राजस्थान में भक्ति आंदोलन | Rajasthan Me bhakti Movement In Hindi
राजस्थान में प्रारंभिक काल में ब्रह्मा और सूर्य की पूजा लोकप्रिय रही हैं. विष्णु के अवतार के रूप में राम और कृष्ण की पूजा का काफी प्रचलन हैं. साथ ही शिव शक्ति व विष्णु तथा गणेश, भैरव, कुबेर, हनुमान, कार्तिकेय, सरस्वती आदि की पूजा होती थी. राजस्थान में जैन धर्म का काफी प्रचलन हैं. राजस्थान के राजपूत शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे व शक्ति की उपासना करते थे. शेष हिंदुस्तान के समान ही, यहाँ भी धार्मिक सहिष्णुता रही हैं. सभी धर्म बराबरी से, शान्ति के साथ रहते आए हैं. राजस्थान में भक्ति आंदोलन से जुडी उपलब्ध जानकारी नीचे दी गई हैं.
What Is Bhakti Movement
भक्ति आन्दोलन का समय मध्यकालीन भारत ८०० से १७०० इसवी तक माना जाता हैं, जो भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण पडाव था. विभिन्न राज्यों में अलग अलग संतो तथा समाज सुधारकों द्वारा भिन्न भिन्न तरीके से ईश्वर की आराधना की पद्धतियों को लाया गया. इस लिहाज से यह मौन क्रांति की एक धारा थी जो सम्पूर्ण भारत में समान रूप से बही.
हिन्दुओं, मुस्लिमों और सिक्खों के संतों, गुरुओं, महात्माओं तथा सूफी संतों द्वारा भारत में नये रीती रिवाज तथा विश्वासों को जन्म दिया. सिक्खों द्वारा गुरबानी का गायन, हिन्दू मंदिरों में कीर्तन, मुसलमानों द्वारा दरगाह में कव्वाली आदि भक्ति आंदोलन की ही देन हैं.
राजस्थान में भक्ति आंदोलन (Bhakti Movement In Rajasthan)
राजस्थान में भक्ति आंदोलन को फैलाने का श्रेय संत दादू जी को दिया जाता हैं. वैसे तो भारत में भक्ति आंदोलन के प्रतिपादक रामानुज आचार्य को माना जाता हैं. राजस्थान में भक्ति आन्दोलन के जनक संत धन्ना का जन्म 1415 ई. में टोंक जिले के धुवन गांव में हुआ था। ये रामानन्दजी के शिष्य थे।