अशोकाष्टमी 2022 व्रत कथा व्रत की डेट पूजा विधि Ashokashtami Vrat Katha In Hindi : अशोकाष्टमी व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन रखा जाता हैं. अशोकाष्टमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो तो अधिक मंगलकारी माना जाता हैं. वर्ष 2022 अशोकाष्टमी व्रत की डेट 9 अप्रैल हैं. इस दिन अशोक-कलिका-प्राशन की प्रधानता होने के कारण इस व्रत को अशोकाष्टमी व्रत के रूप में जाना जाता हैं.
अशोकाष्टमी 2022 व्रत कथा व्रत की डेट पूजा विधि Ashokashtami Vrat Katha In Hindi

अशोक अष्टमी पर महत्वपूर्ण समय
सूर्योदय | अप्रैल 09, 2022 सुबह 6:15 बजे |
सूर्य का अस्त होना | अप्रैल 09, 2022 6:41 अपराह्न |
अष्टमी तिथि शुरू | अप्रैल 08, 2022 11:05 अपराह्न |
अष्टमी तिथि समाप्त | अप्रैल 10, 2022 1:24 पूर्वाह्न |
अशोकाष्टमी का त्यौहार चैत्र शुक्ल अष्टमी को मनाया जाता हैं. इस दिन अशोक वृक्ष के पूजन का विधान बताया गया हैं. इसके सम्बन्ध में एक अति प्राचीन कथा हैं कि रावण की नगरी लंका में अशोक वाटिका के नीचे निवास करने वाली चिरवियोगिता सीता को इसी दिन हनुमान द्वारा अनूठी तथा संदेश प्राप्त हुआ था.
इसलिए इस दिन अशोक वृक्ष के नीचे भगवती जानकी तथा हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजन करना चाहिए. हनुमान द्वारा सीता की खोज कथा रामचरित मानस से सुननी चाहिए.
ऐसा करने से स्त्रियों का सौभाग्य अचल होता हैं इस दिन अशोक वृक्ष की कलिकाओं का रस निकालकर पान करना चाहिए, इससे शरीर के रोग विकास का समूल नाश हो जाता हैं.
अशोकाष्टमी व्रत रखने की मान्यता व तरीका
अशोकाष्टमी बुधवार हो तो इसे और भी शुभ माना जाता हैं. इस दिन व्रत रखकर अशोक वृक्ष की पूजा करने तथा अशोक के आठ पत्ते डले पात्र का जल पीने से व्यक्ति को समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता हैं.
व्रत रखने की इच्छा वाले स्त्री पुरुष को सवेरे निवृत होने के बाद स्नानादि कर अशोक वृक्ष की पूजा करनी चाहिए तथा अशोक की पत्तियों का पान करते हुए इस मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए.
त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव।
पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु।।
ऐसी धार्मिक मान्यता हैं कि अशोक वृक्ष के नीचे बैठने से कोई शोक नहीं होता हैं. साथ ही अशोक के तले स्त्रियों के वास से उनके समस्त कष्टों का निवारण हो जाता हैं. अशोक को एक दिव्य औषधि माना गया हैं. संस्कृत में इसे हेम पुष्प व ताम्रपपल्लव भी कहा गया हैं.
ब्रह्माजी ने कहा चैत्र माह में पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त अशोकाष्टमी का व्रत होता हैं. इस दिन अशोकमंजरी की आठ कलियों का पान जो करते हैं वे कभी शौक को प्राप्त नहीं होते है.
अशोकाष्टमी के महत्व से जुडी कथा कहानी रामायण में मिलती हैं जिसके अनुसार रावण की लंका में सीताजी अशोक के वृक्ष के नीचे बैठी थी और वही उन्हें हनुमान जी मिले तथा भगवान राम का संदेश उन्हें यही प्राप्त हुआ था.
अशोक व्रत कथा कहानी | Ashok Vrat Vidhi & Vrat Katha in Hindi
यह अशोक व्रत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को किया जाता हैं. इस दिन अशोक के वृक्ष की पूजा की जाती हैं. अशोक व्रत रखने वाली स्त्री पुरुष को अशोक के वृक्ष को घी, गुड, हल्दी रोली, कलाया आदि से पुर्जे और जल से अर्ध्य देवें.
ये व्रत लगातार बारह वर्षों तक किया जाना चाहिए. अनवरत १२ वर्षों तक यह व्रत करने के पश्चात इसका उजमन किया जाता हैं. अशोक व्रत उजमन में एक सोने का अशोक वृक्ष बनाया जाता हैं. विधि विधान के अनुसार अशोक की पूजा कर उस प्रतीक को अपने गुरु को दिया जाता हैं.
कोई भी प्राणी जो इस अशोक व्रत को धारण कर निरंतर १२ वर्षों तक करता हैं, उन्हें यमलोक की राह की छोड़कर शिव लोक में स्थान मिलता हैं. आजीवन उन स्त्री पुरुष की सभी मनोकामनाएं भगवान शिव पूर्ण करते हैं.
अशोक व्रत विधि (Ashok Vrat Vidhi in Hindi)
नारद पुराण में अशोक व्रत करने की विधि का वर्णन किया गया हैं. जिनके अनुसार आसोज माह की प्रतिपदा जिस दिन शारदीय नवरात्र की घट स्थापना भी होती हैं, सवेरे जल्दी उठने के पश्चात अपने नित्यादी कर्मों से निवृत होने के बाद धवल वस्त्र धारण करे एवंम अशोक वृक्ष की पूजन सामग्री को एकत्रित कर लेवे.
अपने घर अथवा मोहल्ले के आस-पास किसी अशोक वृक्ष की पूजा के लिए समस्त सामग्री वहां ले जाए. सर्वप्रथम गंगाजल के कलश से छिड़काव से अशोक को पवित्र करे एव रंगीन पताकाओं से उनकी सजावट करे.
सर्वप्रथम अशोक के वृक्ष को एक वस्त्र चढ़ावे तत्पश्चात गंध, पुष्प, धूप, दीप, चावल और तिल से पूजा करे. सात धान, ऋतुफल, श्रीफल, अनार और मोदक आदि अर्पित करे. अशोक वृक्ष की पूजा के बाद नीचे दिए गये मंत्र का उच्चारण करे एवं अर्ध्य चढ़ावे.
पितृभ्रातपतिश्वश्रूशुराना तथैव च
अशोक शोकशमनो भव सर्वत्र न कुले.
अर्थ- हे अशोक वृक्ष आप मेरे परिवार में पिता भाई पति सास एवं ससुर सभी के शोक को नष्ट करे. इस तरह प्रार्थना करने के बाद अशोक के वृक्ष की परिक्रमा करे तथा ब्राह्मण को दानादि दे, अगले दिन प्रातःकाल में अशोक व्रत तोड़कर भोजन ग्रहण करे. इस व्रत को धारण करने से शोक रहित तथा धन-संपदा की प्राप्ति होती हैं.
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