आदर्शों का ही दूसरा नाम गांधीवाद हैं. वर्तमान में गांधीजी के इन्ही विचारों तथा आदर्शों को गांधी दर्शन गांधी मार्ग गांधीवादी राजनीतिक दर्शन तथा गांधीवाद इत्यादि नामों से जाना जाता है.

इन विचारों तथा आदर्शों को भिन्न भिन्न नाम इसलिए दिए गये हैं कि गांधी स्वयं किसी वाद सम्प्रदाय या सिद्धांत में विश्वास नहीं करते थे. और न ही अपने पीछे किसी प्रकार का वाद छोड़ना चाहते थे.

उनका तरीका प्रयोगात्मक अनुभववादी तथा वैज्ञानिक था. गांधीजी कार्य में विश्वास करते थे, वह कर्मयोगी थे. यदि इन विचारों को सिद्धांत कहा जाए तो उचित रहेगा.

गांधी व उनके मूल्य (Gandhi And His Human Values)

गांधी सत्य, अहिंसा, प्रेम, भ्रातृत्व आदि के पुजारी थे. इनकी व्याख्या कर वह व्यक्ति को उसकी विकृति प्रवृत्तियों से हटाना चाहते थे.

वे राजनीति को पवित्र करना चाहते थे ताकि उसे धर्म और न्याय पर आधारित करना चाहते थे. गांधी व्यक्ति में प्रेम और स्वतंत्रता का संचार करना चाहते थे.

व्यक्ति को पुरुषार्थ का महत्व समझाना चाहते थे. इस प्रकार गांधीवाद जीवन शैली या जीवन दर्शन से सम्बन्धित हैं. किसी सिद्धांत से नही.

बी पी सीतारमैया के शब्दों में गांधीवाद सिद्धांतों मतों का, नियमों का और आदर्शों का समूह नहीं हैं. वह जीवन शैली या जीवन दर्शन है.

यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है तथा मनुष्य के जीवन तथा समस्याओं के लिए प्राचीन समाधान प्रस्तुत करता हैं. गांधीवाद एक ऐसा दर्शन है जो सबके कल्याण की बात करता हैं.

हिंसक शस्त्रों के स्थान पर अहिंसक साधनों को अधिक श्रेष्ठ मानता हैं. शत्रुता के स्थान पर मित्रता और घ्रणा के स्थान पर प्रेम सिखाता हैं.

इसमें कार्य की प्रेरणा का स्रोत सत्य धर्म और ईश्वर हैं. इसमें छल कपट, स्वार्थ, क्रूरता, हिंसा, द्वेष इत्यादि विकृत प्रवृत्तियों का स्थान नहीं. गांधीवाद साध्य व साधन की पवित्रता पर बल देता हैं.

गांधीवाद विचारों का एक समूह मात्र (Gandhism A Pool Of Ideas)

गांधीजी ने जीवन की भिन्न भिन्न समस्याओं पर परिस्थितिजन्य विचार व्यक्त किये हैं. उनका नाम किसी एक विचार से सम्बन्धित नहीं किया जा सकता हैं. गांधीजी के आदर्शों के जो आधार थे सत्य अहिंसा, प्रेम, भ्रातृत्व.

वे किसी व्यक्ति, देश या समय के लिए नहीं थे बल्कि वे मानवता के लिए और सार्वदेशिक तथा सार्वभौमिक हैं. गांधीजी ने इस सन्दर्भ में एक बार कहा था कि गांधी मर सकता है परन्तु सत्य, अहिंसा सर्वदा जीवित रहेगे.

गांधीजी एक सिद्धांत या पद्धति से चिपके नहीं रहते थे. आवश्यकता पड़ने पर परिवर्तन में विश्वास रखते थे. गांधीजी विचारशील होने के साथ साथ आचारवान व्यक्ति थे.

जिस विचार को वह आचार में नहीं ला सकते थे उसे वह बहुत गौण समझते थे. वह ऐसे व्यक्ति थे जो ईश्वर पर अटल विश्वास रखते हुए और अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए अपने कार्यों को विश्वास के आधार पर करते थे.

गांधीजी के विचार व्यापक, बहुमार्गी और बहुआयामी थे. वह जहाँ एक ओर व्यक्तिवादी व्यवहारिक आदर्शवादी समाजवादी उदारवादी अनुदारवादी, राष्ट्रवादी अंतराष्ट्रीयवादी तथा सर्वोदयवादी थे. वह ये सब और इन सबसे भी अधिक मानवतावादी थे. गांधीजी समूहवादी विचारक थे.

उनके विचारों में भारतीय व पाश्चात्य दोनों श्रेणी के विचारकों के विचार का प्रभाव दिखाई देता हैं. वह महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, सुकरात, थोरो, क्रोपोटकिन एवं रस्किन के विचारों से प्रभावित थे. उनके विचारों में भगवत गीता व उपनिषदों का प्रभाव स्पष्ट झलकता हैं.

वर्तमान में गांधीवाद की प्रांसगिकता महत्व

गांधीजी का पूरा जीवन दर्शन अध्यात्म पर आधारित था. उन्होंने पूंजी की अपेक्षा धर्म पर कहीं अधिक बल दिया. उनहोंने पूंजी की अपेक्षा धर्म पर कहीं अधिक बल दिया. गांधीजी ने मार्क्स की इतिहास की भौतिकतावादी या आर्थिक व्याख्या को भी नकार दिया हैं.

क्योंकि वह हिंसा पर आधारित होने के कारण अस्वीकार कर दिया. वह मार्क्स के वर्ग संघर्ष संबंधी विचारों से सहमत नहीं थे. उसके स्थान पर वह वर्ग समन्वय व वर्ग सामजस्य जैसी समाज को बांधकर रखने वाली विचारधारा के पक्षधर थे.

हरिजन सेवक में 20.03.1937 को उन्होंने स्वयं लिखा है कि मनुष्य मनुष्य के बीच असमानता का उंच नीचापन का विचार बुरा हैं. पर इस बुराई को मैं मनुष्य के ह्रदय से तलवार के बल नहीं निकालना चाहता. गांधीजी ने आध्यात्मिकता से आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में प्रगति का विचार रखा.

वह आध्यात्मिक समाजवाद के प्रतिपादक थे. इसलिए उन्होंने इतिहास की आध्यात्मिक व्याख्या की थी. उन्होंने केवल भौतिक कार्यकलापों या भौतिकवाद को सभ्यता व संस्कृति का वाहक नहीं माना. उन्होंने गहन आंतरिक विकास पर बल दिया.

गांधीजी की धारणा है कि मानवजाति की ऊर्जा के प्रमुख स्रोत सत्य अहिंसा और प्रेम हैं. गांधीजी ने मार्क्स के समाजवाद और वर्ग संघर्ष के सिद्धांत के विपरीत वर्ग सहयोग व आध्यात्मिक समाजवाद की वकालत की. गांधीजी का समाजवाद नैतिकता, हिंदुत्व, ग्राम्य, मानवतावादी और प्रजातंत्र पर खड़ा था.

जिसे केवल राजनीतिक सत्ता प्राप्त कर, कत्ल या रक्तपात से स्थापित नहीं किया जा सकता. सच्चा समाजवाद अनुग्रह, सद्भावना और प्रेम पर आधारित होता हैं.

जहाँ पर निरपेक्ष प्रभुता व सत्ता के विरोधी थे. वहां गाँव रुपी संघों के समन्वय स्थापित करने तथा व्यवस्था के लिए राज्य को आवश्यक समझते थे.

वे राजनीतिक और आर्थिक विकेन्द्रीकरण में विशवास करते थे. दूसरी ओर सर्वोदय के लिए यदि आवश्यक हो तो औद्योगीकरण और राष्ट्रीयकरण से भी नहीं हिचकिचाते थे. वह कार्ल मार्क्स के राज्य विहीन वर्ग विहीन समाज के समर्थक थे.

वही दूसरी ओर मार्क्स इतिहास की भौतिक व्याख्या वर्ग संघर्ष और हिंसा के प्रयोग के घोर विरोधी थे. वे केवल कार्यो में बल्कि विचारों और भावनाओं में भी हिंसा को स्वीकार नहीं करते थे. गांधीजी उदारवादी और नैतिकतावादी भी थे. 

वह जीवन में अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य को महत्व देते थे. उनके लिए जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से अधिक उपभोग करता हैं. वह गरीबों का शोषण करता हैं तथा उन पर अन्याय करता हैं.

गांधीजी ने अपने विचारों की व्याख्या अपनी रचनाओं विशेषकर हिंद स्वराज्य, आत्मकथा और पत्रिकाओं में विशेषकर हरिजन, यंग इंडिया, इंडियन ओपीनियन, नवजीवन, आर्यन पथ और अनेक भाषणों में की हैं. बाद में चिंतकों ने इन्ही का संग्रह करके इसे गांधीवाद के नाम से सामने रखा.

गांधीवाद के स्रोत (Sources Of Gandhism In Hindi)

गांधीजी के विचारों पर चार प्रभाव नजर आते हैं. धार्मिक ग्रंथों का प्रभाव, दर्शन का प्रभाव, सुधारवादी आंदोलनों का प्रभाव और सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव.

धार्मिक ग्रंथों का प्रभाव-

सनातन धर्म ग्रंथों का प्रभाव- गांधीजी पूर्ण धार्मिकव्यक्ति थे, आध्यात्म उनका प्रिय विषय था. इसी कारण उनके विचार, भावनाएं तथा कार्य धार्मिक भावनाओं से ओत प्रेत थे. 

उनमें इन धार्मिक भावनाओं का विकास पूर्व व पश्चिम के ग्रंथों के अध्ययन से हुआ. पातंजली योग सूत्र का अध्ययन तो उन्होंने सन 1903 में अफ्रीका के जोहान्सबर्ग जेल में ही कर लिया था.

उपनिषदों का उन्होंने गहरा अध्ययन किया था. अपरिग्रह तथा त्याग जैसे व्रतों को उन्होंने उपनिषदों से प्राप्त किया. वेदों तथा रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य का प्रभाव भी उन पर अत्यधिक था. गांधीजी रामायण को भक्ति मार्ग का सर्वोत्तम ग्रंथ मानते थे.

भगवत गीता के तो गांधीजी भक्त ही थे. यह पुस्तक उनकी पथ प्रदर्शक आध्यात्मिक निर्देशक तथा आध्यात्मिक माता ही थी. यह उनका धार्मिक कोश थी. यह उन्हें अँधेरे में उजाला, संदेह में विश्वास, हतोत्साह में आशा की किरण दिखाती थी.

गांधीजी ने जो कर्म पर बल दिया वह गीता की देन हैं. गीता का यह वाक्य कि कर्म करो फल की चिंता मत करो, उनके जीवन की क्रियाओं का आधार बन गया.

  • जैन और बौद्ध धर्म का प्रभाव गांधीजी के अहिंसा नामी पथ प्रदर्शन से स्पष्ट हो जाता हैं. यह जैन साधु बेचरजी थे. जिन्होंने गांधीजी से इंग्लैंड जाते समय तीन प्रतिज्ञाएं ली कि वह कभी मदिरा, पराई स्त्री और मॉस को नहीं छुएगे.
  • बाईबिल का प्रभाव तो इतना प्रत्यक्ष था कि उसने गांधीजी के ह्रदय में तत्काल स्थान प्राप्त कर लिया. बुराई को भलाई से, शत्रुता को मित्रता से, हिंसा को अहिंसा से, बद्दुआ को दुआ से, घ्रणा को प्रेम से, अत्याचार को प्रार्थना से, जीतने का मार्ग गांधीजी ने इस धर्मग्रंथ से सीखा.

गांधीजी पर चीनी विचारक लाओ त्से और कन्फ्यूशियस की विचारधाराओं का भी प्रभाव पड़ा. नम्रता, अच्छाई, शुद्धता और न अड़ने के विचार गांधीजी ने इन्ही की विचारधाराओं से प्राप्त किये. इस्लाम की शांतिवादी शिक्षाओं का प्रभाव भी गांधीजी पर पड़ा.

जिस प्रकार हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म को गांधीजी शान्ति के धर्म मानते थे उसी प्रकार इस्लाम धर्म को भी गांधीजी शाति का धर्म मानते थे.

इन धार्मिक ग्रंथों के प्रभाव के कारण ही गांधीजी ने अपने जीवन में निम्न विचारों को अपनाया- सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्वाद, अस्तेय, अपरिग्रह, अभय, अस्पर्शयता निवारण, शारीरिक श्रम, सर्वधर्म, समभाव, स्वदेशी.

धार्मिक ग्रंथों का गांधीजी के जीवन और विचारों पर अत्यधिक प्रभाव होते हुए भी उन पर अन्धविश्वास नहीं करते थे बल्कि जो धार्मिक तथ्य उनकी तर्क बुद्धि पर खरे उतरते थे उन्हें ही स्वीकार करते थे. गांधीजी के शब्दों में धार्मिक पुस्तक की किसी बात को मैं तर्क बुद्धि से अधिक महत्व नहीं देता.

  • दार्शनिकों का प्रभाव– गांधीजी के विचारों पर अनेक दार्शनिकों का प्रभाव था. जिनमें से प्रमुख है जॉन रस्किन, हेनरी डेविड थ्योरो, लियो टोलस्टाय व सुकरात.
  • सुधारवादी आंदोलनों का प्रभाव– भारत में चल रहे सांस्कृतिक, दार्शनिक एवं धार्मिक सुधारवादी आंदोलनों का प्रभाव भी गांधीजी पर पड़ा. राम कृष्ण और विवेकानन्द का प्रभाव तो विशेषकर उन पर था. स्वदेश प्रेम और स्वदेशी की भावना तो गांधीजी ने इन्ही से सीखी.
  • सामाजिक आर्थिक परिस्थतियों का प्रभाव- भारतीयों की असहाय अवस्था और गरीबी का प्रभाव गांधीजी के विचारों पर पड़ा जो उनके समाजवादी विचारों का आधार था.

दक्षिण अफ्रीका गांधीजी के प्रयोगों की प्रयोगशाला (South Africa As A Laboratory Of Gandhi’s Experiments)

दक्षिण अफ्रीका गांधीजी के प्रयोग की प्रयोगशाला थी. वहीँ पर उनकी धार्मिक चेतना का विकास हुआ, वहीँ पर उन्होंने पश्चिम के लेखकों की विचारधारा का अध्ययन किया. वही पर उनके राजनीतिक दर्शन सत्याग्रह का विकास श्वेत जातिवाद के प्रतिरोध में हुआ.

तथा उसके प्रारम्भिक प्रयोग भी किये. वही पर उनमें निस्वार्थ मानव सेवा की भावना पैदा हुई तथा अपने समाज के प्रति कर्तव्यों की अनुभूति हुई. वहीँ पर उनके प्रमुख राष्ट्रवादी विचार बने तथा श्रमिकों के कार्य के महत्व को भी उन्होंने वही समझा.

राजनीति का आध्यात्मीकरण (Spiritualisation Of Politics)

गांधीजी के लिए धर्म और राजनीति एक ही कार्य के दो नाम हैं. उनका विश्वास है कि राजनीति का उद्देश्य धर्म के उद्देश्य की तरह उन सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन लाना हैं. जो अन्याय, अत्याचार तथा शोषण पर आधारित हैं. तथा समाज में न्याय तथा न्यायपरायणता की व्यवस्था करना हैं.

मानव का प्रत्येक कार्य आदर्श न्याय से सम्बन्धित हैं. इस लिए मानवीय कृति का कोई भी पहलू दोनों के क्षेत्र के बाहर नही.

इसके अतिरिक्त सच्चा धर्म और सच्ची राजनीति का सम्बन्ध मुख्य रूप से मानव जीवन और मानव क्रियाओं से हैं क्योंकि मानव क्रियाओं से पृथक कोई धर्म नहीं हैं. गांधीजी के लिए इन दोनों का आधार भी सामान्य हैं जो नैतिकता के सामान्य मूल्यों द्वारा निर्धारित होता हैं.

साध्य और साधनों की पवित्रता (Purity Of Means & Ends)

गांधीजी के विचारों की यह विशेषता है कि इनमें साध्य और साधन में कोई भिन्नता नहीं हैं. वह कहा करते थे मेरे जीवन दर्शन में साधन और साध्य संपरिवर्तनीय शब्द हैं.

न केवल साध्य ही नैतिक, पवित्र, शुद्ध और उच्च होने चाहिए बल्कि साधन भी उसी मात्रा में नैतिक, पवित्र और शुद्ध होने चाहिए.

वह दोनों को अविभाज्य समझते थे. उनके लिए साधन एक बीज की तरह हैं. और साध्य एक पेड़ साधन और साध्य में वही सम्बन्ध हैं. जो बीज और पेड़ में हैं. अगर कोई व्यक्ति साधनों का ध्यान रखता हैं तो साधन स्वयं अपना ध्यान रखेगा.

गांधीजी ने भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता की लड़ाई में किसी भू पहलू पर अपवित्र साधनों का समर्थन नहीं किया. उस समय भी नहीं जब उत्तेजना सरकार द्वारा प्रोत्साहित होती थी. गांधीजी के लिए अपवित्र साधनों का प्रयोग तो दूर उसकी कल्पना भी त्याज्य थी.

गांधीजी छल, कपट हत्या और पशु बल के द्वारा स्वराज्य प्राप्त करने के इच्छुक नहीं थे. उनके शब्दों में मैं तो अहिंसा और सत्य हेतु देश को होमने के लिए तैयार हूँ, देश के लिए अहिंसा और सत्य को नहीं. साधन और साध्य दोनों की पवित्रता पर बल देकर गांधीजी ने राजनीति में एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया.

  • मानव प्रकृति– प्रत्येक दर्शन धर्म या राजनीतिक प्रणाली में मूल प्रश्न मानव प्रकृति का होता हैं. यदपि दार्शनिक मानव प्रकृति के बारे में भिन्न भिन्न विचार रखते हैं. परन्तु प्रत्येक दर्शन मानव की परिभाषा या मानव प्रकृति के विश्लेषण से ही आरम्भ होता हैं. कुछ के लिए मैक्यावली तथा हाब्स मानव को झगड़ालू स्वार्थी तथा ईर्ष्यालु तथा वहीँ रूसों ने शांत एवं न्याय प्रिय माना हैं.
  • अहिंसा- अहिंसा का अर्थ है मन, वचन और कर्म से किसी को कष्ट न देना अर्थात किसी का दिल न दुखाना. अहिंसक व्यक्ति प्रेम, दया, क्षमा, सहानुभूति और सत्य की मूर्ति होता हैं. उसका कोई शत्रु नहीं होता. विश्व प्रेम, जीव मात्र पर करुणा और उससे प्रकट होने वाली, अपनी देह को ही होम देने वाली, शक्ति का नाम अहिंसा हैं. अहिंसा प्रेम की एक जड़ी बूटी है जो कट्टर शत्रु को भी मित्र बना सकती हैं शक्ति से शक्तिशाली अस्त्र को परास्त कर सकती हैं. यह वह शक्ति है जो अजय है यह आत्मा का गुण हैं जो चिरंजीवी हैं.
  • सत्याग्रह की उत्पत्ति– सत्याग्रह शब्द की उत्पत्ति गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में की थी. इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में चल रहे निष्क्रिय प्रतिरोध में भेद दिखाने के लिए भी इस शब्द की उत्पत्ति की गई थी. विन्सेंट शीयन के शब्दों में वह सर्वोच्च अविष्कार या उत्पत्ति थी. इसके द्वारा गांधीजी ने हिंसक जगत को अहिंसा की शिक्षा दी.
  • सत्याग्रह का अर्थ- साधारण भाषा में सत्याग्रह बुराई को दूर करने तथा विवादों को अहिंसक तरीकों से दूर करने का तरीका हैं. साधारण भारतीय नागरिक के लिए यह भारतीयों की अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई का तरीका था. प्रो एन के बोस के शब्दों में सत्याग्रह अहिंसक तरीकों द्वारा युद्ध का संचालन करने का तरीका हैं. वस्तुतः सत्याग्रह अहिंसक सीधी कार्यवाही हैं.

साहित्यिक दृष्टि से सत्याग्रह एक संयुक्त शब्द है जो सत्य आग्रह को मिलाकर बना हैं. इसका अर्थ है इसका अर्थ है सत्य के लिए आग्रह करना अर्थात जिसे व्यक्ति सत्य समझता है उस पर जीवन पर्यन्त दृढ़ या डटा रहना. यह सत्य पर आरूढ़ रहकर बुराई का विरोध हैं.

जो कुछ असत्य हाउ उसका विरोध सत्याग्रह हैं. हर स्थिति में सत्य की राह पकड़े रहना सत्याग्रह हैं. हिंसा, भय और मृत्यु उसे इस पथ से विचलित नहीं कर सकते. सत्य के लिए अपने जीवन की बाजी लगा देना ही सत्याग्रही के कार्यक्रम का केंद्र बिंदु हैं. यह सत्य के लिए तपस्या हैं. इन विशेषताओं के बिना सत्याग्रह अधूरा हैं.

ईश्वर में श्रद्धा, सत्य अहिंसा पर अटल विश्वास, चरित्र, निर्व्यसनी, शुद्ध ध्येय, हिंसा का त्याग, उत्साह, धैर्य और सहिष्णुता. सत्याग्रह सर्वव्यापी हो सकता हैं. यह सबके विरुद्ध हो सकता हैं. सरकार, कौम, जाति, व्यक्ति विशेष, समूह यदि वे दूषित हैं.

यह केवल शासकों और शासितों के बीच की वस्तु नहीं, जितना इसका प्रयोग शासन की अत्याचारी नीतियों या अन्याय के विरुद्ध किया जा सकता है उतना ही इसका प्रयोग सामाजिक कुरीतियों जैसे सामाजिक बुराइयों, सामाजिक झगड़ों इत्यादि को दूर करने के लिए भी किया जा सकता हैं. गांधीजी ने अनेक बार इसके सफल प्रयोग भी किये थे.

सत्याग्रह के स्वरूप– सत्याग्रह के मुख्य रूप निम्न प्रकार हैं.

असहयोग तथा उसके स्वरूप

  1. हडताल
  2. सामाजिक बहिष्कार
  3. धरना
  4. प्रव्रजन या हिजरत
  5. सविनय अवज्ञा
  6. उपवास

असहयोग तथा उसके स्वरूप-

सत्याग्रह की प्रविधियों में असहयोग प्रथम प्रविधि हैं. गांधीजी ने इसे संतृप्त प्रेम की अभिव्यक्ति कहते थे. इसका अभिप्रायः यह है कि जिसे व्यक्ति असत्य अवैध, अनैतिक या अहितकर समझता हैं. अर्थात व्यक्ति जिसे बुराई समझता हैं उसके साथ सहयोग नहीं करता हैं.

गांधीजी के लिए बुराई के साथ असहयोग करना न केवल व्यक्ति का कर्तव्य है बल्कि उसका धर्म भी हैं. गांधीजी की यह धारणा थी कि जब लिखा पढ़ी याचिकाएं असफल हो जाती है तो बुराई के साथ असहयोग करके सफलता प्राप्त की जा सकती हैं.

असहयोग कई प्रकार का रूप धारण कर सकता हैं.

  • हड़ताल
  • सामाजिक बहिष्कार
  • धरना

हड़ताल– विरोध स्वरूप कार्य को स्वेच्छापूर्वक बंद करने को हड़ताल कहते हैं. हड़ताल को स्वेच्छापूर्वक तथा अन्तःशुद्धि के लिए आत्मोत्सर्ग हैं.

जो अनुचित मार्ग पर जाने वाले विरोधी का ह्रदय परिवर्तन करने वाली होती हैं. हड़ताल एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा व्यक्तियों का समूह या समाज अपने भावों को प्रकट कर सकता हैं.

सामाजिक बाहिष्कार– सामाजिक बहिष्कार एक बहुत पुरानी परम्परा हैं जिसका जन्म जातियों के उदय के साथ हुआ. यह निषेधात्मक है और एक ऐसा भयंकर दंड है जिसका प्रयोग बड़े प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता हैं.

जिस व्यक्ति का बहिष्कार किया जाता हैं उसे समाज द्वारा एक प्रकार का दंड दिया जाता हैं. क्योंकि उस समाज के अन्य सदस्यों से मेलजोल बढ़ाने का कोई अवसर नहीं दिया जाता हैं.

और व्यक्ति को सबसे बड़ा दंड उसे समाज से अलग करना हैं. इसी तरह जिस वस्तु का बहिष्कार किया जाता हैं. उसके उत्पादन और खपत पर प्रहार करके बहिष्कार न केवल उस वस्तु को समाप्त करने का प्रयास करता हैं

बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों को हानि पहुचाकर उन्हें भी दंडित करता हैं. इसलिए गांधीजी ने बहिष्कार को घेरेबंदी की संज्ञा दी हैं.

धरना– धरना देने का उद्देश्य विचारों को बदलने से हैं. यह अनिवार्य रूप से शांतिमय होना चाहिए. इसमें असभ्यता का व्यवहार जोर जबरदस्ती धमकी का प्रयोग नहीं होना चाहिए.

गांधीजी के शब्दों में शांतिमय धरना उस व्यसन के खिलाफ एक दोस्ताना चेतावनी है जिसे सुधारक बुरा समझते हैं.

हिजरत-हिजरत वह प्रक्रिया हैं जिसके द्वारा व्यक्ति अपने निवास स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर चला जाता हैं. इसका सहारा तब लिया जाता हैं वह व्यक्ति या जन समूह अपने आत्म सम्मान को छोड़े बिना घरों या गाँव या देश में नहीं रह सकता तथा यह व्यक्ति या जन समूह अहिंसात्मक ढंग से या हिंसात्मक ढंग से अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं.

दूसरे शब्दों में जब व्यक्ति या जन समूह के पास न तो आत्मा की शक्ति हो और न उसके पास हिंसा की शक्ति की हो तो उस समय हिजरत की क्रिया की जाती हैं.

गांधीजी ने आत्म सम्मान बचाने के लिए सन 1928 में बारदोली और सन 1939 में लिम्बडी, जूनागढ़ और विट्ठलगढ़ के सत्याग्रहियों को अपने घर छोड़ने की सलाह दी थी.

सविनय अवज्ञा– सविनय अवज्ञा सत्याग्रह की महत्वपूर्ण शाखा हैं इसका अभिप्रायः अनैतिक अधिनियमित कानूनों को भंग करना हैं. यह एक प्रकार की अहिंसक क्रांति हैं. गांधीजी ने इसे पूर्ण प्रभावी और सशस्त्र क्रांति का रक्तहीन स्थापन्न कहा हैं. यह प्रतिरोधी के विद्रोह को अहिंसक ढंग से प्रकट करता हैं.

यह कई रूप ले सकता हैं जैसे करो को देने से इनकार करना, राज्य सत्ता को मानने से इनकार करना या एक एक करके सारे अनैतिक कानूनों का विरोध कर सरकार के ढाँचे को ठप करना इत्यादि.

उपवास– उपवास एक ऐसा कष्ट है जिसे व्यक्ति अपने ऊपर स्वयं लागू करता हैं. यह सत्याग्रह के शस्त्रागार में सबसे शक्तिशाली अस्त्र हैं. उपवास को गांधीजी ने आध्यात्मिक औषधि की संज्ञा दी हैं.

जिसका प्रयोग इसमें निपुण वैध ही कर सकता हैं. यह चिकित्सा विशिष्ठ रोगों में ही फलदायी होती हैं. इस तरह अनुकूल परिस्थतियों में ही उपवास परम श्रेष्ठ अपील हैं.

गांधीजी के आर्थिक विचार (Economic Views Of Gandhi In Hindi)

गांधीजी अर्थशास्त्री नहीं थे इसलिए उनके आर्थिक विचार किसी भी अर्थशास्त्र के सिद्धांत पर आधारित नही थे. अपने आर्थिक विचारों में उन्होंने अर्थशास्त्र के नियमों का पालन भी नहीं किया. उन्होंने स्वयं किसी आर्थिक सिद्धांत की रूपरेखा को स्पष्ट रूप से तैयार भी नहीं किया.

गांधीजी का आर्थिक समस्याओं पर दृष्टिकोण उद्धारक था और उनके सुझाव समय आवश्यकता और मानवता की दृष्टि से प्रेरित थे. उनके ये सुझाव वास्तविकता और स्वयं के अनुभव पर आधारित थे. यही कारण है कि गांधीजी के आर्थिक विचार बदलते रहे.

जहाँ हिंद स्वराज में गांधीजी के विचार वर्तमान सभ्यता विरोधी यंत्र विरोधी और पूंजी विरोधी प्रतीत होते हैं. वहां बाद में उनके विचार व्यवहारउपयोगी और यंत्रों से समझौता करने वाले दिखाई देते हैं. यह भी हो सकता है कि उनके विचार उपनिवेश शासन से भी प्रभावित हुए हो.

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