भक्ति काल हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग Essay On Bhaktikal The Golden Era Of Hindi Literature

भक्ति काल हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग Essay On Bhaktikal The Golden Era Of Hindi Literature:- कबीर, मीरा, तुलसी, सूर जैसे हिंदी साहित्य के बड़े कवियों के नाम बड़े सम्मान के साथ लिए जाते हैं.

मुगलकाल के समय के पीरियड को हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्ति काल कहा गया हैं. इसे हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग के नाम से भी जाना जाता हैं.

भक्तिकाल के लेखकों तथा साहित्य काल के विभिन्न खंडों में भक्तिकाल के स्थान को इस निबंध के जरिये प्रदर्शित किया गया हैं.

भक्ति काल हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग

भक्ति काल हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग Essay On Bhaktikal The Golden Era Of Hindi Literature

हिंदी साहित्य के चार काल खंड (Four periods of Hindi literature History In Hindi):-

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास को चार कालों वीरगाथा काल, भक्ति काल, रीतिकाल एवं आधुनिक काल में विभाजित किया हैं. वीरगाथा काल को ही सर्वमान्य रूप से आदि काल कहा जाता हैं. उन्होंने आदिकाल का समय संवत् 1050-1375 अर्थात् 992-1317 ई.

भक्तिकाल का समय संवत् 1375-1700 अर्थात् 1317-1642 ई. रीतिकाल का समय संवत् 1700-1900 अर्थात् 1642-1842 ई. तक तथा आधुनिक काल का समय संवत् 1900 के बाद से अब तक अर्थात् 1842 ई. के बाद से अब तक बताया हैं.

साहित्य की उत्कृष्टता एवं उद्देश्यों के दृष्टिकोण से भक्ति काल में अन्य कालों की तुलना में अच्छे साहित्य की रचना की गई. इसलिए इस काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता हैं.

भक्ति काल में हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि (Hindi literature Ke bhakti kaal ke kavi):

भक्ति काल के प्रमुख कवि तुलसीदास, कबीरदास, रहीम, मीरा, रसखान, मलिक मुहम्मद जायसी, सूरदास इत्यादि हैं. इस काल की रचनाओं में भाषागत विविधताएं देखने को मिलती हैं.

हिंदी के सन्दर्भ में देखे तो इस काल में काव्य रचना के लिए अवधि, ब्रजभाषा एवं मैथिली जैसी हिंदी की प्रमुख तत्कालीन बोलियों का प्रयोग किया गया.

तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’, कबीर रचित ‘बीजक’, सूरदास रचित ‘सूरसागर एवं मलिक मुहम्मद जायसी रचित ‘पद्मावत’ इस काल की प्रमुख रचनाएं हैं. भक्ति काल के काव्यों को हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ काव्य की संज्ञा दी गई हैं.

भक्ति काल साहित्य की विशेषताएं व प्रवृति (bhakti kaal ki visheshtayen bhakti kaal ki pravritti)

पहले भारत छोटे छोटे राज्यों में विभाजित था. और एक राष्ट्र की भावना विकसित नही हुई थी. भक्ति काल अर्थात चौहदवी शताब्दी से लेकर सत्रहवी शताब्दी की अवधि में विभिन्न कवियों ने ऐसे साहित्य की रचना की

जिससे राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन प्रारम्भ हुआ और राजनीतिक रूप से भारत के अखंड राष्ट्र होने की अवधारणा का विकास हुआ.

इस काल में भारत की लगभग सभी भाषाओं में भक्ति काव्य रचा गया. भक्त कवियों ने देश के विभिन्न भागों में घूम घूमकर ईश्वर की भक्ति का प्रचार किया एवं आडम्बरों के विरुद्ध आवाज उठाई, जिसके फलस्वरूप पूरा भारत सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पुनः बंध गया.

भक्ति काल की उपलब्धियां (Bhaktikal’s achievements):-

भक्ति काल की सबसे बड़ी उपलब्धि काव्य के जरिये समाज सुधार करना था. उस काल में समाज में कई प्रकार के अंधविश्वास एवं आडम्बर विद्यमान थे. मुसलमानों के आगमन के कारण एक नई संस्कृति का प्रभाव भारतीय समाज पर पड़ने लगा.

राजनीतिक शक्ति मुसलमानों के हाथ में थी, इसलिए हिन्दुओं की स्थिति बिगड़ती जा रही थी. धार्मिक कट्टरता, रुढिवादिता, जातिवाद, इत्यादि समस्याएं समाज को दीमक की तरह खाएं जा रही थी.

ऐसे समय में कवियों ने अपने काव्यों से ऐसे आडम्बरों पर कुठाराघात कर जनता को सही रास्ते पर लाने का प्रयास किया. सामाजिक भेदभाद मिटाने के प्रयास हुए जिनका एक उदहारण देखिए.

जाति-पाति पूछें नहिं कोई
हरि को भजै सो हरि का होई !!

बढ़ते आडम्बर के लिए कबीर ने हिन्दू मुस्लिम दोनों को डाटा

पाहन पूजे हरि मिले, तो मै पुजू पहार
ताते यह चाकी भली, पीस खाय संसार
कांकर पाथर जोरि के, मस्जिद लेई बनाय
ता चढ़ी मुल्ला बांग दे, का बहिरा भई खुदाय

भक्तिकालीन साहित्य की विशेषताएं:-

भक्ति काल के भक्त कवियों ने अपने भक्ति काव्यों के माध्यम से लोगों को सदाचार का पाठ पठाया. तुलसीदास ने इसी काल में रामचरितमानस की रचना की.

उस समय के भक्त कवियों की भक्ति को सामाजिक दृष्टि से देखे तो इनके काव्य में तत्कालीन समाज को विभिन्न बुराइयों से मुक्त करने और श्रेष्ठ गुण विकसित करने की पुकार सुनाई देती हैं.

भक्ति-काल ने हिन्दू मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया. कई मुसलमान कवियों ने भी हिन्दू देवताओं की भक्ति में सराबोर होकर काव्यों की रचना की. मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत इसका उदहारण हैं.

भक्ति एवं सामाजिक आदर्श के दृष्टिकोण से भी मीरा, सूरदास एवं तुलसीदास के समकक्ष कवि इस काल के बाद फिर पैदा न हो सके.

काव्य शिल्प एवं भाषा के दृष्टिकोण से भी भक्ति काल बेहद समृद्ध रहा. रामचरितमानस आज तक हिंदी का श्रेष्ठ महाकाव्य बना हुआ हैं. कबीर के दोहे आज भी जन जन में लोकप्रिय हैं.

भक्ति काल के कवियों कबीर, रहीम और तुलसी ने जनमानस को जितना प्रभावित किया उतना न इससे पहले किसी काल में किसी ने नही किया था.

और अब तक भी आम आदमी को प्रभावित करने वाले काव्य की रचना नही की जा सकी हैं. आधुनिक कवियों ने अच्छी कविताओं की रचना की हैं, किन्तु आम आदमी तक इन काव्यों की उतनी पहुच नही हैं. जितनी कबीर, तुलसी एवं रहीम की हैं. इनके काव्य भारतीय जनमानस में रच बस चुके हैं.

भक्ति काल को स्वर्ण युग क्यों कहा जाता हैं. (Why is the Bhaktikaal called the golden Era)

आदिकाल साहित्य बनाम भक्ति काल काव्य:- भक्ति काल को स्वर्ण युग सिद्ध करने के लिए इसकी उत्कृष्टता की तुलना अन्य कालों के साहित्य से भी करना आवश्यक हैं.

आदिकालीन काव्य में या तो धार्मिक काव्यधाराओं अथवा युद्ध काव्य की प्रधानता हैं. आदि काल में रचे गये वीर रस की कविता हो या श्रृंगार रस की, इसमें अतिशयोक्ति की अधिकता हैं.

जितना अधिक भक्ति काल के कवियों ने समाज को प्रभावित किया हैं. उतना आदिकाल के कवि नही कर सके हैं. आदिकाल का काव्य आम आदमी का काव्य नही बन सका.

रीतिकाल बनाम भक्ति काल:- रीतिकाल में श्रृंगार रस की कविताओं की अधिकता थी. इस काल के अधिकतर कवि किसी न किसी राजदरबार की शोभा हुआ करते थे.

इसलिए उनका अधिकतर काव्य राजा की प्रशंसा के लिए होता था. इनमें से अधिकतर काव्यों के उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम नही थे. इस दृष्टिकोण से ये काव्य भक्ति कालीन काव्यों के समक्ष ठहर नही सकते.

आधुनिक काल साहित्य बनाम भक्तिकालीन काव्य:- हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का प्रारम्भ 1842 में हुआ था. इस काल ने हिंदी साहित्य को बेशक बहुत अच्छे कवि जैसे सुमित्रानंदन पन्त, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन, मुक्तिबोध इत्यादि दिए.

परन्तु इनमें से कितने कवियों एवं कितने काव्यों से भारत का आम आदमी परिचित हैं ? भक्ति काल को समाप्त हुए लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष बीत चुके हैं, फिर भी रामचरितमानस की चौपाइयाँ तथा कबीर एवं रहीम के दोहें भारतीय जनमानस के जीवन का हिस्सा बने हुए हैं.

भक्ति कालीन काव्य की प्रांसगिकता आधुनिक सन्दर्भ में कम नही हुई हैं. काव्य शिल्प एवं भाषा सौन्दर्य के दृष्टिकोण से भी रामचरितमानस के समक्ष आधुनिक काल का कोई काव्य नही ठहरता.

भक्ति काल का काव्य भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों दृष्टिकोण से उच्चकोटि का था. भक्ति काल के काव्य के बिना हिंदी साहित्य की सम्रद्धि की कल्पना नही की जा सकती हैं.

कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता हैं एवं उसमें समाज सुधार की क्षमता विद्यमान होती हैं. साहित्य के इस पैमाने पर भी भक्तिकाल का साहित्य बिलकुल खरा उतरता हैं. इसलिए भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता हैं.

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