भारत में बैंकिंग प्रणाली की संक्षिप्त जानकारी Banking System In India In Hindi

भारत में बैंकिंग प्रणाली की संक्षिप्त जानकारी Banking System In India In Hindi: वर्तमान युग में बैकिंग प्रणाली हमारे लिए अत्यंत आवश्यक व उपयोगी है.

सामान्यत हमारे निकट किसी बैंक की शाखा अथवा पोस्ट ऑफिस होता है. बैंकों का मुख्य कार्य व्यक्तियों व सस्थाओं से नकद जमाएं स्वीकार करना तथा जरुरतमंद व्यक्तियों और संस्थाओं को ऋण उपलब्ध करवाना है.

भारतीय बैंकिंग सिस्टम का संचालन किसके द्वारा किया जाता है, इसके मुख्य कार्य व कार्यप्रणाली व बैंकिंग प्रणाली के इतिहास के बारे में आपकों यहाँ जानकारी दी जा रही है.

भारत में बैंकिंग प्रणाली की जानकारी Banking System In India In Hindi

कोई भी व्यक्ति बैंक या पोस्ट ऑफिस में जाकर खाता खुलवा सकता है. व्यापारिक और अन्य संस्थाएं भी अपना खाता खुलवा सकते है. खाते विभिन्न प्रकार के होते है.

जैसे- बचत खाता, चालू खाता, स्थायी जमा खाता आदि. अपनी आवश्यकता के अनुसार किसी भी प्रकार का खाता खुलवाया जा सकता है.

सभी भारत के बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निर्देशन व नियंत्रण में कार्य करते है. बैकिंग प्रणाली ने धन के लेन देन को आसान व सुरक्षित बना दिया है.

कितनी भी बड़ी राशि का भुगतान या स्थानांतरण चैक, बैंक ड्राफ्ट, इंटरनेट बेकिंग आदि का उपयोग करके आसानी और शीघ्रता से किया जा सकता है. हम ऑटोमेटिक टेलर मशीन (एटीएम) के द्वारा अपने खाते से धन सरलता से निकाल सकते है.

हम अपनी बचत का धन खाते में जमा करवा सकते है. यहाँ हमारा धन सुरक्षित रहता है, साथ ही उस पर ब्याज भी मिलता है. हमारी इस प्रकार की छोटी छोटी बचतें बैंक में इकट्ठा होकर विशाल धनराशि बन जाती है.

इस राशि को बैंक अपना रोजगार स्थापित करने के इच्छुक लोगों के साथ ही उद्योगों और व्यावसायिक संस्थाओं को उधार दे देता है. इस धन का उपयोग कई विकास कार्यों में किया जाता है.

इस प्रकार बैंक रोजगार और उद्योग व्यवसायों के लिए ऋण देकर विकास कार्यों में बहुत बड़ी भूमिका निभाते है. एक तरफ जहाँ सूचना प्रोद्योगिकी ने बैकिंग सेवाओं को सर्व सुलभ किया है,

वही दूसरी तरफ कुछ लोग इस तकनिकी का दुरूपयोग करके बैंक खाता धारकों को ठग लेते है. अतः इंटरनेट बैंकिंग एवं एटीएम मशीन का उपयोग किसी दूसरें व्यक्ति की उपस्थिति में नही करे. अपने पासवर्ड / पिन नंबर किसी भी व्यक्ति को नही बताएं.

बैंक क्या है What Is Bank Information In Hindi

बैंक वह संस्था है जो मुद्रा एवं साख का व्यवसाय करती है. बैंक लोगों की जमाएं स्वीकार करती है तथा ऋण देने व कटौती की सुविधा उपलब्ध करवाती है. इसके अतरिक्त वर्तमान में ग्राहकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उनकी ओर से अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य भी करती है.

आज इंटरनेट बैंकिंग द्वारा किसी भी स्थान से अपने खाते का संचालन किया जा सकता है तथा 24 घंटे बैंकिंग अर्थात एटीएम मशीन से 24 घंटे में ग्राहक कभी भी पैसा निकाल सकता है, तथा धन जमा करवा सकता है.

बैंक का हिंदी अर्थ भारतीय बैंकिंग अधिनियम 1949 के अनुसार ” बैंक वह कम्पनी है जो बैंकिंग का व्यवसाय करे” बैंकिंग का अर्थ ऋण देने या निवेश के लिए जनता से धन के रूप में जमा करना है, जो मांग पर देय होगा तथा चैक, ड्राफ्ट या अन्य किसी प्रकार से निकाला जा सकता है.

भारत में बैंक के कई प्रकार है, जिसके अंतर्गत केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंक, सहकारी बैंक, औद्योगिक विकास बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, निर्यात आयात बैंक, विनियोग बैंक, बचत बैंक, अंतर्राष्ट्रीय बैंक तथा देशी या अनौपचारिक बैंक इस श्रेणी में आते है.

भारत में बैंकिंग प्रणाली के प्रकार व इतिहास (Types and history of banking system in India)

भारत में वर्तमान में स्वामित्व के आधार पर दो प्रकार के बैंक कार्यरत है. लोक बैंक व निजी बैंक, जिन्हें सरकारी व प्राइवेट बैंक के नाम से भी आम भाषा में बोला जाता है.

  • लोकक्षेत्र (सरकारी) के बैंक वे बैंक कहलाते है, जिनमें भारत सरकार की आधे से अधिक शेयर पर हिस्सेदारी होती है. तथा इस प्रकार के बैंक का रजिस्ट्रेशन भारत के राष्ट्रपति के नाम होता है. स्टेट बैंक ग्रुप्स इस प्रकार की संस्था है.
  • निजी क्षेत्र अथवा प्राइवेट बैंक वे बैंक कहलाते है. जिनका रजिस्ट्रेशन किसी व्यक्ति विशेष अथवा संस्था के नाम का होता है. इसमें भी भारत सरकार के शेयर होते है. मगर आधे से कम शेयर सरकार का तथा शेष सम्बन्धित मालिकाना हक वाले व्यक्ति का होता है. भारत में अधिकतर बैंक इसी श्रेणी में आते है. जैसे पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बडौदा, यस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक इत्यादि.

भारत में बैकिंग प्रणाली स्थापित करने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है. सर्वप्रथम 1770 में अलेक्जेंडर एंड कम्पनी द्वारा कलकता में बैंक ऑफ हिन्दुस्थान की स्थापना की गई. यह आधुनिक भारत का पहला बैंक था.

इसके बाद अपने व्यापार के विकास के लिए बैंकों की स्थापना का जिम्मा ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने हाथों में ले लिया. 1806 में बैंक ऑफ बंगाल की स्थापना के साथ ही लाखों बैंक एक साथ विभिन्न शहरों में खोले गये थे.

इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया व पंजाब नेशनल बैंक सबसे पहले शुरू किये जाने वाले भारतीय बैंक थे. 1857 के भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पश्चात सभी छोटे बैंकों का इंडियन इंपीरियल बैंक में विलय कर इसका स्वामित्व ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया था.

आजादी के बाद इसी का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया कर दिया गया. भारत का यह पहला एवं एकमात्र सार्वजनिक बैंक है, जिसकी स्थापना 1955 में की गई थी.

वर्तमान भारत में बैंकिंग सेवाओं के प्रकार (types of banking services in india in hindi)

आजादी के बाद भारत में बैंकिंग प्रणाली/ सिस्टम में कई बड़े सुधार हुए, जिनके परिणामस्वरूप आज कोई भी व्यक्ति बड़ी आसानी से बैंक में अपना खाता खुलवा सकता है, लेनदेन कर सकता है अथवा आवश्यकता पड़ने पर बैंक से लोन भी ले सकता है. एक आम व्यक्ति भारत में निम्न बैंक सेवाओं का फायदा ले सकता है.

  • बैंक अकाउंट व लेनदेन– यह प्रत्येक बैंक की अपने ग्राहकों के प्रति पहली प्राथमिकता है, कि वह अपने ग्राहकों के निवेदन पर पूर्व निर्धारित एक प्रक्रिया के तहत उनका बैंक अकाउंट खोले तथा उनके आग्रह पर धना जमा व धन निकालने की सेवाएं प्रदान करे. कुछ बैंक यह कार्य निशुल्क करती है, जबकि कुछ इसके लिए ग्राहक से सेवा शुल्क वसूलती है.
  • लोन देना- लोन अर्थात आवश्यकता पड़ने पर बैंक खाता धारक के मागने पर पैसे उधार (ऋण) देने का कार्य करती है. लघु अवधि, मध्यम अवधि तथा दीर्घकालीन अवधि के ऋण विविध बैंकों द्वारा प्रदान किये जताए है.
  • मनी ट्रान्सफर– हरेक बैंक अपने ग्राहकों के लिए पैसे का स्थानातरण की सुविधा मुहैया करवाती है. एक खाता धारक से दूसरे खाता धारक के अकाउंट में पैसा जमा करवाना, चैक, ड्राफ्ट तथा मनी आर्डर के जरिये भी बैंक मनी ट्रान्सफर की सेवाएं देते है.
  • क्रेडिट और डेबिट कार्ड– आधुनिक तकनीकी युग में लगभग सभी बैंक द्वारा क्रेडिट और डेबिट कार्ड तथा ई-बैंकिंग की सेवाएं भी मुहैया करवाई जाती है. इसके द्वारा व्यक्ति अपने खाते से पैसे भेज सकता है अथवा बैंक से पैसे के लिए आग्रह भी कर सकता है.
  • लाकर्स- यह भारतीय बैंकिंग प्रणाली की मूलभूत विशेषता है, कि बैंक अपने ग्राहकों को एक निश्चित सेवा शुल्क पर कीमती आभूषण तथा दस्तावेज बैंक के पास सुरक्षित रखने का विकल्प प्रदान करती है. जिसकी सुरक्षा व रखरखाव की जिम्मेदारी सम्बन्धित बैंक की होती है.
  • उपर दी गई सभी सेवाएं एक भारतीय नागरिक को ही मिल सकती है, इसके अतिरिक्त इंडियन बैंक द्वारा अप्रवासी भारतीय (NRI) के लिए भी तीन प्रकार के बैंक खातों की सुविधा प्रदान की जाती है, जो निम्न है-NRO, NRE तथा FCNR.

बैंक के कार्य (bank work in hindi)

प्राथमिक कार्य- बैंक इन दो कार्यों के रूप में जाने जाते है, जो कि प्रत्येक बैंक को अनिवार्य रूप से करने पड़ते है.  जमाएं स्वीकार करना तथा ऋण देना

जमाएं स्वीकार करना (Accept deposits) 

आधुनिक बैंकों का एक प्रमुख कार्य जनता से निक्षेप या जमाएं प्राप्त करना है. समाज के विभिन्न वर्ग जो बचत करते है, उसे वो बैंकों में जमा करवा देते है.

इस प्रकार जनता के धन राशि की सुरक्षा भी हो जाती है तथा उन्हें अपनी जमाओं पर कुछ ब्याज भी प्राप्त हो जाता है तथा जनता जो धन बैंकों में जमा करवाती है,

बैंक उसकों देश के निर्माण में विभिन्न प्रकार से विनियोग करते है. इस प्रकार जनता में बचत की आदत डालते है तथा देश में पूंजी निर्माण कर आर्थिक विकास में मदद करते है. व्यापारिक बैंक (business banking ) निम्न खातों द्वारा धन राशि जमा करने की सुविधा प्रदान करते है.

दूसरा कार्य ऋण देना

बैंकों का दूसरा प्रमुख कार्य ऋण देना है. बैंक के पास जो धन जमाकर्ताओं द्वारा प्राप्त होता है, वह उसे व्यापारियों, उद्योगपतियों तथा अन्य लोगों को उधार देता है.

बैंक अपने द्वारा दिए गये ऋण पर अपने जमाकर्ताओं को दिये जाने वाले ब्याज से अधिक दर पर ब्याज वसूल करता है. इन्ही ब्याज दरों का अंतर बैंक का लाभ होता है. बैंक द्वारा ऋण सुविधा निम्न प्रकार से दी जाती है.

  • नकद साख– इस पद्दति के अंतर्गत बैंक प्रार्थी के लिए ऋण की एक सीमा निर्धारित कर देता है. बैंक यह ऋण सामान्यतया व्यापारियों की जमानत पर स्वीकृत करता है. व्यापारी अपनी आवश्यकतानुसार जब चाहे निर्धारित जब चाहे निर्धारित सीमा तक राशि बैंक से निकाल सकता है. ब्याज केवल निकाली गई राशि पर ही वसूल किया जाता है.
  • अधिविकर्ष– बैंक में चालू खाता रखने वाले व्यापारियों को उनके खाते से जमा रकम से अधिक रकम निकालने की सुविधा अधिविकर्ष कहलाती है. यहाँ सुविधा बैंक द्वारा अल्पकाल तथा आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जाती है. अधिविकर्ष की सीमा का निर्धारण व्यक्ति की साख पर निर्भर होता है.
  • ऋण एवं अग्रिम– बैंक द्वारा ऋण देने का यह सामान्य रूप है, बैंक प्राथी को उचित जमानत के आधार पर ऋण स्वीकृत कर उस राशि को एक पृथक ऋण खाते में जमा कर देता है. ऋण स्वीकृत करते समय ही बैंक व प्राथी के मध्य ब्याज की दर एवं भुगतान की शर्ते तय हो जाती है. निर्धारित समय अवधि में ऋण का भुगतान नही होने पर जमानत में रखी गई सम्पति बेचकर रकम वसूल करने का अधिकार बैंक के पास होता है. ऋण पर ब्याज की दर ऋण के उद्देश्य, अवधि, जमानत तथा ग्राहक के व्यवसाय पर निर्भर करती है.
  • विनिमय विपत्रों की कटौती- इस विधि के अंतर्गत बैंक सावधि विनिमय विपत्रों का बिल तिथि से पूर्व ही भुग्तान कर व्यापारियों को साख सुविधा प्रदान करते है. इस कार्य के लिए बैंक कुछ बट्टा छुट लेते है जो उस अवधि के ब्याज के बराबर होता है.

अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य

बैंक अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए अपने ग्राहक के अभिकर्ता के रूप में अनेक कार्य करता है, जो निम्नानुसार है.

  1. चैक विनिमय विपत्र आदि का संग्रहण- बैंक अपने ग्राहकों द्वारा जमा करवाए गये चैक, विनिमय विपत्र, ड्राफ्ट, प्रतिज्ञापत्र, हुंडी आदि का संग्रहण कर ग्राहक के खाते में जमा करने का महत्वपूर्ण कार्य करते है. इस कार्य के लिए बैंक निर्धारित शुल्क लेता है.
  2. चैक विनिमय विपत्र आदि का भुगतान– बैंक अपने ग्राहकों द्वारा लिखे गये चैकों का भुगतान करता है, बैंक अपने ग्राहकों की ओर से बिल स्वीकार करने एवं उनका भुगतान करने का कार्य भी करते है.
  3. ग्राहक के आदेशानुसार भुगतान करना-बैंक ग्राहक के स्थायी आदेश के अंतर्गत उसकी ओर से बीमा प्रीमियम, मकान किराया, ब्याज, ऋण की किश्त, टेलीफोन बिल, कर आदि का भुगतान करते है.
  4. धन प्रेषण की सुविधा- बैंक अपने ग्राहकों का धन एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने की सुविधा प्रदान करते है. यह सुविधा ड्राफ्ट, डाक व तार अंतरण द्वारा तथा ऑनलाइन बैंकिंग द्वारा सेकंड्स में धन का अंतरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर किया जाता है.
  5. प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय- बैंक अपने ग्राहकों की ओर से अंशो, ऋणपत्रों, सरकारी तथा अर्द्ध सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय भी करते है.
  6. प्रन्यासी एवं प्रबन्धक के रूप में कार्य- ग्राहक के आदेश पर उसकी सम्पति की व्यवस्था, विभाजन एवं प्रबन्धन हेतु प्रन्यासी प्रबन्धक एवं निष्पादन का कार्य भी करते है.
  7. प्रतिनिधि सम्बन्धी कार्य- बैंक अपने ग्राहकों के आदेश पर उनके लिए पासपोर्ट, विदेश सेवा, यात्रा हेतु विनिमय एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने का कार्य भी करते है.
  8. एटीएम मशीन द्वारा 24 घंटे धन निकासी एवं जमा करने की सुविधा प्रदान करना- आधुनिक युग में बैंक में धन जमा करवाने के लिए बैंक की शाखा में जाकर जमा करवाना और निकलवाने की आवश्यकता नही है. बैंक ग्राहकों को उसके जमा खाते पर डेबिट कार्ड तथा खाता भी नही हो तो क्रेडिट कार्ड प्रदान करता है. इस प्लास्टिक के कार्ड से ग्राहक अपने शहर में ही नही कही भी कार्ड के माध्यम से एटीएम मशीन से 24 घंटे धन निकलवा सकता है तथा जमा करवा सकता है. डेबिट कार्ड के माध्यम से धन निकलवाने पर कोई ब्याज नही देना पड़ता है, जबकि क्रेडिट कार्ड से धन निकलवाने के लिए निश्चित ब्याज चुकाना पड़ता है.

बैंक के सामान्य उपयोगी कार्य (Common work of the bank )

  • आर्थिक स्थति की जानकारी देना (Informing the financial situation)– कभी कभी व्यापारी बैंक से अपने नविन व्यापारी ग्राहकों की साख के बारे में पूछताछ करते है ताकि वह उसके लिए साख सीमा निर्धारित कर सके. बैंक अपने ग्राहकों के लिए यह जानकारी प्राप्त करते है तथा ग्राहक को आर्थिक स्थति के बारे में जानकारी व्यापारियों को उपलब्ध करवाते है.
  • लोकर्स उपलब्ध करवाना (Make available locks)- ग्राहकों की बहुमूल्य सामग्री जैसे आभूषण, महत्वपूर्ण दस्तावेज, प्रतिभूतियाँ आदि सुरक्षित रखने के लिए बैंक ग्राहकों को लोकर्स या सेफ डिपोजिट वोल्टस उपलब्ध करवाते है ताकि ग्राहकों की बहुमूल्य वस्तुएं सुरक्षित रख सके.
  • यात्री चैक व्यवस्था- बैंक अपने ग्राहकों से बहुत ही कम शुल्क लेकर यात्री चेक जारी करते है. इससे यात्री को अपनी यात्रा के दौरान नकद धन ले जाने के जोखिम से मुक्ति मिल जाती है.
  • अभिगोपन कार्य- बैंक व्यापारिक प्रतिष्ठानो, कम्पनियों के अंश एवं ऋणपत्रों के अभिगोपन का कार्य अर्थात (यदि बाजार में अंश नही खरीदे जाए तो बैंक द्वारा खरीद्ना) भी करते है इस कार्य के लिए बैंक कमीशन लेते है.
  • वित्तीय सलाहकार का कार्य- बैंक अपने ग्राहकों को समय समय पर वित्तीय एवं आर्थिक विषयों पर परामर्श देने का कार्य भी करते है. इस सुविधा से ग्राहकों को अपने व्यवसाय में निर्णय लेने में सुविधा हो जाती है.
  • समाशोधन गृहों की व्यवस्था- बैंक पारम्परिक भुगतानों के निपटारे के लिए बैंक समाशोधन गृहों के प्रबंध का कार्य भी करते है.
  • सार्वजनिक ऋण की व्यवस्था करना- व्यापारिक बैंक केन्द्रीय बैंक के प्रतिनिधि के रूप में सरकार द्वारा जारी ऋण पत्रों की बिक्री की व्यवस्था भी करते है.
  • विदेशी विनिमय व्यवस्था- व्यापारिक बैंक विदेशी व्यापार के लिए साख उपलब्ध करवाने जैसा महत्वपूर्ण कार्य भी बैंक करते है. इस हेतु विदेशी विनिमय बिलों का बट्टा भी करते है.
  • आर्थिक सूचनाएँ एकत्रित करना तथा उन्हें प्रदर्शित करना-बैंक अपने देश की आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियों के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्रित करने एवं प्रकाशित करवाने का कार्य भी करते है. इससे व्यापारियों अर्थशास्त्रियों, राजनीतिज्ञों व शोधकर्ताओं को भी लाभ होता है.
  • अन्य सहायक कार्य- उपर्युक्त कार्यो के अतिरिक्त बैंक कुछ अन्य कार्य जैसे गारंटी देना, साख प्रमाण पत्र देना, उपहार चैक जारी करना आदि काम भी करते है.
  • साख स्रजन- बैंक केवल मुद्रा के व्यापारी ही नही ये जमाओं एवं विनिमय बिलों की कटौती द्वारा साख स्रजन भी करते है.

भारत में बैंकों के प्रकार | Types Of Banks In India In Hindi

आर्थिक विकास की बढ़ती गति के साथ मुद्रा और ऋण की आवश्यकता में भी वृद्धि हुई. इस कारण बैंक के कई प्रकार (types of bank) विकसित हुए तथा बैंकों में भी विशिष्टीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई, प

रिणामस्वरूप कुछ विशिष्ट कार्यों के लिए साख एवं अन्य सुविधा प्रदान करने हेतु विविध प्रकार के ऋण (BANK LOAN) एवं अन्य सुविधा प्रदान करने के लिए विशेष प्रकार के बैंकों की स्थापना की गई. कार्यप्रकृति के आधार पर भारत में बैंकों के प्रकार निम्नलिखित है.

भारत में 10 बैंक के प्रकार (Types of Banks in India)

  1. केन्द्रीय बैंक (central bank of india)- प्रत्येक देश के बैंकिंग ढाँचे में सर्वोच्च संस्था के रूप में केन्द्रीय बैंक होता है. यह बैंक साख का नियमन एवं नियंत्रण, देश की बैंकिंग व्यवस्था पर प्रभावी नियन्त्रण नोट निर्गमन तथा सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है. भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया केन्द्रीय बैंक के रूप में कार्य कर रहा है.
  2. व्यापारिक बैंक (commercial banks in india)- जो बैंक सामान्य बैंकिंग का कार्य करते है, उन्हें व्यापारिक बैंक कहा जाता है. ये बैंक धन जमा करने, ऋण देने, ग्राहक के अभिकर्ता के रूप में उसके धन का प्रेषण करने, चैक, बिल आदि का संग्रहण तथा भुगतान करने, साख पत्र जारी करने सम्बन्धी अनेक कार्य करते है. भारत में व्यापारिक बैंक सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में काम कर रहे है. भारत में स्टेट बैंक समूह सहित 27 व्यापारिक बैंक सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत है.
  3. सहकारी बैंक (cooperative bank in hindi)- भारत में सहकारी बैंक विशेष रूप से कृषि ऋण/लोन की आवश्यकता को पूरा करने का कार्य करते है. ये बैंक सहकारिता के सिद्धांत पर कार्य करते है. भारत में सहकारी बैंकों का ढ़ाचा त्रिस्तरीय है. राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंक, जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक तथा ग्राम स्तर पर प्राथमिक सहकारी कृषि साख समितियाँ कार्यरत है. कृषि हेतु दीर्घ लोन उपलब्ध करवाने के लिए राज्य स्तर पर केन्द्रीय भूमि विकास बैंक तथा जिला स्तर पर प्राथमिक भूमि विकास बैंक स्थापित किये गये है.
  4. औद्योगिक विकास बैंक (Industrial development bank)- ये बैंक उद्योगों के आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए दीर्घकालीन एवं आसान किस्तों पर ऋण उपलब्ध करवाते है. ये बैंक प्रबंधकीय, तकनिकी, विपणन आदि के लिए मार्गदर्शन भी प्रदान करते है. भारत में आजादी के बाद अनेक विकास बैंकों की स्थापना की गई है. राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय उद्योगिक वित्त निगम 1948, भारतीय उद्योगिक साख एवं विनियोग निगम 1955, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक 1964, भारतीय ओद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक 1985 तथा राज्य स्तर पर राज्य वित्त निगम कार्यरत है.
  5. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (regional rural bank in hindi)- भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में साख आपूर्ति की समुचित व्यवस्था हेतु क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई है. प्रथम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना 2 अक्टूबर 1975 को की गई. वर्तमान में भारत में 516 जिलों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की 14000 से अधिक शाखाएँ सक्रिय है.
  6. निर्यात आयात बैंक (export import bank of india)- इस बैंक की स्थापना विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए की गई. यह निर्यातकों एवं आयातकों को साख सुविधाएं प्रदान करता है. भारत में निर्यात आयात बैंक जनवरी, 1982 से कार्यरत है.
  7. विनियोग बैंक (investment bank in india)- इन बैंकों का कार्य देश में बिखरी हुई बचतों को एकत्रित कर उसका लाभप्रद विनियोजन करना है. भारत में जीवन बीमा निगम, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया, म्युचुअल फंड आदि विनियोग बैंक के रूप में कार्य कर रहे है.
  8. बचत बैंक (savings Bank)- पश्चिम देशों में सामान्य वर्ग के लोगों की छोटी छोटी बचतों को प्रोत्साहन देने के लिए अलग से बचत बैंक स्थापित किये गये है. भारत में व्यापारिक बैंक ही ये कार्य करते है.
  9. अंतर्राष्ट्रीय बैंक (International bank)- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विभिन्न देशों में बिगड़ी अर्थव्यवस्था को ठीक करने तथा तीव्र आर्थिक विकास हेतु 1944 में अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की स्थापना की गई, जिसे विश्व बैंक भी कहा जाता है. इस बैंक की दो सहायक संस्थाएं है. 1. अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ 2. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम
  10. देशी या अनौपचारिक बैंकर्स (informal bankers) –देशी या अनौपचारिक बैंकर्स भारत के सभी भागों में पायें जाते है. ये कृषि व व्यापार के लिए वित्त की व्यवस्था करते है इन्हें महाजन, साहूकार, सराफ आदि नामों से भी जाना जाता है.

बैंक द्वारा धन जमा करने के खातों का प्रकार (different types of deposits in banks)

  • सावधि जमा खाता (Fixed deposit account)– इस खाते में एक निश्चित अवधि के लिए धन जमा कराया जाता है. जमा अवधि ग्राहक अपनी सुविधानुसार निर्धारित करता है तथा बैंक इस पर अधिक मात्रा में ब्याज देती है. सामान्यतया सावधि जमा खाते में जमा राशि देय तिथि को मिलती है. जमाकर्ता की सुविधा के लिए बैंक सावधि जमा राशि की जमानत पर ऋण भी प्रदान करता हो तथा ब्याज की दर में कुछ कटौती कर देय तिथि से पूर्व जमा धन निकालने की सुविधा भी प्रदान करता है.
  • बचत बैंक खाता (Savings bank account) – यह खाता अल्प एवं मध्य आय के व्यक्तियों के लिए अधिक उपयोगी होता है. इसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपनी छोटी छोटी बचतों को बैंक में जमा करवा सकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर वापिस निकाल सकता है. इस खाते में जमा धन पर कम मात्रा में ब्याज मिलता है तथा जनता में बचत की भावना को भी प्रोत्साहन मिलता है.
  • चालू खाता (Current account)– यह सामान्यतया व्यापारी वर्ग के लिए उपयोगी होता है. इस खाते में किसी भी कार्य दिवस को कितनी ही बार धन जमा करवाया जा सकता है. तथा धन निकाला जा सकता है. इस खाते में जमा रकम मांग पर देय होती है. इसलिए इस खाते पर बैंक कोई ब्याज नही देता है. इस पर बैंक अधिविकर्ष की सुविधा भी प्रदान करता है.
  • आवर्ती जमा खाता- यह खाता मुख्य रूप से उन जमाकर्ताओं के लिए है जो छोटी छोटी बचतों के माध्यम से एक निश्चित उद्देश्य के लिए एकमुश्त राशि प्राप्त करना चाहते है. आवर्ती जमा खाता खोलने वाले व्यक्ति को एक निश्चित रकम निश्चित अंतराल से नियमित जमा करवानी पडती है. इस खाते की अवधि 1 से 10 वर्ष तक की हो सकती है.
  • अन्य बचत खाते- व्यापारिक बैंकों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के अनुरूप गृह बचत खाता, प्रतिदिन बचत योजना, मासिक ब्याज आय जमा योजना, अवयस्क बचत योजना, कृषि जमा योजना आदि.

भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Nationalization of Banks in India in hindi)

वर्ष 1959 में भारत के 8 क्षेत्रीय बैंकों का राष्ट्रीकरण किया गया था. RBI ACT 1934 के तहत 1 अप्रैल 1935 को भारत के राष्ट्रीय बैंक नियंत्रक के रूप में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना की गई थी.

आरबीआई का राष्ट्रीकरण 1949 में किया गया था. अंतर्राष्ट्रीय बैंक मानकों के मुताबिक़ आरबीआई के पास दो सौ करोड़ से अधिक का कोष नही होना चाहिए जिनमें से 60 फीसदी स्वर्ण भंडार का होना आवश्यक है.

इसका मुख्य कार्यालय मुंबई में है. तथा भारत के चार बड़े महानगर मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली व कलकता में भी rbi के कार्यालय है.

राष्ट्रीयकरण की इसी प्रक्रिया में अंग्रेजी काल से चल रहे इम्पीरियल बैंक का भी वर्ष 1955 में भारतीय स्टेट बैंक के नाम से राष्ट्रीयकरण कर दिया गया.

स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ ट्रावणकोर इसकें अधीन ये बैंक कार्य करते है. इसके अतिरिक्त देश भर में पन्द्रह हजार से अधिक SBI की शाखाएँ कार्यरत है.

19 जुलाई सन् 1969 को चौदह 1980 को छ प्राइवेट बैंकों तथा वर्ष 2017 में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया की सभी बैंकों का राष्ट्रीकरण कर दिया गया. इस तरह से अब भारत में कुल 19 नेशनल बैंक हो गये है.

जब किसी भी निजी बैंक का स्वामित्व एवं उसका प्रबंधन सरकार अपने हाथ में ले लेती है तो इसे राष्ट्रीयकरण कहा जाता है एवं वह बैंक राष्ट्रीयकृत बैंक कहलाता है जिसकी पूरी प्रणाली सरकार के हाथों में होती हैं।

जब निजी बैंक में 50% से अधिक हिस्सेदारी सरकार की हो जाती है तो उसे पब्लिक सेक्टर बैंक या राष्ट्रीयकरण बैंक कहा जाता है।

बड़े पैमाने पर राष्ट्रीयकरण पहली बार 19 जुलाई 1969 को इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा किया गया। हालांकि देश में यह पहला राष्ट्रीयकरण नहीं था।

इससे पूर्व में भी किए गए लेकिन लेकिन यह पहला बड़ा कार्यक्रम था जिसने देश के सभी राजनीतिक और आर्थिक विचारों को प्रभावित किया और आम जन में चर्चा का विषय बना।

भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण पहले भी 1955 और 1960 लेकिन इंदिरा सरकार के द्वारा किया गया पहला राष्ट्रीयकरण देश में बैंकिंग प्रणाली को पूरी तरह से प्रभावित और बदलने वाला था.

इसके पश्चात भारत में बैंकों की दिशा और दशा दोनों बदल गई थी एक तरफ जहां आर्थिक सकेंद्रीकरण पर लगाम कसी गई वहीं दूसरी तरफ आमजन तक बैंकों की पहुंच सुनिश्चित की गई

पृष्ठभूमि

इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना इतना आसान नहीं था। इसमें कई तरह की राजनीतिक एवं कानूनी अड़चनें आई परंतु इन सबके बावजूद इंदिरा गांधी सरकार एक बड़ा और साहसिक निर्णय लेने में सफल रही।  भारत में अभी राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या 19 है।

1967 में जब इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री बनी थी तब एक और दावेदार थे जिनका नाम मोरारजी देसाई था। जो पूर्व में जवाहरलाल नेहरू की सरकार में वित्त मंत्री भी रह चुके थे और इस बार भी वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में बतौर वित्त मंत्री शामिल हुए।

जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने की तैयारी चल रही थी उसी समय मोरारजी देसाई ने इंदिरा सरकार के इस फैसले पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

यह घटना राष्ट्रीयकरण के अध्यादेश के ठीक 3 दिन पूर्व की थी जिसके बाद इंदिरा गांधी ने ही वित्त मंत्रालय संभाला।

19 जुलाई 1969 को इंदिरा सरकार के द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक अध्यादेश ( बैंकिंग कंपनीज ऑर्डिनेंस) के माध्यम से कर दिया गया जिस के संबंध में देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट प्रस्तुत की गई।

10 फरवरी 1970 को सुप्रीम कोर्ट ने इस राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए इसे अवैध घोषित कर दिया। लेकिन इंदिरा सरकार यहां हार मानने वाली नहीं थी क्योंकि बैंकों का राष्ट्रीयकरण उनकी दस सूत्रीय प्रणाली का एक हिस्सा था।

इस कानूनी जद्दोजहद के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के परिपेक्ष में 14 फरवरी 1970 को एक बार फिर से अध्यादेश जारी किया गया और इस बार इसे 26 फरवरी को संसद से पारित भी कर दिया गया।

जिसके बाद 31 मार्च को इस बार इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो गए थे और आखिरकार बैंकों के राष्ट्रीयकरण को सरकारी एवं कानूनी अनुमति मिल चुकी थी जो अब धरातल पर थेे।

19 जुलाई 1969 को देश के 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था यह सभी बैंक ऐसे थे जिनकी पूंजी 50 करोड़ अथवा इससे ज्यादा थी।

इन बैंकों में चुकता पूंजी लगभग साढे 28 करोड़ की थी और इन बैंकों के अपनेे कोष 66करोड़ के थे। इन 14 राष्ट्रीयकरण बैंकों में निम्न बैंक शामिल थे

  • सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया,
  • बैंक ऑफ इंडिया (BOI),
  • पंजाब नेशनल बैंक (PNB),
  • बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB),
  • देना बैंक (Dena Bank),
  • यूको बैंक (UCO Bank),
  • केनरा बैंक (Canara Bank), यूनाइटेड बैंक
  • (United Bank),
  • सिंडिकेट बैंक (Syndicate Bank),
  • यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (Union Bank of India),
  • इलाहाबाद बैंक (Allahabad Bank),
  • इंडियन बैंक (Indian Bank), इंडियन
  • ओवरसीज बैंक (IOB)
  • बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra)
  • Central bank of India

बैंकों राष्ट्रीयकरण की जरूरत क्यों पड़ी

कई कारणों को वजह से देश में राष्ट्रीयकरण की जरूरत पड़ी। एक समय जहां विश्व की कुल अर्थव्यवस्था में लगभग 24% हिस्सा भारतीय अर्थव्यवस्था का था।

अंग्रेजों द्वारा बरसों बरस भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने का भरसक प्रयास किया गया और इसमें काफी हद तक उनको सफलता भी मिली।

एक तरफ जहां आर्थिक बदहाली से देश गुजर रहा था वहीं दूसरी तरफ आजादी के बाद भारत को अपने पड़ोसी मुल्कों से कई युद्ध करने पड़े जिनकी वजह से भारत की आर्थिक स्थिति और खराब होती चली गई।

1962 में चीन से एवं 1965 में हुए पाकिस्तान से युद्ध के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की हालात नाजुक हो गई थी और देश के वित्तीय संस्थान उस समय सिर्फ धनवान लोगों के लिए ही कार्य करते थे।

इसके अलावा देश की कृषि और औद्योगिक प्रणाली भी संकट से गुजर रही थी और इस संकट से उबारने का एकमात्र रास्ता इनको पूंजी उपलब्ध करवाना ही था।

जिससे कि यह अपना प्रबंधन बेहतर कर सकें लेकिन सरकारी खजाना में इतना दम नहीं था कि वह अकेले इनको संकट से उबार सके।

इसलिए इंदिरा सरकार ने आमजन का पैसा बैंकों तक पहुंच सके, सरकारें इसका उपयोग कर सकें जैसे कई कारणों की वजह से राष्ट्रीयकरण का सहारा लेना चाहा।

क्योंकि जब वित्तीय संस्थानों पर सरकार का स्वामित्व हो तो आमजन में भरोसा पैदा होता है। अर्थात तत्कालीन हालातों में पैसे के डूबने के डर के कारण जनता बैंकों में अपना पैसा नहीं रखती थी।

संकट के समय से गुजरती हुई अर्थव्यवस्था में वित्तीय संस्थानों की हालात भी बहुत खराब थी। देश के डूबते बैंकों के साथ जनता का पैसा भी डूब जाता था।

1951 में जहां देश में 400 वाणिज्यिक बैंक थे,1947 से लेकर 1955 तक देश के 360 बैंक तकरीबन बंद होने की कगार पर आ चुके थे यानी 40 बैंक हर साल बंद हो रहे थेे।

इससे अर्थव्यवस्था के नाजुक हालातों का अंदेशा लगाया जा सकता है। जो भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिए एक बहुत बड़ा संकट था और इसी कारण आमजन का इन वित्तीय संस्थानों के प्रति भरोसा न के बराबर थाा।

इंदिरा सरकार की पहले राष्ट्रीयकरण की सफलता को देखते हुए 1980 में भी इंदिरा गांधी की सरकार ने एक बार फिर 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला किया,

जिनकी पूंजी 200 करोड़ से अधिक थी।  अर्थव्यवस्था उदारीकरण निजीकरण एवं वैश्वीकरण की अवस्था से पहले 4% की वृद्धि दर से आगे बढ़ रही थी।

राष्ट्रीयकरण के सकारात्मक प्रभाव

अर्थव्यवस्था के खस्ता हालातों को देखते हुए राष्ट्रीयकरण जैसे बड़े फैसले का धरातल पर उतरना और अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आना राष्ट्रीयकरण की एक बहुत बड़ी सफलता मानी जा सकती है। देश के विकास में बैंकिंग प्रणाली बहुत अहम मानी जाती है।

बड़े परिवर्तनों की बात करें तो भारत में वित्तीय समावेशन काफी हद तक बढ़ा। 1969 में जहां देश भर में लगभग 8000 बैंकों की शाखाएं थी।

वही यह आंकड़ा बढ़कर 1994 में लगभग 60,000 हो गया और 2014 तक भारत में बैंकों की शाखाएं तकरीबन 1 लााख15 हजार  पहुंच गई।

यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन और एक अद्वितीय सफलता मानी जा सकती है जिसके कारण आमजन तक बैंकों की पहुंच संभव हो सकी।

राष्ट्रीयकरण से पहले जहां बैंकों की ज्यादातर शाखाएं सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ही होती थी वही अब इसके बाद 2014 तक 115000 शाखाओं में से लगभग 43,000 शाखाएं ग्रामीण भारत में है जो देश की अर्थव्यवस्था मैं बहुत बड़ा योगदान रखते हैंं। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात बैंक भारत में सामाजिक एवं आर्थिक विकास की धुरी बन कर उभरे हैं।

तमाम लोक कल्याणकारी योजनाएं वित्तीय समावेशन की सफलता से ही संभव हो पाई है जिनके माध्यम से दी जाने वाली राशि सीधे लक्षित व्यक्ति के खातों तक पहुंच जाती है।

क्योंकि पहले बढ़ते भ्रष्टाचार और लीकेज की समस्या के कारण सरकार के द्वारा पारित पैसा लक्षित व्यक्तियों तक नहीं पहुंच पाता थाा।

राष्ट्रीयकरण का प्रभाव इससे आंका जा सकता है कि प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत 2018 तक लगभग 31 करोड खाता खुल चुके हैं।

वर्तमान में मनरेगा एवं किसान क्रेडिट कार्ड की राशि सीधे लाभार्थी तक पहुंचा पाना और राष्ट्रीयकरण की एक बड़ी सफलता मान सकते हैं क्योंकि बिना वित्तीय समावेशन कि यह संभव नहीं था।

परंतु बैंकों का राष्ट्रीयकरण देश में बढ़ती आर्थिक असमानता को कम नहीं कर सका एक ओर जहां एनपीए लगातार बढ़ता जा रहा है उसी के समानांतर आर्थिक असमानता भी बढ़ती जा रही है जो आने वाले समस्या में अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।

FAQ

भारत में बैंकों का बैंक किसे कहा जाता हैं?

रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया को बैंकों का बैंक कहा जाता हैं.

आधुनिक बैंक प्रणाली का इतिहास भारत में कितना पुराना हैं?

दो सौ वर्ष

भारत का पहला आधुनिक बैंक कौनसा था?

बैंक ऑफ बंगाल

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उम्मीद करता हूँ दोस्तों भारत में बैंकिंग प्रणाली की संक्षिप्त जानकारी Banking System In India In Hindi का यह लेख आपको पसंद आया होगा.

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