हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय | Biography Of Harishankar Parsai In Hindi

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय Biography Of Harishankar Parsai In Hindi हरिशंकर परसाई समाज के ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपनी कलम के सहारे लोगों को समाज के हर अनछुए पहलू से परिचित करवाया।

साथ ही इन्होंने सामाजिक पाखंड और कुरीतियों के खिलाफ अपनी रचनाओं को हास्यात्मक तरीके से सबके सामने प्रस्तुत किया। जिससे हिंदी साहित्य प्रत्येक व्यक्ति को रोचक और व्यंगात्मक लगने लगा।

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय Biography Of Harishankar Parsai In Hindi

हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय Biography Of Harishankar Parsai In Hindi
पूरा नाम हरिशंकर परसाई
जन्म 22 अगस्त 1924
स्थान होशंगाबाद, मध्य प्रदेश
पिता जुमक लालू प्रसाद
माता चम्पा बाई
पहचानव्यंग्यकार
पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार
कविताएँहँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे
देहांत1995 ई.

इस प्रकार, हरिशंकर परसाई भारतीय समाज के जाने माने लेखक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार थे। जिनकी व्यंगात्मक रचनाओं के संग्रह ने हिंदी साहित्य और समाज के उत्थान में अतुलनीय योगदान दिया है। जिसके चलते आज हम आपके लिए हरिशंकर परसाई के जीवन से जुड़ी रोचक बातें लेकर आएं हैं।

हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त सन् 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के होशंगाबाद जिले के जामनी में हुआ था। इनके पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद और माता का नाम चम्पा बाई था।

परसाई के ऊपर से मां बाप का साया बचपन में ही उठ गया था। ऐसे में अपने चारों भाई बहनों की जिम्मेदारी का बोझ इनके ऊपर ही आ गया था। हरिशंकर परसाई का जीवन बड़ी ही कठिनाईयों में व्यतीत हुआ था।

जिसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा गर्दिश में भी किया है। बचपन से ही हरिशंकर परसाई अपनी बुआ के पास रहा करते थे, जिनसे उन्होंने बेबाकी से जीना सीखा था।

इनकी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश में ही संपन्न हुई थी लेकिन आगे की शिक्षा के लिए यह प्रदेश से बाहर चले गए थे। परसाई ने आर. टी. एम नागपुर विश्वविद्यालय से परास्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

हरिशंकर परसाई को मैट्रिक पास करने के बाद मात्र 18 वर्ष की उम्र में ही वन विभाग में नौकरी मिल गई थी लेकिन साल 1942 में इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी।

इसके बाद इन्होंने खंडवा, जबलपुर समेत कई सारे सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में अध्यापन का कार्य सुचारू रूप से किया। कहते है परसाई के लेखन जीवन की शुरुआत भी यहीं से हुई थी। इनकी सबसे पहली पत्रिका ” वसुधा ” का प्रकाशन जबलपुर से हुआ था।

प्रारंभ में हरिशंकर परसाई को व्यंग लेखक के तौर पर प्रसिद्धि मिली लेकिन धीरे धीरे उन्हें सामाजिक चेतना सम्बन्धी विषयों पर लिखने के लिए भी पहचाना जाने लगा।

हरिशंकर परसाई की कलम सदैव ही रूढ़िवादिता के विरोध में चली और उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज में एक सकारात्मक ऊर्जा का विकास किया। जिसके लिए हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उन्हें एक सामाजिक व्यंगकार की उपाधि दी गई। 

मौलिक रचनाएं

हरिशंकर परसाई ने अपने लेखन के आरंभिक दौर में जाने माने अखबार नई दुनिया में सुनो भई साधो और नयी कहानियों में पांचवा कॉलम लिखना शुरू किया। धीरे धीरे इन्होंने हिंदी साहित्य की ओर अपना रुख मोड़ा।

हालांकि तब भी परसाई जबलपुर से प्रकाशित अखबार देशबंधु में पाठकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दिया करते थे। जिसमें वह पाठकों के मनोरंजन , इश्क, फिल्मी, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों से जुड़े सवालों के जवाब दिया करते थे।

उनके जवाबों को पढ़कर अखबार के पाठक इतना प्रभावित होते थे कि उन दिनों देशबंधु अखबार के पाठक दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे थे। हरिशंकर परसाई का हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी अनुकरणीय योगदान है।

इनके द्वारा रचित कहानियों में संग्रह, हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव के अलावा इनके द्वारा लिखित उपन्यास रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल मुख्य हैं।

इसके साथ ही परसाई की परसाई रचनावली का प्रकाशन भी नई दिल्ली से हुआ था। दूसरी ओर, इनके द्वारा लिखे गए निम्न लेख संग्रह काफी प्रसिद्ध हैं।

जैसे :- तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेईमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचंद्र के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, बस की यात्रा, शिकायत मुझे भी है, उखड़े खंभे, पगडंडियों का जमाना आदि हैं।

इतना ही नहीं हरिशंकर परसाई को सन् 1982 में अपनी रचना विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

हरिशंकर परसाई की कलम से…..

  1. जब व्यक्ति किसी प्रकार का नशा करता है तो उसमें हीनता का नशा और उच्चता का नशा बारम्बार रहता है।
  2. इंसान में मौजूद अच्छी आत्मा किसी मोड़कर रख दी जाने वाली कुर्सी की भांति होनी चाहिए। जिसे आवश्यकता पड़ने पर फैलाकर बैठ जाए अन्यथा मोड़कर कोने में रख दें।
  3. जो लोग पानी भी छानकर पीते है लेकिन समय आने पर वह इंसान का खून बिना छाने ही पी जाया करते हैं।
  4. जिन लोगों को पसीना सिर्फ गर्मी और डर के कारण आता है। ऐसे व्यक्ति मेहनत के पसीने से घबराते हैं।
  5. जो व्यक्ति स्वार्थ का विसर्जन कर देता है वह आगे चलकर किसी व्यक्ति को मारना अपना नैतिक अधिकार समझ लेता है।

भारतीय समाज में प्रेम और अंतर्जातीय विवाह को लेकर हरिशंकर परसाई के क्रांतिकारी विचार

हरिशंकर परसाई समाज की किसी भी रीत को लेकर व्यावहारिक नजरिया रखते थे। उनका मानना था कि न्याय और सुख की लड़ाईयां अकेले नहीं लड़ी जा सकती हैं। इसके लिए मनुष्यों को एकजुट होना होगा।

ठीक इसी प्रकार से, हरिशंकर परसाई के समय में जब समाज में कहीं कोई प्रेम या अंतर्जातीय विवाह करता था तो वह इसका विरोध करने वालों से कहा करते थे कि अगर कोई लड़की अपनी मर्जी से शादी करना चाहती है तो इसमें हर्ज क्या है।

दूसरी ओर, भारतीय समाज में विवाह को लेकर हरिशंकर परसाई का मानना था कि मनुष्य ने मनुष्य से ही तो शादी की है इसमें जाति क्यों देखनी है? क्योंकि हमारे समाज में तो महान् पुरुषों ने मनुष्य जाति से बाहर भी शादियां की है, जैसे – भीम और हिंडिबा का विवाह।

आगे हरिशंकर परसाई कहते हैं कि भारतीय समाज में 18 साल का होने के बाद युवाओं और युवतियों को सरकार बनाने का अधिकार है तो उन्हें अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने की भी आज़ादी मिलनी चाहिए। 

इस प्रकार हरिशंकर परसाई ने अपनी कलम हमेशा ही सामाजिक मुद्दों को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए उठाई। साथ ही हिंदी साहित्य में व्यंग विधा को स्पष्ट और सृदृढ़वादी तरीके से रखने के लिए सम्पूर्ण हिंदी साहित्य जगत हरिशंकर परसाई का सदा ऋणी रहेगा।

मां भारती का यह पुत्र जो सदैव अपनी व्यंग रचनाओं से समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का दंभ भरता था, उन्होने 10 अगस्त सन् 1995 को जबलपुर में अपनी जिंदगी को पूर्ण विराम दिया।

हरिशंकर परसाई की कलम की प्रशंसा में विश्वनाथ उपाध्याय लिखते हैं कि…… हरिशंकर परसाई की लंबी और पतली काया किसी बंदूक की नली के समान है, जिसमें से व्यंग दौड़ता हुआ निकलता है और सामने वाले जन शत्रु को चीर कर रख देता है।

भाषा-शैली

व्यंग्य के मुताबिक़ ही शब्दों के चयन की विद्वता के धनी हरिशंकर परसाई जी हिंदी के एक सफल व्यंग्यकार हैं. इनकी लेखनी में हिंदी के तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग यथाआवश्यक देखने को मिलता हैं.

पाठक के दिल को छू जाने वाली परछाई की लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्ति इनके व्यंग्य को अधिक ग्राह्य बनाती हैं.

इनकी भाषा में लोक व्यवहार में उपयोग किये जाने वाले मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी देखने में आता हैं. इनकी लगभग सभी रचनाओं में व्‍यंग्‍यात्‍मक, विवरणात्‍मक और कथानक शैली के दर्शन मिलते हैं.

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