रेहाना तैयबजी की जीवनी: रियाना तैयबजी एक गायिका, लेखक और मुस्लिम संत थीं रेहाना तैयबजी का जन्म 26 जनवरी, 1900 को बड़ौदा में एक संपन्न और सुशिक्षित परिवार में हुआ था।
इनके पिता, अब्बास तैयबजी, एक जाने माने न्यायाधीश थे, जिन्होंने देशभक्ति का पहला पाठ पढ़ाया।
रेहाना तैयबजी की जीवनी Biography of Rehana Tyabji
पूरा नाम | रैहाना अब्बास तैयब |
जन्म | 1900 ई |
स्थान | वडोदरा, गुजरात, भारत |
मृत्यु | 16 मई 1975 |
पहचान | समाज सेवी, स्वतंत्रता सेनानी |
पिता | अब्बास तैयबजी |
माँ | अमीना तैयब |
रेहाना तैयबजी का जन्म 26 जनवरी 1900 को बडौदा के एक धनी व सुशिक्षित परिवार में हुआ था, उन्होंने देशभक्ति की पहली शिक्षा अपने पिताजी से सीखी थी, जो कि एक प्रभावशाली जज थे. उनका नाम अब्बास तैयबजी था.
बाद में वह गांधी जी एवं उनके आश्रम की जीवन शैली को अपना लिया तथा निस्वार्थ रूप से आजादी प्राप्त करने के लिए तथा रचनात्मक कार्यों व सामाजिक क्षेत्र को अपने जीवन का अंग बना लिया. रेहाना ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहुत से आंदोलनों में भाग लिया.
विशेष रूप से ब्रिटिश सरकार की उन नीतियों के खिलाफ जिनका उद्देश्य था साम्प्रदायिक दंगों को भड़काकर हिन्दू व मुस्लिम के मन मस्तिष्क के विष के बीज बोना,
उन्होंने असहयोग आंदोलन तथा बहिष्कार आंदोलन को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा जन समुदाय को स्वदेशी मुद्दे को अपनाने के लिए प्रेरित करती रहीं.
रेहाना ने कांग्रेस युवा संगठन के अध्यक्ष के रूप में आंदोलन को काफी आगे बढ़ाया. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए वे गिरफ्तार कर ली गई तथा उन्हें एक वर्ष के कारावास का दंड मिला. रेहाना का झुकाव विशेष रूप से आध्यात्मिक क्षेत्र में था.
जिसके कारण उन्हें धर्म, जाति, रंग व वर्ग की सारी सीमाएं टूटती नजर आई. यदपि वे मुसलमान थी पर भिन्न भिन्न धर्मों के विचारों के सम्बन्ध में उनकी धारणा धर्मनिरपेक्षता से ओत प्रेत थी, रेहाना के इन्ही गुणों के कारण गांधीजी उनसे विशेष रूप से प्रभावित हुए.
वह हिन्दू धर्म के भक्तिपूर्ण गीतों व भजनों को तन मन से गाया करती थी. रेहाना पहली महिला थी जो कांग्रेस के अधिवेशनों में वन्दे मातरम गाया करती थी.
रेहाना छुआछूत की भावना को समाप्त करने के प्रयत्न में गांधी का प्रबल रूप से समर्थन करती थी. वह महिलाओं की समस्याओं के समाधान की वकालत करते हुए राय साहब हरविलास शारदा एक्ट को पास करवाने सफल रही.
जिसके अंतर्गत बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाया जा सका. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हालांकि वे राजनीती से अलग हो गई पर सामाजिक कार्यों में निरंतर लगी रहीं. उनका देहांत 16 मई 1975 को हुआ.