बौद्ध धर्म का इतिहास निबंध संस्थापक शिक्षाएं नियम Buddhism History Founder Teaching Rules Essay In Hindi

बौद्ध धर्म का इतिहास निबंध संस्थापक शिक्षाएं नियम Buddhism History Founder Teaching Rules Essay In Hindi महावीर स्वामी की तरह ही छठी शताब्दी ईसा पूर्व भारत में एक महान विभूति का जन्म हुआ.

इस विभूति ने भी महावीर की तरह ही उस युग में फैली धर्म ग्लानि, रूढ़ीवाद तथा सामाजिक जटिलता के विरुद्ध आवाज उठाई और भारत की जनता को जीवन का सही मार्ग बताया. यह विभूति कोई और नही, महात्मा बुद्ध थे.

बौद्ध धर्म का इतिहास निबंध Buddhism History Founder Essay In Hindi

बौद्ध धर्म का इतिहास निबंध संस्थापक शिक्षाएं नियम Buddhism History Founder Teaching Rules Essay In Hindi

गौतम बुद्ध का जीवन परिचय (gautam buddha life history in hindi)

महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. उतरी बिहार स्थित कपिलवस्तु गणराज्य के शाक्यवंशीय क्षत्रिय कुल में हुआ था. गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था.

अपने कुल का गौतम गौत्र होने के कारण इन्हें गौतम भी कहा जाता था. इनके पिता का नाम शुद्धोदन एवं माता का नाम मायादेवी था. जब मायादेवी अपने पिता के यहाँ जा रही थी, मार्ग में लुम्बिनी वन में बुद्ध का जन्म हुआ.

दुर्भाग्यवश इनके जन्म के सात दिन बाद ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया था. अतः उनका लालन पोषण उनकी विमाता और मौसी प्रजापति गौतमी ने किया.

बाल्यावस्था से ही बुद्ध विचारशील और एकांतप्रिय थे वे बड़े करुणावान थे. संसार में लोगों के कष्टों को देख उनका ह्रद्य दया से भर जाता था. यधपि उनके पिता ने सभी प्रकार से क्षत्रियोचित शिक्षा दीक्षा उन्हें दिलाई थी.

और उसमें वे प्रवीण हो गये थे. फिर भी बुद्ध का मन सांसारिक बातों में नही लगता था. वे इनकी ओर से उदास रहते थे. पुत्र की ऐसी मनोवृति देखकर शुद्धोदन ने सोलह वर्ष की उम्रः में ही सिद्धार्थ का यशोधरा नामक सुंदर राजकुमारी से विवाह कर दिया था.

लगभग 10 वर्ष तक गृहस्थी जीवन व्यतीत करने पर भी सिद्धार्थ के मन में इस संसार के इस जीवन की सुख दुःख की समस्याएं बराबर उलझन पैदा करती रही. सिद्धार्थ का वैरागी मन इस संसार में नही लगा.

इस वैराग्य भावना के फलस्वरूप एक दिन अपने पुत्र, पत्नी, पिता और सम्पूर्ण राज्य वैभव को छोड़कर वे ज्ञान की खोज में निकल गये. जीवन की इस घटना को बौद्ध साहित्य में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है.

महाभिनिष्क्रमण के उपरान्त वे सात वर्ष तक सन्यासी जीवन व्यतीत करते रहे. सबसे पहले वे वैशाली के आलार-कालार तपस्वी के पास ज्ञानार्जन के लिए गये, किन्तु वह उनकी ज्ञान पिपासा शांत नही हो सकी.

अतः वे राजगृह ब्राह्मण आचार्य उद्र्क रामपुत के पास गये किन्तु यह आचार्य भी उन्हें संतोष नही दे सका.तब सिद्धार्थ वहां से चले गये और उरुवेला वन में पहुचे. वहां वे कौडिल्य आदि पर अपने पांच साथियों के साथ उरुवेला के निकट निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या करने लगे.

गौतम बुद्ध विचार (Gautam Buddha Thoughts)

तपस्या के कारण उनका शरीर सुखकर काँटा हो गया, फिर भी उनका उद्देश्य सिद्ध नही हुआ तब उन्होंने तपस्या छोड़कर आहार लेने का निश्चय किया.

गौतम बुद्ध में यह परिवर्तन देखकर उनके साथी उन्हें छोड़कर चले गये किन्तु इससे ये विचलित नही हुए उन्होंने ध्यान लगाने का निश्चय किया. वे वही एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान अवस्था में बैठ गये.

सात दिन ध्यान मग्न अवस्था में रहने के बाद बैशाख माह की पूर्णिमा के दिन उन्हें आंतरिक ज्ञान का बोध हुआ और तभी से वे बुद्ध कहलाने जाने लगे.

पीपल का वह वृक्ष जिसके नीचे सिद्धार्थ को बोध लाभ हुआ, वह बोधिवृक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ. ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात सबसे पहले बौद्ध गया में बुद्ध ने अपने पहले ज्ञान का उपदेश तपस्सु और मल्लिक नामक दो बंजारों को दिया.

गौतम बुद्ध के उपदेश और शिक्षाएं (Gautam Buddha’s teachings and teachings) 

इसके बाद गौतम बुद्ध अपने ज्ञान एवं विचारों को जनसाधारण तक पहुचाने के उद्देश्य से निकल पड़े और सारनाथ पहुचे. वही उन्होंने उन पांच साथियों से सम्पर्क किया, जो उन्हें छोड़कर चले गये थे.

बुद्ध ने उन्हें अपने ज्ञान की धर्म के रूप में दीक्षा दी. यह घटना बौद्ध धर्म में धर्मचक्रप्रवर्तन कहलाती है. अंत में 80 वर्ष की आयु में 483 ई.पू. गोरखपुर के निकट कुशीनगर नामक स्थान पर गौतम बुद्ध ने अपना शरीर त्याग दिया. बुद्ध के शरीर त्यागने की घटना को महापरिनिर्वाण कहते है.

महावीर स्वामी की तरह ही महात्मा बुद्ध भी मानवता के शिक्षक थे. उन्होंने अपने उपदेशों से दुःख से पीड़ित लोगों को मुक्त कर सतत शांति प्राप्त हो, ऐसा मार्ग बताने का प्रयत्न किया. दार्शनिक चिन्तन का आधार चार आर्य सत्य है.

बौद्ध धर्म की शिक्षा (Teachings of Buddhism) 

  1. संसार दुखमय है संसार में जन्म मरण संयोग, वियोग लाभ हानि आदि सभी दुःख ही दुःख है.
  2.  दुःख का कारण- सभी प्रकार के दुखों का कारण तृष्णा या वासना है.
  3. दुःख दमन- तृष्णा के निवारण से या लालसा के दमन से दुःख का निराकरण हो सकता है.
  4.  दुःख निरोध मार्ग- दुखों पर विजय विजय प्राप्त करने का मार्ग है और वह अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग है.

गौतम बुद्ध की 8 शिक्षाएं/ उपाय (8 teachings / ideas of Gautam Buddha)

महात्मा बुद्ध ने बताया कि संसारिक वस्तुओं को भोगने की तृष्णा ही आत्मा को जन्म मरण के बंधन में जकड़े रखती है. अतः निर्वाण प्राप्ति के लिए मनुष्य को अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए.

अष्टांगिक मार्ग जीवन यापन का बिच का रास्ता हो, इसलिए इसको मध्यम मार्ग भी कहा जाता है. इसमे निर्वाण प्राप्ति के लिए न तो कठोर तपस्या को उचित बताया गया और ना ही संसारिक भोग विलास में डूबा रहना उचित बताया है. अष्टांगिक मार्ग के आठ उपाय निम्नलिखित है.

  1. सम्यक दृष्टि सत्य-असत्य, पाप-पुण्य में भेद करने से ही इन चार सत्यों पर विश्वास पैदा होता है.
  2.  सम्यक संकल्प – दुःख के कारण तृष्णा से दूर रहने का दृढ विचार रखो.
  3.  सम्यक वाक्– नित्य सत्य और मीठी वाणी बोलो.
  4. सम्यक कर्मान्त– हमेशा सच्चे और अच्छे काम करो.
  5.  सम्यक आजीव– अपनी आजीविका के लिए पवित्र तरीके अपनाओं
  6. सम्यक प्रयत्न– शरीर को अच्छे कर्मों में लगाने के लिए उचित परिश्रम करो.
  7. सम्यक स्मृति– अपनी त्रुटियों को बराबर याद रखकर, विवेक और सावधानी से कर्म करने का प्रयास करो.
  8.  सम्यक समाधि– मन को एकाग्र करने के लिए ध्यान लगाया करो.

बौद्ध धर्म में सदाचार के दस नियम (ten rule of virtuous in buddhism)

अपनी शिक्षाओं में बुद्ध ने शील और नैतिकता पर बहुत अधिक बल दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को मन वचन और कर्म से पवित्र रहने को कहा. इसके लिए उन्होंने निम्नलिखित दस शील या नैतिक आचरण का पालन करने को कहा. इन्हें हम सदाचार के दस नियम भी कह सकते है.

  1. अहिंसा व्रत का पालन करना (अहिंसा)
  2. झूठ का परित्याग करना (सत्य)
  3.  चोरी नही करना (अस्तेय)
  4.  वस्तुओं का संग्रह नही करना (अपरिग्रह)
  5.  भोग विलास से दूर रहना (ब्रह्मचर्य)
  6.  नृत्य और गान का त्याग करना.
  7.  सुगन्धित पदार्थों का त्याग करना.
  8. असमय भोजन नही करना
  9. कोमल शैय्या का त्याग करना और
  10. कामिनी कंचन का त्याग करना.

सदाचार के इन नियमों से पांच महावीर स्वामी द्वारा बताएं गये पांच नियमों के अनुरूप अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के है. बुद्ध के अनुसार इन पांचो का पालन करना सभी गृहस्थियों और उपासकों के लिए आवश्यक है.

इसका पालन करते हुए संसार का त्याग नही करने पर भी मनुष्य सन्मार्ग की ओर बढ़ सकता है लेकिन जो व्यक्ति संसार की मोहमाया को छोड़कर भिक्षु जीवन बिताता है उसके लिए उपर्युक्त नियमों का पालन करना आवश्यक है.

बौद्ध धर्म के सिद्धांत (Buddhist doctrines)

महात्मा बुद्ध ने अपने इन सिद्धांतों का प्रतिपादन उस समय में प्रचलित रूढ़ीवाद का तर्कयुक्त खंडित करते हुए किया और स्वतंत्र दार्शनिक चिन्तन का प्रतिपादन किया. बुद्ध तर्क पर बहुत बल देते थे.

अंध श्रद्धा में उनका विश्वास नही था. अतः उन्होंने वेदों की प्रमाणिकता का खंडन किया. वेदों का खंडन करने के साथ ही इन्होने ईश्वर की सृष्टिकर्ता के रूप में नही माना. इसी कारण कुछ लोगों ने बुद्ध को नास्तिक भी कहा है

महात्मा बुद्ध आत्मा की अमरता में विश्वास नही करते थे. उनके लिए आत्मा शंकास्पद विषय था. अतः आत्मा के बारे में न उन्होंने यह कहा कि आत्मा है और न उन्होंने यह माना कि आत्मा नही है.

बुद्ध कर्मवाद के विचारों को मानते थे. उनका कहना था कि मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है.

मनुष्य का यह लोक और परलोक कर्म पर निर्भर है. कर्म फल भोगने के लिए मनुष्य का आवागमन होता है. बुद्ध पुनर्जन्म में विश्वास करते थे.

वे कहते थे कि मनुष्य के कर्म के अनुसार ही उसका पुनर्जन्म होता है किन्तु बुद्ध का मानना था कि यह पुनर्जन्म आत्मा का नही अहंकार का होता है.

जब मनुष्य की वासना तृष्णाऐ नष्ट हो जाती है तो अहंकार भी नष्ट हो जाता है. और मनुष्य पुनर्जन्म से निकलकर निर्वाण प्राप्त करता है.

अहिंसा बौद्ध धर्म का मूल मन्त्र है. बुद्ध ने बताया कि प्राणिमात्र को पीड़ा पहुचाना महापाप है. फिर भी महावीर की भांति अहिंसा पर बुद्ध ने अधिक बल नही दिया,

बल्कि समय और परिस्थति को देखते हुए इस सिद्धांत को व्यवहारिक रूप प्रदान किया. बुद्ध ने अंतःकरण की शुद्धि पर भी बहुत बल दिया उनका कहना था कि तृष्णा अंतःकरण से पैदा होती है.

बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करना है. निर्वाण शब्द का अर्थ बुझना होता है. अतः महात्मा बुद्ध का कहना था कि मन में पैदा होने वाली तृष्णा या वासना की अग्नि को बुझा देने पर निर्वाण प्राप्त हो सकता है.

इस तरह जैन व बौद्ध मत ने वैदिक धर्म में कालान्तर में शामिल हुई रुढियों को दूर कर उसमे नवीनता शामिल करने का कार्य किया.

बौद्ध संघ Buddha Dharma Sangha In Hindi

महात्मा बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होकर उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई, धीरे धीरे उनके शिष्यों का दल तैयार हो गया. उन्होंने अपने शिष्यों के लिए बौद्ध संघ की स्थापना की. संघ ऐसे बौद्ध भिक्षुओं की एक संस्था थी, जो धम्म के शिक्षक बन गये.

ये बौद्ध भिक्षु एक सादा जीवन व्यतीत करते थे. उनके जीवनयापन के लिए अत्यावश्यक वस्तुओं के अलावा कुछ नहीं होता था. वे दिन में एक बार भोजन करते थे. इसके लिए वे उपासकों से भोजन दान प्राप्त करने के लिए एक कटोरा रखते थे, चूँकि वे दान पर निर्भर थे, इसलिए इन्हें भिक्षु कहा जाता था.

महिलाओं को संघ में सम्मिलित करना– प्रारम्भ में केवल पुरुष ही संघ में सम्मिलित हो सकते थे, परन्तु बाद में महिलाओं को भी संघ में सम्मिलित होने की अनुमति दे दी गई. बौद्ध ग्रंथों से ज्ञात होता हैं कि अपने प्रिय शिष्य के आनन्द के अनुरोध पर बुद्ध ने महिलाओं को संघ में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान कर दी.

बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में सम्मिलित होने वाली प्रथम भिक्षुणी थी, संघ में सम्मिलित होने वाली कई स्त्रियाँ धम्म की उपदेशिकाएं बन गई. कालांतर में वे थेरी बनीं, जिसका अर्थ हैं- ऐसी महिलाएं जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो.

बुद्ध ने अनुयायियों का विभिन्न सामाजिक वर्गों से सम्बन्धित होना- बुद्ध के अनुयायी विभिन्न वर्गों से सम्बन्धित थे. इनमें राजा, धनवान, गृहपति और सामान्य जन कर्मकार, दास, शिल्पी सभी सम्मिलित थे.

संघ में सम्मिलत होने वाले भिक्षुओं तथा भिक्षुणीओं को बराबर माना जाता था. क्योकि भिक्षु बनने पर उन्हें अपनी पुरानी पहचान त्याग देना पड़ता था.

संघ की संचालन पद्धति- संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी. इसके अंतर्गत लोग वार्तालाप के द्वरा एकमत होने का प्रयास करते थे. एकमत न होने पर मतदान द्वारा निर्णय लिया जाता था.

बौद्ध धर्म का इतिहास | Buddhism History In Hindi

बौद्ध धर्म विश्व के कई देशों का मुख्य धर्म हैं. गौतम बुद्ध द्वारा इसे शुरू किया गया था. आज के आर्टिकल में हम बौद्ध धर्म के इतिहास को सरल भाषा में जानेगे. 

बौद्ध धर्म के तीन आधार स्तम्भ है. बुद्ध (Buddhism के संस्थापक), धम्म (गौतम बुद्ध के उपदेश) और संघ (बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणिओं का संगठन). जिस तरह महावीर स्वामी ने जैन धर्म की स्थापना की, उसी काल में भारत में एक नयें पंथ की शुरुआत हुई

जो कालान्तर में बौद्ध धर्म अर्थात बुद्ध का धर्म कहलाया. इस आर्टिकल में हम गौतम बुद्ध का जीवन परिचय, उनकी शिक्षाएं धम्म, चार आर्य सत्य, उनके उपदेश, संघ, बौद्ध धर्मग्रंथ, त्रिपिटक, तथा महासंगीतियों का अध्ययन यहाँ करेगे.

गौतम बुद्ध या सिद्दार्थ का जन्म ५६३ ई.पू में नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के समीप लुम्बिनी ग्राम में शाक्य क्षत्रिय कुल में हुआ था.

इनके पिता का नाम शुद्धोदन तथा माता का नाम महामाया था. शुद्धोदन कपिलवस्तु के गणतांत्रिक शाक्यों के प्रधान थे जबकि महामाया कोशल वंश की राजकुमारी थी.

गौतम बुद्ध का जीवन परिचय जीवनी बायोग्राफी (buddha story gautam buddha in hindi)

इनके जन्म के सातवें दिन ही इनकी माता महामाया की मृत्यु हो जाती है, अतः इनका पालन पोषण इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था, इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था.

बचपन से ही गौतम का ध्यान आध्यात्मिक चिन्तन की ओर था. १६ वर्ष की आयु में इनका विवाह यशोधरा नामक राजकुमारी से हुआ. २८ वर्ष की आयु में इनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ.

२९ वर्ष की आयु में इन्होने सत्य की खोज के लिए गृह त्याग कर दिया., जिसे बौद्ध धर्म के ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण कहा गया है. बुद्ध ने जीवन से सम्बन्धित चार द्रश्यों से प्रभावित होकर घर का त्याग किया था. वृद्ध व्यक्ति को देखना, रोगी को देखना, मृतक को देखना एवं सन्यासी को देखना.

बुद्ध के गृह त्याग का प्रतीक घोड़ा माना जाता है. इनके घोड़े का नाम कन्थक एवं सारथी का नाम चन्ना था. बुद्ध ने लगातार भ्रमण कर चालीस वर्ष तक उपदेश दिए. उन्होंने सर्वाधिक उपदेश कोशल प्रदेश की राजधानी श्रावस्ती में दिए.

बुद्ध ने अपने उपदेश जनसाधारण की भाषा पालि में दिए. सत्य की खोज में भटकते गौतम बुद्ध ने सर्वप्रथम अलारा कलामा और फिर रुद्र्क रामपुत्र को अपना गुरू मानकार तप किया. 

35 वर्ष की आयु में गया (बिहार) में उरुवेला नामक स्थान पर पीपल वट वृक्ष के नीचे वैशाख पूर्णिमा की रात्रि में समाधिस्थ अवस्था में इनको ज्ञान प्राप्त हुआ. ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध अर्थात प्रज्ञावान कहलाने लगे. 

वह स्थान बोधगया कहलाया, बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश वाराणसी के समीप सारनाथ में दिया. यहाँ गौतम बुद्ध ने अपनी पांच साथियों को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया, इन्हें बौद्ध धर्म के इतिहास में धर्मचक्रप्रवर्तन कहा गया है.

४८३ ई.पू. में ८० वर्ष की आयु में बुद्ध ने अपना शरीर कुशीनगर में त्याग दिया, जिसे महापरिनिर्वाण कहा गया है. इस स्थान की पहचान पूर्वी उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले के कसिया नामक गाँव से की जाती है.

बुद्ध की मृत्यु के पश्चात उनके अवशेषों को आठ भागों में बांटकर आठ स्तूपों का निर्माण किया गया. गौतम बुद्ध को तथागत एवं शाक्य मुनि भी कहा जाता है. बौद्धों का सबसे पवित्र त्योहार बुद्ध पूर्णिमा है, जो वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता है.

बौद्ध धर्म में बुद्ध पूर्णिमा के दिन का इसलिए भी महत्व है क्योंकि इसी दिन बुद्ध का जन्म ज्ञान की प्राप्ति एवं महानिर्वाण प्राप्त हुआ था.

धम्म का अर्थ (what is dhamma)

बौद्ध धर्म में धम्म का अर्थ है- बुद्ध की शिक्षाएं. बुद्ध का सार चार आर्य सत्यों में निहित है.

चार आर्य सत्य क्या हैं (what are the four noble truths of buddhism)

बुद्ध के अनुसार जीवन में दुःख ही दुःख है, अतः क्षणिक सुखों को सुख मानना अदूरदर्शीता है. बुद्ध के अनुसार दुःख का कारण तृष्णा है. इन्द्रियों को जो वस्तुएं प्रिय लगती है उनको प्राप्ति की इच्छा ही तृष्णा है और तृष्णा का कारण अज्ञान है.

बुद्ध के अनुसार दुखों से मुक्त होने के लिए उसके कारण का निवारण आवश्यक है. अतः तृष्णा पर विजय प्राप्त करने से दुखों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है.

बुद्ध के अनुसार दुखों से मुक्त होने अर्थात निर्वाण प्राप्त करने के लिए जो मार्ग है, उसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है.

बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग (buddhism four noble truths and eightfold path)

  • सम्यक दृष्टि- सत्य और असत्य को पहचानने की शक्ति
  • सम्यक संकल्प- इच्छा व हिंसा रहित संकल्प
  • सम्यक वाणी- सत्य एवं म्रदु वाणी
  • सम्यक कर्म- सत्कर्म, दान, दया, सदाचार, अहिंसा आदि
  • सम्यक आजीव- जीवनयापन का सदाचारपूर्ण एवं उचित मार्ग
  • सम्यक व्यायाम- विवेकपूर्ण प्रयत्न
  • सम्यक स्मृति- अपने कर्मों के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सहज रहना
  • सम्यक समाधि- चित्त की एकाग्रता

निर्वाण बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है जिसका अर्थ है दीपक का बुझ जाना, अर्थात जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना.

बुद्ध के उपदेश व उनका सार हिंदी भाषा में (teachings of gautam buddha in hindi pdf)

बुद्ध ने अपने उपदेशों में कर्म के सिद्धांत पर बहुत बल दिया है. वर्तमान के निर्णय भूतकाल में निर्णय करते है. बुद्ध ने प्रत्येक व्यक्ति को अपने भाग्य का निर्माता माना है. 

उनका कहना था कि अपने पूर्व कर्मों का फल भोगने के लिए मानव को बार बार जन्म लेना पड़ता है. बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व को न ही स्वीकार किया है न ही नकारा है.

बुद्ध ने वेदों की प्रमाणिकता को स्पष्ट रूप से नकारा है. बुद्ध समाज में उंच नीच के कट्टर विरोधी थे. बौद्ध धर्म विशेष रूप से निम्न वर्णों का समर्थन पा सका, क्योंकि वर्ण व्यवस्था की निंदा की गई है.

बौद्ध धर्म में संघ के नियम (buddhism rules)

बुद्ध के अनुयायी दो भागों में विभाजित हुए. भिक्षुक- बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए सन्यास ग्रहण किया उन्हें भिक्षुक कहा गया है. उपासक- गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म को अपनाने वालों को उपासक कहा गया.

भिक्षु भिक्षुणियों को संघ या परिषद के रूप में संगठित किया गया. संघ की सदस्यता १५ वर्ष से अधिक आयु वाले ऐसे व्यक्तियों के लिए खुली थी,

जो कुष्ठ रोग, क्षय तथा अन्य संक्रामक रोगों से मुक्त थे. इसके लिए कोई जातीय प्रतिबन्ध नही था. संघ का संचालन पूर्णतया लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर होता था. और उसे अपने सदस्यों पर अनुशासन लागू करने का अधिकार प्राप्त था.

बौद्ध धर्मग्रंथ (buddhist books pdf free download)

आरम्भिक बौद्ध ग्रन्थ पालि भाषा में लिखे गये थे. पालि शब्द का अर्थ पाठ या पवित्र पाठ है. भाषा के रूप में पालि प्राचीन प्राकृत है तथा बुद्ध के समय में यह मगध तथा समीपवर्ती प्रदेशों में बोलचाल की भाषा थी.

स्वयं बुद्ध भी पालि भाषा में ही उपदेश देते थे. बौद्ध ग्रंथों में त्रिपिटक सर्वाधिक महत्वपूर्ण है.

बौद्ध साहित्य त्रिपिटक (Tripiṭaka in hindi)

  • विनय पिटक- इसमें संघ सम्बन्धी नियमों, दैनिक आचार विचार व विधि निषेधों का संग्रह है.
  • सुतपिटक- इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांत व उपदेशों का संग्रह है. सुत पिटक पांच निकायों में विभाजित है. दीर्घनिकाय, मजिझ्म निकाय, अंगुतरनिकाय, संयुक्त निकाय एवं खुदद्क निकाय.
  • खुदद्क निकाय बौद्ध धर्म दर्शन से सम्बन्धित १५ ग्रंथों का संकलन है, जिसमें धम्मपद, थेरीगाथा एवं जातक सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. बौद्ध धर्म में धम्मपद का वही स्थान है जो हिन्दू धर्म में गीता का है. जातक में बुद्ध पद प्राप्त होने से पूर्व जन्मों से सम्बन्धित लगभग ५५० कथाओं का संकलन हैं.
  • अभिधम्म पिटक- यह पिटक प्रश्नोत्तर क्रम में है इसमें बुद्ध की शिक्षाओं का दार्शनिक विवेचन एवं आध्यात्मिक विचारों को समाविष्ट किया गया है.

बौद्ध संगतियां , स्थान , अध्यक्ष व शासनकाल (Description of Buddhist Councils in Hindi)

प्रथम बौद्ध संगीति ४८३ ई.पू को सप्तपर्ण गुफा राजगृह बिहार में हुई उस समय शासक अजात शत्रु तथा संगीति अध्यक्ष महक्सस्प थे.

द्वितीय बौद्ध संगीति ३८३ ईपू में चुल्ल्बाग वैशाली बिहार में कालाशोक शासक थे साब्कमीर अध्यक्ष रहे. तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन २५० ईपू में मगध की राजधानी पाटलीपुत्र में हुआ

उस समय मौर्य वंश के अशोक शासक थे तथा अध्यक्ष मोग्ग्लिपुत तिस्स इस संगीति के अध्यक्ष थे. चतुर्थ बौद्ध संगीति ७२ ईपू में कुंडलवन में कनिष्क के शासनकाल में वसुमित्र इसके अध्यक्ष थे.

चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म के दो भाग महायान और हीनयान में विभाजित हो गया. महायान को मानने वाले बुद्ध की मूर्ति पूजा में विश्वास करते है.

महायान भारत के अलावा चीन जापान कोरिया अफगानिस्तान तुर्की तथा दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों में प्रचलित हुआ, जबकि हीनयान मगध और श्रीलंका में ही प्रचलित हो पाया.

महायान और हीनयान के अतिरिक्त एक और भाग आठवी शताब्दी में प्रचलन में आया, जिसका नाम वज्रयान. यह बिहार और बंगाल में काफी प्रचलित हुआ.

भारत में प्रथम मूर्ति जिसकी पूजा की गई संभवतः गौतम बुद्ध की ही थी. बंगाल के शैव शासक शशांक ने बोधिवृक्ष को कटवा दिया था. कनिष्क, हर्षवर्धन महायान शाखा के पोषक राजा थे.

बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन पर निबंध | Essay on Buddhism Contribution to Indian culture In Hindi

महात्मा बुद्ध द्वारा प्रवर्तित बौद्ध धर्म का उदय भारत की भूमि पर हुआ. सत्य अहिंसा जैसे विचारों को मूल आधार बनाते हुए हिन्दू धर्म से बौद्ध धर्म की नींव रखी गई थी. आज के निबंध में बौद्ध धर्म की देन तथा भारतीय संस्कृति में योगदान को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे.

बौद्ध धर्म असमानता पर समानता के उद्देश्य से उदय हुआ. धन के संचय न करने का विचार इसके मूल में था. गौतम बुद्ध के विचारों में मानव की घ्रणा, क्रूरता, हिंसा तथा दरिद्रता का मूल कारण धन ही हैं.

बुद्ध का मानना था कि एक कृषक को उनके समस्त साधन मिलने चाहिए एक व्यापारी को अपने कारोबार की समस्त सुविधाए मिलती चाहिए तथा एक मजदूर को उसके हक की कमाई हासिल होनी चाहिए भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की देन निम्नलिखित रही हैं.

सरल स्पष्ट और लोकप्रिय धर्म (Simple clear and popular religion)

भारत में सर्वप्रथम बौद्ध धर्म ही एक लोकप्रिय धर्म के रूप में फैला. इसमें वैदिक धर्म की तरह कर्मकांड, यज्ञ, आदि नहीं थे न जाति भेद था. इसके द्वार सभी के लिए खुले हुए थे.

यह ऐसा धर्म था, जिसे आसानी से ग्रहण कर सकते थे. पहली बार धर्म में व्यक्तित्व को महत्व और प्रधानता दी गई.

वैदिक धर्म पर प्रभाव (Influence on Vedic religion)

बौद्ध धर्म ने हिन्दू धर्म को बहुत प्रभावित किया. बाह्य आडम्बर, यज्ञ अनुष्ठान आदि इस समय हिन्दुओं में प्रचलित थे. बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के कारण वे कम हो गये थे. यज्ञों में पशुबलि की प्रथा समाप्त होती चली गई.

मूर्तिपूजा का प्रसार (Promotion of idol worship)

महायान सम्प्रदाय के बौद्ध लोगों ने बुद्ध की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करना शुरू कर दिया. उनका हिन्दू धर्म के अनुयायियों पर भी प्रभाव पड़ा. और उन्होंने अपने देवी देवताओं की मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा करना शुरू कर दिया.

संघ व्यवस्था (Union system)

महात्मा बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए संघ की व्यवस्था की थी. इन बौद्ध संघों के प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान दिया. बौद्धों की मठ प्रणाली हिन्दू धर्म को भी प्रभावित किया. स्वामी शंकराचार्य ने भारत में चारों दिशाओं में मठों की स्थापना की.

आचार की शुद्धता (Purity of conduct)

बौद्ध धर्म ने दस शील को अपनाकर भारतीय जनता को नैतिकता, लोकसेवा और सदाचार का मार्ग दिखलाया.

धार्मिक सहिष्णुता (religious tolerance)

बौद्ध धर्म ने भारतीय समाज को धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पठाया. बुद्ध ने दूसरे धर्मों की निंदा कभी नहीं की और बौद्धिक स्वतंत्रता पर बल दिया. इसका प्रभाव हिन्दू धर्म पर भी पड़ा.

दर्शन का प्रभाव (Philosophy effect)

बौद्ध विद्वान् नागार्जुन ने शून्यवाद तथा माध्यमिक दर्शन को प्रतिपादित किया. बौद्ध धर्म के अनात्मवाद, अनीश्वरवाद, प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद एवं पुनर्जन्मवाद, निर्वाण आदि दार्शनिक विचारों ने भारतीय चिंतन प्रणाली के विकास में योगदान दिया.

असंग, वसु, बन्धु, नागार्जुन, धर्म कीर्ति आदि से बौद्ध दार्शनिकों ने बौद्ध विचारधारा को विकसित किया और अपनी रचनाओं से भारतीय दार्शनिकों को प्रभावित किया. बौद्ध धर्म का खंडन करने के लिए अन्य सम्प्रदायों के दार्शनिक सामनें आए, इनमें शंकराचार्य का नाम प्रमुख हैं.

साहित्यिक क्षेत्र (Literary field)

साहित्य के क्षेत्र में भी बौद्ध धर्म की महान देन हैं. बौद्ध विद्वानों ने संस्कृत भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की जो भारतीय साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं. इस ग्रंथों में दिव्यावदान, बुद्धचरित, सौन्दरानन्द, महावस्तु, ललित विस्तार, मंजु श्री मूल कल्प, चान्द्र व्याकरण आदि प्रमुख हैं.

जातक कथाओं, विनयपिटक, सुतपिटक, अभिधम्मपिटक, मिलिन्दपन्हों, दीपवंश, महावंश आदि ग्रंथों की रचना पालि भाषा में की गई. बौद्ध साहित्य से हमें प्राचीन भारत का इतिहास जानने में भी बहुत सहायता मिलती हैं.

लोक भाषाओं में उन्नति (Advancement in local languages)

बौद्ध धर्म ने लोक भाषाओं के विकास में भी पर्याप्त योगदान दिया हैं. बौद्ध धर्म साधारण बोलचाल की भाषा द्वारा प्रचलित किया गया था. पालि साहित्य का प्रचार भी इसी कारण हुआ.

कला के क्षेत्र में देन (Contribution to the field of art)

कला के क्षेत्र में बौद्धों की महान देन रही हैं. गुहा गृहों, मन्दिरों और स्तूपों का निर्माण बौद्धों द्वारा हुआ. साँची और भरहुत के स्तूप तथा अशोक के शिला स्तम्भ बौद्ध कला के विशाल और सुंदर नमूने हैं. अजंता और बाघ की अधिकांश चित्रकारी बौद्ध कालीन हैं.

सम्राट अशोक के शिला स्तम्भ, कार्ले का गुहा मन्दिर तथा गया का बौद्ध मन्दिर तत्कालीन स्थापत्य कला के श्रेष्ठ नमूने हैं. बौद्धों के कारण भारत में मूर्ति कला के क्षेत्र में एक नई शैली का जन्म हुआ, जो गांधार शैली के नाम से प्रसिद्ध हैं.

विचारों की स्वतंत्रता (Freedom of thought)

बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था कि उनके वचनों का अन्धानुकरण न कर अपनी बुद्धि से परखना चाहिए. इस प्रकार बौद्ध धर्म ने बौद्धिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहन दिया.

शिक्षा का प्रसार (Spread education)

शिक्षा के प्रसार में बौद्ध धर्म का विशेष योगदान रहा, नालंदा विश्वविद्यालय के द्वारा शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ. नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला के विश्वविद्यालय तत्कालीन शिक्षा के प्रसिद्ध केंद्र थे. इन विश्वविद्यालयों ने भारतीय शिक्षा एवं भारतीय संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

सामाजिक समानता (social equality)

बौद्ध धर्म के प्रभाव के फलस्वरूप हिन्दू समाज में प्रचलित जाति प्रथा के बंधन शिथिल होते चले गये तथा निम्न वर्ग के लोगों में आत्म विश्वास तथा आत्म सम्मान की भावनाएं उत्पन्न हुई.

राजनीतिक प्रभाव (Political influence)

राजनीतिक क्षेत्र में बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी देन यह है कि अहिंसा का उपदेश देकर इसने भारतीय नरेशों तथा सम्राटों के ह्रदय में रक्तपात तथा युद्ध के प्रति घ्रणा उत्पन्न कर दी.

बौद्ध धर्म से प्रभावित होने के कारण ही सम्राट अशोक ने युद्ध न करने का संकल्प लिया था. बौद्ध धर्म ने भारतीय शासकों को समाज सेवा तथा लोककल्याण का पाठ पढ़ाया.

राजनीतिक तथा सामाजिक एकता (Political and social unity)

बौद्ध धर्म से राष्ट्रीयता की भावना को प्रोत्साहन मिला. बौद्धों के जाति विरोध तथा समानता के सिद्धांत ने इस भावना को मजबूत बनाया.

निर्वाण का द्वार ऊंच नीच और धनी निर्धन सबके लिए द्वार खोलकर समाज में एकता उत्पन्न की. भारत के कोने कोने में धर्म का प्रसार कर बौद्ध भिक्षुओं ने एकता की भावना जागृत की.

भारतीय संस्कृति का प्रसार विदेशों में (The spread of Indian culture abroad)

इस धर्म के द्वारा भारतीय संस्कृति का प्रसार चीन, जापान, मंगोलिया, बर्मा, लंका, अफगानिस्तान, जावा, सुमात्रा आदि में हुआ. ये देश भारत को एक तीर्थ समझने लगे. यह बौद्ध धर्म की सबसे बड़ी देन हैं.

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