समानता का अधिकार पर निबंध | Right To Equality Essay In Hindi

समानता का अधिकार पर निबंध | Right To Equality Essay In Hindi: समानता का एक अर्थ यह हैं कि प्रत्येक व्यक्ति से उसकी आवश्यकता का ध्यान रखते हुए समान व्यवहार करना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार काम करने का अवसर उपलब्ध करवाना.

समानता” लोकतंत्र की मुख्य विशेषता हैं. लोकतांत्रिक व्यवस्था राजनितिक समानता पर आधारित हैं. लोकतंत्र नागरिकों में समानता को बढ़ावा देता हैं. भारत के संविधान में समानता का अधिकार एक मौलिक अधिकार हैं.

समानता का अधिकार पर निबंध | Right To Equality Essay In Hindi

समानता का अधिकार पर निबंध | Right To Equality Essay In Hindi

500 शब्द निबंध

भारत के संविधान द्वारा सभी नागरिकों को समान माना गया हैं. right to equality के तहत जाति, धर्म, पंथ, क्षेत्र या भाषा के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. समानता का अधिकार माना गया हैं.

सविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक में समानता के अधिकार को विस्तार से समझाया गया हैं. आज हम जानेगे कि नागरिकों के इस मौलिक अधिकार का अर्थ क्या है.

भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता, राज्य के रोजगार के अवसर में समानता एवं सामाजिक समानता प्रदान की गई हैं. इस हेतु संविधान में निम्न प्रावधान किये गये हैं.

कानून के समक्ष समानता : अनुच्छेद 14 के तहत राज्य क्षेत्र में राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा. विधि के समक्ष सभी समान हैं और बिना किसी विभेद के विधि के समान संरक्षण के हकदार हैं.

धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध : अनुच्छेद 15 राज्यों को यह आदेश देता है कि किसी नागरिक के साथ केवल उसके धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद न किया जावे.

सभी नागरिकों को दुकानों, सार्वजनिक स्थलों, कुओं, तालाबों, स्नानघरों, सड़कों के प्रयोग का अधिकार प्रदान किया गया हैं.

इसी अनुच्छेद में स्त्रियों व बच्चों तथा सामाजिक व शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान का अधिकार दिया गया हैं.

लोक नियोजन के अवसरों की समानता अनुच्छेद 16: इस अनुच्छेद के तहत देश के सभी नागरिकों को राज्य के अधीन नौकरी में समान अवसर प्रदान करने की गारंटी दी गई हैं. इस बारे में व्यक्ति के धर्म, जाति लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद नही किया जावेगा.

किन्तु राज्य को यह अधिकार है कि वह राजकीय सेवाओं के लिए आवश्यक योग्यताएं निर्धारित कर राज्य के मूल निवासी हेतु आरक्षण, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान कर दे. यदि आप ध्यान से सोचे तो पायेगे कि इस आरक्षण का उद्देश्य मूलतः समानता की स्थापना ही हैं.

अस्प्रश्यता का अंत अनुच्छेद 17: सामाजिक समानता बढाने हेतु संविधान में अस्पर्शता आचरण का पूर्ण निषेध किया गया हैं. इसमें कहा गया है कि यदि ऐसा आचरण किया जावेगा तो दंडनीय अपराध माना जावेगा.

इस अनुच्छेद का उद्देश्य व्यक्ति को उसकी जाति के कारण ही अस्पर्शय माने जाने के अमानवीय आचरण को समाप्त करना हैं. इसे पूर्ण रूपेण समाप्त करने हेतु सरकार ने अस्पर्श्यता निवारण अधिनियम 1955 का संशोधन कर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 कर दिया.

अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति निरोधक अधिनियम 1989 पारित किया गया हैं. यह कानून अस्पर्श्यता के अब तक बने कानूनों में सबसे कठोर हैं.अतः जरूरत इस बात की है कि इसका अस्पर्श्यता निवारण हेतु सदुपयोग किया जावे. साथ ही यह सुनिश्चित किया जावे कि इसका दुरूपयोग न हो.

उपाधियों का अंत अनुच्छेद: ब्रिटिश शासन काल में सम्पति व राज शक्ति के आधार पर उपाधियाँ प्रदान की जाती थी. जो सामाजिक जीवन में भेद उत्पन्न करती थी.

संविधान में सेना तथा विद्या सम्बन्धी उपाधियों के अतिरिक्त राज्य द्वारा किसी भी तरह की उपाधि दिया जाना निषेध हैं. इसके अलावा भारत का नागरिक राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना विदेशी राज्य की कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा.

समानता का अधिकार निबंध 800 शब्द

सरकार व्यक्ति को कानून के सामने समानता के अधिकार से वंचित नही कर सकती, इसका अर्थ यह हुआ कि किसी व्यक्ति का दर्जा या पद चाहे जो हो, सब पर कानून समान रूप से लागू होता हैं, इसे कानून का शासन कहते हैं.

समानता का अधिकार अर्थ व परिभाषा

लोकतंत्र के विभिन्न घटकों में अपने प्रतिनिधि को चुने जाने का अधिकार राजनितिक लोकतंत्र हैं. व्यवसाय व उपभोग की स्वतंत्रता आर्थिक लोकतंत्र हैं. व्यक्ति की प्रतिष्ठा और अवसर की समानता सामाजिक लोकतंत्र हैं.

समाज में समानता स्थापित करने के लिए केवल राजनीतिक क्षेत्र में ही नही अपितु आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में भी लोकतंत्र आना चाहिए.

किसी एक क्षेत्र में लोकतंत्र का अभाव दुसरें क्षेत्र में लोकतंत्र को नही पनपने देता. भारतीय संस्कृति की अवधारणा यह भी हैं कि समानता के साथ साथ मनुष्यों में परस्पर एकता और अपनापन भी होना चाहिए.

भारत के संविधान में समानता का अधिकार (samanta ka adhikar in hindi)

भारतीय संविधान सरकार को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना का निर्देश देता हैं. भारतीय संविधान में समानता के अधिकार को इस प्रकार स्पष्ट किया गया हैं.

  1. सरकार किसी से भी उसके धर्म, जाति, समुदाय, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नही कर सकती.
  2. दूकान सिनेमाघर और होटल जैसे सार्वजनिक स्थलों में किसी के प्रवेश को नही रोका जा सकता.
  3. सार्वजनिक कुँए, तालाब, स्नानागार, सड़क, खेल के मैदान और सार्वजनिक भवनों के इस्तमोल से किसी को भी वंचित नही किया जा सकता.
  4. सरकार में किसी भी पद पर नियुक्ति या नौकरी में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता हैं. धर्म, जाति, समुदाय, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक को रोजगार के अयोग्य नही करार दिया जा सकता या उसके साथ भेदभाव नही किया जा सकता.
  5. संविधान सामाजिक भेदभाव के एक रूप छुआछूत या अस्पर्शयता को समाप्त करने के लिए सरकार को निर्देश देता हैं. सरकार ने किसी भी तरह के छुआछूत को कानूनी रूप से गलत करार देते हुए इसे एक दंडनीय अपराध घोषित कर दिया हैं.
  6. किसी भी सरकार या सरकारी अनुदान पाले वाले शैक्षिक संस्थान में किसी भी नागरिक को धर्म आदि के आधार पर प्रवेश देने पर पूर्ण रोक हैं.
  7. सरकार समानता के मौलिक अधिकार का उल्लघन करने वाला कोई भी कानून नही बना सकती और न ही ऐसा फैसला ले सकती हैं. कोई भी नागरिक या संस्था या फिर स्वयं सरकार भी यदि व्यक्ति के इस अधिकार का उल्लघंन करती हैं तो वह व्यक्ति अदालत के जरिये उसे रोक सकता हैं. जब मामला सामाजिक या सार्वजनिक हित का हो तो ऐसे मामले को लेकर कोई भी व्यक्ति जनहित याचिका के माध्यम से अदालत में मामले को उठा सकता हैं.

मताधिकार की समानता

भारत जैसे लोकतंत्रीय देश में सभी वयस्कों अर्थात 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके नागरिकों को मत (वोट) देने का अर्थात, सरकार चुनने का अधिकार हैं,

चाहे उनका धर्म कोई भी हो, शिक्षा का स्तर या जाति कुछ भी हो, गरीब हो या अमीर, चाहे स्त्री हो या पुरुष. हर एक को मत देने का अधिकार हैं और यह लोकतंत्र का आवश्यक पहलू हैं.

पंथनिरपेक्षता और समानता

भारत में कोई भी धर्म या पंथ राजकीय धर्म या पंथ के रूप में मान्य नही हैं, क्योंकि भारत एक पंथ निरपेक्ष देश हैं. यहाँ व्यक्ति अपने मत के अनुसार जीवन यापन करते हैं.

प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म या पंथ के पालन की स्वतंत्रता हैं. सरकार सभी पंथों या धर्मों को बराबर का सम्मान देती हैं, परन्तु भाषायी एवं धार्मिक अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी संस्कृति एवं विशिष्टताओं को बनाएं रखने का अधिकार दिया गया हैं.

वे अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण के लिए अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित कर सकते हैं.

निति निर्देशक तत्व और समानता

संविधान सरकार को यह निर्देशित करता हैं कि वह आर्थिक न्याय और अवसर की समानता स्थापित करने के लिए कार्य करे. सरकार आर्थिक असमानता को कम करने का प्रयास करे.

वह व्यक्तियों और समूहों के बिच प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसर की असमानता को समाप्त करने के प्रयास करे. इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कानूनी प्रावधानों के साथ साथ ही सरकार अनेक योजनाओं व कार्यक्रम चला रही हैं.

आरक्षण व समानता

अवसर की समानता सुनिश्चित करने के लिए कुछ लोगों को विशेष अवसर देना जरुरी होता हैं. आरक्षण के पीछे उद्देश्य यह हैं कि समाज के वंचित व पिछड़े वर्गों को विकास के विशेष अवसर देकर उनके सामाजिक, आर्थिक एवं राजनितिक विकास के द्वारा उन्हें समाज की मुख्य धरा में बराबरी की स्थति में लाना.

सरकार अपनी विभिन्न योजनाओं में महिला, वंचित वर्ग, गरीब और अन्यथा सक्षम लोगों (विशेष योग्य जनों) को प्राथमिकता देती हैं. संसद और विधानसभा में कुछ पद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित किए गये हैं.

स्थानीय निकायों में तो महिलाओं और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए पद आरक्षित किए गये हैं. लोक कल्याण के लिए समानता स्थापित करने के लिए आवश्यकता इस बात की हैं कि ये लाभ अति जरूरतमंद व्यक्तियों तक अवश्य पहुचे.

भारत की छः दशकों से अधिक की लोकतांत्रिक यात्रा का परिणाम ही हैं कि समाज के वे समूह जो दीर्घकाल से पिछड़े हुए थे, उनकी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थति में परिवर्तन हुआ हैं.

हर क्षेत्र में सभी वर्गों में सहभागिता बढ़ रही हैं. समतामूलक और न्याय प्रिय समाज की स्थापना के लिए अभी और प्रयास करने की आवश्यकता हैं, जिसका अवसर लोकतंत्र ही प्रदान करता हैं.

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