क्षेत्रवाद पर निबंध | Regionalism Essay In Hindi

भारत में क्षेत्रवाद पर निबंध Regionalism Essay In Hindi आज का निबंध क्षेत्रीयता अथवा स्थानीयता क्षेत्रवाद की समस्या पर दिया गया हैं.

क्षेत्रवाद का क्या अर्थ है प्रभाव प्रकार विशेषताएं रूप समाधान दुष्परिणाम के बारे में आज के इस निबंध में हम पढ़ेगे.

क्षेत्रवाद पर निबंध | Regionalism Essay In Hindi

क्षेत्रवाद पर निबंध | Regionalism Essay In Hindi

अपने क्षेत्र या भूगोल के प्रति अधिक प्रयत्न आर्थिक, सामाजिक व राजनितिक अधिकारों के चाह की भावना को क्षेत्रवाद के नाम से जाना जाता हैं.

इस प्रकार की भावना से बाहरी बनाम भीतरी तथा अधिक संकीर्ण रूप धारण करने पर यह क्षेत्र बनाम राष्ट्र हो जाती हैं. जो किसी भी देश की एकता और अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा हो जाता हैं.

भारत सहित दुनिया के  कई देशों में क्षेत्रवाद की मानसिकता को लेकर वहां के निवासी स्वयं को विशिष्ट मानते हुए, अन्य राज्यों व लोगों से अधिक  अधिकारों की मांग करते हैं, आन्दोलन करते हैं.

तथा सरकार पर अपनी मांगे मनवाने के लिए दवाब डाला जाता हैं. कई बार इस तरह की कोशिशों का नतीजा हिंसा के रूप में सामने आता हैं.

कई कारणों से क्षेत्रवाद की भावना का जन्म होता हैं जिनमें भौगोलिक विभिन्नता, आर्थिक असंतुलन, भाषागत विविधता व राज्यों के आकार में भिन्नता व असमानता के कारण क्षेत्रवाद की भावना को बढ़ावा मिलता हैं.

एक तरह यह मूल सता से अलगाव की भावना से ग्रसित उन्माद हैं. पिछले कुछ समय में भारत के कई राज्यों में इस तरह की समस्या सामने आई हैं.

क्षेत्रवाद प्रभावित राज्यों में आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात तथा कर्नाटक के बाद बिहार, यूपी, ओडिशा मुख्य हैं. इन मांगों की वजह आजादी के बाद से अब तक दक्षिणी राज्यों को अधिक महत्व व वरीयता दी गईं.

जिस कारण उत्तरी पूर्वी राज्यों का विकास उस गति से नही हो पाया, और उनमें असंतोष की भावना ने घर कर दिया हैं. पंजाब व हरियाणा में जातिवाद के कारण क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिला हैं, इसके कई द्रष्टान्त हम पिछले सालों में देख चुके हैं.

अकाली दल, शिवसेना तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसे दल अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए धर्म, वर्ग, भाषा एवं सम्प्रदाय के नाम पर देश को बाटकर वोट मांगते हैं और विघटनकारी राजनीति करते हैं.

क्षेत्रवाद का जन्म इन्ही प्रकार की पार्टियों तथा इनके नेताओं के भटकाऊ भाषणों तथा जनता में एक क्षेत्र विशेष का उन्माद जागृत करने के लिए उत्तरदायी हैं.

उग्र क्षेत्रवाद के कारण महाराष्ट्र में शिवसेना द्वारा कई बार स्थानीय निवासियों के रोजगार चले जाने का मुद्दा बनाकर प्रदेश की भावना को बलवंत कर अपने वोट बैंक को सम्रद्ध कोशिश कई बार हुई हैं.

पश्चिम बंगाल व अन्य नक्सल प्रभावित इलाकों में केंद्र द्वारा हथियार न रखने के आंतरिक सुरक्षा के विषय को उग्र संगठनों द्वारा क्षेत्रवाद के रूप में लेते हुए कानून का बखौल तक उड़ाने में कोई कसर नही छोड़ी.

चूंकि भारतीय संविधान के अनुसार भारत एक संघ राज्य हैं. यहाँ पर आजादी के बाद समय समय पर अलग राज्य की मांगे उठती रही हैं.

एक सीमा व विशेषता की स्थति में ये मांगे तो जायज हैं मगर इस तरह की बार बार मांग उठने से केवल क्षेत्रवाद तथा अधिक अधिकारों के लिए अलग राज्यों की मांग उठाना किसी भी तरह से उचित नही हैं.

1953 में आंध्रप्रदेश भाषा के आधार पर गठित भारत का पहला राज्य था. 2018 आते आते राज्यों की संख्या 29 हो चुकी हैं. अब भी भारत के भिन्न भिन्न राज्यों से अलग राज्यों की मांग उठ रही हैं. जिनमें गोरखालैंड, मिथिलाचल, बोडोलैंड, पूर्वाचल आदि की मांगे जोर पकड़ रही हैं.

समय समय पर नयें राज्यों के गठन से देश की एकता और अखंडता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं. जरूरत इस बात कि है यदि किसी राज्य का कोई क्षेत्र प्रशासनिक द्रष्टि से बड़ा हैं और उस क्षेत्र के प्रत्येक निवासी तक सरकारी सेवा पहुचना संभव नही हो तो उस स्थति में नये जिले का निर्माण विकल्प के तौर पर किया जा सकता हैं.

विकास के नजरिये से बड़े जिले व राज्य देश के लिए फायदेमंद हैं. कुछ राजनितिक तथा क्षेत्रीय दलों द्वारा अपने स्वार्थ की सिद्धि के जनता को इस तरह की मांगे उठाने के लिए उकसाते हैं.

इसी क्षेत्रीयतावाद तथा प्रांतीय भावना के कारण राष्ट्रीय हितों से टकराव की स्थति उत्पन्न हो जाती हैं. पिछले एक दशक के दौरान एशिया के कई देशों का विभाजन इसी आधार पर हो चूका हैं.

विशेष रूप से केन्द्रीय सता में गठबंधन की सरकारे आने से इस प्रकार की स्थति अधिक देखने को मिलती हैं. क्षेत्रीय इस प्रकार के विभाजन की मांगों को लेकर सरकार को समर्थन देते है.

क्षेत्रवाद क्या है कारण समस्या व समाधान What Is Regionalism in India In Hindi

क्षेत्रीयता या क्षेत्रवाद एक राजनीतिक विचारधारा व समस्या है. जो राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध स्थानीय हितों को सर्वोपरि रखती हैं.

क्षेत्रवाद का अर्थ क्या है क्षेत्रवाद के कारण ( causes of regionalism in India) तथा क्षेत्रवाद की समस्या व समाधान के बारे में What Is Regionalism in India में आज जानेगे.

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What Is Meaning Of Regionalism in Hindi

हमारा देश विविधताओं वाला देश है. यहाँ पर भौगोलिक, सांस्कृतिक, भाषाई भिन्नता विद्यमान हैं. तथापि ये भिन्नताएं हमारे लिए कौतूहल का कारण बनती हैं. तो कई बार अतिवादिता के कारण शासन के लिए व्यवस्था निर्माण में समस्या भी पैदा करती हैं.

आजादी के समय हमारा भारत आर्थिक दृष्टि से सक्षम राष्ट्र नहीं था. विदेशी शासकों द्वारा हमारी अर्थव्यवस्था का अत्यधिक दोहन व प्रान्तों का असंतुलित विकास इसका प्रमुख कारण रहा हैं.

स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त हमारी संघीय सरकार ने राज्य पुनर्गठन व अन्य उपायों द्वारा असंतुलन की इस व्यवस्था को ठीक करने का प्रयास किया.

प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, हमारी ऐतिहासिक पृष्टभूमि इत्यादि के कारण क्षेत्रीय भिन्नताएं मौजूद रही. स्वतंत्रता के पश्चात राज्यों के गठन की प्रक्रिया भी इसका एक कारण रही. राज्यों का निर्माण, ब्रिटिश प्रांतों के विलय, देशी रियासतों के एकीकरण एवं राजनीतिक सामाजिक एकीकरण के फलस्वरूप हुआ.

जाति, धर्म, सम्प्रदाय व्यक्ति विशेष की अग्रणी छवि आदि ने भी राज्य पुनर्गठन की प्रक्रिया को प्रभावित किया. आर्थिक विकास का स्तर, नौकरशाही की राजनीति प्रतिबद्धता क्षेत्रीय आकांक्षाएं भौगोलिक स्वरूप के कारण भी राज्यों में क्षेत्रीय असंतुलन विद्यमान रहा.

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एकमात्र लक्ष्य आजादी प्राप्त करना था. उस दौर में ये आकांक्षाए गौण रही, किन्तु 1947 के पश्चात ये पुनः प्रधान हो गई. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात विभिन्न प्रांतों की इन मांगों ने क्षेत्रवाद की भावनाओं को बलवती किया.

  • राज्यों के पुनर्गठन की मांग
  • नवीन राज्य निर्माण मांग
  • भारत संघ में ही अधिक स्वायत्ता की आकांक्षा
  • प्राकृतिक संसाधनों के वितरण सम्बन्धी विवाद
  • केंद्र से अधिकाधिक आर्थिक सहायता प्राप्त करना
  • अधिकाधिक आर्थिक सहायता प्राप्त करना
  • अधिकाधिक राजनीतिक सहभागिता का दावा.

क्षेत्रवाद क्या है (What Is Regionalism In Hindi)

स्थानीय निवासियों द्वारा संघ या राज्य की तुलना में किसी क्षेत्र विशेष या प्रांत से लगाव व उनकी प्रोन्नति के प्रयास क्षेत्रवाद की श्रेणी में आते हैं.

क्षेत्रवाद का उद्देश्य हैं. अपने संकीर्ण क्षेत्रीय स्वार्थों की पूर्ति. यह ऐसी प्रवृत्ति है जिसमें क्षेत्र विशेष के लोग आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक शक्तियों की अन्य से अधिक मांग करते हैं.

क्षेत्रवाद के कारण (Causes Of Regionalism)

  1. प्रकृति प्रदत्त भिन्नताएँ व असमानताएं
  2. प्रशासन द्वारा संसाधनों के समान वितरण का अभाव या प्रशासनिक भेदभाव.
  3. केन्द्रीय निवेश व विकास सम्बन्धी भिन्नता
  4. ऐतिहासिक एवं राजनीतिक कारण
  5. सांस्कृतिक विविधताएं
  6. भाषाई विविधता से क्षेत्रवाद की भावना को बल

संकीर्ण क्षेत्रीय आकांक्षाएं के राष्ट्र को दुष्परिणाम झेलने पड़ते है जैसे

  • देश की अखंडता को चुनौती-क्षेत्रीय आकांक्षाओं के बलवती होने की प्रक्रिया में राष्ट्र की एकता व अखंडता को गौण कर दिया जाता हैं, यहाँ तक कि उग्र स्वरूप में तो कई बार पृथकतावाद का भाव भी पनपने लगता हैं. जो राष्ट्रीय अस्मिता को चुनौती दे डालता हैं. क्षेत्र विशेष का संघ सरकार व उसकी नीतियों से भरोसा उठ जाता हैं. हमारी राष्ट्रीय राजनीति में पिछले सात दशकों का अनुभव इस संबध में अच्छा नहीं रहा हैं.
  • नए राज्यों की मांग
  • क्षेत्रीय राजनीति एवं राजनीतिक दलों का प्राबल्य
  • भूमि पुत्र की अवधारणा
  • स्वयंभू नेताओं का उदय
  • राष्ट्रीय कानूनों व आदेशों को चुनौती- अराजकता की स्थिति का पनपना
  • अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देश की साख खराब होना- आंतरिक क्षेत्रीय समस्याओं का हमारी अंतर्राष्ट्रीय छवि को खराब करता हैं. कभी मानवाधिकार के नाम पर तो कभी लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरक्षण के नाम पर अन्य राष्ट्र हमारी क्षेत्रवाद के आधार पर उठ रही मांगों की आड़ में अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आलोचनाएं करते हैं.

क्षेत्रवाद की समस्या का समाधान (Resolution Of Problem Of Regionalism)

समस्या के समाधान का उपाय उसके कारणों में निहित होता है. क्षेत्रवाद पनपने के कारणों को समाप्त करने से ही इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता हैं. कुछ उपाय जिनसे हम क्षेत्रवाद की समस्या से राहत पा सकते हैं.

  • संतुलित राष्ट्रीय नीति निर्माण– केंद्र सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह सभी क्षेत्रों के समान विकास हेतु नीति निर्माण के समय राजनीतिक भेदभाव किये बिना संतुलित व समदर्शी नीति निर्माण करे. छोटे व संसाधनों की दृष्टि से अपेक्षाकृत कमजोर क्षेत्रों/ राज्यों के विकास को भी समान प्राथमिकता दे तो धीरे धीरे वहां के निवासियों में विश्वास पैदा होता जाएगा व क्षेत्रवाद का उग्र स्वरूप शांत होगा.
  • राज्यों में स्थाई आधारभूत ढाँचागत विकास- क्षेत्रीय भिन्नताओं में कमी लाने के लिए पिछड़े व अविकसित क्षेत्रों में सिंचाई, बिजली, यातायात व संचार के आधारभूत साधनों के विकास को प्राथमिकता देनी होगी, जिसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे.
  • विकास के विशेष कार्यक्रमों का परियोजनाओं के रूप में प्रारम्भ किया जाना– यह प्रक्रिया सरकार ने प्रारम्भ कर भी दी हैं. सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP) मरु विकास कार्यक्रम (DDP) पहाड़ी क्षेत्र विकास कार्यक्रम (AADP) जनजाति क्षेत्र विकास कार्यक्रम (TADP) विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना आदि से क्षेत्रीय असंतुलन कम किया जा सकता हैं.
  • प्रशासनिक दृष्टि से छोटे राज्यों का गठन– छोटे छोटे राज्यों से प्रांतीय सरकारों द्वारा स्थानीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम सफलतापूर्वक चलाए जा रहे हैं. केन्द्रीय करों के वितरण में ही हिस्सेदारी बढ़ती हैं.
  • सांस्कृतिक भिन्नता को एकीकरण की ताकत बनाना- दूरदर्शन, रेडियो, समाचार पत्रों व अन्य संप्रेषण माध्यमों द्वारा भिन्नता को ही ताकत के रूप में उभरना हमारी पहल हो. संस्कृतियों की पहचान व प्रतिष्ठा देना व उन्हें एक दूसरे के साथ साहचर्य भाव से जोड़ना एकीकरण का माध्यम हो सकती हैं.
  • भाषायी विविधता का सम्मान-हमारा संविधान भी इन्हें मान्यता देकर विविधता को स्वीकार कर चुका हैं. हमें सभी प्रांतों को भाषाओं को परस्पर सम्मान देना होगा. अनुवाद का दायरा बढ़ाना होगा. विद्यालय पाठ्यक्रम में इन्हें समुचित स्थान देना होगा.

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों क्षेत्रवाद पर निबंध Regionalism Essay In Hindi का यह निबंध आपको पसंद आया होगा.

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