कुटीर उद्योग पर निबंध | Kutir Udyog Essay In Hindi

Kutir Udyog Essay In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज हम कुटीर उद्योग पर निबंध पढ़ेगे, किसी राष्ट्र, राज्य या नगर के लोगों की उन्नति में उद्योगों की बड़ी भूमिका होती हैं.

उद्योग कई प्रकार के होते है, कुटीर, लघु, मध्यम और वृहत उद्योग. इनमें सबसे प्रारम्भिक एवं छोटी इकाई कुटीर उद्योग की है, भारत में इसका सदियों पुराना इतिहास हैं.

आज हम कुटीर उद्योग का अर्थ, इतिहास, महत्व, लाभ पर निबंध, अनुच्छेद, स्पीच, लेख व आर्टिकल बता रहे हैं.

कुटीर उद्योग Kutir Udyog Essay In Hindi

Kutir Udyog Essay In Hindi

कुटीर उद्योग पर निबंध (300 शब्द)

कुटीर उद्योग को लघु उद्योग भी कहते हैं। इस उद्योग के द्वारा हम अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं साथ ही हम अपनी जिंदगी को और भी बेहतर कर सकते हैं।

कुटीर उद्योग की शुरुआत करने के लिए हमारे पास एक समूह होना चाहिए। हम समूह अपने परिवार के लोगों को मिला करके बना सकते हैं या फिर अपने परिचित लोगों को मिला करके बना सकते हैं।

समूह का निर्माण करने के पश्चात हमें एक योजना बनाने की आवश्यकता होती है। योजना के अंतर्गत हमें कौन सा कुटीर उद्योग चालू करना है, इस पर चर्चा करनी होती है और कुटीर उद्योग को चालू करने के लिए क्या-क्या चीजों की आवश्यकता होगी, इस पर विचार विमर्श करना होता है।

कुटीर उद्योग बहुत ही कम लागत में चालू हो जाता है। इसलिए आसानी से कुटीर उद्योग चालू करने के लिए पैसे की व्यवस्था की जा सकती है परंतु अगर पैसे पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध ना हो तो ऐसी अवस्था में भारतीय सरकार के द्वारा चलाई जाने वाली विभिन्न सरकारी योजनाओं का फायदा उठाया जा सकता है और बैंक से लोन लेकर के कुटीर उद्योग की शुरुआत की जा सकती है। 

कुटीर उद्योग की शुरुआत करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत आसानी से लोन प्राप्त किया जा सकता है और छोटे कुटीर उद्योग जैसे की चटाई बनाना, कपड़े सिलाई का काम, जूता बनाने का काम, हथकरघा, दलिया बनाना इत्यादि प्रारंभ किया जा सकता है और तैयार माल को बाजार में बेच करके कमाई की जा सकती है।

कुटीर उद्योग के अंतर्गत हम मिट्टी के बर्तन, खिलौने,मोमबत्ती और बच्चों के खिलौने बना करके भी बाजार में बेच करके मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके अलावा अगर आप अन्य कोई कुटीर उद्योग करना चाहते हैं तो आप उस पर भी अमल कर सकते हैं।

कुटीर उद्योग पर निबंध (500 शब्द)

लघु उद्योग और कुटीर उद्योग दोनों को एक ही समझा जाता है। यह ऐसे उद्योग होते हैं जिन्हें हम आसानी से अपने घर से ही प्रारंभ कर सकते हैं या फिर किसी छोटे-मोटे रूम को भाड़े पर ले कर के भी कुटीर उद्योगों को प्रारंभ कर सकते हैं।

कुटीर उद्योग की खासियत यह होती है कि यह बहुत ही कम लागत में चालू हो जाते हैं। इसलिए अगर आपके पास थोड़े बहुत पैसे भी हैं तो आप कुटीर उद्योग प्रारंभ कर सकते हैं.

अगर आपके पास उद्योग में लगाने लायक पैसे नहीं है तो आप भारतीय सरकार के द्वारा दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायता वाली योजना में आवेदन कर सकते हैं.

योजना का लाभार्थी बन करके प्राप्त हुए पैसे का इस्तेमाल आप लघु उद्योग को चालू करने के लिए कर सकते हैं तथा तैयार सामान को मार्केट में बेच करके अपनी कमाई कर सकते हैं और अपनी जिंदगी को बेहतरीन बना सकते हैं।

सरकार के द्वारा कुटीर उद्योग को चालू करने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं। आप उन योजनाओं का लाभ ले करके कुटीर उद्योग चालू कर सकते हैं। 

कुटीर उद्योग के अंतर्गत आप पशुपालन का काम कर सकते हैं। इसके अलावा चटाई बनाने का काम, मिट्टी के खिलौने बनाने का काम, टेस्टी बनाने का काम, सूप बनाने का काम, मोमबत्ती बनाने का काम, अगरबत्ती बनाने का काम कर सकते हैं।

इसके अलावा भी अगर आपके मन में अन्य कोई कुटीर उद्योग का आईडिया है तो आप उस पर भी अमल कर सकते हैं। कुटीर उद्योग के अंतर्गत आप मछली पालन भी कर सकते हैं, कीट पालन कर सकते हैं और अपनी कमाई को अधिक से अधिक बढ़ा सकते हैं।

हमारे देश में सबसे ज्यादा कुटीर उद्योग भारत के ग्रामीण इलाके में ही शुरू किए जाते हैं, क्योंकि भारत के ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी की दर काफी अधिक होती है साथ ही उद्योग ना होने की वजह से लोगों के पास रोजगार नहीं होता है। 

ऐसी अवस्था में लोग कुटीर उद्योग के द्वारा खुद ही रोजगार पैदा करते हैं साथ ही समूह में शामिल अन्य लोगों को भी रोजगार देते हैं। इस प्रकार से भारत के ग्रामीण इलाकों में कुटीर उद्योग रोजगार प्राप्त करने का एक बहुत ही बड़ा साधन है साथ ही बेरोजगारी दूर करने का भी जरिया है।

कुटीर उद्योगों के तहत शुरू किए गए आज कई उद्योग भारत के अलावा विदेशों में भी जाने जाने लगे हैं। लिज्जत पापड़ जैसा कुटीर उद्योग आज भारत में एक ब्रांड बन चुका है। इसके अलावा भी अन्य कई कुटीर उद्योग हैं, जिनके द्वारा बनाए जाने वाले सामान की डिमांड विदेशों तक हो रही है।

अब कुटीर उद्योग स्मार्ट भी हो गए हैं क्योंकि कुटीर उद्योग के अंतर्गत जो सामान तैयार हो रहे हैं उन्हें लोकल मार्केट के अलावा दूसरे राज्यों में और दूसरे देशों में तो भेजा ही जा रहा है साथ ही उन्हें ऑनलाइन भी अमेजॉन और फ्लिपकार्ट वेबसाइट पर उपलब्ध करवा दिया गया है,

जिसकी वजह से कुटीर उद्योग शुरू करने वाले लोगों को काफी अधिक फायदा हो रहा है, क्योंकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आने की वजह से उन्हें देश भर के अलग-अलग इलाकों से आर्डर की प्राप्ति हो रही है, जिससे उनके सामान की खपत अधिक हो रही है और उन्हें ज्यादा मुनाफा भी प्राप्त हो रहा है।

1000 शब्द में कुटीर उद्योग पर निबंध

भारत जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्वपूर्ण स्थान हैं. ये उद्योग बड़े उद्योगों की तुलना में न्यूनतम लागत पर अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में न केवल अहम भूमिका निभाते है.

बल्कि ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्र के औद्योगिकीकरण में भी सहायता करते है. जिससे क्षेत्रीय असंतुलन में कमी होती है और राष्ट्रीय आय व धन का समान वितरण सुनिश्चित होता हैं.

कुटीर उद्योग की परिभाषा व अर्थ

कुटीर उद्योग की परिभाषा इस रूप में दी जा सकती हैं वह उद्योग जिसे पूर्ण अथवा आंशिक रूप से परिवार के सदस्यों द्वारा चलाया जाता है.

कुटीर उद्योग की श्रेणी में कई छोटे उद्योग आते है जिन्हें कृषक अपनी सहायक कमाई के लिए आरम्भ करता है उदाहरण के लिए हथकरघा, कपड़ा बुनाई, डलिया बनाना अथवा रस्सी निर्माण करना.

कुटीर उद्योग की दूसरी श्रेणी में हम उन व्यवसायों को रख सकते है जिन्हें एक विशेष जाति परम्परागत रूप से सदियों से करती आई है जैसे लुहारी कर्म, बढ़ई का काम, घाणी तेल, कुम्हार का काम, चमड़ा उद्योग, कपड़े बुनाई, जूते गलीचे आदि का निर्माण शामिल हैं.

कुटीर उद्यम की तीसरी श्रेणी में उन व्यवसायों को शामिल कर सकते है जो खासकर नगरीय क्षेत्रों में लोगों द्वारा पूर्णकालिक रोजगार के लिए चुना हैं जैसे लकड़ी, पत्थर, रत्न की नक्काशी या कशीदाकारी का काम, खिलौने बनाना, सोने चांदी के तार बनाना, स्टील व पीतल के बर्तनों के निर्माण आदि.

भारत में कुटीर उद्योग

लघु एवं कुटीर उद्योग सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के अनुपूरक है और देश में सामाजिक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं. गांधीजी के अनुसार भारत का मोक्ष उसके कुटीर धंधों में निहित हैं.

मोरारजी देसाई के अनुसार ऐसे उद्योगों से ग्रामीण लोगों को जो अधिकांश समय बेरोजगार रहते है, पूर्ण अथवा अंशकालीन रोजगार प्राप्त होता हैं. लघु एवं कुटीर उद्योग देश के वृहत ग्रामीण क्षेत्र की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं.

कुटीर उद्योगों का महत्व

भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्व निम्न तथ्यों से समझा जा सकता हैं.

  • रोजगार में वृद्धि– कुटीर उद्योग श्रम प्रधान होते है, अतः इन उद्योगों द्वारा कम पूंजी के विनियोग से भी रोजगार में पर्याप्त वृद्धि की जा सकती हैं.
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अनुरूप – भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहाँ की लगभग 59 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है लेकिन कृषकों को वर्षपर्यन्त कार्य नहीं मिल पाता. इस दृष्टि से कुटीर एवं लघु उद्योग अत्यंत उपयोगी है, कृषि व्यवसाय से सम्बद्ध व्यक्ति खाली समय में इस तरह के धंधों में अपने को लगाकर अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं.
  • आय वितरण में समानता– कुटीर एवं लघु उद्योगों का स्वामित्व अधिक से अधिक लोगों के हाथ में होता हैं. जिससे अधिक शक्ति का केन्द्रीयकरण नहीं होता हैं. इसके अतिरिक्त इन उद्योगों में श्रमिको का शोषण नहीं होता है जिससे राष्ट्रीय आय का अधिक समान वितरण होता हैं.
  • उद्योगों के विकेन्द्रीकरण में सहायता– विशालस्तरीय उद्योग केवल कुछ औद्योगिक केन्द्रों में ही स्थापित हो पाते है क्योंकि उनके लिए विशेष परिस्थतियाँ एवं सुविधाओं की आवश्यकता होती हैं. परन्तु कुटीर उद्योग को गाँवों व छोटे छोटे कस्बों में स्थापित किया जा सकता हैं, अतः कुटीर एवं लघु उद्योगों से देश में उद्योगों के विकेन्द्रीकरण में सहायता प्राप्त होती हैं.
  • कृषि पर जनसंख्या के भार में कमी – भारत में कृषि पर जनसंख्या का भार निरंतर बढ़ता जा रहा हैं. प्रति वर्ष लगभग 30 लाख व्यक्ति खेती पर आश्रित होने के लिए बढ़ जाते हैं. जिससे कृषि का उपविभाजन एवं अपखंडन होता हैं. इस समस्या के समाधान की दृष्टि से लघु उद्योग अत्यंत उपयोगी हैं.
  • परम्परागत एवं कलात्मक उद्योगों को संरक्षण – कुटीर परम्परागत एवं कलात्मक वस्तुओ को संरक्षण प्रदान करते हैं.
  • कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता– कुटीर उद्योगों की स्थापना में कम पूंजी के साथ साथ कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है तथा कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी कम मात्रा में देकर काम चलाया जा सकता हैं, इस प्रकार यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम हैं.
  • शीघ्र उत्पादक उद्योग– यह उद्योग ऐसे है जिनकी स्थापना के कुछ समय बाद ही उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं. इसलिए उनको शीघ्र उत्पादक उद्योग भी कहते हैं. वृहत उद्योगों की स्थापना करने और उत्पादन के समयों में वर्षों का अंतर होता है जबकि कुटीर उद्योग में उत्पादन कुछ ही महीनों में कहीं कहीं तो कुछ दिनों में ही प्रारम्भ किया जा सकता हैं.

इस तरह कुटीर उद्योग देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया हैं. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि इन उद्योगों का औद्योगिक उत्पादन में हिस्सा 45 प्रतिशत तथा राष्ट्रीय निर्यात में योगदान 40 प्रतिशत हैं.

यह देश के 800 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता हैं. सूलमउ क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8 प्रतिशत का योगदान देता हैं.

लघु एवं कुटीर उद्योगों के महत्व के कारण इन्हें औद्योगिक नीतियों में प्रमुख स्थान दिया गया तथा 20 वस्तुओं के उत्पादन इनके लिए सुरक्षित रखा गया हैं. इनके हितों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक विशेष कानून बनाने की व्यवस्था भी की गई हैं.

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि लघु एवं कुटीर उद्योग बड़े पैमाने पर तत्काल रोजगार प्रदान करते है, राष्ट्रीय आय में अपेक्षा कृत अधिक न्यायकारी वितरण का आश्वासन देते हैं, पूंजी एवं अन्य संसाधनों को प्रभावशाली ढंग से गति प्रदान करते हैं तथा स्थानीय साधनों का सर्वोत्तम ढंग से दोहन करते हैं.

लघु एवं कुटीर उद्योग में अंतर

  1. कुटीर उद्योगों में हस्त क्रियाओं को प्रधानता रहती है जबकि लघु उद्योगों के लिए यह आवश्यक नहीं हैं,
  2. कुटीर उद्योगों में प्रायः परम्परागत विधियों से परम्परागत वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है और प्रायः स्थानीय बाजार की मांग की पूर्ति की जाती है, जबकि लघु उद्योगों में यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा अपेक्षाकृत व्यापक बाजार की मांग की पूर्ति की जाती हैं.
  3. कुटीर उद्योगों में मजदूरी या वेतन पर कम लोग लगाए जाते है और अधिकतर कार्य परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता हैं जबकि लघु उद्योगों में मजदूरी या वेतन पर पर्याप्त व्यक्ति लगाए जाते हैं.
  4. कुटीर उद्योगों में पूंजी का विनियोग नाममात्र का होता है जबकि लघु उद्योगों में अपेक्षाकृत अधिक पूंजी लगाई जाती हैं.
  5. कुटीर उद्योगों में स्थानीय कच्चे माल एवं कुशलता का प्रयोग होता है जबकि लघु उद्योगों में कच्चा माल तथा तकनीकी कुशलता बाहर से भी प्राप्त की जा सकती हैं.

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