पृथ्वीराज रासो : Prithviraj Raso In Hindi

पृथ्वीराज रासो : Prithviraj Raso In Hindi हिन्दी साहित्य के आदिकाल में जो वीरगाथा काव्य लिखा गया, जिनमे सबसे अधिक प्रसिधी पृथ्वीराज रासो को मिली.

इसके रचयिता चंदरवरदायी का जन्म सन 1168 ईसवी में लाहौर में हुआ था. ये महाकवि भाट जाति के जोगता गोत्र के थे, ये दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सखा और सभा कवि थे.

कहते हैं, चंदरवरदायी और पृथ्वीराज के जन्म और मृत्यु की तिथि एक ही थी.

पृथ्वीराज रासो : Prithviraj Raso In Hindi

पृथ्वीराज रासो : Prithviraj Raso In Hindi

किवदन्ती हैं, कि जब मुहमद गोरी सम्राट पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गजनी ले गया, तो वहां पहुचकर चंद ने उनकी अद्भुतत बाण विद्या की प्रशंसा की,

संकेत पाकर पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण से गोरी को मार गिराया था. और अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा करने के लिए कटार से से एक दुसरे को मारकर मौत का वरण कर लिया.

चंदरवरदायी कलम के ही धनी नही थे, रणभूमि में पृथ्वीराज चौहान के साथ ही अन्य सामन्तो की तरह तलवार भी चलाते थे. वे स्वय वीररस की साकार प्रतिमा थे.

उनका पृथ्वीराज रासो हिंदी का आदिकाव्य हैं. इसमें सम्राट पृथ्वीराज के पराक्रम और वीरता का संजीव वर्णन हैं, इसमे 69 समय ( सर्ग या अध्याय) हैं.

कहा जाता हैं कि चंद इसे अधुरा ही छोड़कर गजनी चले गये थे. जिसे उनके पुत्र जल्हण ने बाद में पूरा किया.

चंदरवरदायी का काव्य परिचय

पृथ्वीराज रासो जिस रूप में मिलता वह प्रमाणिक नही हैं, क्युकि इसमे वर्णित पात्र, स्थान, नाम, तिथि और घटनाओं में से अधिकतर की प्रमाणिकता संदिग्ध हैं.

परन्तु इतना अवश्य हैं, कि मूल रूप में यह ग्रन्थ इतना विशाल नही था. इसमे पृथ्वीराज के अनेक युद्ध , आखेट और विवाहों का वर्णन हैं.

कवि ने अपने चरित नायक को सभी गुणों से श्रेष्ट चित्रित किया हैं, पृथ्वीराज के व्यक्तित्व में अद्भुत सौन्दर्य, शक्ति और शील का सन्निवेश हैं.

पृथ्वीराज रासो वीर रस प्रधान काव्य हैं, इसमे ओज गुण की दीप्ती आदि से अंत तक विद्यमान हैं. रोद्र भयानक,वीभत्स, आदि रसो का वर्णन युद्ध के प्रसंग में और श्रगार का वर्णन विविध विवाहों के प्रसंग में मिलता हैं. शाशिव्रता, इंछिनी, सयोगिता, पद्मावती आदि के रूप सौन्दर्य का मोहक वर्णन चंद ने किया हैं.

चंदरवरदायी की भाषा शैली

चंद की भाषा में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, अरबी और फ़ारसी आदि की शब्दावली का सशक्त प्रयोग हुआ हैं. परम्परा से चले आते हुए संस्कृत तथा प्राकृत छन्दों का प्रयोग रासों में हुआ हैं. युद्ध वर्णन के लिए सबसे अधिक उपयुक्त छप्पय छंद की छटा देखते ही बनती हैं.

श्रेष्ट जीवन पद्दति, परम्परा और वीरता का जो आदर्श भारतीय जनता ने अपने चित में प्रतिष्टित कर रखा हैं, पृथ्वीराज उसके प्रतिनिधि के रूप में चित्रित हुए हैं. इसलिए पराजित होने पर भी वे जन-मानस के अजेय योद्धा के रूप में विराजमान हैं.

चंद ने उनके रूप में भारतीय वीर भावना का चरमोत्कर्ष दिखाया हैं, अतएंव अप्रमाणिक माने जाने वाला पृथ्वीराज रासो हमारा उत्कृष्ट महाकाव्य हैं. इससे प्रेरणा लेकर कवि डिंगल ने अनेक रासो काव्यों की रचना की गईं हैं.

पृथ्वीराज रासो पद्मावती समय

पूरब दिस गढ़ गढ़नपति | समुद सिषर अति दुग्ग |
तहँ सु विजय सुर राज पति | जादू कुलह अभंग ||
धुनि निसान बहु साद | नाद सुरपंच बजत दीन |
दस हजार ह्य चढ़त | हेम नग जटित साज तिन ||
गज असंष गजपतिय | मुहर सेना तिय संषह |
इक नायक कर धरी | पिनाक धरभर रज रशषह ||
दस पुत्र पुत्रिय एक सम | रथ सुरडन्ग अम्मर डमर |
भंडार लछिय अनगिनत पदम् | सो पदम् सेन कुवर सुधर ||
मनहूँ कला ससिभान | कला सोलह सो बन्निय ||
बाल बैस ससिता समीप | अंम्रित रस पन्निय ||
बिगसि कमल मिग्र भमर | वैन षजन मृग लुट्टिय ||
हीर कीर अरू बिंब | मोति नष सिष अहि घुट्टिय ||
छप्पति गयंद हरि हंस गति | विह बनाय संचै सचिय ||
पदमिनिय रूप पद्मावतिय | मनहूँ काम कामिनी रचिय ||
सामुद्रिक लच्छन सकल | चौसठी कला सुजाय ||
जानि चतुर दस अंग षट | रति बसंत परमान ||
सषीयन सँग खेलत फिरत | महलनि बाग़ निवास ||
कीर इक्क दिशिय्ष नयन | विगसि जनु कोक किरण रवि ||
अरुण अधर तिय सुधर | बिंब फल जानि कीर छवि ||
यह चाहत चष चकित | उह्जु तक्किय झरप्पी झर ||
चंच चहुटटिय लोभ | लियो तब गहित अप्प कर ||
हरषत अनंद मन महि हुलस | ले जू महल भीतर गइय ||
पंजर अनूप नग मनि जटित | सो तिहि मंह रष्षत भइय ||
सवालशष उतर सयल | कमऊ गड्डू दुरंग ||
राजत राज कुमोदमनि | हय गय द्रिब्ब अभगं ||
नारिकेल फल परठी दूज | चौक पुरि मनि मुत्ति ||
दई जु कन्यसा बचन बर | अति आनंद करि जुति ||
पद्मावति विलषी बर बाल बेलि | कही किर सौ बात तब हो अकेली ||
आँनो तुम्ह कीर दिल्ली सुंदेश | बरं चाहुवानं जू आनो नरेस ||
आँनो तुम्ह चाहुवानं बर | अरु कहि इहै संदेस ||
सांस सरीरहि जो रहै | प्रिय प्रथिराज नरेस ||
लै पत्री सुक यों चल्यों | उड़यों गगनि गहि बाव ||
जहँ दिल्ली प्रथिराज नर | अट्टह जाम में जाव ||
दिय कग्गर नृप राज कर | षुलि बंचिय प्रथिराज ||
सुक देखत मन में हँसे | कियो चलन को साज ||
कर पकरि पीठ हय परि चढ़ाय | लै चल्यो न्रपति दिल्ली सुराय ||
भई षबरि नगर बहिर सुनाय | पद्मावतिय हरि लीय जाय ||
क्म्मान बान छुट्ठी अपार | लागंत लोह इम सारि धार ||
घमासान घान सब बीर सेत | धन श्रोन बहुत अरु रक्त रेत ||
पदमावती इम ले चल्यो | हरषि राज प्रथिराज ||
एतें परि पति साह की | भइ जू आणि अवाज ||
भइ जू आणि अवाज | आय साहाबदिन सुर ||
आज गहो प्रथिराज | बोल बुल्लंत गजत धुर ||
क्रोध जोध जोधा अनंद | करिय पती अणि गज्जीय ||
बांन नालि हथनाली | तुपक तीरह सव्र सज्जीय ||
पव्वे पहार मनों सार के | भिरि भुजाँन गजनेस बल ||
आये हकरि हकार करि | षुरासानं सुलतान दल ||
तिन घेरिय राज प्रथिराज राजं | चिहो घन घौर निसान बाजं ||
गहि तेग चहुवान हिंद वान रानं | गजं जूथ परि कोप केहरि समानं ||
गिरद उड़ी भान अंधार रैन | गई सुधि सुज्झे नही मजिझ नैन ||
सिरं नाय कम्मान प्रथिराज राजं | पकरिये साहि जिम कुलिंगबांज ||
जीति भई प्रथिराज की | पकरि साह ले संग ||
दिल्ली दिंसी मार्गि लगो | उतरि घाट गिर गंग ||
बोलि विप्र सोधे लगग्न | सुभ घरी परटीठय ||
हर बांसद मंडप बनाय | करि भावरि गंठिय ||
ब्रहा वेद उच्चरहि | होम चौरी जुप्र्ती वर ||
पद्मावती दुलहिन अनूप | दुल्लह प्रथिराज राज नर ||
डडयों साह साहबदी | अटठ सहस हे वर सुघर ||
दे दान मान षट भेष कौ | चढ़े राज द्रुग्गा हुजर ||

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