अमृता देवी विश्नोई का इतिहास | Amrita Devi Bishnoi History In Hindi

अमृता देवी विश्नोई का इतिहास Amrita Devi Bishnoi History In Hindi : पर्यावरण संरक्षण की दिशा में विश्वोई समाज के योगदान से बढ़कर किसी और का हो ही नहीं सकता, क्या आपने कभी सुना हैं कि रुख बचाने की खातिर किसी ने अपने शरीर को कटवा दिया हो?

विश्व इतिहास का ऐसा विरला उदाहरण जोधपुर से 25 किमी दूर स्थित खेजडली गाँव में 12 सितंबर सन् 1730 में बना था,

जब खेजड़ी के पेड़ों को काटने से बचाने के लिए अमृता देवी समेत 363 विश्नोई भाइयों बहिनों ने अपने जीवन का त्याग कर दिया.

अमृता देवी विश्नोई का इतिहास | Amrita Devi Bishnoi History In Hindi

बनवारी लाल साहू की किताब पर्यावरण संरक्षण और खेजडली बलिदान में 12 सितम्बर के दिन घटित घटना के बारे में पूरा विवरण दिया गया हैं.

सर साठे रूख रहे, तो भी सस्तों जांण जैसे विचारों वाले विश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत जाम्भोजी ने जिन 29 नियमों का प्रतिपादन किया उनमे जीवों और हरे पेड़ों की रक्षा करने का आदेश भी हैं.

अमृता देवी का बलिदान

वर्तमान में वृक्षारोपण और वृक्षों की सुरक्षा के लिए बड़ी योजनाएँ लागू की जा रही है. इन्ही वृक्षों को बचाने के लिए आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व मारवाड़ के खेजड़ली गाँव में एक घटना घटित हुई.

जोधपुर क महाराजा अभयसिंह को अपने नये महल के लिए लकड़ी की जरुरत थी. भाद्रपद शुक्ल दशमी वि.संवत 1787 के दिन महाराजा ने खेजड़ली ग्राम में खेजड़ी के वृक्ष काटने के लिए सैनिक टुकड़ी भेजी.

इस गाँव की एक महिला अमृता देवी विश्नोई ने खेजड़ी वृक्ष काटने का विरोध किया और पेड़ से लिपट गई. उसके साथ उनकी तीन पुत्रियाँ भी थी.

अमृता देवी ने कहा कि वृक्ष की रक्षा के लिए वह अपनी जान देने को भी तैयार है. उसने यह कहते हुए सिर आगे कर दिया कि ”सर साटे रुख रहे तो भी सस्तों जाण”

सिर के बदलें वृक्ष बचता है तो भी सस्ता सौदा है. उसकी तीनों पुत्रियाँ की भी यही स्थति रही. महाराजा के सैनिकों ने विरोध करने पर अमृता देवी व उसकी पुत्रियों के सिर घड से अलग कर दिये.

उस दिन मंगलवार था जो कि काला मंगलवार के नाम से जाना जाता है. महाराजा ने सैनिकों के द्वारा वृक्ष काटने के विरोध में 363 अन्य विश्नोई भी महाराजा के सैनिकों के हाथों से इसी तरह मारे गये. विश्नोई धर्म में वृक्ष काटना निषिद्ध है.

इस घटना से वातावरण उत्तेजित हो गया और वहां उपद्रव की स्थति हो गई. गिरधरदास भंडारी के नेतृत्व में वृक्ष काटने वाली पार्टी को भी इससे गहरा आघात लगा.

वे अपना मिशन छोड़कर जोधपुर आ गये और महाराजा को पूरा घटनाक्रम बताया. महाराजा ने तुरंत वृक्ष रोकने का आदेश दिया और इस क्षेत्र को वृक्ष व जानवरों के लिए संरक्षित घोषित कर दिया.

खेजडली गाँव आज भी पर्यावरण प्रेमियों के लिए तीर्थ स्थल है यहाँ अमृता देवी और सभी 363 का स्मारक बना हैं. विश्नोई समाज की एक टोली जो विश्नोई टाइगर फ़ोर्स के नाम से जानी हैं वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही हैं.

सलमान खान के हिरण शिकार की घटना को विश्नोई समाज ने ही उजागर कर इतने बड़े अदाकार को जेल की सलाखों तक पहुचाया था.

खेजड़ी वृक्ष की रक्षा के लिए सामूहिक रूप से अपने प्राणों की बलि देना विश्व में यह अनूठी घटना है. खेजड़ली गाँव में अमृता देवी व शहीदों की स्मृति में अब एक स्मारक बना हुआ है. विश्नोई जाति के लोग हिरणों को भी इसी तरह से रक्षा करते है.

Amrita Devi Bishnoi National Award

वर्ष 1978 से खेजडली दिवस मनाया जाता हैं तथा भादवा दशमी को हर साल खेजडली का मेला अमृता बाई की स्मृति में लगता हैं. भारत सरकार द्वारा वन्य जीव संरक्षण के लिए अमृता देवी बिश्नोई पुरस्कार देती हैं.

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ओर से दिए जाने वाले इस सम्मान में नकद एक लाख रु की राशि दी जाती हैं. राजस्थान तथा मध्य प्रदेश की राज्य सरकारे भी राज्य स्तरीय अमृता देवी पुरस्कार देती हैं. केन्द्रीय अमृता देवी पुरस्कार पाने वाले पहले व्यक्ति गंगा राम जी विश्नोई थे.

11 सितम्बर 2001 को उन्हें मरणोपरांत केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री द्वारा यह सम्मान उनके परिवार को दिया गया.

जोधपुर के चिरई गाँव के रहने वाले गंगा राम जी एक हिरण शिकारी का पीछा कर रहे थे जिसने एक हिरण को मारा था, शिकारी ने उन्हें गोली मार दी थी.

FAQ

अमृता देवी बिश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार किस क्षेत्र में दिया जाता हैं?

वन्य जीव संरक्षण

उत्तराखंड के चिपको आंदोलन का प्रेरणास्रोत क्या था?

1730 में राजस्थान के खेजडली में 363 विश्नोइयों के बलिदान से प्रेरित होकर उत्तराखंड में चिपको आन्दोलन चलाया गया.

खेजडली मेला कब भरता हैं?

प्रतिवर्ष भादवा सुदी दशमी तिथि को (तेजा दशमी के दिन)

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