आज के शीर्षक राजस्थानी कविता Rajasthani Poem In Hindi प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर और इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करती हैं.कण कण सु गूंजे राजस्थान और मायड थारो पूत कठे जैसी अमर कविताएँ इस भूमि के बलिदान की गाथा जन-जन तक पंहुचा चुकी हैं, राजस्थान दिवस और विभिन्न विद्यालयी कार्यक्रमों में अक्सर मातृभूमी और मायड भाषा के कविता गीत निबंध और लेख तैयार करने में राजस्थान पर आधारित कविता मदद कर सकती हैं.
राजस्थानी कविता Rajasthani Poem In Hindi

प्रदेश के तीज त्यौहार और सांस्कृतिक आभा को दुनिया तक पहुचाने वाली इस कविता में गणगोर और तीज के त्यौहार की गाथा की सुंदर प्रस्तुती हैं.
रंगीले राजस्थान के वीर सपूत दुर्गादास राठोर,भामाशाह,पन्ना धाय, मन्ना,झाला,और पीथल के खून से सिंची इस भूमि के इतिहास के गौरव के साथ ही चम्बल के नए तीर्थो की झांकी और राजस्थान के विकास की पूरी कहानी
कविता- “म्हारा चोखा घणा किसान”
म्हारा चोखा घणा किसान
आखे दिन मेहनत करता,
हळ री नोक सूं खेत बांवता,
घणो धान बे उपजाऊता़ं,
समरपित करता अपणी जान।
म्हारा चोखा घणा किसान।।
पसीने री नदिया बाहवतां,
जणे जा ‘र दाणा उपजावतां,
सांगरी काकङीया , मतीरा खांवता़ं
जणे घणा ही निरोग रेवतां,
छकङा भर-भर लावतां धान।
म्हारा चोखा घणा किसान।।
आखातीज रा सुगन मनावतां,
गांया रे घी रो खिचङो बणावतां,
आंगणे में सात धान मेल ‘र पुजा करता,
बे निभावतां अपणी आन।
म्हारा चोखा घणा किसान।।
बे पशु घणा ही राखता,
दुध ,दही , छाछ, राबङी खावतां,
नशे रे नेङा नीं जांवता,
सौ कोसा ही पैदल जांवतां,
आच्छा हा बै जवान।
म्हारा चोखा घणा किसान।।
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फोफलिया, काचरिया फळीया रौ सांग बणावतां,
टिण्डसी रौ साग घणै चावै सूं खांवता,
खेत मे मीठ्ठी बाजरी बांवता,
आखे साल धाप- धाप खांवता,
खेत में नाख देवता आपणा डैरा।
म्हारा चोखा घणा बडैरा।।
खेती रै साथै साथै पशुपालण ही करता,
भांत भांत रा दाणा उपजावतां,
शुद्ध धान बै खांवता,
आवङै -गैवङै रौ घणौ मान करता,
घणौ करता बै सम्मान।
म्हारा चोखा घणा किसान।।
–सुनील कुमार नायक
सिखङली कवि- सुनील कुमार नायक
बाई सासरिये चाल पङी,
कोयलङी बाघ नै छौङ चली,
लडवण सासरियै चाल पङी,
बाई सासरियै चाल पङी।
बीरौसां ही रौवै , मायङ कुरळावै,
बाबौ सां रौ हियौ भर आयौ,
आंगण मे खेलती -कुदती ,
सहैलियां रै साथै – साथै खेलती,
बाई…
बाई सां घर आंघणियौ छौङ,
पीहर सूं मुखङौ मौङ,
बाई सासरियै चाल पङी,
कौयलङी बाघ नै छौङ चली,
बाई…
संग री सहैलिया रौ छुटीयौ साथ,
जद पीयू रौ पकङियौ हाथ,
संग री साथणियां रै साथै-साथै खैलती,
ब्हानै तू छौङ चली,
बाई…
मायङ रै तू गळै रौ हार मौतीङा बिखरगिया,
सहैलिया सूं बंधन टूट गिया,
बाई डुसकियां खांवती ,आंसूङा नै पौछती ,
पीव पलौ पकङियौ दु:ख नै जूझती चली,
बाई…
बीऱौसा लाया सूरंगौ बैस रै,
बाई रौ कर दीनौ दुसरौ दैस रै,
बीरौसा रौय-रौय राता करीया नैण,
दु:ख रौ पहाङ टूट पङियौ नही कर सके सैण,
बाई…
बाई बीरौसां नै रौवती नै छौङ चली,
टुक -टुक पग धरीया पाछै मुख मौङती चली,
मायङ डुसकिया खांवती बौली आज
हिमाळौ पीगळ गियौ गंगा भरीयौ नीर,
मैला कपङा पैरीया अफूटौ रौवै बाई लौ बीर,
बाई…
घूघंट मे काजळियै री रैख,
बाई तू थौङी सी पाछै दैख,
चंचल हिरणी ज्यूं आगै पग धरीया,
आंसू मांही रळगियौ काजळ नैण आंसू भर आया,
बाई…
रौक आंसूङा कर बजर सी छाती बाबौ सा नै बिदाई,
एक दो दिन ही नहीं बाई ,लम्बी घणी जुदाई,
अब थारै बिन कुण सूण सी मायङ रै मन री पीङ,
कुण जाणै कांई पङसी बाबौ सां में भीङ,
बाई घर आंघणियौ छौङ ,
पीहर सूं मुखङौ मौङ,
बाई…
डब डब भरीया बाईसा रा नैण,
चिङकली रा नैण ,
कौयलङी रा नैण,
बाईसा रा नैण,
बाई…
–सुनील कुमार नायक
कविता- तंबाकू
मत पियो मोटियारा थे दारू।
थारी बोली नी थारे सारू।।
मत जाओ थे दारू र नैङा।
ईनै नी पिवै गधैङा।।
मत घाल तुं मुंडे माही जर्दो।
थुख – थूख थें सगळै घर नै भरदौ।।
सिगरेट सिळगार मत काढौ थें धुऔ।
ई सूं थांरी ज़िन्दगी रौ निकळ जावैला धूंऔ।
घौळ -घौळ मत पी तूं डौडा।
एक दिन जवाब दैदैसी थारा गौडा।।
मत पियो मोटीयारा थे बीड़ी।
थारी सगळी मांदी हौ जावैला पीङी।।
मत लै बैठ तूं हाथ माही हौकौ।
ई रुपाळी काया रौ बण जावैला खौखो।।
थां सूं इतरी सी है अरज म्हारी।
मत मौल लैवौ थै आ बीमारी।।
सगळौ डील थारौ धूजण लागियौ।
जद सूं तूं दारू पीवण लागियौ।।
कैई मण तूं आ गन्दगी खागियौ।
जिणरौ नाव गुटखौ लखायौ।।
जवानी माही बूढापौ निगै आवै।
अॆ तम्बाकू रा लखण लखावै।।
दारु पी’अर तूं पङियौ रैवै गळिया रै माही।
कुत्ता मूतै थारै मूंडै माही।।
–कवि सुनील कुमार नायक
निराला राजस्थान (राजस्थानी कविता)
त्याग, प्रेम सौन्दर्य,शौर्य की,
जिसका कण-कण एक कहानी |
आओ पूजे शीश झुकाएं,
मिल हम,माटी राजस्थानी ||
सुबह सूर्य सिंदूर लुटाए,
संध्या का भी रूप सवारे |
इस धरती पर हम जन्मे हैं,
पूर्व जन्म के पुण्य हमारे ||
सघन वनों की धरा पूर्व की,
झरे कही झरनों से पानी |
बोले मोर पपैया कोयल,
खड़ी खेत में फसले धानी ||
गोडावण के जोड़ो के घर,
पश्चिम के रेतीले टीले |
ऊंट,भेड़, बकरी मस्ती से,
जहां पालते लोग छबीले ||
बंशी एकतारे, अलगोजे,
कोई ढोलक-चंग बजाए |
कही तीज, गणगौर, रंगीली,
गोरी फाग बधावे गाए ||
कहीं गूंजे भजन मीरा के
और कहीं, अजमल अवतारी |
दादू और रैदास सरीखे,
यह धरती ही तो महतारी ||
स्वामी भक्त हुए इसमे ही,
पीथल,भामाशाह,मन्ना से ||
दुर्ग-दुर्ग में शिल्प सलोना ,
दुर्गा जैसी हैं, हर नारी |
हैं हर पुरुष प्रताप यहाँ का,
आजादी का परम पुजारी ||
यहाँ भाखड़ा-चम्बल बांटे ,
खुशहाली का नया उजाला |
भारत की पावन धरती पर,
अपना राजस्थान निराला ||
राजस्थान पर कविता | poem on rajasthan in hindi
poem on rajasthani culture in hindi: रंग बिरंगे राजस्थान प्रदेश के सभी वासियों को नमस्कार, राजस्थानी भाषा और संस्कृति का मिठास इनकी कविताओं में देखा जा सकता हैं. यहाँ हम मेरा/ हमारा राजस्थान राज्य पर लिखी राजस्थानी भाषा की कविता जो वीर महाराणा प्रताप पर लिखी गई है इसे प्रस्तुत कर रहे हैं.
महाराणा प्रताप पर राजस्थानी कविता (Rajasthani poem on Maharana Pratap)
अवतरित हुओ मेवाड़ी सूरज
जद लाज भूमि री राखि उण
भारत ने जिण गुरु बणायो
हिन्दू गावे नित् राणा रा गुण
उ हिंदूबलि रत्न जन्मयो
माँ जयवंता री गोद सू
उण साचा कर्म करिया जग में
बखाण करे सब मोद सू
उणी कल्पना अकबर किनी
सर्प देखिना सपना में
अकबर भी कीनो बखाण राणा रो
जद राणा छोड्या अपना ने
कलम से तनेंद्र सिंह राठौड़
म्हारो राजस्थान शोर्ट हिंदी कविता
राजाओं का स्थान – राजस्थान
वीरांगनाओं की आन- राजस्थान
शूरवीरों की मान – राजस्थान
अतिथि का सम्मान – राजस्थान
रिश्ते नातों का मिलान- राजस्थान
बलिदानों का जहान – राजस्थान
त्याग का तूफान – राजस्थान
अपनी गीता और कुरान – राजस्थान
खेत और खलिहान – राजस्थान
गलियाँ और दुकान – राजस्थान
रेत का उफान – राजस्थान
दुर्ग महल महान – राजस्थान
नारी का उत्थान – राजस्थान
तीर और कमान – राजस्थान
वीर हर संतान – राजस्थान
दीन दुखी का ध्यान – राजस्थान
एक रंग के मकान – राजस्थान
मक्के बाजरे का धान – राजस्थान
राजपूतों की शान – राजस्थान
प्रजा जिसकी जान – राजस्थान
मेरे रक्त की पहचान राजस्थान
सर्वश्रेष्ठ सम्मान जब जन्मभूमि हो राजस्थान
कलम से –
राजस्थानी कविता- खेजड़ी
म्हारी प्यारी खेजङी,
ऊनाळै सियाळै तुं रेवै हरी-भरी,
काळा हिरण थारै छिंया मे कुचाळा मारै,
जद ऊनाळै मे सगळा वृक्ष सूख जावै।
पण तुं किंया हरी-भरी रेवै,
जेठ री लू मे तुं एकली खङी मुस्करावै,
जीव थारी छींया मे बैठ अर जान बचावै
ऊनाळै मे पाणी घणी घणी कोसा तांई नी मिळै,
पण तुं खेजङी हरी-भरी रेवै।
जेठ रै तीखै तावङीयै मे जींवा रै होठां माथै,
फेफ्फियाँ आ जावै पण तुं युं खङी मुस्करावै,
मारवाङ रा किसान थारी साँगरी ने गणै चावै सुं खावै,
थारै लूंख ने खा’र अणूता ऊँठ अरङावै।
धन्य धन्य थारी छाँव खेजङी,
म्हारी रुपाळी प्यारी खेजङी।
मिंमझर, साँगरी और खोखा देवै,
थारो हाथ कदी न खाली रेवै।
चिङी कमेङी री आश्चर्य दाता है तुं,
केर,बोरङी अर किकर री साथी तुं।
मारवाङ री शान खेजङी,
म्हारी प्यारी रुपाळी खेजङी।
कवि सुनील कुमार नायक
Rajasthani Kavita : खेजड़ी पर कविता और उनका सार
Rajasthani Kavita शीर्षक की यह रचना राजस्थानी भाषा में हैं, राजस्थान के राज्य वृक्ष को कई धार्मिक कार्यो में खेजड़ी का बड़ा महत्व माना जाता हैं. जड़ी रेतीले प्रदेश की जीवनरेखा समझा जाता हैं, इसके उपकार बहुत बड़े हैं.
इस मरु प्रदेश में थका हारा मार्गपंथी हो या खेत में काम करने वाला किसान एंव मजदूर. जब भी काम करके थक जाते हैं तो खेजड़ी ही उनका सहारा होती हैं. इसकी ठंडी छाव में बैठकर खेजड़ी को धन्य मानता हैं. लीजिए पढ़ते हैं खेजड़ी पर ये बेहतरीन हिंदी कविता.
मरुधर माही थने नमे सब, ढाणी मजरा गाँव खेजड़ी !
किया बखानु थारी माया, धन धन थारी छाव , खेजड़ी !
खड़ी एकली थू मदमाती |
कैर बोरडी थारा साथी ||
धोरा में तू किकर जीवै ?
कियाँ रेत में तू खावै पीवै ?
कोसाँ ताईं नजर ना आवै,जल रो कोई ठाँव, खेजड़ी !
तो भी बारह मॉस हरी थू धन धन थारी छाँव खेजड़ी !
नित रा ओल्युं दोलयु थारे |
काला हिरण कुलांचा मारै |
मोर कमेड़ी , कुरजा बोले |
गोडावण रा जोड़ डोले ||
कदे डाल पे कोयल कुके ,करै कांगला कांव , खेजड़ी !
ऊट पातड़ा खा अरडावे, धन-धन थारी छाँव,
स्यालो और उनालो झेले |
आंधी और दुगट सू खेले |
लू री लपटा लावा लेवे |
पण थू उफ़ | तक कोनी केवे ||
म्हा लोगां रा, जूता तक में, दाझण लागे पाँव, खेजड़ी !
पंथी रुक बिसराम करे हैं, धन धन थारी छाँव खेजड़ी !!
हे खेजड़ी, राजस्थान की रेतीली धरती के ढाणी मजरे और गाँव के सभी लोग तुझको नमस्कार करते हैं| मै तेरी महिमा की व्याख्या कैसे करू ?
हे खेजड़ी ! तू धन्य हैं, तेरी छाया धन्य हैं.
तू अकेली अपनी मस्ती में खड़ी हैं और कैर तथा बेर के पेड़ तेरे साथी हैं, पर यह समझ नही आता कि रेतीले धोरों में जीवित कैसे रहती हैं. तथा वंहा रेत में क्या खाती और पीती हैं ?
हे खेजड़ी रेत के धोरों में कोसो दूर तक खी पानी का स्थान नही दिखाई देते हैं. इसके बावजूद तू वर्ष के बारह महीने हरी रहती हैं, हे खेजड़ी तू धन्य हैं तेरी छाँव धन्य हैं.
रोजाना तेरे आस-पास में काले हिरण कुलांचे भरते हैं, मोर कमेड़ी तथा कुरजा नाम के पक्षी बोलते हैं और गोडावण पक्षी के जोड़े घूमते हैं | हे खेजड़ी तेरी डाली पर कभी तो कोयल कुहुकती हैं और कभी कौए कांव-कांव करते हैं, ऊट तेरे पत्ते खाकर आवाज करते हैं.
तुम सर्दी और गर्मी सहती हो, तो कभी धुल भरी आंधियो और रेत के गुब्बार से खेलती हो. तेजी से चलती लू की लपटे तुम्हारी बलैया लेती हैं. लाड़ लड़ाती हैं, पर तुम इतनी सहनशील हो कि इतनी गर्मी को झेलते हुए भी उफ़ तक नही करती हो |
हे खेजड़ी|लू और गर्मी से जुते में हमारे पाँव जलने लगते हैं | तुम्हारी छाया में राहगीर कुछ देर ठहरकर आराम करते हैं | हे खेजड़ी तू धन्य हैं तेरी छाया धन्य हैं |
खेजड़ी को वर्ष 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था. इसे थार का कल्पवृक्ष, जांटी, शमी भी कहा जाता हैं. खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम Prosopis cineraria हैं. वैसे तो यह वृक्ष पुरे राजस्थान में पाया जाता हैं, लेकिन राजस्थान के पश्चिम इलाकों में अधिक पाया जाता हैं.
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मित्रो प्रदेश की वीरगाथा बताने वाली यह राजस्थानी कविता Rajasthani Poem In Hindi आपकों कैसी लगी, हमे कमेंट कर जरुर बताए.
बहुत बहुत अच्छी
यह कविता हमने तब पढ़ी थी जब हम तीसरी कक्षा में (2003) पढ़ते थे तब गाँव में यह बहुत पढ़ते आज फिर इसकी याद तो नेट से खंगालकर एक बार पुनः पढ़कर उसी दौर में खो गए
जय राजस्थान
कृपा करके तनेंद्र जी की हिंदी कविताएं भी प्रकाशित कीजिए।
उनकी कविताओं में नई ऊर्जा हैं और उनकी लेखनी आम आदमी के दिल तक पहुंच जाती हैं
हिंदी के उभरते सितारे हैं तनेंद्र सिंह राठौड़
मैंने उनकी कविताओं को बार बार पढा है
हो सके तो उनके संपर्क नंबर भी भिजवाए
धन्यवाद्
सोनल राजपूत
जी मैंने भी उनकी सारी कविताएं पढ़ी है
राजस्थानी के साथ साथ तनेंद्र जी की हिंदी कविताएं भी प्रकाशित कीजिए।
धन्यवाद
प्रवीण पाण्डेय
तनेन्द्र राठौड़ की कविता प्रकाशन महाराणा प्रताप के लिए धन्यवाद अतिसुंदर काव्य रचना
अद्भुत काव्य रचना कवि तनेंद्र द्वारा
तनेद्र सिंह हिंदी कवि हैै परंतु उनकी इस राजस्थानी कविता का कोई जवाब नहीं अतिसुंदर
तनेन्द्र राठौड़ की कविता प्रकाशन महाराणा प्रताप के लिए धन्यवाद अतिसुंदर काव्य रचना
अद्भुत कवि अविश्वस्नीय रचनाएं
तनेंद्र सिंह राजपूत राजस्थान के उभरते गौरव हैं और उनकी कविताओं में बड़ा ही तेज हैं। दिल छू लेने वाले कवि तनेंद्र सिंह जी की और भी कविताएं प्रकाशित कीजिए हम उनके दीवाने हैं।
और कृपा करके उनके संपर्क नंबर भी भेजें
मेरी भी राजस्थानी भाषा में रचनाएं हैं आप उन्हें यह प्रकाशित करने की कृपा करेंगे क्या
तनेंद्र जी की एक कविता है मां का आंचल उसे भी प्रकाशित करें।
आभार
अशोक कुमार जोधपुर