बाबा रामदेव जी की जीवनी कथा इतिहास व भजन Lok Devta Baba Ramdev Ji History In Hindi

बाबा रामदेव जी की जीवनी कथा इतिहास व भजन Lok Devta Baba Ramdev Ji History In Hindi: गाँव रुणिचा अर्थात रामदेवरा आज लाखों भक्तो की श्रदा और भक्ति का संगम बीते सैकड़ो सालों से बना हुआ हैं. जिनकी वजह हैं बाबा रामदेव जी जिन्हें ramdevpir रामदेवपीर भी कहा जाता हैं.

रुणिचा के तोमर वंश में जन्म लेंने वाले बाबा रामदेव जी आज राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता हैं, भाद्रपद बीज (जन्मतिथि) बाबा रामदेव जी जयंती के दिनों रामदेवरा में विशाल मेला भरता हैं,

राज्य के अन्य हिस्सों सहित गुजरात मध्यप्रदेश व देश-विदेश से भक्त बाबा का दर्शन पाने के लिए सैकड़ो दिन की पैदल यात्रा कर रामदेवरा पहुचते हैं.

बाबा रामदेव जी की जीवनी कथा इतिहास Lok Devta Baba Ramdev Ji History In Hindi

बाबा रामदेव जी की जीवनी कथा इतिहास व भजन Lok Devta Baba Ramdev Ji History In Hindi

माना जाता हैं कि बाबा रामदेव जी का जन्म 1409 ई में हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक भादवे की बीज (भाद्रपद शुक्ल द्वित्या) के दिन रुणिचा के शासक अजमल जी के घर अवतार लिया था. इनकी माता का नाम मैणादे था. इनके एक बड़े भाई का नाम विरमदेव जी था.

तोमर वंशीय राजपूत में जन्म लेने वाले बाबा रामदेव जी के पिता अजमल जी निसंतान थे. सन्तान सुख प्राप्ति के लिए इन्होने द्वारकाधीश जी की भक्ति की उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् ने वरदान दिया था. कि भादवे सुदी बीज को वे स्वय आपके घर बेटा बनकर अवतरित होंगे.

पोकरण के राजा अजमाल जी निसंतान थे, उन्हें इस बात से इतना दुःख नही होता था. वे अपनी प्रजा को ही सन्तान समझते थे.

दूसरी तरफ भैरव राक्षस के आतंक से सम्पूर्ण पोकरण क्षेत्र में लोगों के भय का माहौल बना हुआ था. एक दिन की बात थी. मुसलाधार वर्षा होने के बाद किसान पुत्र खेत जोतने जा रहे थे.

बाबा रामदेवजी महाराज का जीवन परिचय Baba Ramdev Runicha History Biography Katha In Hindi

लोक देवताओं में रामदेव जी का नाम अत्यधिक लोकप्रिय है. इनका जन्म 15 वीं शताब्दी में अजमल जी और मैंणा दे के घर पोकरण के एक गाँव में हुआ था. इनका विवाह नेतल देवी के साथ हुआ था.

बाबा रामदेवजी सिद्ध संत, शूरवीर, चमत्कारी, कर्तव्यपरायण, जनता के रक्षक और गौ सेवक के रूप में प्रसिद्ध हुए.

रामदेवजी ने जाति व्यवस्था का विरोध करते हुए सामाजिक समसरता का संदेश दिया. रामदेवजी ने जीव मात्र के प्रति दया, गुरु महिमा, पुरुषार्थ एवं मानव के गौरव को महत्व दिया. वे समाज सुधारक थे.

समाज में अछूत कहे जाने वाले वर्ग के साथ बैठकर भजन करना, दलित डालीबाई का बहिन के रूप में पोषण करना, धार्मिक आडम्बरों का विरोध करना तथा हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल देना आदि रामदेवजी के प्रमुख कार्य थे.

रामदेव जी ने गुरु की महता पर जोर देते हुए कर्मों की शुद्दता पर बल दिया. ग्रामीण समाज में बाबा रामदेव गौ रक्षक, परोपकारी और लोकदेव के रूप में पूज्य है. राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश एवं गुजरात में भी इनकी पूजा की जाती है. ये सामाजिक सोहाद्र के प्रतीक थे.

अश्वारुढ़ बाबा रामदेव के एक हाथ में भाला और दुसरे हाथ में तंदूरा शक्ति व भक्ति के प्रतीक है. इनके समाधि स्थल पर निर्मित मन्दिर, रामसरोवर, पर्ण बावड़ी, डालीबाई का समाधि स्थल मन्दिर पावन स्मारक माने जाते है.

विभिन्न गाँवों में बाबा रामदेवजी के थान व मन्दिर है. खेजड़ी के वृक्ष के नीचे चबूतरे पर बाबा रामदेव जी के पगलियें स्थापित किये जाते है. बाबा के मन्दिरों को देवल या देवरा कहा जाता है. तथा बाबा रामदेव के नाम की शपथ भी ली जाती है. जिसे बाबा रामदेव री आण कहा जाता है.

रात्रि में जम्मा जागरण किया जाता है तथा लोक गीत काव्य कथा से इनकी स्तुति की जाती है. इन्होने विक्रम संवत् 1515 , 1458 ईसवीं में समाधि ले ली थी.

इनके समाधि स्थल रामदेवरा रुणेचा में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वीतीय से दशमी तक विशाल मेला लगता है. आस पास के प्रदेशों से भी लोग मेले में आते है.

बाबा रामदेव जी जन्म कथा (Baba Ramdev Ji/ramdevpir birth story)

तभी उन्हें अजमाल जी महाराज के दर्शन हो गये. इनके बाँझ होने के कारण बड़ा अपशगुन हुआ और वही से वापिस लौट गये. जब अजमल जी ने उन किसानो को रोककर यु वापिस चले जाने का कारण पूछा तो पता चला वे निसंतान हैं.

और खेती की वेला बाँझ व्यक्ति के दर्शन से अपशगुन होता हैं. ये शब्द अजमल जी के कलेजे को चीरने लगे. अब तक प्रजा की भलाई के लिए भगवान् द्वारकाधीश से आशीर्वाद मागने वाले अजमल जी अब पुत्र कामना करने लगे. इस दोरान कई बार वो गुजरात के द्वारका नगरी दर्शन भी करने गये. मगर उनकी मनोइच्छा पूर्ण ना हो सकी थी.

आखिर उन्होंने हार मानकर मैनादे से यह कहकर अंतिम दवारका यात्रा को निकल गये कि यदि इस बार भगवान् नही मिले तो वे अपना मुह लेकर वापिस नही आएगे.

अजमल जी के द्वारका जाने पर वे मन्दिर की मूर्ति से पूछने लगे – हे भगवान् आखिर मैंने ऐसा क्या पाप किया, जिसकी सजा मुझे दे रहे हो.

आप जवाब क्यों नही देते. कई बार ये कहने पर उन्हें मूर्ति से कोई जवाब नही मिला तो तामस में आकर अजमल ने बाजरे के लड्डू द्वारकाधीश की मूर्ति को मारे. यह देख पुजारी बौखला गया और पूछा तुम्हे क्या चाहिए.

अजमल जी कहने लगे मुझे- भगवान् के दर्शन चाहिए. पुजारी ने सोचा इसको भगवान् के दर्शन का कितना प्यासा हैं? सोचकर कह दिया इस दरिया में द्वाराधिश रहते हैं. अजमल जी ने आव देखा न ताव झट से उसमे कूद पड़े.

भगवान् द्वारकाधीश सच्चे भक्ति की भक्ति भावना देखकर गद्गद हो उठे. उन्होंने उस दरिया में ही अजमल जी को दर्शन दिए और भादवा सुदी बीज सोमवार को उनके घर अवतरित होने का वचन देकर सम्मान विदा किया.

बाबा रामदेव जी का बचपन (Childhood of Baba Ramdev Ji/ramdevpir)

हिन्दुओं के लिए बाबा रामदेव जी और मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए रामसा पीर कहे जाने वाले बाबा ने ईश्वर का अवतार लेकर कई ऐसे चमत्कार दिखाए और कार्य किये जिन्हें कोई भी साधारण मनुष्य नही कर सकता.

चमत्कारी पुरुष बाबा रामदेव जी के इन्ही चमत्कारों को 24 पर्चे भी कहा जाता हैं. जिनमे बाबा ने पहला पर्चा झूले झूलते हुए माँ मैनादे को दिया था. ऐसे रामसा पीर बचपन से छुआछूत और भेदभाव के कट्टर विरोधी थे.

जब बाबा रामदेव जी पोकरण रजवाड़े के राजा बने तो इन्होने शासक की बजाय एक जनसेवक के रूप में कई महान कार्य किये.

उस समय दलित समुदाय को उच्च जाति के लोग दीन-हीन समझकर उनसे बात करना पसंद नही करते थे. राजपूत परिवार में जन्मे इन्ही बाबा रामदेव जी दलित बालिका डालीबाई को अपनी धर्म बहिन बनाया और जीवन पर्यन्त उन्होंने खुद से ज्यादा वरीयता अपनी बहिन को दी.

यहाँ तक कि जब रामदेवजी समाधि लेने लगे तो डाली बाई ने इसे अपनी समाधि बताकर जीवित समाधि ले ली थी. जो बाबा राम सा पीर की समाधि के पास ही स्थित हैं. इन्ही हिन्दू-मुस्लिम दलित प्रेम के कारण आज बाबा रामदेवजी को सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग बड़ी आस्था से ध्याते हैं.

बाबा रामदेव जी की बाल लीला (Baba Ramdev Ji Ki Baal Leela)

अवतारी पुरुष बाबा रामदेव जी की लीलाए उनके जन्म के साथ ही शुरू हो गईं थी. उनके जन्म के समय सारे महल में जल से भरे बर्तन दूध में बदल गये, घंटिया बजने लगी, आकाश आकाश वाणी होने लगी, आँगन में कुमकुम के पद चिह बन गये.

माँ के एक बार झुला झुलाते समय दूध उफनने लगा तो बाबा रामदेव जी ने अपने हाथ के इशारे से दूध को थमा दिया था.

बचपन में बाबा रामदेव जी दवरा कपड़े का घोड़ा बनवाने की जिद पर अड़ जाने के बाद अजमल जी ने एक दर्जी को कपडे देकर बालक रामदेव के लिए घोड़ा बनाने को कहा. बाबा रामदेव जी जब उस कपड़े के घोड़े पर बैठे तो वह आकाश में उड़ गया.

खेलते खेलते बाबा रामदेव जी द्वारा दैत्य भैरव का वध करना जैसे बहुत चमत्कारिक पर्चे (चमत्कार) इन्होने बेहद कम आयु अपने बाल समय में बाबा रामदेव जी ने दिखाकर सभी लोगों का दिल जीत लिया था.

बाबा रामदेव जी भैरव राक्षस वध कथा (Baba Ramdev ji Bhairav monster murder story)

इन्ही बाबा रामदेवजी के अवतार की एक वजह भैरव नाम के दैत्य के बढ़ते अपराध भी था. भैरव पोकरण के आस-पास किसी भी व्यक्ति अथवा जानवर को देखते ही खा जाता था. इस क्रूर दैत्य से आमजन बेहद त्रस्त थे.

रामदेव जी की कथा के अनुसार बचपन में एक दिन गेद खेलते हुए, मुनि बालिनाथ जी की कुटिया तक पहुच जाते हैं. तभी वहाँ भैरव दैत्य भी आ जाता हैं,

मुनिवर बालक रामदेव को गुदड़ी से ओढ़कर बालक को छुपा देते हैं. दैत्य को इसका पता चल जाता हैं. वह गुदड़ी खीचने लगता हैं. द्रोपदी के चीर की तरह वह बढती जाती हैं.

अत: भैरव हारकर भागने लगता हैं. तभी ईश्वरीय शक्ति पुरुष बाबा रामदेव जी घोड़े पर चढ़कर इसका पीछा करते हैं. लोगों की किवदन्ती की माने तो उन्हें एक पहाड़ पर मारकर वही दफन कर देते हैं.

जबकि मुह्नौत नैणसी की मारवाड़ रा परगना री विगत के अनुसार इसे जीवनदान देकर आज से कुकर्म न करने व मारवाड़ छोड़ चले जाने पर बाबा रामदेव जी भैरव को माफ़ कर देते हैं. और वह चला जाता हैं. इस प्रकार एक मायावी राक्षसी शक्ति से जैसलमेर के लोगों को रामसा पीर ने पीछा छुड़वाया.

बाबा रामदेव जी का विवाह (Marriage of Baba Ramdev Ji)

सवत सन 1426 में बाबा रामदेव जी का विवाह अमरकोट जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित हैं. यहाँ के दलपत जी सोढा की पुत्री नैतलदे के साथ श्री बाबा रामदेवजी का विवाह हुआ.

नैतलदे जन्म से विकलाग थी, जो चल फिर नही सकती थी, मगर अवतारी पुरुष (कृष्ण अवतार) ने पूर्व जन्म में रुखमनी (नैतलदे) को वचन दिया था. कि वे अगले जन्म में आपके साथ ही विवाह करेगे.

विवाह प्रसंग में नैतलदे को फेरे दिलवाने के लिए बैशाखिया लाई गयीं, मगर चमत्कारी श्री रामदेवजी ने नैतलदे का हाथ पकड़कर खड़ा किया और वे अपने पैरो पर चलने लगी. इस तरह बाबा रामदेवजी का विवाह बड़े हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ.

दुल्हन नैतलदे ने साथ अपने ग्राम रामदेवरा पहुचने पर उनकी बहिन सुगना बाई (चचेरी बहिन) उन्हें तिलक नही लगाने आई. जब इसका कारण पूछा गया तो पता चला उसके पुत्र यानि रामदेवजी के भांजे को सर्प ने डस लिया था.

तब बाबा स्वय गये और अपने भानजे को उठाकर साथ लाए तो लोग हक्के बक्के से रह गये.

बाबा रामदेव जी के 24 पर्चे (चमत्कार) (Baba Ramdev’s 24 miracles In Hindi)

लोक देवता बाबा रामदेव जी ने जन्म से लेकर अपने जीवन में 24 ऐसे चमत्कार दिखाए, जिन्हें आज भी बाबा रामदेव जी के भजनों में याद किया था. माँ मैनादे को इन्होने पहला चमत्कार दिखाया,

दरजी को चिथड़े का घोड़ा बनाने पर चमत्कार, भैरव राक्षस को बाबा रामदेव जी का चम्त्कार सेठ बोहितराज की डूबती नाव उभारकर उनको पर्चा, लक्खी बिनजारा को पर्चा, रानी नेतल्दे को पर्चा, बहिन सुगना को पर्चा, पांच पीरों को पर्चा सहित बाबा रामदेव जी ने कुल 24 परचे दिए.

बाबा रामदेव जी समाधि (Baba Ramdev Ji Samadhi)

मात्र तैतीस वर्ष की अवस्था में चमत्कारी पुरुष श्री बाबा रामदेव जी ने समाधि लेने का निश्चय किया. समाधि लेने से पूर्व अपने मुताबिक स्थान बताकर समाधि को बनाने का आदेश दिया.

उसी वक्त उनकी धर्म बहिन डालीबाई आ पहुचती हैं. वो भाई से पहले इसे अपनी समाधि बताकर समाधि में से आटी डोरा आरसी के निकलने पर अपनी समाधि बताकर समाधि ले ली.

डालीबाई के पास ही बाबा रामदेव जी की समाधि खुदवाई गईं. हाथ में श्रीफल लेकर सभी ग्रामीण लोगों के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर उस समाधि में बैठ गये और बाबा रामदेव के जयकारे के साथ सदा अपने भक्तो के साथ रहने का वादा करके अंतर्ध्यान हो गये.

बाबा रामदेव जी का रामदेवरा मेला & जन्म स्थान (Baba Ramdev’s Ramdevra fair & birth place)

आज बाबा रामदेव जी राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवता हैं. उनके द्वारा बसाए गये. रामदेवरा गाँव में वर्ष भर मेले का हुजूम बना रहता हैं. भक्त वर्ष भर बाबा के दर्शन करने आते हैं.

बाबा रामदेव जी के जन्म दिन भादवा सुदी बीज को रामदेवरा में विशाल मेला भरता हैं. लाखों की संख्या में भक्त दर्शन की खातिर पहुचते हैं. पुरे राजस्थान में बाबा रामदेव जी के भक्तो द्वारा दर्शनार्थियों के लिए जगह-जगह पर भंडारे और रहने की व्यवस्था हैं.

लगभग तीन महीने तक चलने वाले इस रामदेवरा मेले में सभी धर्मो के लोग अपनी मुराद लेकर पहुचते हैं. बाबा रामदेव जी की समाधि के दर्शन मात्र से व्यक्ति की सभी इच्छाए और दुःख दर्द स्वत: दूर हो जाते हैं.

बाबा रामदेवजी का जन्म स्थान उन्डू काश्मीर हैं, जो बाड़मेर जिले में स्थित हैं. वहां पर बाबा रामदेव जी का विशाल मन्दिर हैं. समाधि के दर्शन करने वाले सभी भक्त गन जन्म स्थान को देखे बिना घर लौटने का मन ही नही करते.

रामदेवरा जाने का रास्ता ( Way to visit Ramdevra )

यदि आप भी कभी बाबा रामदेव जी के दर्शन करना चाहे तो हम आपकों न्यौता देते हैं. आपकी यात्रा के लिए अच्छा समय सावन, भाद्रपद यानि जुलाई अगस्त महीने में आप राजस्थान के जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील में स्थित रामदेवरा पहुच सकते हैं. यदि आप गुजरात के रास्ते सफर करते हैं.

रेल बस, अथवा पैदल यात्रा के लिए जालौर,बाड़मेर से होते हुए पोकरण के रास्ते रामदेवरा जा सकते हैं. पहली बार यात्रा करने का सोच रहे पाठको को बताना चाहेगे रामदेवरा गाँव तक आप ट्रेन से भी यात्रा कर सकते हैं.

बाबा रामदेव जी के भजन | Baba Ramdev Ji bhajan Download

रामसा पीर या रामदेव जी के भजन गीत विडियो ऑडियो और हिंदी भाषा में आपकों यहाँ उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. 

बाबा रामदेव जी के भजनों का यह संग्रह कुछ पुस्तकों के साभार किया गया हैं. रामदेवजी की जागरण और आरती के लिए यहाँ कुछ टेक्स्ट और विडियो दोनों फोर्मेंट में भजन उपलब्ध हैं.

तर्ज तेरे मेरे बिच कैसा हैं बंधन अजाना
माया और लोभ के बिच फंसा हैं मन मेरा
पल का हैं डेरा,कुछ नही तेरा
मन के मते जो चाले,दुःख वो पावे
,मन की गति को कोई समझ ना पावे,
मन चंचल हैं मन चिकोरा
प्रभु को पुकारो मन से,वो दोड़ा चला आवे,
भक्तो की खातिर वो तो, नगे पाँव आवे,
भक्ति में बल हैं घनेरा, पल का हैं डेरा
माया का चक्कर ऐसा मन फास्ता ही जावे
विषयों में मानव तन,रमा चला जावे,
विषयों में पाप का बसेरा, पल का हैं डेरा,
मन के खजाने में माया ही तो माया.
समझे पुष्प तो सब कुछ पाया
मन में बसा प्रभु तेरा पल का हैं डेरा


तर्ज हिवडे से दूर मती जाय..
म्हारो करसी बेडो पार बाबा रामधणी,
बाबो हैं बड़ो हैं दातार रामधणी स्थायी ||
थाकमन्दिरजावां, थाकी पूजा करा, थाकछपन्न भोगलगावा
हो बाबा थारे छपन्न भोग लगावां,
तू दयालु हैं बाबा, तू कर सबका उपकार ||बाबा|
घर-घर में जावां थारो कीर्तन करा, दिन रात धने मह ध्यावा |
हो बाबा दिन रात थने महे ध्यावा
मन इच्छा फल देने वाला, थारी जय-जयकार बाबा ||
थांको त्याग बड़ो,थारो रूप भलो, पल-पल में थाने निरखा,
हो बाबा पल-पल में थान निरखा…
रणुचे में बैठ्या बाबो पुरो रूप निखार
थान देख्या बिना, थान निरख्या बिना म्हाने चैन नही तो आव
हां बाबा म्हान चैन नही तो आव…
अट्क्या कारज पूरा करजो, प्रेमजी करे पुकार ||


तर्ज कौन दिशा में लेके चला बटोरिया
घर-घर बाबा थारी ज्योत जगाये,
हमें तेरे गुण गावे,तेरे मन्दिर जाये-
बाबा दर्शन दौ||घर-घर||
ओ बाबा इतना बता,क्या हमारा है दोष रे
हम बालक नादान है,हम सभी निर्दोष रे
दया द्रष्टि तो कर दो दयालु,कर सबका कल्याण रे|1||
तन मन धन अर्पण करे, पूजा करे सुबह शाम रे
ध्यान तुम्हारा हम धरे, लेकर तुम्हारा नाम रे,
पूजा का विधि हम ना जाने, कैसे करे अभिशेक रे,
पूजा किस घर तेरी होवे वो घर हो आबाद रे,
विपदा उसकी सब मिटे, हो सुंदर ओलाद रे,
कमी किसी की ना रहे उस घर, भरे रहे भंडार रे,
तेरे दर पे आए हैं कर हमारा उपकार रे,
मन की मुरादे पूरी कर दे सपने साकार रे,
पुष्प गान से करते वंदना, वाणी जपे तेरा नाम रे||


अजमल जी रा जाया रे, कंवरा रामदे,
थे तो कियो कियो रुनिचे वास, पीर अवतारी रे..
भेरुड़ा ना मारयों, कवरा रामदे…
सारी प्रजा करे जैकार, पीर अवतारी रे…
बनिया ने तारयो जी कवरा रामदे,
डूबतड़ी तिराई थे तो जहाज, पीर अवतारी रे…
बिंजारा ने परस्यो, रे कंवर रामदे…
मिश्री री बनाई थे लूण, पीर अवतारी रे..
महिमा थारी भारी रे,कंवरा रामदे,
भक्तो ने थारो ही आधार, पीर अवतारी रे…


दोहा- मारग लियो अंजार को, श्री पथ रथ ललकार |
ठीक दुपेहरो माहे रो, भरनो आज अंजार ||

पद- राग सोरठ
थोड़ा धीमा हां को जी, नंद कुमार… | देर ||
रथ थारो कड़के, हियो म्हारो धड़के टूटे छे जी हिवड़ा रो हार
गावतडारा म्हारा कंठ जो धूजे, हचका तो लागे छे अपार
ऐसा हाक्या हरी जास्यां में पाली, आवो थारी रथड़ा री लार
पाली पाली चाली सांवला मंगला गास्यो पहुयो तुरंत अंजार

दोहा-
राधा राणी अरज करे सुण श्याम |
थोड़ा धीमा हाकता, थारे के लागे दाम ||
सुण राधा रुक्मणी, नरसी करे विलाप |
अवसर पर पुं हीं, लागे भगतशराप ||


साधू भाई पाखंड में कुछ नाहि |
पाखंडी पर पड़ ले जासी, पड़े चौरासी माई रे साधु भाई ||
बिना पाँव पंछी उड़ जावे, बिना चांच चुगजावे |
हजार कोस की खबर मगावे, तो भी मानु नाहि रे,
जा बैठे अग्नि रे माई ने जलता दिसे नाही |
पैर खड़ाऊ जल पर चाले, तो भी मानु नाहि रे,
गुफा खोदे अंदर जाय बैठा, ध्यान धरे मन माही |
काया पलट कर सिंह हो जावे, तो भी मानु नाहि रे ||
मच्चिदर प्रताप जाति गोरख बोले, देव दर्शन दिल माही |
तीन लोक से हो जा न्यारा, तेरी जन्म मरण मिटजाई रे,


जीते लकड़ी मरते लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का
दुनिया वालों तुम्हे सुनाये, ये बासा हैं लकड़ी का |
जब जन्म लिया था तुमने, पलग बिछा था लकड़ी का ||
माता तुम्हारी लोरी गाती, वो पलना था लकड़ी का ||
फिर चलना सीखा पकड़-पकड़ कर, हाथ में घोड़ा लकड़ी का
गया खेलन हाथ में लेकर, गिल्ली डंडा लकड़ी का ||
फिर पढने गया स्कुल तो, पकड़ी कलम लकड़ी का
और मास्टर ने भी डर दिखलाया, वो डंडा था लकड़ी का ||
फिर गया शादी करने को जिसमे वो रेल का डिब्बा था लकड़ी का

सास ससुर ने भी बिठलाया, वो बावजट था लकड़ी का ||
लग्न किया जब चिंता लगी, लूण तेल और लकड़ककी का
और जब बुड्ढा हुआ तब लिया हाथ में, ये ही सहारा लकड़ी का ||
उड़ गया पंछी डल गईं काया, चिता बनाया लकड़ी का
जिस काय को पल में जलाई, वो ढेर बना था लकड़ी का ||
तो मरते तक मिटाया नही, मुर्ख झगड़ा झगड़ो लकड़ी का
नाम प्रभु का ह्रदय बसा लो मिट जाय झगड़ा लकड़ी का ||

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