फ्रांस की क्रांति कारण प्रभाव परिणाम | French Revolution In Hindi

फ्रांस की क्रांति/ French Revolution In Hindi: 18 वीं से 20 वीं शताब्दी तक विश्व घटना क्रम में काफी उथल पुथल रही, इन घटनाओं से भारत भी प्रभावित रहा.

भारत में ब्रिटिश सम्राज्य की स्थापना और 1947 में उसकी समाप्ति आधुनिक विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है. इसी क्रम में फ्रांस की क्रांति, रूस की क्रांति, अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम, पश्चिमी देशों का औपनिवेशिक विस्तार, प्रथम और द्वितय विश्व युद्ध, राष्ट्रसंघ तथा सयुक्त राष्ट्रसंघ का जन्म आदि मुख्य घटनाएं रही .

फ्रांस की क्रांति (French Revolution) के बारे में विस्तार से जानेगे इस लेख का स्त्रोत Ncert History Book Class 9 In Hindi से लिया गया है.

फ्रांस की क्रांति | French Revolution In Hindi

फ्रांस की क्रांति कारण प्रभाव परिणाम | French Revolution In Hindi

इंग्लैंड की 1688 की गौरवपूर्ण क्रांति और 1776 ई में अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम से भी अधिक महत्वपूर्ण घटना, फ्रांस की राज्य क्रांति (1789) थी.

यह क्रांति निरंकुश स्वेच्छाकारी शासन, आर्थिक शोषण व असमानता के विरुद्ध जागृति थी. आर्थिक शोषण व असमानता के विरुद्ध जागृति थी. फ्रांस की क्रांति के कारण निम्नलिखित थे.

फ्रांस की क्रांति के कारण (Causes For The French Revolution 1789)

राजनितिक परिस्थितियां– फ्रांस का राजा लुईस 16वां निरंकुश, स्वेच्छाचारी व दैवीय अधिकारों से युक्त था. राजा की इच्छा ही कानून था. वह खर्चीला तथा विवेकशून्य शासक था.

कई वर्षों से एस्टेट जनरल की बैठक नही बुलाई गई थी. लुई की अविवेकपूर्ण निति के कारण फ़्रांस से भारत भारत और अमेरिका के उपनिवेश निकल गये थे और सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांस की हार हो गई थी.

सामाजिक विषमता– फ्रांस के एक वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त थे, दूसरा वर्ग अधिकारविहीन था. अधिकारविहीन वर्ग जिसमे मध्यम और सामान्य वर्ग के लोग सम्मिलित थे.

उनका राजा, सामंत और पादरियों द्वारा शोषण किया जाता था. सामन्ती अत्याचार के कारण कृषकों की दुर्दशा हुई थी.इससे असंतोष में वृद्धि हुई.

आर्थिक कारण- इस समय फ्रांस की स्थति आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक खराब हो गई थी. इसका मुख्य कारण युद्धों का भारी खर्च, दूषित कर पद्दति तथा राजशाही अपव्यय था.

उच्च वर्ग को कर मुक्त रखा गया था. मगर जनता पर करो का भारी बोझ डाला गया था, आय और व्यय का कोई हिसाब भी नही था. अतः क्रांति अवश्यम्भावी था.

मजहबी असंतोष– फ्रांस में इस समय एक लाख पच्चीस हजार मजहबी पादरी थे. कुछ पादरियों का जीवन ऐसा ऐश्वर्यशाली था जबकि कुछ के पास दो वक्त के भोजन की भी व्यवस्था नही थी.

निर्धन व भूखी जनता को चर्च की सम्पति अखर रही थी. टाईथ नामक मजहबी कर जो स्वैच्छिक था, इसे जबरन वसूलना शुरू कर दिया था. इससे जनता में असंतोष में वृद्धि हुई.

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव– अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में फ्रांस के सैनिक सहयोग करने गये थे. वहां उनको राष्ट्रभक्ति, स्वतंत्रता एवं स्वाभिमान की प्रेरणा मिली.

इस सहायता से राजकोष पर ऋण का भी भार बढ़ गया. अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम ‘फ्रांस की क्रांति‘के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गया.

मध्यम वर्ग का उदय– कृषकों और श्रमिकों में फ्रांस के कुलीन वर्ग का विरोध करने की क्षमता नही थी. समाज के मध्यम वर्ग ने इस कमी को पूरा किया.

इस वर्ग में विचारक, शिक्षक, व्यापारी, वकील, चिकित्सक आदि सम्मिलित थे. ये सभी फ्रांस की स्थिति में सुधार लाना चाहते थे.

बौद्धिक जागृति- इस समय फ्रांस में दार्शनिकों व लेखकों ने फ्रांस के प्राचीन गौरव और परम्पराओं को उजागर करके फ्रांस के समाज को जागृत किया.

इन विद्वानों में रूसों, वाल्टेयर, मोंटेस्कयू व दिदरो नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है. मोंटेस्क्यू ने राजा के दैवीय शक्ति अधिकारों का विरोध किया, वही रूसों ने व्यक्ति की स्वतंत्रता की पैरवी की. रूसों ने लिखा- मनुष्यों को स्वतंत्रता, समानता के भ्रातत्व आदि काल से ही प्राप्त है.

तात्कालिक कारण बेस्तील का पतन– 5 मई 1789 को 175 वर्ष बाद वित् मंत्री ब्रियाँ की सलाह पर एस्टेट जनरल का अधिवेशन बुलाया. राजा से प्रार्थना की गई कि असमानता, शोषण, विशेषाधिकार व बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया जाए.

तृतीय सदन के सदस्य तीनों सदनों की सयुक्त बैठक करना चाहते थे. लेकिन प्रथम व द्वितीय सदन के कुछ पादरियों को छोड़कर कोई नही आया. 17 जून को तृतीय सदन ने स्वयं को राष्ट्रीय असेम्बली घोषित कर दिया.

20 जून को तृतीय सदन के सदस्य बैठक के लिए आए तो सभा भवन का दरवाजा बंद कर दिया गया. अतः सदस्यों ने सभा भवन के बाहर टेनिस कोर्ट में ही असेम्बली की बैठक ली व शपथ ली कि फ्रांस को सविधान दिए बिना सभा विसर्जित नही की जाएगी.

राजा ने नेशनल असेम्बली को मान्यता प्रदान कर दी. 14 जुलाई 1789 को क्रुद्ध भीड़ ने बेस्तील पर आक्रमण करके कैदियों को छुड़ा लिया, और यही से फ्रांस की क्रांति की शुरुआत हुई.

फ्रांस की क्रांति का स्वरूप (Nature Of Declaration Of French Revolution)

बेस्तील का पतन राजा की निरंकुशता के विरुद्ध जनता द्वारा किये गये विरोध की सफलता का सूचक था. 4 अगस्त 1789 को राष्ट्रीय सभा ने सामंतों के अधिकार समाप्त कर दिए.

17 अगस्त 1789 को नेशनल असेम्बली द्वारा समानता, स्वतंत्रता व भातृत्व के साथ मौलिक अधिकारों की घोषणा की गई. 5 अक्टूबर 1789 को हमारों महिलाएं हमे रोटी दो के नारे के साथ वर्साय के शाही महल में घुस गई व राजा रानी के परिवार को बंदी बना लिया.

1791 में फ्रांस का नया संविधान बनकर तैयार हो गया, जिसका मुख्य आधार लोक प्रभुत्व और कार्यपालिका तथा न्यायपालिका और व्यवस्थापिका की शक्तियों को अलग अलग किया गया था.

सवैधानिक राजतन्त्र की व्यवस्था प्रारम्भ हुई, प्रथम बार लिखित सविधान की व्यवस्था की गई. 20 जून 1791 की रात्रि को लुई 16 वां अपनी पत्नी व राजकुमार के साथ भेष बदलकर पेरिस से भाग निकला.

दूसरे दिन फ्रांस की सीमा के निकट आधी रात को लोगों ने उन्हें पहचान लिया एवं पकड़कर वापिस पेरिस शहर ले आए. राजा को अब नजरबंद कैदी की तरह रखा गया एवं 1793 में उन्हें फांसी दे दी गई.

फ्रांस की क्रांति के परिणाम (French Revolution Results Essay)

यूरोप ही नही सम्पूर्ण विश्व में फ्रांस की इस राज्य क्रांति का एक विशेष स्थान है. हेजन के अनुसार ‘फ्रांस की क्रांति’ ने राज्य की एक नई धारणा को जन्म दिया.

इस क्रांति ने विश्व की अधिकाँश महत्वपूर्ण घटनाओं को प्रभावित किया. इस फ्रांसीसी रिवेल्युशन के परिणाम निम्नलिखित थे.

  1. इस क्रांति से आर्थिक शोषण की पोषक बनती व्यवस्था का अंत हुआ. अन्य देशों में भी सामन्ती व्यवस्था का अंत हुआ. राजा रानी व उनके समर्थकों को मौत के घाट उतार दिया गया. लुई के निरंकुश स्वेच्छाकारी शासन की समाप्ति हुई.
  2. धर्म के क्षेत्र में उदारता एवं धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहन मिला. धार्मिक असमानता को समाप्त करने का प्रयास हुआ.
  3. इस क्रांति ने स्वतंत्रता समानता एवं भ्रातृत्व की भावना को प्रोत्साहन मिला. सविधान सभा द्वारा मौलिक अधिकारों की घोषणा की गई.
  4. इस क्रांति से समाजवादी व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त हुआ.
  5. फ्रांस की क्रांति से कुलीन वर्ग की प्रतिष्ठा कम हुई.
  6. फ्रांस की क्रांति” के बाद राजनैतिक दलों का विकास हुआ.
  7. क्रांति ने निर्धनों व अमीरों दोनों को न्याय के समक्ष समानता प्रदान की गई. अमीरों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गये.

फ्रांस की राज्यक्रांति से जुड़े रोचक तथ्य

फ्रांसीसी क्रांति फ्रांस और यूरोप के इतिहास की सबसे मुख्य घटनाओं में से एक मानी जाती है क्योंकि इस क्रांति के पश्चात पूरा यूरोप परिवर्तन के रास्ते पर अग्रसर हो गया था। फ्रांस की राज्यक्रांति से जुडे कुछ बेहद। रोचक तथ्यों को नीचे व्यक्त किया गया हैं –

  • सन् 1774 में लुई 16 फ्रांस के नए शासक बने थे।
  • 1789 ई. में लुई 16 के शासनकाल से फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत हुई थी। ‌
  • फ्रांसीसी क्रांति के समय यूरोप में सामंती व्यवस्था थी।
  • फ्रांसीसी क्रांति के फलस्वरूप समानता, भाईचारे और स्वतंत्रता जैसी भावनाएं फ्रांस के लोगों के हृदय में उमड़ी थी। ‌
  • “मैं ही राज्य हूं और मेरे शब्द ही कानून हैं”- इस कथन को कहने वाले लुई 14 का पतन भी फ्रांसीसी क्रांति के कारण हुई थी। ‌

1848 की फ्रांसीसी क्रांति के कारण-.

सन् 1848 में हुए फ्रांसीसी क्रांति के पीछे एक नहीं बल्कि कई सारे कारण हैं। 1848 के फ्रांसीसी क्रांति के कारणों पर हमने नीचे प्रकाश डाला है –

  • समाजवादी विचारधारा का उदय
  • लुई फिलिप की विदेशी नीति
  • गीजो मंत्रिमंडल द्वारा अपनाई गई प्रतिक्रियावादी नीति
  • उच्च बुर्ज़ुआ वर्ग की प्रधानता
  • फ्रांसीसी क्रांति का यूरोप पर प्रभाव

फ्रांसीसी तथा यूरोपियन इतिहास में 1848 में हुई फ्रांसीसी क्रांति का विशेष महत्व है। ‌ इस क्रांति के द्वारा फ्रांस व यूरोप के जनता के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन में परिवर्तन लाने की कोशिश की गई हैं।

इस क्रांति के पश्चात यूरोप के जनता के राजनीतिक विचारों में काफी परिवर्तन देखने को मिला था। वहां लोगों में ‌राष्ट्रीय व उदार विचारधाराओं का तो विकास हो ही रहा था साथ ही साथ जनता के बीच गुप्त संगठनों का भी निर्माण हो रहा था।

इस क्रांति के पश्चात यूरोप में निरंकुश शासन की नींव हिल गई थी। क्रांति ने जनता के मन में संवैधानिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा कर दी थी। इंग्लैंड में उस समय संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का भी काफी विकास हुआ था।

1848 में हुए फ्रांसीसी क्रांति का सबसे बड़ा फायदा जनता को यह मिला कि अब “मत देने का अधिकार” केवल मध्यम वर्ग तक सीमित नहीं था बल्कि पूरी जनता के पास था।

फ्रांसीसी क्रांति के कारण ही सार्डिनिया और जर्मनी का एकीकरण प्रशा के नेतृत्व में हुआ था। उदारवाद को संक्रामक रोग समझने वाले मेटरनिख व्यवस्था का अंत भी इस क्रांति के बाद हो गया था।

फ्रांसीसी क्रांति के पश्चात यथार्थवाद का उदय हुआ। इस क्रांति ने क्रांतिकारियों की सुखद आशाओं को नष्ट कर दिया।

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