किसान की आत्मकथा पर निबंध | Autobiography Of a Farmer In Hindi

Autobiography Of a Farmer In Hindi: नमस्कार साथियों आपका स्वागत हैं, किसान की आत्मकथा पर निबंध में हम भारतीय किसान के जीवन की कहानी उनकी जुबानी बता रहे हैं.

किसान के जीवन की समस्याओं उसकी विशेषताओं के बारे में यह निबंध भाषण स्पीच अनुच्छेद दिया गया हैं, उम्मीद करते हैं यह आपकों बहुत पसंद भी आएगा.

किसान की आत्मकथा पर निबंध Autobiography Of a Farmer In Hindi

किसान की आत्मकथा पर निबंध Autobiography Of a Farmer In Hindi

किसानों को देश की आत्मा कहने वाले गांधी जी तथा जवान जय किसान का नारा लगाने वाले शास्त्री जी के देश में किसान को अन्नदाता कहते हैं.

मैं किसान हूं इस लेख के माध्यम से किसान की आत्मकथा के जरिए भारतीय किसान की दुर्दशा तथा उसके समक्ष खड़ी विकराल समस्याओं को जानने का प्रयास करेंगे, इस लेख के द्वारा आप किसानों की समस्याओं वाकिफ हो पाएंगे.

कहने को तो हमारा देश कृषि प्रधान हैं. परंतु किसानों की दशा को देखकर ऐसा लगता नहीं है. हालांकि विश्व के अधिकांश देशों में चाहे वो विकसित हो या विकासशील किसान वर्ग के हाल एक से हैं. यूरोप तथा अमेरिका में किसानों की अच्छी स्थिति सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के कारण हो पाई हैं.

भारत में लगभग 14 करोड़ कृषक परिवार हैं. इनमें से 80 प्रतिशत किसान छोटे तथा मध्यम श्रेणी में आते हैं. जिनके पास लगभग 2 हेक्टेयर भूमि हैं. भारत की 65% आबादी आजीविका हेतु कृषि पर निर्भर है.

तथा 50% श्रम बल कृषि क्षेत्र में कार्यरत है परंतु रोजगार में स्थिति काफी दयनीय है. कृषि क्षेत्र का निर्यात में योगदान 12% है वही सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 15% योगदान कृषि तथा उससे संबंधित क्षेत्र का है.

मैं किसान हूं खेत ही मेरा जीवन है. मेरे सपने मेरी छोटी छोटी खुशियों से पूरे होते हैं मुझे हर परिस्थिति में संघर्ष करना होता है. मौसम कितना ही खराब हो खेत में कार्य करता हूं,चाहे तेज धूप हो या कड़कड़ाती ठंड.

सुबह जल्दी उठने से लेकर शाम को सोने तक परिश्रम ही परिश्रम है. मेरे जीवन में sunday नहीं आता हर नया दिन एक आशा की किरण जगाता है. किसी दिन बारिश की आशा तो किसी दिन सरकार तथा साहूकारों से कुछ आशाएं.

फसल की बुवाई उसके बाद कीटनाशकों का प्रयोग या फिर खरपतवारनाशी का छिड़काव, फसल की कटाई  के बाद भी मैं सहन की नींद सो नहीं पाता. क्योंकि अभी भी फसल की बिक्री तथा उपज का उचित मूल्य पाना इतना आसान नहीं है.

बाजार में  फसलों के दाम कम मिल रहे हैं. तो भी मजबूरी वंश मुझे  कम दामों में भी  फसल को बेचना पड़ता है. क्योंकि एक तरफ उधार लिए गए पैसों का ब्याज बढ़ रहा है. तो दूसरी तरफ उपज के भंडारण की सुविधा भी मेरे पास नहीं होती.

सारे कार्य  पूर्ण निष्ठा तथा सिद्धत से करना मेरा धर्म है. हां मैं किसान हूं बेईमानी की मेरे जीवन में कोई जगह नहीं क्योंकि मैं आस्तिक हूं. भगवान से कभी बारिश करवाने की दुआ मांगता हूं तो कभी बारिश रोकने की, कभी-कभी ओले ना  गिरे की इसकी तो कभी-कभार साहूकार पैसा ना मांगे ऐसी प्रार्थना करता हूं.

मेरी जीवन शैली सादगी भरी है ना तो उसमें कुछ तड़क-भड़क है. ना ही दिखावे की प्रवृत्ति, मेरे परिवार का रहन सहन सीधा सादा है. त्योहारों में खुशी फसल तय करती है.

वैसे तो जीवन का हर एक दिन त्योहार लगता है. क्योंकि लहलहाती फसलें कई सपने दिखाती है आंखें चमकाती है. लेकिन ना जाने अचानक यह बाढ़ तथा ओलावृष्टि क्यों आ जाती है.

कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि सपनों पर पानी फेर जाती है थोड़ा बहुत बचा हुआ गिद्धों की नजरें खा जाती है. फिर भी पता नहीं क्यों मेरा ईमान नहीं घबराता है.

हां बेईमानों की इस दुनिया में ,मैं आत्मसम्मान नहीं खोता हूं. परिस्थितियां चाहे कैसी भी हो आशा का दीप जलाता हूं और अगली बार फिर फसल उगाता हूं ,और भगवान से यही प्रार्थना करता हूं.

कि जितनी उपज पिछली बार हुई कम से कम उतनी इस बार भी हो जाए नहीं तो मैं मुंह कैसे दिखाऊंगा मरना तो नहीं चाहता लेकिन आत्महत्या को मजबूर हो जाऊंगा, अपने देश में हर वर्ष लगभग 15000 किसान आत्महत्या करते हैं.

1994 से लेकर 2011 तक 7.5 लाख किसानों ने आत्महत्या की इनमें भी सर्वाधिक किसान महाराष्ट्र मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ से थे.

आर्थिक तंगी तथा ऋण के जाल से मुक्त नहीं हो पाता हूं. इसका कारण कुछ बड़े ज्ञानी लोग मुझे आलसी कहकर बतलाते हैं. पर उन्हें क्या पता यह मेरा दुर्भाग्य है या उनकी छोटी सोच.

जवाब तो मैं भी देना चाहता हूं पर क्या करूं जनाब मैं निरक्षर हूं. इसलिए लिख नहीं पाता हूं. तब सोचता हूं इस बार अच्छी फसल हो जाए तो  मैं भी मेरे बेटे बेटी को स्कूल भिजवाऊंगा, गवर्नमेंट स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी तो नहीं लेकिन प्राइवेट वालों की फीस नहीं भर पाता इसलिए मजबूरी वश बच्चों को गोरमेंट स्कूल मे ही पढ़ाता हूं.

मैं किसान अन्नदाता हूं, इस पर गर्व करूं या शर्म कुछ समझ में नहीं आता है. राजनेताओं को भी हमारी याद इलेक्शन के वक्त आती है. तब उनके वादे बड़े-बड़े सपने दिखाते हैं पर पता नहीं क्यों इलेक्शन के बाद वो भूल जाते हैं. अधिकारों के लिए मुझे भी सड़कों पर उतरना पड़ता है हमारी परेशानियां जब देश गुलाम था तब भी थी और आज भी है.

पहले भी इतिहास में आपने किसान आंदोलनों की एक लंबी श्रंखला देखी होगी, जिसमें प्रमुख रंगपुर, हाथी खेड़ा, किठूर ,अहोम ,पर्ला की मंडी, बारासात, गंजाम मोपला ,फराजी ,सातारा, बुंदेला ,नील, कूका, पाबना ,फड़के पाइका ,बिजोलिया, बेंगू ,चंपारण खेड़ा, बेदखली रोको ,मेवाड़ ,एका ,बकाश्त, हांजोंग सुरमा घाटी, वर्ली संघर्ष तथा तेभागा आंदोलन हमारे लंबे संघर्ष की कहानी को बयां करते हैं.

आजादी के बाद भी समय-समय पर हमारी आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए हमें आंदोलनों का सहारा लेना पड़ा है. मैं किसान हूं मुझे हर मोर्चे पर असीम धैर्य का परिचय देते हुए लड़ना पड़ता है.

पग पग पर कठिनाइयां आती है कृषि लागत में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है. भूमि सुधार आज भी आवश्यकतानुसार नहीं हो पाए हैं.

फसल की बुवाई से लेकर कटाई तक तथा उसके बाद भी समस्याएं मुझे घेरे रहती है. बुवाई के समय सस्ते तथा गुणवत्तापूर्ण बीज मिलना पहली समस्या है. उसके बाद प्रकृति पर निर्भरता सबसे बड़ा सहारा है. सिंचाई की उचित व्यवस्था ना होने के कारण तथा कभी कभार मिट्टी की क्षारीयता तथा लवणता की समस्या की फसल को प्रभावित करती है बची कुछ कसर टिड्डी तथा अन्य जानवर पूरी कर जाते हैं.

मेरी समस्याओं का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हो कि हर साल खेती करने वालों की संख्या कम हो रही है. नई पीढ़ी खेती नहीं करना चाहती.

मैं मशीनीकरण के युग में भी परंपरागत तरीकों से कृषि करने को बाध्य हूं नई तकनीकों की जानकारी नहीं है. फसल की कटाई करने के बाद भी मेरी समस्याएं कम नहीं है.

उचित दाम मिलने तक अनाज को स्टोर करने का कोई विकल्प नहीं है और ना ही परिवहन सुविधाएं इतनी व्यापक हैं कि मेरी पहुंच मंडियों तक आसानी से हो सके.

केवल व्यथा ही मेरे जीवन की कहानी नहीं है मुझे गर्व है मैं किसान हूं मैं अन्नदाता कहलाता हूं और शायद इसलिए मैं हर परिस्थिति से लड़ जाता हूं. विभिन्न सरकारों ने भी हमारे लिए कई योजनाएं चलाई हैं.

जुलाई 2015 में आरंभ प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जिसका नारा हर खेत को पानी तथा प्रति बूंद अधिक सिंचाई इसके अलावा सरकारों द्वारा की जाने वाली कर्ज माफी ने भी आशा का संचार किया है.

1998 में आरंभ किसान क्रेडिट कार्ड तथा 2007 की ब्याज सहायता योजना ऋण उपलब्ध करवाती है. न्यूनतम समर्थन मूल्य व प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजनाओं ने मेरे डगमगाते धैर्य को स्थिर तो किया है.

पर जमीनी हकीकत पर इन सभी योजनाओं का लाभ खोखले वादों में सीमित ना रह जाए इसलिए आवाज उठाई है.

Ek Kisan Ki Atmakatha Par Nibandh Essay

एक गरीब किसान की आत्मकथा या मैं किसान बोल रहा हूँ | फार्मर ऑटोबायोग्राफी

गाय बैल संगी साथी पर कभी पड़े है अकाल
मैं हूँ धरती का लाल, पर बुरा है मेरा हाल

यह सुनकर तो आप जान ही गये होंगे कि मैं कौन हूँ. जी हाँ मैं एक छोटी सी भूमि पर खेती करने वाला किसान हूँ. मैं इसी भूमि का पुत्र हूँ. यह मिट्टी ही मेरी माँ हैं. कई वर्षों से खेतों में काम करके अपना खून पसीना बहाकर मैं फसल उगाता हूँ.

मैं तुम सबका एक नम्र सेवक हूँ. आज मैं तुम्हे अपने मन की बात बताने जा रहा हूँ.

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश हैं. स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार द्वारा किसानो के लिए अनेक योजनाएं बनाई गई हैं. जिसका उद्देश्य था कि किसान अपनी जमीन का सही अर्थों में मालिक बने.

साहूकारों के चंगुल से किसानों को छुटकारा मिले. बैंकों से किसानों को आर्थिक मदद मिले. इन योजनाओं का प्रचार तो खूब जोरो शोरों से हुआ. किन्तु क्या सही मायनों में इन सभी योजनाओं का फायदा एक सामान्य गरीब किसान को मिला हैं?

यह जानने की कोशिश किसी ने की हैं? इस पर निसर्ग की मार कभी बाढ़ तो कभी सूखा जिसके कारण हमारी दशा में कोई सुधार नहीं आया हैं. आजकल छोटेछोटे गाँवों में धनी किसानों का वर्ग तैयार हो गया हैं, जो आगे बढ़कर सरकारी योजनाओं का फायदा ले लेता हैं.

गरीब किसान गरीब का गरीब रह जाता हैं. गरीब किसानों की फसल को भी योग्य मूल्य नहीं मिल पाता हैं. फसल के उचित दाम न मिलने के कारण वह अपना कर्ज भी नहीं उतार पाता हैं. कर्ज न उतार पाने के कारण कभी कभी आत्महत्या की नौबत भी आ जाती हैं.

अपने खेत न होने वाले किसानों का तो बुरा हाल हैं, उन्हें तो दिहाड़ी भी पूरी नही मिलती हैं. बरसात के दिनों में तो उनके भूखे मरने की नौबत भी आ जाती हैं. सम्पूर्ण राष्ट्र जिनके परिश्रम से उगाए हुए अनाज पर जीता हैं. उन किसानों को उपवास रखना पड़ता हैं. इसकी कल्पना देशवासियों को कहा?

इन सामान्य गरीब किसानों और खेती मजदूरों की तरफ सरकार तथा शहरी लोगों को ध्यान देना चाहिए. हमें भी अच्छा जीवन जीने का मौका मिलना चाहिए. जय जवान जय जवान की उद्घोषणा हो सके, ऐसी ही हमारी विनती हैं.

किसान की आत्मकथा पर निबंध 300 शब्दों में

भारत गाँवों का देश है और मैं उन्ही गाँवों में रहता हूँ. लोग मुझे अन्नदाता कहकर सम्मान देते हैं, क्योंकि पूरे भारत में मेरे जैसे अन्य किसानों द्वारा उत्पन्न किया हुआ अनाज लोग खाते हैं.

मैंने अपना पूरा जीवन धरती माँ और अन्न देव की सेवा में समर्पित कर दिया हैं. हमारा इतिहास बहुत पुराना हैं. सभ्यता के विकास से लेकर आज इक्कीसवीं सदी तक मैं अपने पुराने व्यवसाय से जुड़ा हुआ हूँ. पाषाणयुग में मैं पत्थरों के औजारों से जमीन का सीना चीरकर अन्न उगाता था.

लोह्युग आया तो मैंने लोहे के बने कृषि उपयोगी यंत्रों से अपने काम को आगे बढ़ाया. आज अभियांत्रिकी क्रांति की वजह से हमारा कार्य कुछ सरल हो गया हैं, पर ज्यादा आनन्द आज भी मुझे परम्परागत संसाधनों में ही आता है वही मेरी पहचान हैं.

देश विकास के नित नये सोपान चढ़ रहा हैं. इसके बावजूद हमारी पहचान एक गरीब किसान के रूप में बनी हुई हैं. अन्नदाता होने के बाद भी कई बार अन्न की कमी से हमारे भाई आत्महत्या कर लेते हैं.

प्राकृतिक प्रकोप जैसे अल्पवृष्टि अतिवृष्टि सूखा अकाल तूफान आदि हमारी सालभर की मेहनत पर पलभर में पानी फेर जाते हैं.

सरकार द्वारा बनाई गई नीतियाँ या तो अपूर्ण है या उनको ढंग से लागू नहीं किया जाता हैं, जिससे हमें पूरी मदद नहीं मिल पाती हैं. सरकार को हमारे लिए कुछ सोचना होगा. हम बस भगवान के भरोसे अपना और अपने परिवार का पालन कर पाने में असमर्थ हैं.

मैं और मेरे जैसे बहुत सारे छोटे किसान आज बहुत बुरी स्थिति से गुजर रहे हैं. ऐसे में हमें अपने संरक्षण के लिए भगवान और शासन प्रशासन से बड़ी उम्मीद लगाए बैठे हैं बस यही है एक किसान की छोटी सी आत्मकथा.

किसान की आत्मकथा निबंध 250 शब्दों में`

मैं एक किसान हूँ. दिन रात कठिन परिश्रम से मैं आपके लिए तरह तरफ के फल सब्जियाँ और अनाज चावल आदि उगाता हूँ. मैं सर्दी की रातों में जागकर खेतों की रखवाली करता हूँ. अनाज को गाय और दूसरे पशुओं से बचाता हूँ.

मैं पहले खेतों में हल चलाता हूँ फिर बीज बोकर पानी देता हूँ, मेरे बैलों की जोड़ी मेरा बहुत साथ देती हैं. वो हल खीचने में मेरी सहायता करते हैं.

जब फसल पक जाती है तो मैं अपने मित्रों के साथ कटाई का उत्सव मनाता हूँ. फसल काटकर हम सभी बैलगाड़ियों में भरकर उसे शहर पहुचाते हैं. सबकों भरपेट अनाज खिलाकर मैं चैन की नींद सोता हूँ.

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