समाजवादी अर्थव्यवस्था | Socialist Economy Features Characteristics Countries In Hindi

Socialist Economy Features Characteristics Countries In Hindi Socialist Economy In Hindi: अर्थ और परिभाषा-समाजवादी अर्थव्यवस्था से अभिप्राय एक ऐसी आर्थिक प्रणाली से है, जिसमे उत्पति के सभी साधनों पर सरकार द्वारा अभिव्यक्त सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व होता है.

तथा आर्थिक क्रियाओं का संचालन एक केन्द्रीय सता द्वारा सामूहिक हित व कल्याण के उद्देश्य से किया जाता है.

समाजवादी अर्थव्यवस्था को समान अर्थव्यवस्था अथवा केन्द्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है.

समाजवादी अर्थव्यवस्था Socialist Economy In Hindi

समाजवादी अर्थव्यवस्था | Socialist Economy Features Characteristics Countries In Hindi

काल मार्क्स द्वारा विकसित समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होकर सन 1917 में रूस में क्रांति हुई, एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था का प्रारम्भ हुआ.

रूस के बाद चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया, चीन, युगोस्लाविया, वियतनाम आदि दिसे ने इस आर्थिक प्रणाली को अपनाया, वर्तमान में चीन, उत्तरी कोरिया आदि को छोड़कर शेष देशों ने इस प्रणाली को छोड़ दिया है.

समाजवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं (Features of Socialist Economy in hindi)

समाजवादी अर्थव्यवस्था के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण या विशेषताएं निम्नलिखित है.

  • साधनों पर सामूहिक स्वामित्व (Collective ownership on instruments)-इस अर्थव्यवस्था में उत्पादन के भौतिक साधन अर्थात भूमि, वन, कारखानें, पूंजी, खानों आदि पर समाज या सरकार का स्वामित्व व नियंत्रण होता है. इसके परिणामस्वरूप लाभ का उद्देश्य या निजी हित के लिए आर्थिक गतिविधियों का संचालन नही होता है.
  • उपभोक्ता चयन का अंत (End of consumer selection)-इस अर्थव्यवस्था में वस्तुओं में उपयोग हेतु उपभोक्ता के चयन  की प्रभुसता उन्ही वस्तुओं तक रहती है, जिन्हें सरकार के निर्देशानुसार उत्पादित किया गया है. सरकार द्वारा निर्धारित मात्रा में ही उपभोक्ता द्वारा उपभोग किया जाता है.
  • केन्द्रीय नियोजन अथवा आर्थिक नियोजन (Central planning or financial planning)-समाजवादी अर्थव्यवस्था में सामाजिक आर्थिक लक्ष्यों में निर्धारण व प्राप्ति हेतु एक केन्द्रीय सता होती है. महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णय जैसे क्या उत्पादन करना है? उत्पादन कैसे करना है, आदि निर्णय केन्द्रीय सता द्वारा ही किये जाते है.
  • सामाजिक लाभ के उद्देश्य (The aim of social benefits)– समाजवादी अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय सता द्वारा सभी प्रकार के आर्थिक निर्णय अधिकतम सामाजिक व सामूहिक लाभ के उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही लिए जाते है न कि किसी निजी लाभ के उद्देश्य के लिए.
  • आर्थिक समानता (Economic equality)– समाजवादी अर्थव्यवस्था समान कार्य के लिए समान मजदूरी के सिद्धांत पर कार्य करती है. अतः इस आर्थिक प्रणाली में वर्ग संघर्ष की स्थति समाप्त हो जाती है. साथ ही निजी पूंजी स्थापित करने हेतु अवसरों की कमी के कारण आय की असमानता भी कम हो जाती है.

समाजवादी अर्थव्यवस्था के गुण (advantages of socialist economy)

  1. धन व आय का समान वितरण
  2. अवसरों में समानता
  3. नियोजित अर्थव्यवस्था
  4. वर्ग संघर्ष का अंत
  5. आर्थिक उतार चढ़ाव की समाप्ति (आर्थिक स्थिरता)
  6. काम का अधिकार
  7. लोगों को न्यूनतम जीवन स्तर का आश्वासन

समाजवादी अर्थव्यवस्था के दोष (disadvantages of socialist economy)

  1. नौकरशाही व लालफीताशाही
  2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रतिबंधित
  3. उत्पादन में कमी
  4. आर्थिक प्रेरणा का अभाव
  5. उपभोक्ता की स्वतंत्रता में कमी
  6. अधिकारों का हनन (निजी सम्पति का अधिकार)

अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं इसके कितने प्रकार हैं?

समाजवादी अर्थव्यवस्था एक केंद्रीकृत इकोनोमी मॉडल पर आधारित हैं जिनमें राज्य की समस्त आर्थिक क्रियाओं का पूर्ण नियंत्रण राज्य का अर्थात वहां के शासन का होता हैं. इसी कारण इन्हें नियंत्रित अर्थव्यवस्था भी कहा जाता हैं.

जिसमें बाजारी कारक नियंत्रित सीमा में होते हैं. यह व्यवस्था उपयोग तथा उत्पादन को निर्धारित करती हैं इसके उल्ट पूंजीवादी व्यवस्था लाभ से प्रेरित हैं.

समाजवादी अर्थ व्यवस्था का मूल केंद्र कल्याणकारी राज्य की संकल्पना होती हैं. वर्तमान समय में चीन, वियत नाम, उत्तर कोरिया में यही मॉडल अपनाया गया हैं.

समाजवादी अर्थव्यवस्था की आलोचना

  • इस व्यवस्था के केंद्र में राज्य को रखा गया हैं जिसके कारण उसके कार्य क्षेत्र में वृद्धि होने के कारण वह अपने मूलभूत कार्यो को संपादित नहीं कर पाता हैं.
  • समाजवादी विचारधारा में सभी संसाधनों पर किसी व्यक्ति का अधिकार न होकर वह राज्य के अधीन होता हैं जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की कार्य क्षमता कम होती हैं तथा उनके कार्य करने की भावना भी खत्म होती जाती हैं.
  • समाजवादी व्यवस्था का मूल आधार सामाजिक समानता हैं इस आधार पर आलोचक इसे स्वीकार नहीं करते हैं उनका मानना हैं कि समाज में कभी भी पूर्ण समानता को स्थापित नहीं किया जा सकता क्योंकि सभी व्यक्ति एक दूसरे की कार्य क्षमता में पूर्ण रूप से भिन्न होते हैं.
  • आलोचकों का तर्क हैं कि अर्थव्यवस्था का यह स्वरूप व्यक्ति की गरिमा तथा लोकतंत्र का विरोधी हैं जिसमें व्यक्ति के महत्व को समाप्त कर उसे मात्र एक मशीन मान लिया जाता हैं.
  • समाजवादी व्यवस्था में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता हैं राज्य के समस्त क्रियाकलाप रूप रूप से नौकरशाही पर आधारित होने के कारण वे मनमानी करने लगते हैं.
  • आलोचकों का मानना हैं कि यह मॉडल हिंसा को बढ़ावा देता हैं क्रांतिकारी तथा हिंसात्मक मार्ग से अपनी मांगे मनवाने के कारण वर्ग संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं तथा राज्य के सभी तबकों में वैम्स्य तथा विभाजन का खतरा रहता हैं.

समाजवादी अर्थव्यवस्था का इतिहास (History of Socialist Economy)

आधुनिक साम्यवाद/ समाजवाद का पिता कार्ल मार्क्स को माना गया हैं, मगर इतिहास उतना ही पुराना माना गया हैं जितना कि मानव सभ्यता का हैं.

मानव की सदियों से यह प्रवृत्ति रही है कि उसने अपने संसाधनों, वस्तुओं का मिलजुल कर उपयोग किया हैं. यह प्राकृतिक समाजवाद का स्वरूप था. दुनियां में आधुनिक साम्यवाद की परम्परा ईसाई पादरियों से शुरू हुई थी.

वे समान वस्त्र धारण किया करते थे उनकी आय का स्रोत जनता द्वारा दान में दी गई राशि भी इनमें साम्यता दर्शाती थी.

फ़्रांसीसी विचारकों सैं-सिमों और चार्ल्स फ़ूरिए तथा ब्रिटिश चिंतक राबर्ट ओवेन के विचारों से इस विचारधारा को आधुनिक काल में बल मिला.

सत्रहवी शताब्दी के इन विचारकों ने व्यक्तिवाद तथा स्पर्धा के स्थान पर आपसी सहयोग के समाज की साम्य वादी परिकल्पना पर बल दिया.

उन्नीसवीं सदी के तीसरे और चौथे दशकों के दौरान इंग्लैण्ड, फ़्रांस तथा जर्मनी जैसे युरोपीय देशों में अधिक जोर पकड़ने लगी.

उस समय यूरोपीय समाज एक तरफ औद्योगिक क्रांति के दौर से गुजर रहा था वही उसमें समाज सुधार भी तेजी से हो रहा था. मार्क्स और एंगेल्स के साम्यवादी विचारों को इसी समय एक भूमिका मिली.

मार्क्स के विचारों को लेनिन ने आगे बढाया तथा उन्होंने स्टेट ऐंड रेवोल्यूशन पुस्तक में समाजवाद के पहले चरण को प्रस्तुत किया. बीसवीं सदी में सोवियत रूस की क्रांति ने इसे जन जन के साथ जोड़ा गया.

क्रांति की सफलता के बाद रूस में साधनों के समाजीकरण, बाज़ार को केंद्रीकृत नियोजन के मातहत करने, तथा विदेश व्यापार व घरेलू वित्त पर राज्य के नियंत्रण जैसे उपाय किये गये.

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