भारत पाकिस्तान सम्बन्ध पर निबंध | Bharat Pakistan Sambandh Essay In Hindi

भारत पाकिस्तान सम्बन्ध पर निबंध Bharat Pakistan Sambandh Essay In Hindi: Dear Students Here Is A Essay On Indo Pak Relation In Hindi. भारत पाकिस्तान के आपसी रिश्ते पर निबंध दिया गया हैं.

कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 , 8, 9, 10 के विद्यार्थियों के लिए यह छोटा बड़ा हिंदी निबंध दिया गया हैं.

भारत पाकिस्तान निबंध Bharat Pakistan Sambandh Essay In Hindi

Bharat Pakistan Sambandh Essay In Hindi

अंग्रेजों की फूट डालों और राज करो की निति के परिणाम स्वरूप 14 अगस्त 1947 को भारतपाक विभाजन के साथ पाकिस्तान को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, इसके ठीक एक दिन बाद 15 अगस्त 1947 के दिन भारत को स्वतंत्रता मिली थी.

इससे पूर्व पाकिस्तान नाम कोई देश दुनिया में नही था. जिन्ना की स्वार्थी निति के चलते बीसवीं सदी के आरम्भ में ही मुसलमानों को लामबंद कर एक नये राष्ट्र पाकिस्तान के लिए मांग शुरू कर दी थी.

भारत पाकिस्तान संबंध – (Bharat Pakistan Sambandh Essay)

पाकिस्तान में इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात भारत और पाक के मध्य रिश्तों में कई बार उतार चढ़ाव भी देखे गये, उरी और पठानकोट हमलें के समय दोनों देशों के रिश्तों पूरी तरह तल्ख हो चुके हैं.

इन घटनाओं के बाद दोनों देशों के राजयनिक सम्बंध भी बिगड़ गये हैं. हालांकि कोरोना महामारी में भारत ने अपने पड़ोसी देशों को फ्री वैक्सीन नीति के तहत पाकिस्तान को भी निशुल्क वैक्सीन दी गई.

दोनों देशों के मध्य व्यापारिक रिश्ते पूरी तरफ ढप हैं. प्राणरक्षक दवाइयों के अतिरिक्त अन्य किसी तरह के उत्पादों पर आयात पर पाकिस्तान सरकार द्वारा पूरी तरह से रोक लगाई गई हैं.

जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35A की बर्खास्तगी और दो बड़े आतंकवादी हमलों के बाद दोनों देशों के रिश्ते सामान्य नहीं हो पाए हैं. आने वाले कुछ वर्षों में रिश्तों में सुधार देखे जा सकते हैं.

दो संगे भाइयों की तरह एक ही देश के विभाजन से जन्में भारत और पाकिस्तान के संबंध शुरुआत से ही कटुतापूर्ण रहे हैं. पाकिस्तान ने कश्मीर प-आर 22 अक्टूबर 1947 को आक्रमण कर, इस दुश्मनी के बीज बो दिए था. भारत के जम्मू कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान ने अन्यायपूर्ण तरीके से दबा कर रखा हैं.

भारत ने हमेशा बड़े भाई की भूमिका के रूप में पाकिस्तान का हर मुश्किल में साथ दिया हैं, जबकि पाक कभी चीन कभी अमेरिका से मिलकर भारत के खिलाफ षड्यंत्र तैयार करने में कोई कसर नही छोड़ी.

दोनों देश चार बड़े युद्धों की विभिशसा को देख चुके हैं, सीमा पार दोनों ओर की जनता अमन चैन से अपने अपने वतन का विकास चाहती हैं, वही पाकिस्तान हर वक्त नये जुगाड़ में लगा रहता हैं, कैसे भारत की टांग अड़ाई जाएं.

इमरान खान और नरेंद्र मोदी

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय सम्बन्ध अपने निम्नतम स्तर पर रहे.

ख़ास कर इमरान की भारत और भारतीय प्रधानमंत्री के बारे में पब्लिक रेलियों में बदजुबानी और अपमानसूचक शब्दों के प्रयोग भी देखे गये.

२०१८ से २०२२ इन चार वर्षों में भले ही बॉर्डर पर सीज फायर की स्थिति लम्बे समय तक बरकरार रही, मगर रिश्तों में कडवाहट ही रही. दोनों देशों के हेड ऑफ़ स्टेट के मध्य फोन कॉल संवाद भी समाप्त हो गये थे. बाईडन कॉल करता नहीं मोदी फोन उठाते नहीं यह उक्ति इमरान को घेरने के लिए हमेशा विपक्षी दल खान को घेरते थे.

पाकिस्तान की खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद खान ने भारत विरोधी राग को हर जगह अलापा. हालांकि संसद में अविश्वास मत पास होने के बाद जब इमरान अपदस्थ हुए तो उन्होंने एक के बाद एक हर पब्लिक रेली में भारत और भारत की विदेश नीति की जमकर तारीफे की थी.

भारत पाकिस्तान संबंध का इतिहास

अंतिम वायसराय लोर्ड माउंट बेटन की विभाजन योजना के अनुसार सभी रजवाड़ों तथा रियासतों को यह अधिकार प्रदान कर दिया गया, कि वे चाहे तो भारत के साथ मिले या पाकिस्तान के अथवा वे स्वतंत्र रूप से अलग भी रह सकते है.

इस तरह हैदराबाद व जूनागढ़ की तरह जम्मू कश्मीर ने भी स्वयं को किसी भी देश में न मिलाकर स्वतंत्र रहने का निश्चय किया था.

पाकिस्तान द्वारा बार बार प्रलोभन के मौके मिलने के उपरांत भी जम्मू कश्मीर के राजा हरिसिंह ने पाकिस्तान के प्रस्ताव को ठुकरा दिया, जिसके उकसावे की निति के तौर पर पाकिस्तानी ने अक्टूबर 1948 में हरिसिंह के सम्पूर्ण राज्य पर काबाइली हमला कर दिया.

हरिसिंह भारत के पास सैन्य सहायता के लिए आए, उस समय उन्होंने जम्मू कश्मीर का भारत के साथ विलय के सहमती पत्र पर हस्ताक्षर किये, तदोपरान्त भारतीय सेना ने मौर्चा संभाला तथा 24 घंटों में युद्ध को पूर्व स्थति में ला दिया. पाकिस्तानी घुसपैठियों जान बचाकर भाग गये, सेना पीछा करती हुई लाहौर तक चली गईं, युद्ध विराम की घोषणा के बाद सेनाएं वापिस बुला ली गईं.

इसी समय भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु एक बड़ी चूक कर जाते हैं, जिनका खामियाजा आज तक भारत के लोग भुगत रहे हैं.

इस विषय के हल के लिए वे संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर विवाद को किसी हल के लिए ले जाते हैं. मगर आज भी कश्मीर विवाद यू का यू पड़ा हैं, जिस पर किसी तरह का समाधान नही निकल पाया हैं.

भारत पाकिस्तान युद्ध व विवाद

पाकिस्तान ने अनाधिकृत रूप से POK पर कब्जा कर रखा हैं, वही वो कश्मीर घाटी में आए दिन घुसपैठ व आतंकवादी भेजकर इंडो पाक रिलेशन को उसी स्थति में रहने देना चाहते हैं, जिससे पाकिस्तान की सेना का राजनीति पर वर्चस्व कायम रहे.

अप्रैल 1965 में पाक की ओर से घुसपैठिये भेजकर कच्छ के रन तथा कश्मीर में घुसपैठ की शरारत की गईं, लाल बहादुर शास्त्री के कुशल नेतृत्व में पाक की इस हरकत को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए सैन्य सैन्य कार्यवाही शुरू की गईं, जो 1965 के भारत पाक युद्ध में बदल गईं.

4 महीने तक दोनों देशों के बिच जंग चलती रही, 22 अक्टूबर 1965 को संयुक्त राष्ट्र संघ की दखल से यह युद्ध समाप्त हुआ, मगर इससे पूर्व ही पाकिस्तान के सैनिक हथियार डालकर भाग चुके थे.

तक़रीबन 7-8 माह बाद सोवियत संघ रूस उस समय भारत का परम मित्र था, उसके कहने पर भारत पाक समझौता 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में सम्पन्न हुआ, लेकिन इस दौरान ताशकंद गये भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में रहस्यमयी तरीके से मृत्यु हो गईं थी.

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971

इस समझौते के उपरान्त कुछ साल शान्ति पूर्ण तरीके से गुजर ही रहे थे, कि पूर्वी पाकिस्तान में याहया खान के अत्याचारों के कारण गृहयुद्ध शुरू हो गया. वहां के बंगाली भारत में आकर शरण लेने लगे.

नई दिल्ली में आने वाले बंगलादेशी शरणार्थीयों की संख्या 1 करोड़ तक पहुच गईं, भारत ने उनके खाने पीने तथा अस्थायी रूप से रहने की व्यवस्था की तथा उन्हें मेहमान स्वरूप रखा.

जो पाकिस्तान को नागवार गुजरा, उसने 2 दिसम्बर 1971 को वायुसेना से भारतीय एयरबेस पर हमला शुरू कर दिया. भारतीय सेना ने पाकिस्तान को मुहतोड़ जवाब दिया, इस जवाबी कार्यवाही में कुछ ही दिनों में पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए, तथा एक नये राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में जन्म हुआ.

1971 के इंडिया पाक वॉर के बाद 3 जुलाई 1972 को शिमला समझौता किया गया. इस समझौते में भारत ने पाकिस्तान को के साथ युद्ध के मानवीय पहलुओं पर विचार करते हुए सरेंडर कर चुके 90,000 सैनिकों सहित विजित क्षेत्र को पाकिस्तान को लौटा दिया. यह वजह हैं कि आज भी इसे भारत की सबसे बड़ी कुटनीतिक हार माना जाता हैं.

वर्ष 1971 के भारत पाक युद्ध तथा 1972 के शिमला समझौते के बाद दोनों देशों के बिच सामाजिक, धार्मिक, राजनितिक व आर्थिक सम्बन्धों में सुधार हो रहा था, कि 1979 को सोवियत रूस ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया,

भारत सोवियत संघ के साथ था,जबकि अफगानिस्तान पाकिस्तान का समर्थक था. इसके चलते दोनों देशों के संबंध एक बार भी कटुताभरे रहे.

1985 में भारत की ओर से एक बार फिर मित्रतापूर्ण सम्बन्धों की पहल की, मगर भारत का यह प्रयास नाकाम रहा. कुछ वर्ष बाद 1998 में भारत ने पोकरण में अमेरिका की आँखों में धूल झोकते हुए अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था.

जिससे एक बार फिर दोनों में कटुता पूर्ण संबंध स्थापित हो गये. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत पाक के सबंधों में सुधार लाने के लिए कई प्रयास किये,जिनमें 1999 में ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा का शुभारम्भ किया.

पाकिस्तान हमेशा अपनी पालिसी के अनुसार कार्य करता रहा, भारत के तमाम प्रयासों के बाद भी उन्होंने जम्मू कश्मीर में फिर से घुसपैठ शुरू कर दी.

जिसका नतीजा भारत पाकिस्तान के मध्य एक और युद्ध जिसे कारगिल युद्ध कहा जाता हैं, के रूप में सामने आया. इस युद्ध में भी पाकिस्तान को करारी हार झेलनी पड़ी. मगर इससे संबंध फिर से खराब होने लगे.

इंडिया पाकिस्तान रिलेशन्स 2000 के बाद

दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार के लिए 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशरफ के मध्य आगरा सम्मेलन हुआ. इस सम्मेलन में भी पाकिस्तान के प्रतिनिधि की कश्मीर हठ के कारण बातचीत आगे नही बढ़ पाई, तथा यह समझौता भी बेनतीजा ही रहा.

एक बार फिर दोनों देशों के सम्बन्धों में दरार जब आई तब 2001 में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने भारतीय संसद भवन पर आतंकवादी हमला किया. वर्ष 2003 तक दोनों देशों के रिश्तों में कटुता रही.

एक बार फिर 20 जनवरी 2006 को लाहौर और अमृतसर के मध्य बस सेवा शुरू होने से दोनों देशों की जनता की शान्ति की नई उम्मीद जगी.

मगर 26 नवम्बर 2008 को पाकिस्तान द्वारा मुंबई की ताज होटल पर किये जाने से पूरे विश्व को यह पता चल गया, कि पाकिस्तान के साथ मित्रता सांप को दूध पिलाने जैसा हैं.

वर्तमान में भारत पाकिस्तान संबंध

सन 2000 से लेकर 2018 तक भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के हर मौके पर उन्हें और विश्व को सबूत पेश किये, जाने के उपरांत भी.

पाकिस्तान द्वारा इन्हें रोकने की बजाय आतंकवाद को पोषण देकर हर तरह की सुविधा देने में जुटा हैं. हर मंच पर भारत की बात न सुनकर कश्मीर की राग अलापने से भारत पाक सम्बन्धों में कभी भी सुधार नही आ सकता.

वर्ष 2011 के क्रिकेट विश्वकप में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम भारत खेलने आई थी. इस दौरान भारत पाकिस्तान के मध्य हुए सेमीफाइनल मैच के दौरान युसूफ रजा गिलानी और मनमोहन सिंह दोनों एक साथ बैठकर मैच का आनन्द ले रहे थे. क्रिकेट तथा परस्पर सांस्कृतिक व फिल्म जगत के कारण भारत पाकिस्तान के संबंध सुधरे हैं.

2016-17 में उरी, पठानकोट एयरबेस पर आतंकवादी हमलों तथा 2018 में आए दिन जम्मू कश्मीर में आतंकी घुसपैठ के चलते आज फिर दोनों देशों के बिच तनातनी का माहौल बना हुआ हैं. कुलदीप जाधव मामला भी दोनों के राजनितिक/कुटनीतिक तथा राजनितिक संबंधो में भी खटास का कारण रहा हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काल में भारत की ओर से पाकिस्तान के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाने की हर संभव कोशिश की गईं, चाहे नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को न्यौता हो या नवाज शरीफ के कार्यक्रम में मोदी का अचानक जाना, मोदी की ओर से उठाए गये, सकारात्मक कदमों में से हैं.

दूसरी तरफ भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक करके यह जता दिया, हम दोस्त को दोस्ती निभाते हैं, दुश्मन के साथ दुश्मनी निभानी भी हमे आती हैं.

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